Wednesday, 31 December 2014

आतंक का चेहरा

मुंबई के आतंकी हमले के आरोपी जकीउर रहमान लखवी को पाकिस्तान ने कभी आतंकी माना ही नहीं, इसी का नतीजा है कि वहां की एक अदालत ने उसकी नजरबंदी को खारिज करने का फैसला दे दिया है। यह पूरा प्रकरण आतंकवाद पर पाकिस्तान के दोहरे रुख की फिर से पुष्टि करता है।

पेशावर में हुए हमले के बाद जब पाकिस्तानी सरकार आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की दुहाई दे रही थी, ठीक उसी वक्त वहां की एक अदालत ने लखवी को मुंबई के 26/11 के हमले के सिलसिले में जमानत दे दी थी। लखवी को इस हमले में जीवित पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब के भारत में दिए गए बयान के आधार पर गिरफ्तार किया गया था, मगर पाकिस्तानी अदालत भारत द्वारा दिए गए सुबूतों को मान ही नहीं रही है। कसाब को भारतीय अदालत ने फांसी की सजा दे दी, पर पाकिस्तानी अदालत में यह मामला दो कदम भी आगे नहीं बढ़ सका है।

यही नहीं, इस हमले का असली साजिशकर्ता हाफिज सईद न केवल खुलेआम घूम रहा है, बल्कि लगातार भारत के खिलाफ भड़काऊ भाषण भी दे रहा है। भारत के कड़े रुख के बाद लखवी को रिहा भले न किया गया हो, पर उसे हिरासत में आतंकी धाराओं के तहत नहीं, बल्कि जनसुरक्षा आदेश के तहत रखा गया है और उस आदेश को भी अदालत ने पलट दिया है। इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि आतंकवाद पर पाकिस्तानी सरकार और वहां की फौज का रुख अलग-अलग है।

हकीकत यह है कि भारत के दबाव के बाद नवाज शरीफ सरकार ने लखवी की जमानत को ऊपरी अदालत में चुनौती देने का वायदा किया था, मगर आज तक उसने ऐसा नहीं किया है। उसे अदालत के फैसले की कॉपी लेने में ही एक हफ्ते लग गए! ऐसा नहीं हो सकता है कि पाकिस्तान अपनी जमीन से तो आतंकियों का सफाया कर ले और भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने दे। यह आग से खेलने जैसी बात है।

बंगलूरू में हुए ताजा धमाके में हालांकि यह पुष्टि नहीं हुई है कि इसे किस संगठन ने अंजाम दिया था, पर आतंकवाद भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जिससे निपटने के लिए दोनों को एक दूसरे के साथ की जरूरत है। यदि अच्छे और बुरे तालिबान में फर्क नहीं है, तो भारत और पाकिस्तान में होने वाले आतंकी हमलों में भी फर्क नहीं किया जाना चाहिए।

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