फख्र है मुझे हिन्दुस्तानी होने पर
====================
अरब में बहुत क्रूर और दरिंदे लोग रहते है, और भारतीय मुसलमानो को जूते की नोक पर रखते है झूठे मामलों फसाकर गर्दन तक कटवा देते है, भारत के मुर्ख लोग अरब को धार्मिक स्थल मानकर उसके प्रति बहुत भावुक हो जाते और वहां नौकरी करने को अपना सौभग्य मानने लगते है सोचने लगते है वहाँ जाकर हमें जन्नत मिल जाएगी, और निहायत ही मुर्ख लोग तो अरब और इराक के लिए हिंदुस्तान से गद्दारी करने भी तैयार हो जाते और फिर वहां जाकर अपनी तशरीफ़ की खिदमत करवाते है और अरब और इराकियों का मैला उठाते है, भाई कोई कुछ कहे मुझे मेरे मुल्क़ प्यारा है जिसको जहा जाना है जाओ,
भारतीय मुसलमानो से अपील है की सच्चाई को समझे न अरब हमारा मुल्क़ है न अरबी हमारी भाषा हम हिंदुस्तानी है हिंदी संस्कृत उर्दू और दीगर हिंदुस्तानी ज़बान हमारी अपनी ज़बान है, भारतीय मुसलमानो का अरबी के प्रति बहुत लगाव है क्युकी क़ुरान शरीफ अरबी में है क़ुरान शरीफ के प्रति लगाव होना भी चाहिए पर इस बात को भी समझना चाहिए की अरबी भाषा उनकी रोज़मर्रा की भाषा है और वो लोग बहुत गन्दी गन्दी गालिया भी देंगे तो अरबी में, हिन्दुस्तानियो को अरबी तो आती नहीं तो वो उन गालियो को भी क़ुरान का कोई अंश समझने लगते है और बड़े अदब से सुनते है भारतीयों को गाली का पता तब चलता है जब वो अरबी शेख उनकी धुनाई कर देता है या पुलिस बुलाकर अरेस्ट करवा देता है, कई बार तो अरबी या उर्दू से अनभिज्ञ मुस्लमान इन भाषाओ में लिखा हुआ अश्लील साहित्य भी देख लेता है तो बड़े अदब से उठा कर उसे चुम लेता है आँखों से लगा लेता है उसे लगता है ये कोई धार्मिक पुस्तक है अरे भाई वो सिर्फ एक भाषा है और उस भाषा का हर तरह का प्रयोग होता है जैसे हिंदी या इंग्लिश का.
अरब वालो की क्रूरता से तो खुद पैग़म्बरे इस्लाम नबीये करीम सल्ललाहो अलैह व सल्लम भी परेशान थे और कहा करते थे की "मुझे सुकून की ठंडी हवा सरज़मीने हिन्द की तरफ से आती है"
फख्र करो और अल्लाह का लाख लाख शुक्रिया अदा करो की अल्लाह ने हमें हिंदुस्तान की मुबारक ज़मीं पर पैदा किया
भारतीय मुसलमानो को अरब सिर्फ हज और ज़ियारत करने जाना चाहिए और फिर वापस सीधे हिंदुस्तान आना, इससे ज़ादा अरबियों से उम्मीद रखने का परिणाम सबके सामने है,
मुझे गर्व है की मै मुस्लमान हु पर उससे भी जादा गर्व है की मै भारतीय मुस्लमान हु क्युकी इस ज़मीं से तो पैग़म्बरे इस्लाम नबीये करीम सल्ललाहो अलैह व सल्लम को भी सुकून की ठंडी हवा आती थी,
"मेरा सिर इबादत के लिए अरब की तरफ झुकेगा पर जब सर कटाने का वक़्त आएगा तो सिर्फ सरज़मीन हिन्दुस्तान के लिए कटेगा "
वन्दे मातरम
मोहम्मद फैज़ खान
७८३५८१४५१०
भारतीय मुसलमानो से अपील है की सच्चाई को समझे न अरब हमारा मुल्क़ है न अरबी हमारी भाषा हम हिंदुस्तानी है हिंदी संस्कृत उर्दू और दीगर हिंदुस्तानी ज़बान हमारी अपनी ज़बान है, भारतीय मुसलमानो का अरबी के प्रति बहुत लगाव है क्युकी क़ुरान शरीफ अरबी में है क़ुरान शरीफ के प्रति लगाव होना भी चाहिए पर इस बात को भी समझना चाहिए की अरबी भाषा उनकी रोज़मर्रा की भाषा है और वो लोग बहुत गन्दी गन्दी गालिया भी देंगे तो अरबी में, हिन्दुस्तानियो को अरबी तो आती नहीं तो वो उन गालियो को भी क़ुरान का कोई अंश समझने लगते है और बड़े अदब से सुनते है भारतीयों को गाली का पता तब चलता है जब वो अरबी शेख उनकी धुनाई कर देता है या पुलिस बुलाकर अरेस्ट करवा देता है, कई बार तो अरबी या उर्दू से अनभिज्ञ मुस्लमान इन भाषाओ में लिखा हुआ अश्लील साहित्य भी देख लेता है तो बड़े अदब से उठा कर उसे चुम लेता है आँखों से लगा लेता है उसे लगता है ये कोई धार्मिक पुस्तक है अरे भाई वो सिर्फ एक भाषा है और उस भाषा का हर तरह का प्रयोग होता है जैसे हिंदी या इंग्लिश का.
अरब वालो की क्रूरता से तो खुद पैग़म्बरे इस्लाम नबीये करीम सल्ललाहो अलैह व सल्लम भी परेशान थे और कहा करते थे की "मुझे सुकून की ठंडी हवा सरज़मीने हिन्द की तरफ से आती है"
फख्र करो और अल्लाह का लाख लाख शुक्रिया अदा करो की अल्लाह ने हमें हिंदुस्तान की मुबारक ज़मीं पर पैदा किया
भारतीय मुसलमानो को अरब सिर्फ हज और ज़ियारत करने जाना चाहिए और फिर वापस सीधे हिंदुस्तान आना, इससे ज़ादा अरबियों से उम्मीद रखने का परिणाम सबके सामने है,
मुझे गर्व है की मै मुस्लमान हु पर उससे भी जादा गर्व है की मै भारतीय मुस्लमान हु क्युकी इस ज़मीं से तो पैग़म्बरे इस्लाम नबीये करीम सल्ललाहो अलैह व सल्लम को भी सुकून की ठंडी हवा आती थी,
"मेरा सिर इबादत के लिए अरब की तरफ झुकेगा पर जब सर कटाने का वक़्त आएगा तो सिर्फ सरज़मीन हिन्दुस्तान के लिए कटेगा "
वन्दे मातरम
वन्दे मातरम
मोहम्मद फैज़ खान
७८३५८१४५१०
७८३५८१४५१०
No comments:
Post a Comment