Monday, 12 January 2015

योगी आदित्यनाथ बीजेपी के फायरब्रांड नेता....

पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में गुरु गोरखनाथ का मशहूर मंदिर मौजूद है. सदियों से ये मंदिर गोरखपुर की सबसे बड़ी पहचान रहा है. संत गोरखनाथ के सैकड़ों वर्षों पुराने इस मठ में कई योगी रात और दिन योग-साधना में लीन रहते हैं. लेकिन इस मठ में एक योगी ऐसा भी रहता है जो अपने दो पूर्व गुरुओं की तरह जब मंदिर की दहलीज लांघता हैं तो राज योगी बन जाता है.

योगी आदित्यनाथ बीजेपी के फायरब्रांड नेता माने जाते हैं और अब महंत अवैद्धनाथ के देहांत के बाद गोरखनाथ मठ के अगले महंत भी हैं लेकिन इन दिनों आदित्यनाथ अपने विवादित बयानों को लेकर लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं. योगी आदित्यनाथ की छवि एक ऐसे उग्र हिंदुत्वादी नेता की मानी जाती है जो राजनीति की बिसात पर अपने आग बरसाते बयानों के चलते आज हिंदुत्व के नए पोस्टर बॉय बन चुके हैं. भड़काउ भाषण देने और सांप्रदायिकता फैलाने के आरोपों को लेकर योगी आदित्यनाथ पहले भी विवादों में घिरते रहे हैं लेकिन योग साधना हो या फिर देश और प्रदेश की राजनीति योगी आदित्यनाथ ने लगातार पांच बार चुनाव जीत कर ये भी साबित किया है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति के वहीं सबसे बड़े दबंग हैं.

योगी आदित्यनाथ आज बीजेपी के स्टार प्रचारक बन चुके हैं लेकिन वे महज एक राजनेता ही नहीं है बल्कि शुक्रवार को महंत अवैद्धनाथ के देहांत के बाद गोरखनाथ अब मठ के अगले महंत भी बन गए हैं. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ सुर्खियों में हैं औऱ साथ ही वो मुसीबत में भी घिरते नजर आ रहे हैं. चुनाव आयोग के आदेश पर उनके खिलाफ चुनाव आचार संहिता उल्घंन के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई है. उपचुनाव में प्रचार के दौरान नोएडा समेत 5 रैलियों में योगी आदित्यनाथ पर भड़काऊं भाषण देने का आरोप सही पाया गया है. उत्तर प्रदेश की 11 सीटों पर हुए उप चुनाव में प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ पर सांप्रदायिक भावना भड़काने के आरोप लगे हैं और उनके खिलाफ नोएडा और लखनऊ में अलग – अलग मामले दर्ज किए गए हैं. बुधवार को लखनऊ में रोक के बावजूद रैली करने पर पुलिस ने उनके खिलाफ अलग से एफआईआर भी दर्ज की है.

2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में भी आदित्यनाथ को बीजेपी ने अपना स्टार प्रचारक बनाया था लेकिन ये पहला मौका है जब बीजेपी की नई टीम में वरुण गांधी की बजाए उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को तरजीह दी गई है. हिंदुत्व के अपने एजेंडे को लेकर मशहूर रहे योगी आदित्यनाथ उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं जो हिंदुत्व के अपने उग्र विचारों को लेकर खुलेआम अपनी ही पार्टी के खिलाफ भी खड़े नजर आते रहे हैं लेकिन उन सबके बावजूद भी बीजेपी ने उन्हें पहली बार प्रदेश स्तर पर बड़ा दायित्व सौंप दिया है.
उत्तरप्रदेश के विधानसभा उप चुनाव के दौरान विपक्षी दल लगातार योगी आदित्यनाथ और बीजेपी पर चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने का आरोप लगाते रहे है और आखिरकार योगी आदित्यनाथ के खिलाफ भड़काउ भाषण देने का मुकदमा भी दर्ज हो चुका है लेकिन ये कोई पहला मौका नहीं है जब योगी आदित्यनाथ ने विवादित बयान दिए हैं. उनके विवादों का सिलसिला उतना ही पुराना है जितना पुराना गोरखपुर में उनकी सियासत का सफर है.

बीजेपी के फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश की गोरखपुर लोकसभा सीट से पांचवी बार जीत कर संसद तक पहुंचे हैं. समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी, कोई भी यहां उनका तोड़ ढूढ नहीं पाई हैं. दरअसल योगी आदित्यनाथ ने विकास के साथ-साथ कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे को अपनी राजनीतिक का बड़ा हथियार बनाया है जिससे उनकी राजनीतिक ताकत लगातार बढती चली गई है.

योगी आदित्य नाथ पूर्वी उत्तरप्रदेश में बीजेपी के कद्दावर नेता माने जाते हैं लेकिन इस इलाके में उन्होने हिंदू युवा वाहिनी नाम का अपना एक समानांतर संगठन भी खड़ा कर रखा है. हिंदुत्व के अपने एजेंडे और हिंदू युवा वाहिनी जैसे संगठनों की बूते ही योगी आदित्यनाथ ने एक उग्र हिंदूवादी नेता के तौर पर अपनी ब्रांडिग की है. बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व और विकास के मुद्दे को लेकर अपनी कुछ घोषित प्राथमिकताएं भी रही हैं जिसकी वजह से कई बार अपनी ही पार्टी बीजेपी से उनका टकराव भी होता रहा है.  

वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने बताया कि किसी भी क्षेत्र में ईस्टर्न यूपी के अलावा कुछ जिलों में वह चुनाव में किसी की हार जीत का कारण बन सकते हैं. इसलिए वो एक बड़े लीडर में है. वह अपनी इस ताकत को समझते हैं. अपनी इस राजनीति को भी समझते हैं. इसीलिए उन्होने वो पैरेलल संगठन भी खड़ा कर रखा है हिंदु युवा वाहिनी नहीं तो उसकी कोई जरुरत नहीं है वो बीजेपी की राजनीति करते थे. चूंकि सगंठन का विस्तार है उसकी एक ताकत है और इन तमाम जिलो में गोरखपुर, कुशीनगर, महाराज गंज, देवरिया, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गुंडा, बहराइच, आजमगढ़ में वो संगठन बना हुआ है. जिताने हराने की चुनाव राजनीति में एक भूमिका उनकी रहती है इसीलिए पार्टी उनको बर्दाश्त करती है. और वो भी अपनी ताकत को जानते हुए पार्टी को ब्लैकमेल भी कर लेते हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के शहर गोरखपुर और उसके आस –पास के इलाके में योगी आदित्यनाथ के नाम का आज चारों तरफ डंका बजता है. आखिर योगी आदित्यनाथ कैसे बने बीजेपी के फायरब्रांड नेता. कैसे उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे पर की है अपनी राजनीति की ब्रांडिंग.

गोरखनाथ मठ के हिंदवी पत्रिका संपादक डॉ प्रदीप राव बताते हैं कि हम लोगों के पास जो जानकारी है कि पौड़ी जनपद में उत्तराखंड के योगी जी का जन्म हुआ था. और महराज जी 5 जून 1972 आपकी जन्मतिथी है. वहां से bsc विश्वविद्यालय गड़वाल से करने के बाद श्रीरीम जन्मभूमि का जब आंदोलन चल रहा था गोरक्षपीठाधिश्वर पुज्य बड़े महराज जी उस आंदोलन के अगुआ थे उसी दौरान योगी जी से उनकी भेट हुई और स्वभाविक रूप से हर संत महात्मा अपने किसी भी उत्तराधिकारी के लिए दर्शन तो करता है आगे के अपने शिष्यों में और उनमें कुछ न कुछ दिखा और 1993 में वे बड़े महराज जी के कहने पर बड़े महराज जी अपने साथ गोरखनाथ मंदिर में लेकर के आए.

गोरखपुर का ये गोरखनाथ मठ सैकड़ों एकड़ जमीन में फैला हुआ है. योगी आदित्यनाथ की राजनीति को समझने के लिए इस गोरखनाथ मठ का इतिहास भी जानना जरुरी है. दरअसल आठवीं सदी में मत्सयेंद्रनाथ नाम के एक संत ने नाथ संप्रदाय की शुरुवात की थी. मत्सयेंद्र नाथ के बाद उनके शिष्य गोरखनाथ ने नाथ संप्रदाय को पूरे देश में संगठित किया था. इस गोरखनाथ मंदिर और मठ की स्थापना भी गोरखनाथ ने ही की थी. ऐसा माना जाता है कि इसी मठ से पूरे देश में नाथ संप्रदाय का विस्तार हुआ है. नाथ संप्रदाय को जाति प्रथा के खिलाफ एक बड़े सामाजिक आंदोलन के तौर पर भी पहचाना जाता है यही वजह भी है कि सभी धर्मों के लोग नाथ संप्रदाय में योगी हुए है.   

वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह ने बताया कि जो हिंदू धर्म में जाति प्रथा आ गई थी और बहुत भारी पड़ रही थी. तो उन्होने इसे एक दम सिरे से नकार दिया. और दूसरा ये है कि जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्ति हो जाएगी इसी जन्म में. और मोक्क्ष का जो कान्सेप्ट है हिंदू धर्म में उसको हासिल करने के उद्देश्य से  उसका  एक प्रेक्टिकल तरीका बताया जाता था. जैसे जो इनके यहां आ जाता है दीक्षित हो जाता है. यानी मंत्र ले लेता है लेकिन वो मंत्र ऐसे नहीं ले लिया कि कान में सुन लिया वो जो गुरु है उसको जो दीक्षित कर रहा होता है उसको स्पर्श करता है. और स्पर्श करने का इनका मान्यता है नाथ पंथियों की की वो जो हजारों वर्ष की इनकी परंपरा है उसकी पूरी शक्ति उस शिष्य में ट्रासंफर हो जाती है. और उसके आधार पर फिर ये लोग प्रचार प्रसार का कार्य करते हैं.

गोरखनाथ मठ के हिंदवी पत्रिका संपादक डॉ प्रदीप राव बताते हैं कि भारत के सामाजिक इतिहास में महात्मा बुद्ध के बाद भारत के सामाजिक परिवर्तन में किन्ही दो महात्माओं ने यदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तो उसमें आदिशंकराचार्य थे. औऱ गुरु श्री गोरखनाथ थे. गोरखनाथ जी के उसी सामाजिक परिवर्तन और उसी आंदोलन की देने थी धार्मिक सुधार की देन थी कि भारत का भक्ति कालीन आंदोलन उन्ही के अभियानों पर जिसमें सूर, कबीर आदी का पूरा अभिउधय होता है.

गोरखनाथ मंदिर आज जिस शक्ल में नजर आता है उसका निर्माण महंत दिग्विजय नाथ ने करवाया था. इस गोरखनाथ मठ को केंद्र मान कर ही पूरे देश से नाथ पंथी यहां आते हैं. योगी आदित्यनाथ ने भी एक साल तक यहां नाथपंथ की परंपरा के मुताबिक शिक्षा हासिल की है. 15 जनवरी 1994 को मठ के महंत अवैद्धनाथ ने उन्हें बाकायदा दीक्षित करके अपना शिष्य बना लिया था और इस तरह 22 साल का नौजवान अजय सिंह विष्ठ, योगी आदित्यनाथ बन गया था.    

वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह ने बताया कि आदित्यनाथ अवैद्यनाथ जी  के वारिस हैं उनके उत्तराधिकारी हैं उन्होंने खुद ही घोषित किया है और वहां कोई बहुत ज्यादा विस्तृत में बताता नहीं लेकिन ये बताया जाता है कि आदित्यनाथ इनके भांजे हैं. रिश्तेदार भी हैं लेकिन वारिस हैं और सारा काम ये देख रहे हैं और आदित्यनाथ शुरू से नहीं थे 1972 में जन्म हुआ था. कोई बहुत उम्र नहीं है 42 साल के ही हैं और अजय सिंह इनका नाम हुआ करता था वहां से आकर अवैद्यनाथ जी ने लाकर संस्कारित किया.
योगी आदित्यनाथ योगी तो 1994 में बने लेकिन राजनीति की दुनिया में उन्होंने अपना पहला कदम चार साल बाद 1998 में रखा था. हांलाकि गोरखनाथ मठ से निकलकर राजनीति में आने वाले आदित्यनाथ पहले योगी नहीं है इस गोरखनाथ मठ का राजनीति में सक्रियता का सिलसिला काफी पुराना है औऱ ये उस वक्त शुरु हुआ था जब 1946 में महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखनाथ मठ में हिंदू महासभा का अधिवेशन कराया था. महंत दिग्वजिय नाथ पहली बार हिंदू महासभा के टिकट पर गोरखपुर से लोकसभा का चुनाव भी लड़े थे.  

वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह ने बताया कि इलेक्शन लड़ते थे वो कभी हिंदु महासभा के टिकट पर कभी निर्दलिय लड़ते थे कभी उस इलाके में उनका प्रभाव था लेकिन वो हार जाते थे . पहली बार इलेक्शन वो 1967 में जीते जब हिंदु रिवाइवोलिज्म का गोरखशाह अभियान चल चुका था. उत्तरप्रदेश में जनसंघ काफी बड़ी संख्या में 58 सीटें लाए थे. उस दौर में लोकसभा का साथ-साथ चुनाव हुआ था उसमें महंत दिगविजय नाथ लोकसभा के सदस्य चुने गए थे और वहां से लोकसभा में प्रवेश की कहानी गोरखनाथ मंदिर कि शुरू होती है. ये जो गोरखनाथ मंदिर है गोरखनाथ मठ है इसको जो तीनों ही व्यक्तियों को जिनको हम राजनीति में जानते हैं महंत दिव्यनाथ, महंत अवैद्यनाथ जी और वर्तमान जो ये योगी आदित्यनाथ हैं इनका आरएसएस से कोई लेना देना नहीं है . ये जो हिंदु राष्ट्र है हिंदु चेतना है इनका अलग विचारधारा है ये बीजेपी के साथ तो हैं आरएसएस में नहीं हैं. तो इसलिए इनका वो वहीं है कि बीजेपी कि अनुशासन में बहुत रहते गए.

गोरखनाथ मठ में राजनीति का ये सिलसिला तीन पीढियों से चला आ रहा है. महंत दिग्विजय नाथ के बाद जब महंत अवैद्धनाथ गोरखनाथ मठ के इंचार्ज बने तो वो भी हिंदू महासभा की टिकट पर गोरखपुर से चुनाव मैदान में उतरते थे. महंत अवैद्धनाथ ने 1986 में विश्व हिंदू परिषद के राम जन्मभूमि आन्दोलन की अगुवाई भी की थी. राम मंदिर आंदोलन के दौरान हुए 1989 के लोकसभा चुनाव में हिंदू महासभा के टिकट पर गोरखपुर से चुनाव जीत कर वो संसद भी पहुंचे थे लेकिन बाद में महंत अवैद्धनाथ बीजेपी में शामिल हो गए थे.

गोरखनाथ मठ के हिंदवी पत्रिका संपादक डॉ प्रदीप राव बताते हैं कि जब महात्मा गांधी जी कि हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा. और जिन परिवेश और जिन परिस्थितियों में जनसंघ कि स्थापना होती है वहीं परिवेश और वहीं परिस्थितियां गोरखपीठ को राजनीति कि ओर ढकेलती हैं. और दिग्विजय नाथ जी राजनीति में आते हैं उसके बाद बड़े महराज यानि गोरक्षपीठ महाराज , अवैधनाथ जी महाराज उनके उत्तराधिकारी के रूप में राजनीत में रहे लेकिन 1980 से लेकर के 1989  ये 9 वर्षों का कालखंड है जबकि फिर बड़े महराज ने तय किया था. मिनाक्षी पुरम कि घटना के बाद उन्होंने सासमाजिक अभियान कि तरफ पुरी तरह अपने को परिवर्तित किया और तय किया कि वो राजनीति नहीं करेंगे. राजनीति से उन्होंने संयास लिया था.  

1996 के लोकसभा चुनाव में जब महंत अवैद्धनाथ मैदान में उतरे तो पहली बार उनके चुनाव अभियान की कमान योगी आदित्यनाथ ने संभाली थी लेकिन इसके दो साल बाद ही जब 1998 में लोकसभा के चुनाव हुए तो मंहत अवैद्धनाथ ने उन्हें अपना वारिस घोषित करके उन्हें ही लोकसभा चुनाव के मैदान में उतार दिया था और फिर यहीं से आदित्यनाथ का योगी से राज योगी बनने का सफर शुरु हो गया. योगी आदित्यनाथ 1998 में राजनीतिक के मैदान में उतरे थे लेकिन उन्होंने फौरन ही सियासत की एक दूसरी राह भी पकड़ ली थी. हिंदू युवा वाहिनी नाम का संगठन बनाकर उन्होंने धर्म परिवर्तन के खिलाफ एक जबरदस्त मुहिम छेड़ दी थी. कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलते हुए योगी आदित्यनाथ ने कई विवादित बयान भी दिए लेकिन हर नए विवाद के साथ उनकी राजनीतिक ताकत और ज्यादा बढती चली गई.

योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत के बीच में जहां मुस्लिम आबादी है वहां पर सांप्रदायिक झडपें ज्यादा हैं. जहां पर 20 प्रतिशत से लेकर के 35 से 40 प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी है वहां सांप्रदायिक भीषण दंगे हैं और जहां 40प्रतिशत से ऊपर मुस्लिम आबादी है वहां पर गैर मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं है. यानी उन्हें वहां से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है या उनका वहां पर सामूहिक नरसंघार होता है. हमें इस सच्चाई को स्वीकार करना पडेगा और मुझे लगता है कि अगर हम इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करेंगे तो हम जनता कि आंखों में धूल झोख रहें हैं.

योगी आदित्यनाथ अब महंत अवैद्धनाथ के वारिस बन चुके थे. मठ और उससे जुड़े स्कूल, कॉलेज और अस्पताल जैसी संस्थाओं के मैनेजमेंट की जिम्मेदारी भी अब उन्हीं के कंधो पर ही थी. 1999 में जब 26 साल की कम उम्र में योगी आदित्यनाथ जब सांसद बन कर दिल्ली पहुंचे तो इसके बाद से उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा लेकिन महराजगंज जिले के पचरुखिया कांड नें उन्हें पहली बार पूरे देश में चर्चा में ला दिया था. समाजवादी पार्टी की तत्कालीन नेता तलत अजीज को आज भी 14 फरवरी 1999 का वह दिन याद है जब वो धरमपुर में जेल भरों आंदोलन की अगुवाई कर रहीं थीं.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस की उपाध्यक्ष तलत अजीज बताती हैं कि हम लोगों ने धरना दे रहे थे. जेल भरो आंदोलन में गिरफ्तारी में जा रहे थे तो हम चाहते थे कि महराजगंज वहां से 14 किलोमीटर था तो यहीं पर हमारी गिरफ्तारी हो जाए. मेन रोड दो किलोमीटर दूर पंचरुखिया से जहां हम थे. इनको(आदित्यनाथ) जब पता चला कि ऐसा कुछ वहां हो रहा है तो ये बजाय गोरखपुर जाने के और वहां फोर्स लगी थी क्योंकि वहां चार दिन पहले से ही वहां उन्माद मचाया हुआ था. सबका प्रजेंस था वहां पर सीओ था उसके बावजूद ये आकर के इन्होंने गोली चलाई मेरे पर. ये 10 फरवरी 1999 कोतवाली का क्षेत्र था महराजगंज का और जो मेरा अंगरक्षक था उस वक्त हेड कॉन्सटेबल सत्यप्रकाश यादव 26 साल का नौजवान लड़का वो मारा गया . इन्होंने मुंह पर गोली चलाई . उस समय 15 - 20 गाडियों में ये लोग पूरी तरह से लैस होकर के वहां पर आए.

पचरुखिया फायरिंग कांड में बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मामला आज भी अदालत में चल रहा है और इसके बाद से उनको लेकर शुरु हुआ विवादों और आरोपों का सिलसिला आज तक थमा नहीं है. गोरखपुर और उसके आस-पास के इलाके में योगी आदित्यनाथ के दबदबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1999 के बाद से कोई उन्हें लोकसभा का चुनाव हरा नहीं सका है.   

योगी का 2004 का चुनावी प्रचार करते हुए कहते थे कि देखिए इसमें एक तो हम लोगों के द्वारा यहां पर दोनों मुद्दों पर जो एक तो जनता कि भावनाओं का सम्मान होता है यानि एक तरफ जहां हिंदुत्व के परांपरागत मुद्दों को लेकर हम लोग चुनाव में उतरते हैं दुसरा हिंदुत्व के साथ साथ यहां पर विकास के कार्य जनता के भावना के अनुरूप करते हैं. दोनों में सफल होने के नातिर जनता चुनाव में हमें सफल बनाती है.
वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह बताते हैं कि उनकी जीत का जो मैं सबसे बड़ा कारण समझता हूं. कि जो सांप्रदायिक ध्रवीकरण जो उन्होने किया अपने घेरा प्रचार अभियान से. अल्पसंख्यकों पर हमले उनके खिलाफ लगातार बयान देने. और जो उनका संगठन है हिंदु युवा वाहनी उनके द्वारा छोटे छोटे मुद्दों को लेकर सांप्रदायिक ध्रवीकरण करने विभाजन करने ये जो प्रक्रिया वहां एक दशक से चलाई गई उसके चलते आपके समाज में बंटवारा हुआ बहुत सारी हिंसक घटनाएं हुईं. दर्जनों बार कर्फ्यू लगा गोरखपुर में और आस पास के जिलों में तो जो ये घेरा प्रचार अभियान चला अल्पसंख्यकों के खिलाफ उसके जरिए वो सांप्रदायिक ध्रवीकरण करने में सफल होते हैं यही उनकी जीत का सबसे  बड़ा आधार है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक दबंग राजनेता के तौर पर पहचाने जाने वाले योगी आदित्यनाथ पर अपनी तल्ख बयानी से साम्प्रदायिकता फैलाने के आरोप भी कोई नई बात नहीं हैं. वो अपने भाषणों में खुलेआम मुसलमानों को लेकर तीखे हमले बोलते रहें हैं लेकिन उनके समर्थकों के इस बारे में अपने तर्क भी हैं.

गोरखनाथ मठ के हिंदवी पत्रिका संपादक डॉ प्रदीप राव बताते हैं कि नाथपंथ की परंपरा में बड़ी संख्या में मुस्लिम योगियों की संख्या रही है. बडी परंपरा में मुस्लिम नाथ योगी रहे हैं. नाथपंथ ने कभी जाति पाति पर नहीं माना कभी उसने पंथ संप्रदाय को नहीं माना. नाथपंथ की उस परंपरा को लेकर के योगी आदित्यनाथ जी महाराज भी चलते हैं. हां ये जरुर है कि वो मुस्लिम होने के आधार पर किसी का तुष्टीकरण नहीं करते. लेकिन कोई मुस्लिम अगर पीड़ित है उसकी अपनी समस्याए हैं और वो गोरखनाथ मंदिर में आता है तो उसकी समस्या का हल होता है. हम सभी जानते हैं कि मकर संक्रांति के मेले में अधिकतर दुकाने मुसलमानों की भी होती है.

लव जेहाद को लेकर योगी आदित्यनाथ ने जो आक्रामक तेवर दिखाए हैं उसको लेकर भी राजनीतिक माहौल गर्म रहा है. पिछले दिनों एक सभा में उनके दिए भाषण का एक वीडियों भी वायरल हुआ है जिसमें वो कहते नजर आए हैं कि अगर कोई मुसलमान व्यक्ति एक हिंदू लड़की को ले जाएगा तो बदले में हम 100 मुसलमान लड़कियों को ले जाएंगे. 

योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि हम लोगों ने तय कर रखा है कि अगर वो एक हिंदू बालिका को ले जाएंगे तो कम से कम सौ मुस्लिम बालिकाओं को हिंदु बना देंगे. अगर वो एक को कर रहे हैं आप भी बनाइए. आप भी सौ लोगों को बना दीजिए क्या दिक्कत आ रही है उसमें. अगर कोई स्वच्छा से आना चाहता है हम स्वीकार करने को तैयार है . देखिए ये तो सौहार्द कि बात है अगर कोई आना चाहता है तो उसको स्वीकार करेंगे. मैं ये नहीं समझ पाता हूं कि अनावश्यक रूप से उस प्रकार के उसको मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है. अगर हिंदु लड़की चली गई तो ठीक और मुस्लिम लड़की आ गई तो बुरा. बुरा कैसे मान लेंगे आप. दोनों को आप स्वीकार करिए.

योगी आदित्यनाथ के ऐसे ही तल्ख तेवरों के चलते उनकी छवि एक उग्र हिंदूवादी नेता की बनी है लेकिन उनकी इस छवि के पीछे 1998 से लेकर 2014 तक उनके राजनीतिक करियर में आए कुछ विवाद भी जिम्मेदार रहे है. साल 2007 में गोरखपुर में हुई सांप्रदायिक झड़प की कुछ घटनाओं के बाद जब राज्य सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया था तब भी पूरे प्रदेश में इसकी उग्र प्रतिक्रियां हुई थी. गोरखपुर में एक युवक कि हत्या के विरोध में धरना देने निकले बीजेपी सासंद  योगी आदित्यनाथ को 29 जनवरी 2007 को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था लेकिन उनकी गिरफ्तारी के बाद माहौल कुछ ऐसा बिगड़ा कि पुलिस को गोरखपुर के कई इलाकों में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा था. योगी आदित्यनाथ की ये गिरफ्तारी दंगा भड़काने के आरोप में हुई थी और उन्हें 10 दिन जेल की सलाखों के पीछे भी गुजराने पड़े थे. इस घटना के चश्मदीद और शिकायतकर्ता परवेज परवाज बताते हैं कि उसी दिन हम स्टेशन से 27जनवरी 2007 कि रात मे वापस आ रहे थे गोरखपुर तो महाराणा प्रताप कि मूर्ती के नीचे शहर के तीन थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा था. एक हत्या हो चुकी थी. और महाराणा प्रताप कि मूर्ती के नीचे स्टेशन रोड पर ये भाषण कर रहे थे कि अगर एक हिंदु मारा जाएगा तो अब हम एफआईआर नहीं लिखवाएंगे बल्कि चुन-चुन कर बीस लोगों कि हत्या करवाएंगे. माननीय सांसद जी बोल रहे थे कि नहीं उठेगी कोई ताजिया इस शहर और इस जनपद से अगर ताजिया उठी तो उन ताजियों से अबकी होली भी मनाएंगे. फिर वहां आगजनी भी हुई, लूटपाट भी हुई, जुलुस निकला उसमें नारे लगाए गए कि कटवे काटे जाएंगे तो राम राम चिल्लाएंगे. हमको लगा ये कि अब बहुत हो गया है तो हमने उसकी तहरीर इंस्पेक्टर केंट को दिया . इस मामले में एक एफआईआर पंजिकृत करके कारवाई कीजिए. लेकिन कौन योगी जी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करता है. इंस्पेक्टर कि हैसियत नहीं थी नहीं दर्ज हुआ. फिर हमने प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क किया राज्य सरकार से संपर्क किया नहीं दर्ज हुआ हाई कोर्ट तक जाना पड़ा.

2007 के इस मामलें में हाई कोर्ट के दखल के बाद योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कत्ल, भड़काऊ भाषण देने और उन्माद फैलाने की धाराओं 302, 153ए, 153बी, 295, 295बी, 147, 143, 427, 452 के तहत कैण्ट थाना में मुकदमा दर्ज हुआ था. इस पूरे मामले की जांच सीआईडी को भी सौंपी गई और फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया फिलहाल इस मामले की जांच अभी भी जारी है. अपराध संख्या   2776 – 2008, 2007 का ये अकेला मामला है जब बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सरकार और प्रशासन ने सख्त रवैया अपनाया था यहां तक कि कोर्ट से जमानत मिलने के बाद भी उनके गोरखपुर मठ से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई थी उस वक्त ये मामला संसद में भी गूंजा था.

योगी आदित्यनाथ ने कहा था उस समय से महोदय राजनीतिक विदेश के तहत मुझे जिस प्रकार से राजनीतिक पुराग्रह का शिकार बनाया जा रहा है. मैं केवल आपसे ये अनुरोध करने के लिए आया हूं क्या मैं इस सदन का सदस्य हूं या नहीं हूं. और क्या ये सदन मुझे संगरक्षण दे पाएगा कि नहीं दे पाएगा.

वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह बताते हैं कि सपा कि सभा हो रही थी और एक हेडकांस्टेबल सत्यप्रकाश कि मौत हुई थी उसमें वो मुकदमा है अभी भी चल रहा है और गोरखपुर में भी एक है फिर गोरखपुर में मजार को जलाने और आगजनी की घटनाओं पर भी, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने और आपत्तिजनक भाषण देने का भी केस दर्ज है. इसके अलावा उनके संगठन के बहुत सारे लोगों के खिलाफ मुकदमें दर्ज हैं. 2007 में इसीलिए उन्हें गिरफतार भी किया गया था. तो कई मामले तो दर्ज ही नहीं हुए. राजनीतिक दबाव से और कुछ उत्तर प्रदेश की जो सरकारे रही हैं कल्याण सिंह की सरकार में कई ऐसी घटनाएं हुई जिसमें उनके खिलाफ एफआईआऱ दर्ज नहीं हो पाई. लेकिन फिलहाल दो मुकदमें इनके उपर कायम है और अभी भी वो चल रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ ने कहा था हिंदु युवा वाहिनी एक सांस्कृतिक संगठन है जो हिंदु हितों के लिए हिंदु समाज में व्याप्त क्रुतियों के खिलाफ कार्य करती है. यहां पर नक्सलवाद गतिविधियों के खिलाफ किसी ने आवाज उठाई थी तो वो हिंदु युवा वाहिनी ने उठाई. यहां पर आईएसआई और राष्ट्रविरोधी अन्य गतिविधियों के खिलाफ बॉडर क्षेत्र में गतिविधियां चल रहीं थीं उसके खिलाफ किसी ने आंदोलन किया तो हिंदु यहवानी ने किया.

साल 2004 और 2007 के की इन बडी घटनाओं के बाद से ही योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व और विकास के अपने एजेंडे के सहारे अपना वोट बैंक मजबूत करते चले गए. गुजरते वक्त के साथ उनकी छवि बीजेपी के एक ऐसे फायरब्रांड नेता के तौर पर बनती गई जो अपने काम में किसी का भी दखल बर्दाश्त नहीं करता है फिर चाहें वो खुद उनकी अपनी ही पार्टी बीजेपी ही क्यों ना हो. 

वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह बताते हैं कि हिंदु युवा वाहिनी जो उनका संगठन है जिसके वो संरक्षक हैं हांलाकि वो उसको सांस्कृतिक संगठन कहते हैं. लेकिन वो सांस्कृतिक संगठन नहीं है बल्कि वो उनका मिलिटेंट आर्गेनाइजेश हैं. जो मुसलमानों पर हमले करने के लिए कुख्यात है.  यहां ये बात भी जानने लायक है कि उनके भाजपा के साथ झगड़े भी इतिहास में होते रहे हैं. वो कई बार अपने लोगों को टिकट दिलाने में जब नाकाम रहे हैं तो पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ ही अपने उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाते रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह ने बताया कि जो मनमानी का जो स्थाई भाव है योगी नाथ जी का मुझे लगता है उनके व्यक्तित्व में ही है लेकिन क्योंकि वो बेइमानी पर्सनल लेवल पर नहीं करते और गोरखपुर में जो उनका रेपियुटेशन है. कि चिकित्सा में , शिक्षा में , मजबूर लोगों कि परेशानियों को दूर करने में वो सारी चीजें जो हैं वो उनका एडवांटेज है. तो वो जो उनके साथ है वो तो टोटल उनके साथ है . लेकिन जो नहीं है उसको दुरूस्त करने कि जो क्षमता है तो उसमें सबसे बड़े टार्गेट मुसलमान ही होते हैं. तो मुसलमानों में आतंक का पर्याय बन चुके हैं.

लेकिन योगी आदित्यनाथ की सियासत का एक पहलू और भी है. 1999 में 26 साल की कम उम्र में सासंद बनने वाले आदित्यनाथ के करीबियों का दावा है कि उनमें पहले वाला जोश और जुनून आज भी कायम है. वो सुबह तीन बजे जागते हैं और फिर रात ग्यारह बजे तक उनकी जनसेवा का सिलसिला चलता रहता है.

गोरखनाथ मठ के हिंदवी पत्रिका संपादक डॉ प्रदीप राव बताते हैं साढे पांच बजे वो एक मंदिर में उतरते हैं . मंदिर का पूरा परिसर एक घंटे मंदिर कि दृष्टी से टहलते भी हैं और मंदिर कि व्यवस्था का निरीक्षण भी करते हैं . फिर वो ऊपर जाते हैं ऊपर जाने के बाद तैयार होकर के फिर आठ बजे के आसपास नीचे उतरते हैं फिर भक्तों के साथ क्षेत्र कि जनता के साथ उनकी भेंट मुलाकात होती है. जब तक आया हुआ एक भी भक्त कि समस्या रह जाती है तब तक वो नीचे रहते हैं फिर 15-20 मीनट के लिए वे साढे दस, पौने ग्यारह में जलपान के लिए जाते हैं और इसके बाद आकर के वे क्षेत्र में निकलते हैं. कभी-कभी तो दोपहर में लौटते हैं नहीं तो शाम के आठ साढ़े आठ बजे तक लौटते हैं. इसके बाद उनकी नौ बजे रात से शुरू होती है उनके सामाजिक संस्थाएं हैं. चिकित्सा संस्थाएं हैं उन संस्थाओं के प्रमुखों के साथ बातचीत उनके साथ उनकी दुसरे दिन कि समस्याएं उनका निराधान और रात के ग्यारह बजे तक तो उनकी ये दिनचर्या चलती रहती है अब इस तरह का जीवन अगर किसी का है तो स्वभाविक रूप यह जीवन योगी का जीवन है. यह जीवन किसी राजनेता का जीवन नहीं हो सकता.

गोरखपुर शहर पूर्वी उत्तर प्रदेश के करीब पंद्रह जिलों के लिए आर्थिक गतिविधियों का केंद्र रहा है. उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे बिहार के करीब पांच जिलों से भी यहां लोग इलाज कराने और पढाई करने के मकसद से आते हैं लेकिन इन 19 जिलों के लिए गोरखपुर में सिर्फ एक मेडिकल कॉलेज है. दिमागी बुखार से यहां हर साल सैकड़ों बच्चों की मौत हो जाती है, गन्ने की फसल के लिए मशहूर इस इलाके की ज्यादातर चीनी मिले आज बंद पड़ी है, इस पूरे इलाके में बाढ से तबाही भी एक बड़ा मुद्दा है. शहर का इंफ्रास्ट्रचर खस्ता हाल है और यहां जलभराव एक बड़ी समस्या है. सासंद के तौर पर योगी आदित्यनाथ के लिए ये समस्याएं एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं जिनके निदान का आज भी लोगों को इंतजार हैं.

योगी आदित्यनाथ बताते हैं कि गोरखपुर में aiims की स्थापना , गोरखपुर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देना गोरखपुर में महानगर के अंदर सीवेज ड्रैनेज समस्या के समाधान के लिए हम लोगों ने जो प्रस्ताव दिया था वो स्वीकृत हुआ है. उस कारवाई को आगे बढ़ाना आम जनता कि समस्या को सुनकर पूर्णवद्ध हो. चीनी मिलों के बंद होने से उसके सामने भूखमरी कि समस्या पैदा हुई है. उसके आर्थिक उन्यन के लिए हम लोग ठोस योजना तैयार कर सकें. इस पर कार्य करेंगे.


वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह बताते हैं कि मुन्सीप्लेटी से बच्चे मर रहें हैं वहां. वहां पूरा हेल्थ स्ट्रकचर ख़त्म हो गया है. मेडिकल कॉलेज मर रहा है. इन सब चीजों में तो कोई विकास नहीं हुआ है. कोई बड़ी चीज देखने को नहीं मिलीं हैं. अदित्य नाथ भी अपने कामों को गिनवाएं तो राजघाट पुल या दो तीन फ्लाईओवर इस के अलावे गोरखपुर के किसी भी लोगों से बात करें तो सबको शहर की बहुत बुरी हालत है. वहां पर जो शहरी विकास की योजनाएं है वो ठप पड़ी हुई हैं वहां पर सही मैनेजमेन्ट नहीं है. पूरा शहर चूंकि कटोरे जैसा है तो पुरी बारिश में भयकंर जल जमा होता है नदी ऊपर है और शहर नीचें है तो जलजमाव का कोई निशान नहीं है. इनका MLA इनका  MP इनका मेयर इनकी सरकार के बावजूद विकास नहीं होता तो इसका जिम्मेदार कौन है? और केवल एक बार नहीं इतने लंबे समय 30-40 सालों से आपकी ही राजनीति रही है.

पूर्वांचल का ये पूरा इलाका जो योगी आदित्यनाथ का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है इस इलाके में करीब 15 लोकसभा की सीटें आती है और यहीं से 42 विधायक चुनकर विधानसभा में पहुंचते हैं. इस पूरे इलाके में योगी आदित्यनाथ का राजनैतिक प्रभाव तो माना जाता है लेकिन वो कभी भी बड़ी तादाद में अपनी पार्टी के विधायकों को जिताकर लखनऊ नहीं भेज सके हैं हालांकि खुद गोरखपुर की लोकसभा सीट पर वो अभी भी अजेय बने हुए हैं. उत्तर प्रदेश के करीब 27 जिलो में फैले हिंदू युवा वाहिनी जैसे अपने समानानंतर संगठन के चलते भी वो हमेशा चर्चा में रहे है. आज योगी आदित्यनाथ प्रदेश में एक ऐसे बड़े जनाधार वाले नेता माने जाते हैं जिनका हर चुनाव में जीत के साथ-साथ अपना वोट प्रतिशत भी बढ़ता जा रहा है औऱ यही वजह है कि बीजेपी ने उन्हें प्रदेश में अपना स्टार प्रचारक बनाकर मुलायम सिंह यादव और मायावती के खिलाफ अपना बड़ा दांव  चल दिया है.

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