Saturday, 31 January 2015

मेवाडके महान राजा : महाराना प्रताप सिंह

१. महाराना प्रतापका परिचय !
        जिनका नाम लेकर दिनका शुभारंभ करे, ऐसे नामोंमें एक हैं, महाराना प्रताप । उनका नाम उन पराक्रमी राजाओंकी 
सूचिमें सुवर्णाक्षरोंमें लिखा गया है, जो देश, धर्म, संस्कृति तथा इस देशकी स्वतंत्रताकी रक्षा हेतु जीवनभर जूझते रहे ! 
उनकी वीरताकी पवित्र स्मृतिको यह विनम्र अभिवादन  है ।
        मेवाडके महान राजा, महाराना प्रताप सिंहका नाम कौन नहीं जानता ? भारतके इतिहासमें यह नाम वीरता, पराक्रम,
 त्याग तथा देशभक्ति जैसी विशेषताओं हेतु निरंतर प्रेरणादाई रहा है । मेवाडके सिसोदिया परिवारमें जन्मे अनेक पराक्रमी योद्धा,
 जैसे बाप्पा रावल, राना हमीर, राना संगको ‘राना’ यह उपाधि दी गई; अपितु ‘ महाराना ’ उपाधिसे  केवल प्रताप सिंहको 
सम्मानित किया गया ।

२. महाराना प्रतापका बचपन !
     महाराना प्रतापका जन्म वर्ष १५४० में हुआ । मेवाडके राना उदय सिंह, द्वितीय, के ३३ बच्चे थे । उनमें प्रताप सिंह सबसे बडे थे । 
स्वाभिमान 
तथा धार्मिक आचरण प्रताप सिंहकी विशेषता थी । महाराना प्रताप बचपनसे ही ढीठ तथा बहादूर थे; बडा होनेपर यह एक महापराक्रमी पुरुष बनेगा,
 यह सभी जानते थे । सर्वसाधारण शिक्षा लेनेसे खेलकूद एवं हथियार बनानेकी कला सीखनेमें उसे अधिक रुचि थी ।

३. महाराना प्रतापका राज्याभिषेक !
     महाराना प्रताप सिंहके कालमें देहलीपर अकबर बादशाहका शासन था । हिंदू राजाओंकी शक्तिका उपयोग कर दूसरे  हिंदू राजाओंको अपने नियंत्रणमें लाना, यह उसकी नीति थी । कई रजपूत राजाओंने अपनी महान परंपरा तथा लडनेकी वृत्ति छोडकर अपनी बहुओं तथा कन्याओंको अकबरके अंत:पूरमें भेजा ताकि उन्हें अकबरसे इनाम तथा मानसम्मान मिलें । अपनी मृत्यूसे पहले उदय सिंगने उनकी सबसे छोटी पत्नीका बेटा जगम्मलको राजा घोषित किया; जबकि प्रताप सिंह जगम्मलसे बडे थे, प्रभु रामचंद्र जैसे अपने छोटे भाईके लिए अपना अधिकार छोडकर मेवाडसे निकल जानेको तैयार थे । किंतु सभी सरदार राजाके निर्णयसे सहमत नहीं हुए । अत: सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि जगमलको सिंहासनका त्याग करना पडेगा । महाराना प्रताप सिंहने भी सभी सरदार तथा लोगोंकी इच्छाका आदर करते हुए मेवाडकी जनताका नेतृत्व करनेका दायित्व स्वीकार किया ।

४. महाराना प्रतापकी अपनी मातृभूमिको मुक्त करानेकी अटूट प्रतिज्ञा !
     महाराना प्रतापके शत्रुओंने मेवाडको चारों ओरसे घेर लिया था । महाराना प्रतापके दो भाई, शक्ति सिंह एवं जगमल अकबरसे मिले हुए थे । सबसे बडी समस्या थी आमने- सामने लडने हेतु सेना खडी करना, जिसके लिए बहुत धनकी आवश्यकता थी ।
        महाराना प्रतापकी सारी संदूके खाली थीं, जबकी अकबरके पास बहुत बडी सेना, अत्यधिक संपत्ति तथा और भी सामग्री बडी मात्रामें थी । किंतु महाराना प्रताप निराश नहीं हुए अथवा कभी भी ऐसा नहीं सोचा कि वे अकबरसे किसी बातमें न्यून(कम) हैं ।
        महाराना प्रतापको एक ही चिंता थी, अपनी मातभूमिको मुगलोंके चंगुलसे मुक्त कराना था । एक दिन उ्न्होंने अपने विश्वासके सारे सरदारोंकी बैठक बुलाई तथा अपने गंभीर एवं वीरतासे भरे शब्दोंमें उनसे आवाहन किया । उन्होंने कहा,‘ मेरे बहादूर बंधुआ, अपनी मातृभूमि, यह पवित्र मेवाड अभी भी मुगलोंके चंगुलमें है । आज मैं आप सबके सामने प्रतिज्ञा करता हूं कि, जबतक चितौड मुक्त नहीं हो जाता, मैं सोने अथवा चांदीकी थालीमें खाना नहीं खाऊंगा, मुलायम गद्देपर नहीं सोऊंगा तथा राजप्रासादमें भी नहीं रहुंगा; इसकी अपेक्षा मैं पत्तलपर खाना खाउंगा, जमीनपर सोउंगा तथा झोपडेमें रहुंगा । जबतक चितौड मुक्त नहीं हो जाता, तबतक मैं दाढी भी नहीं बनाउंगा । मेरे पराक्रमी वीरों, मेरा विश्वास है कि आप अपने तन-मन-धनका त्याग कर यह प्रतिज्ञा पूरी होनेतक मेरा साथ दोगे । अपने राजाकी प्रतिज्ञा सुनकर सभी सरदार प्रेरित हो गए, तथा उन्होंने अपने राजाकी तन-मन-धनसे सहायता करेंगे तथा शरीरमें  रक्तकी आखरी बूंदतक उसका साथ देंगे; किसी भी परिस्थितिमें मुगलोंसे चितौड मुक्त होनेतक अपने ध्येयसे नहीं हटेंगे, ऐसी प्रतिज्ञा की  । उन्होंने महारानासे कहा, विश्वास करो, हम सब आपके साथ हैं, आपके एक संकेतपर अपने प्राण न्यौछावर कर देंगे ।

५. हल्दीघाटकी लडाई : महाराना प्रताप, एक महान योद्धा !


     अकबरने महाराना प्रतापको अपने चंगुलमें लानेका अथक प्रयास किया किंतु सब व्यर्थ सिद्ध हुआ! महाराना प्रतापके साथ जब कोई समझौता नहीं हुआ, तो अकबर अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने युद्ध घोषित किया । महाराना प्रतापने भी सिद्धताएं आरंभ कर दी । उसने अपनी राजधानी अरवली पहाडके दुर्गम क्षेत्र कुंभलगढमें स्थानांतरित की । महाराना प्रतापने अपनी सेनामें आदिवासी तथा जंगलोंमें रहनेवालोंको भरती किया । इन लोगोंको युद्धका कोई  अनुभव नहीं था, किंतु उसने उन्हें प्रशिक्षित किया । उसने सारे रजपूत सरदारोंको मेवाडके स्वतंत्रताके झंडेके नीचे इकट्ठा होने हेतु आवाहन किया ।


महाराना प्रतापके २२,००० सैनिक अकबरकी ८०,००० सेनासे हल्दीघाटमें भिडे । महाराना प्रताप तथा उसके सैनिकोंने युद्धमें बडा पराक्रम दिखाया किंतु उसे पीछे हटना पडा। अकबरकी सेना भी राना प्रतापकी सेनाको पूर्णरूपसे पराभूत करनेमें असफल रही । महाराना प्रताप एवं उसका विश्वसनीय घोडा ‘ चेतक ’ इस युद्धमें अमर हो गए । हल्दीघाटके युद्धमें ‘ चेतक ’ गंभीर रुपसे घायल हो गया था; किंतु अपने स्वामीके प्राण बचाने हेतु उसने एक नहरके उस पार लंबी छलांग लगाई । नहरके पार होते ही ‘ चेतक ’ गिर गया और वहीं उसकी मृत्यु  हुई । इस प्रकार अपने प्राणोंको संकटमें डालकर उसने राना प्रतापके प्राण बचाएं । लोहपुरुष महाराना अपने विश्वसनीय घोडेकी मृत्यूपर एक बच्चेकी तरह फूट-फूटकर रोया । तत्पश्चात जहां चेतकने अंतिम सांस ली थी वहां उसने एक सुंदर उद्यानका निर्माण किया । अकबरने महाराना प्रतापपर आक्रमण किया किंतु छह महिने युद्धके उपरांत भी अकबर महारानाको पराभूत न कर सका; तथा वह देहली लौट गया । अंतिम उपायके रूपमें अकबरने एक पराक्रमी योद्धा सरसेनापति जगन्नाथको १५८४ में बहुत बडी सेनाके साथ मेवाडपर भेजा, दो वर्षके अथक प्रयासोंके पश्चात भी वह राना प्रतापको नहीं पकड सका ।

६. महाराना प्रतापका कठोर प्रारब्ध
     जंगलोंमें तथा पहाडोंकी घाटियोंमें भटकते हुए राना प्रताप अपना परिवार अपने साथ रखते थे । शत्रूके कहींसे भी तथा कभी भी आक्रमण करनेका संकट सदैव  बना रहता था । जंगलमें ठीकसे खाना प्राप्त होना बडा कठिन था । कई बार उन्हें खाना छोडकर, बिना खाए-पिए ही प्राण बचाकर जंगलोंमें भटकना पडता था । शत्रूके आनेकी खबर मिलते ही एक स्थानसे दूसरे स्थानकी ओर भागना पडता था । वे सदैव किसी न किसी संकटसे घिरे रहते थे ।  एक बार महारानी जंगलमें रोटियां  सेंक रही थी; उनके खानेके बाद उसने अपनी बेटीसे कहा कि, बची हुई रोटी रातके खानेके लिए रख दे; किंतु उसी समय एक जंगली बिल्लीने झपट्टा मारकर रोटी छीन ली और राजकन्या असहायतासे रोती रह गई । रोटीका वह टुकडा भी उसके प्रारब्धमें नहीं था । राना प्रतापको बेटीकी यह स्थिति देखकर बडा दुख हुआ, अपनी वीरता, स्वाभिमानपर उसे बहुत क्रोध आया तथा विचार करने लगा कि उसका युद्ध करना कहांतक उचित है ! मनकी इस द्विधा स्थितिमें उसने अकबरके साथ समझौता करनेकी बात मान ली । पृथ्वीराज, अकबरके दरबारका एक कवी जिसे राना प्रताप बडा प्रिय था, उसने राजस्थानी भाषामें राना प्रतापका आत्मविश्वास बढाकर उसे अपने निर्णयसे परावृत्त करनेवाला पत्र कविताके रुपमें लिखा । पत्र पढकर राना प्रतापको लगा जैसे उसे १०,००० सैनिकोंका बल प्राप्त हुआ हो । उसका मन स्थिर तथा शांत हुआ । अकबरकी  शरणमें जानेका विचार उसने अपने मनसे निकाल दिया तथा अपने ध्येयसिद्धि हेतु सेना अधिक संगठित करनेके प्रयास आरंभ किए ।
     भामाशाहकी महारानाके प्रति भक्ति महाराना प्रतापके वंशजोेंके दरबारमें एक रजपूत सरदार था । राना प्रताप जिन संकटोंसे मार्गक्रमण रहा था तथा जंगलोंमें भटक रहा था, इससे वह बडा दुखी हुआ । उसने राना प्रतापको  ढेर सारी संपत्ति दी, जिससे वह २५,००० की सेना १२ वर्षतक रख सके । महाराना प्रतापको बडा आनंद हुआ एवं कृतज्ञता भी लगी ।
     आरंभमें महाराना प्रतापने भामाशाहकी सहायता स्वीकार करनेसे मना किया किंतु उनके बार-बार कहनेपर रानाने संपात्तिका स्वीकार किया । भामाशाहसे धन प्राप्त होनेके पश्चात राना प्रतापको दूसरे स्रोतसे धन प्राप्त होना आरंभ हुआ । उसने सारा धन अपनी सेनाका विस्तार करनेमें लगाया तथा चितोड छोडकर मेवाडको मुक्त किया ।

७. महाराना प्रतापकी अंतिम इच्छा
     महाराना प्रतापकी मृत्यु हो रही थी, तब वे घासके बिछौनेपर सोए थे, क्योंकि चितोडको मुक्त करनेकी उनकी प्रतिज्ञा पूरी नहीं हुई थी । अंतिम क्षण उन्होंने अपने बेटे अमर सिंहका हाथ अपने हाथमें लिया तथा चितोडको मुक्त करनेका दायित्व  उसे सौंपकर शांतिसे परलोक सिधारे । क्रूर बादशाह अकबरके साथ उनके युद्धकी इतिहासमें कोई तुलना नहीं । जब लगभग पूरा राजस्थान मुगल बादशाह अकबरके नियंत्रणमें था, महाराना प्रतापने मेवाडको बचानेके लिए १२ वर्ष युद्ध किया । अकबरने महारानाको पराभूत करनेके लिए बहुत प्रयास किए किंतु अंततक वह अपराजित ही रहा । इसके अतिरिक्त उसने राजस्थानका बहुत बडा क्षेत्र मुगलोंसे मुक्त किया । कठिन संकटोंसे जानेके पश्चात भी उसने अपना तथा अपनी मातृभूमिका नाम पराभूत होनेसे बचाया । उनका पूरा जीवन इतना उज्वल था कि स्वतंत्रताका दूसरा नाम ‘ महाराना प्रताप ’ हो सकता है । उनकी पराक्रमी स्मृतिको हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

Friday, 30 January 2015

मुगल बादशाहों के समय में गौ हत्या पूरी तरह प्रतिबंधित थी

इतिहास में उल्लेख मिलता है कि प्रथम मुगल बादशाह बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को मरते वक्त वसीयत की थी कि 'ऐ मेरे प्यारे बेटे। इस मुल्क के लोगों को यदि अपना बनाना हो और तुम्हें उनका दिल जीतना हो तो गौ हत्या पर रोक लगाना।
अबुल फजल ने आईने-अकबरी में लिखा है कि अकबर ने हिन्दू भावनाओं का सम्मान करते हुए गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाई थी! बर्नियर ने अपने यात्रा विवरण में इस बात का जिक्र किया है कि जहांगीर के शासन काल में भी गौ हत्या पर रोक थी! कुछ मुगल बादशाहों को अगर छोड़ दे तो अधिकांश मुगल बादशाहों के समय में गौ हत्या पूरी तरह प्रतिबंधित थी।
अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर ने तो 28 जुलाई 1857 को बकरीद के मौके पर गाय की कुरबानी नहीं करने का फरमान जारी किया था और यह ऐलान कर दिया था कि गौ हत्यारे के लिये मौत की सजा होगी। इसके साथ ही दक्षिण में हैदर अली और टीपू सुल्तान तथा अवध में नबाब वाजिद अली शाह के समय भी गौ हत्या प्रतिबंधित थी।

Wednesday, 28 January 2015

સાઉદી અરેબિયામાં મહિલાઓ પર મુકાયેલા અજબ-ગજબના પ્રતિબંધો

સાઉદી અરેબિયાના કિંગ અબ્‍દુલ્લા બિન અબ્‍દુલઅઝીઝના મૃત્‍યુ પછી હવે પ્રિન્‍સ સલમાનને નવા કિંગ જાહેર કરાયા છે. તેમની સામે દેશની મહિલાઓને તેમનો હક્ક આપવાની પહેલો પડકાર રહેશે. સાઉદી અરેબિયા મહિલાઓ પર પ્રતિબંધો મૂકવા બાબતે સમગ્ર વિશ્વમાં બદનામ છે. સાઉદી અરેબિયામાં મહિલાઓ માટેના અજબ-ગજબના કાયદાઓ પર એક નજર.

   ૧. પતિની મંજૂરી વગર બેંક એકાઉન્‍ટ ન ખોલાવી શકે અહીં મહિલાઓ દેશના કોઈપણ બેંકમાં પતિની મંજૂરી વગર બેંક એકાઉન્‍ટ ખોલાવી શકતી નથી. અપરિણીત મહિલાઓ માટે તો બેંક એકાઉન્‍ટ ખોલાવવાની જ મનાઈ છે. કટ્ટરપંથીઓ માને છે કે, એકલી મહિલા પાસે રૂપિયા હશે તો તે ગુના કરશે.

   ૨. પુરુષ સંબંધીને સાથે રાખીને જ હરીફરી શકે સાઉદી અરેબિયામાં મહિલા જો દ્યરની બહાર નિકળે તો તેની સાથે એક પુરુષ સંબંધી હોવો ફરજિયાત છે. નહીં તો તેની ધરપકડ કરી લેવામાં આવે છે. કટ્ટરપંથીઓનું માનવું છે કે જો મહિલા એકલી ક્‍યાંય જાય છે તો તે વ્‍યભિચારી થઈ જવાની શક્‍યતા છે. એક ઘટનામાં એક મહિલા પર રેપ થયો તો રેપિસ્‍ટ કરતા તેને વધુ કોરડા ફટકારવામાં આવ્‍યા હતા. કેમકે તે એકલી ઘરની બહાર નીકળી હતી.

   ૩. ડ્રાઈવિંગ ન કરી શકે આ વિશે કોઈ ઓફિશિયલ કાયદો તો નથી, પંરતુ કટ્ટરપંથી રિવાજ મહિલાઓને ડ્રાઈવિંગ કરતા રોકે છે. માનવામાં આવે છે કે, ડ્રાઈવ કરનારી મહિલા સામાજિક મૂલ્‍યોની કદર નથી કરતી.

   ૪. વોટ ન આપી શકે દુનિયામાં સાઉદી અરેબિયા જ એવો દેશ છે જયાં મહિલાઓએ ક્‍યારેય મતદાન નથી કર્યું.

   ૫. સ્‍વિમિંગ ન કરી શકે સાઉદી અરેબિયામાં મહિલાઓના સ્‍વિમિંગ કરવા પર પણ પ્રતિબંધ છે. એટલું જ નહીં, તે પૂલમાં નહાતા પુરુષોની તરફ જોઈ પણ શકતી નથી.

   ૬. શોપિંગ દરમિયાન કપડાંઓના ટ્રાયલ લઈ શકતી નથી કેમકે ધર્મ તેમને દ્યરની બહાર નિર્વષા થવાની મંજૂરી નથી આપતો. જોકે, એવું પણ માનવામાં આવે છે કે, ટ્રાયલ રૂમમાં મહિલાની નગ્નતા વિશે વિચારી શોપિંગ સ્‍ટોરમાં હાજર પુરુષો માટે કન્‍ટ્રોલ રાખવો મુશ્‍કેલ થઈ જશે.

   ૭. કોઈ અંડર ગારમેન્‍ટ્‍સની શોપમાં કામ ન કરી શકે સાઉદી અરેબિયામાં હજુ પણ અંડરગ્રાઉન્‍ડ્‍સની શોપમાં પુરુષ જ કામ કરે છે.

   ૮. અન-સેન્‍સર્ડ ફેશન મેગેઝીન વાંચી ન શકે કેમકે તેમાં છપાયેલી તસવીરો ઈસ્‍લામની માન્‍યતાઓ સાથે મેળ ખાતી નથી. પરંતુ પુરુષ તે વાંચી શકે છે.

   ૯. બાર્બી ખરીદી શકતી નથી સાઉદી અરેબિયામાં બાર્બીને યહૂદી રમકડું જણાવીને તેના કપડાંને બિન-ઈસ્‍લામી જાહેર કરાયાં છે.

   મહિલાઓ જો તેમાંથી કોઈ પણ નિયમનું ઉલ્લંઘન કરે છે તો ત્‍યાં વિશેષ પોલીસ દળ કાર્યવાહી કરે છે. તેને ઈસ્‍લામી કાયદાનું પાલન કરવા માટે જ બનાવાયું છે. તેમાં લાંબી દાઢીવાળા પુરુષ અને આખા હિજાબમાં મહિલા સુરક્ષાકર્મી હોય છે. જો કોઈ ગુનેગાર જણાય તો તેને સ્‍થળ પર જ કોરડા લગાવી દે છે. કોર્ટની કાર્યવાહી પછી થાય છે.

   આ બધા પ્રતિબંધો છતાં સાઉદી અરેબિયાની મહિલાઓ ઘણી ભણેલી-ગણેલી છે અને હવે સરકાર પર તેમને આઝાદી આપવા દબાણ વધી રહ્યું છે.

Tuesday, 27 January 2015

भगवान शिव ने क्यों किया था विष्णु के वंश का नाश

Why did Lord Shiva destroyed the descendants of Vishnu

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के 19 अवतार हुए हैं। उनमें से वृषभ अवतार भगवान शिव ने एक बैल के रूप में लिया क्योंकि उनकी माया से विष्णु जी बैकुण्ठ को छोड़ अप्सराओं संग पाताल में रहने लगे थे। उसी दैरान उनके राक्षसी प्रवृति के क्रूर पुत्र हुए। उनके आतंक से देवताओं को स्वतंत्र करवाने के लिए भगवान शिव ने पाताल में जाकर विष्णु जी के वंश का नाश कर दिया।

समुद्र मंथन के उपरांत जब अमृत कलश उत्पन्न हुआ तो उसे दैत्यों की नजर से बचाने के लिए श्री हरि विष्णु ने अपनी माया से बहुत सारी अप्सराओं की सर्जना की। दैत्य अप्सराओं को देखते ही उन पर मोहित हो गए और उन्हें जबरन उठाकर पाताल लोक ले गए। उन्हें वहां बंधी बना कर अमृत कलश को पाने के लिए वापिस आए तो समस्त देव अमृत का सेवन कर चुके थे।

दैत्यों ने पुन: देवताओं पर चढ़ाई कर दी। अमृत पीने से देवता अजर-अमर हो चुके थे। अत: दैत्यों को हार का सामना करना पड़ा। स्वयं को सुरक्षित करने के लिए वह पाताल की ओर भागने लगे। दैत्यों के संहार की मंशा लिए हुए श्री हरि विष्णु उनके पीछे-पीछे पाताल जा पहुंचे और वहां समस्त दैत्यों का विनाश कर दिया।

दैत्यों का नाश होते ही अप्सराएं मुक्त हो गई। जब उन्होंने मनमोहिनी मूर्त वाले श्री हरि विष्णु को देखा तो वे उन पर आसक्त हो गई और उन्होंने भगवान शिव से श्री हरि विष्णु को उनका स्वामी बन जाने का वरदान मांगा। अपने भक्तों की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान शिव सदैव तत्पर रहते हैं अत: उन्होंने अपनी माया से श्री हरि विष्णु को अपने सभी धमोंü व कर्तव्यों को भूल अप्सराओं के साथ पाताल लोक में रहने के लिए कहा।

श्री हरि विष्णु पाताल लोक में निवास करने लगे। उन्हें अप्सराओं से कुछ पुत्रों की प्राप्ति भी हुई लेकिन वह पुत्र राक्षसी प्रवृति के थे। अपनी क्रूरता के बल पर श्री हरि विष्णु के इन पुत्रों ने तीनों लोकों में कोहराम मचा दिया। उनके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के समक्ष प्रस्तुत हुए व उनसे श्री हरि विष्णु के पुत्रों का संहार करने की प्रार्थना की।

देवताओं को विष्णु पुत्रों के आतंक से मुक्त करवाने के लिए भगवान शिव एक बैल यानि कि "वृषभ" के रूप में पाताल लोक पहुंचे और वहां जाकर भगवान विष्णु के सभी पुत्रों का संहार कर डाला। तभी श्री हरि विष्णु आए आपने वंश का नाश हुआ देख वह क्रूद्ध हो उठे और भगवान शिव रूपी वृषभ पर आक्रमण कर दिया लेकिन उनके सभी वार निष्फल हो गए।

मान्यता है कि शिव व विष्णु शंकर नारायण का रूप थे इसलिए बहुत समय तक युद्ध चलने के उपरांत भी दोनों में से किसी को भी न तो हानि हुई और न ही कोई लाभ। अंत में जिन अप्सराओं ने श्री हरि विष्णु को अपने वरदान में बांध रखा था उन्होंने उन्हें मुक्त कर दिया। इस घटना के बाद जब श्री हरि विष्णु को इस घटना का बोध हुआ तो उन्होंने भगवान शिव की स्तुति की।

भगवान शिव के कहने पर श्री हरि विष्णु विष्णुलोक लौट गए। जाने से पूर्व वह अपना सुदर्शन चक्र पाताल लोक में ही छोड़ गए। जब वह विष्णुलोक पहुंचे तो वहां उन्हें भगवान शिव द्वारा एक और सुदर्शन चक्र की प्राप्ति हुई।

    Monday, 26 January 2015

    केदारनाथ में पहली बार गणतंत्र दिवस के मौके पर फहराया गया तिरंगा

    केदारनाथ में आज पहली बार गणतंत्र दिवस के मौके पर तिरंगा फहराया गया.शीतकाल में भी केदारनाथ पुनर्निर्माण में लगे नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) के अधिकारियों और कर्मचारियों ने समारोह पूर्वक केदारनाथ में परेड निकाली और झंडारोहण कर राष्टगान किया.


    समारोह के बाद अधिकारियों और जवानों ने गत शनिवार को भ्रमण के दौरान प्रदेश के राज्यपाल के के पाल द्वारा विशेष रूप से लायी गयी मिठाइयों का वितरण किया.

    ‘निम’ के अधिकारी और कर्मचारी केदारनाथ के पुनर्निर्माण कार्य में भारी बर्फवारी और भीषण ठंड के बावजूद डटे हुए हैं. संस्थान के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल ने इस मौके पर सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें भी दीं.

    त्र्यंबकेश्वर में इसीलिए लगता है कुंभमेला

    गोदावरी नदी के तट पवित्र माने जाते हैं फिर भी कुंभ मेला त्र्यंबकेश्वर में ही क्यों मनाया जाता है? सिंहस्थ के संबंधित सभी धार्मिक तीर्थ विधी त्र्यंबकेश्वर में हीं क्यो संपन्न किये जाते हैं? ये कुछ ऐसे सवाल है जो किसी भी श्रद्धालु के मन को झकझोर सकते हैं। इसके पीछे एक ही कारण है और वो है...
    सिंहस्थे तु समायाते नचस्तीभीनी देवता।
    तिर्थ राजे कुशावर्ते स्नानुमायांति यत्नत:।।
    त्र्यंबकंक्षेम मेवात: तु विशिष्यते।
    यत्र गोदा सभुदभूता सर्व पाप प्रणाशिनी।।
    यानी पुराणों में वचन है कि गोदावरी के उद्गम स्थान को विशेष महत्व दिया गया है । गौतमी गंगा को गोदा की संज्ञा त्र्यंबकेश्वर कुशावर्त तीर्थस्थान पर प्राप्त हुई थी। गोदा यानि 'गौतमस्य' गां जीवन ददाति इति गोदा।
    गौतम ऋषि की गोहत्या पातक से मुक्ति एवं उनकी गाय को जीवनदान मिला था । गौतम ऋषि ने पवित्र कुशा (दर्भ) से गंगा की धारा को रोककर इस स्थानपर किया था । इसलिए इस स्थान को कुशावर्त कहा जाता है और इसी स्थान से गौतमी गंगा को 'गोदा' से संबोधित किया जाने लगा।
    द्वादश ज्योर्तिलिंगों में त्र्यंबकेश्वर का स्थान महत्वपूर्ण है । कई महंतों के यहापर अखाड़े हैं । नग्न साधुओं के स्नान की परंपरा आज भी कुशावर्त में जारी है। सिंहस्थ कालखंड में मूल गोदावरी के स्थान का महत्व लगातार सभी शास्त्रों एवं पुराणों में बार-बार समझाया गया है।
    यही कारण है कि सिंहस्थ पर्व में मूल गोदावरी का अनादि जन्मपीठ श्री क्षेत्र त्र्यंबकेश्वर स्थान पर हजारों की संख्या मे साधु, महंत एवं महामण्डलेश्वर आदि अपने अनुयाइयों एवं छात्रों के साथ सच्चे दिल से बड़े जोश जश्न से तीर्थराज कुशावर्त में स्नान करते हैं। लाखों की तादाद में भक्तगण ,यात्री, जिज्ञासु एवं वैज्ञानिक स्नान, दान, मुंडन आदि धार्मिक विधियों में शामिल होते है।
    गोदावरी नदी के तटों की अपेक्षा मुळ गोदावरी का महत्व विशिष्ट है। इस विशेषता के लिए शास्त्रवाचन है।
    मुळ मध्यावसानेशु गोदालभ्य कलीयुगे। अर्थात प्रारंभ में गोदावरी के तीन स्थानों का महत्व अधिक है। प्रथम याने मूळ त्र्यंबकेश्वर, मध्य में नांदेड एवं अंतिम राजमहेन्द्री (आंध्र प्रदेश) यह वह तीन स्थान है।
    राज महेन्द्री में गोदावरी सात मुखों से सागर को मिलती है, परंतु कुंभ मेला त्र्यंबकेश्वर में ही होता है नासिक में नहीं, क्‍योंकि गोदावरी का मुल त्र्यंबकेश्वर है । इस संदर्भ में स्कंद पुराण से एक और प्रमाण है ।
    मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु रामचंद्र वनवास काल में नाशिक स्थित पंचवटी मे थे। यहां पर उन्हें पिता दशरथजी के देहान्त का समाचार मिला। पितरों की मुक्ति के हेतु से महर्षि कश्यपजी ने प्रभु रामचंद्र के श्रध्दादिक कर्म त्र्यंबकेश्वर में कुशावर्त तीर्थ पर ही किये थे। संस्कृत श्लोक इस बात की पुष्टि करते हैं।
    राम राम महाबाहो मदवाश्यम कुरू यत्नत:।
    सिंहस्थते सुरगुरी दुर्लेभम् गौतमी जलम।
    यत्रकुभापि राजेंद्र कुशावर्त विशेषत:।
    तव भाग्येन निकट वर्तने ब्रम्हभुधर।
    सिंहस्योपि समायातस्त ग्त्वा सुखी भव।
    यावद् भ्योंति सिंहस्थस्तावनिष्ट ममाशया।
    सिंहस्थे तु समावते राम कश्यप संभुत: ।
    त्र्यंबकक्षेत्रमागाय तीर्थायात्रा चकार ।
    इन कारणों से गोदावरी नदी का उद्गम स्थान श्रीक्षेत्र त्र्यंबकेश्वर सिंहस्थ निमित्त यात्रा, तीर्थविधि, मंडल श्राध्द आदि के लिये प्रशस्त एवं शास्त्र सम्मत है। जिनके पिता जीवित या मृत है, वे सभी तीर्थ विधि के अधिकारी है।
    केवल श्राद्ध विधि का अधिकार जिनके पिता मृत है उन्हीं को है। परिवार में मंगलादि कर्म (विवाह, उपनयन) संपन्न होने पर भी या भार्या गर्भिणी होने पर भी सिंहस्थ विधि सभी कर सकते हैं।
    सिंहस्थ विधि के लिए किसी भी विशेष समय की आवश्यकता नहीं है। गुरूशुक्रास्त का मलमास का (अधिक मास) एवं जन्मक्षत्रादि का दोष नही है।
    कुशावर्त तीर्थ पर सभी संकल्पपूर्व विधि संपन्न करने के पश्चात गंगा गोदावरी की प्रार्थना करे और फिर स्नान करे। स्नान के पश्चात यथाशक्ति गाय, तील, घी, वस्त्र, अनाज, गुड, नमक आदि का दान करना उचित है।

    Saturday, 24 January 2015

    आस्था की आड़ में गंदलाती गंगा

    हिंदू धर्म में जन्म देनेवाली मां के अलावा धर्म-शास्त्रों में गंगा (नदी), गाय (पशु) और तुलसी (पौधा) को मां की संज्ञा दी गई है। अलग-अलग वेदों और हिदू धर्म-शास्त्रों में इस बात की नसीहत दी गई है कि इनका सम्मान आप ठीक वैसा ही करें जैसा कि अपनी जन्मदात्री मां का करते हैं। अब यह एक व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इन बातों को किस तरह लेता है और इन बातों को जीवन में यथासंभव अपनाता है या फिर उन्हें दरकिनार कर देता है।
    गंगा नदी पर दी गई उस पौराणिक नसीहत के मायने बड़े हैं। सदियों से गंगा नदी के किनारे देश के कई शहर पुष्पित-पल्लवित हुए है। इस नदी के किनारे कई सभ्यताएं जन्मी है। आज भी देश के गांवों में रहनेवाली आबादी का एक बड़ा हिस्सा गंगा नदी को वॉशरूम के तौर पर इस्तेमाल करता है। गंगा के किनारे रहना, खाना, कपड़े और बर्तन धोना सबकुछ गंगा के किनारे।
    शांत, निर्मल,अविरल धारा के बीच बहती जीवनदायिनी गंगा भारत में कई शहरों की जीवनरेखा है। गंगा नदी को भारत की नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है। भारतीय पुराणों और साहित्य में अपने सौंदर्य और महत्व के कारण बार-बार आदर के साथ गंगा नदी की महिमा गाई गई है।
    दूसरी तरफ गाय की बात करे तो भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व माना जाता है। हिंदू धर्म में गाय का महत्व देवों के समान बताया गया है। गाय को पूजनीय बताने के साथ संरक्षिका भी कहा गया है। ऋगवेद अपने एक सूक्त में इस बात को कहता है कि गाय यानी गौमाता के शरीर में 33 देवताओं का वास है। गाय को पर्यावरण की संरक्षिका भी कहा गया है। गाय का दूध और उससे बने दुग्ध उत्पादों की हमारे जीवन में कितनी भूमिका है, यह बताने की जरूरत नहीं है।
    तुलसी की बात करे तो यह एक औषधिय पौधा है जिसका धार्मिक महत्व भी है। ऊं तुलसीभ्य: नम: इसी मंत्र से तुलसी की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक तुलसी पूजन का बहुत महत्व माना गया है। जहां तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है, वहीं तुलसी पूजन करना मोक्षदायक माना गया है। आयुर्वेद में प्रत्येक रोग में काम आने वाली औषधियों में प्रमुख तुलसी या मकरध्वज है। तुलसी में 27 तरह के खनिज पाए जाते हैं ।
    लेकिन यह दुखद और चिंतनीय बात है कि हम अपनी इन पौराणिक, आध्यात्मिक और जीवन की अनमोल धरोहरों को गंदलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। फिलहाल गंगा नदी में लगातार बहते शव इस बात की ताजा मिसाल है।
    यूपी के उन्नाव जिले के सफीपुर क्षेत्र में गंगा नदी के परियर घाट पर अचानक शव बहने शुरू हो गए। किनारे पर कुत्ते जब इन मृत शरीरों नोंच-खसोट कर खा रहे थे तब इलाके में हड़कंप मचा। आलम यह है कि वहां उतराते शवों की संख्या 100 के पार कर गई। प्रशासन के मुताबिक यहां लगभग 45 गांव है जो लोग शवों का दाह-संस्कार गंगा मे करते है। यह भी बताया जा रहा है कि यहां अविवाहित लड़कियों के शवों को जलाने के बजाय उन्हें गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है।
    जांच के दौरान यह भी पता चला कि कानपुर में बिठूर एक पौराणिक स्थल है इसलिये बहुत से लोग यहां आकर शव बहा देते हैं । यह भी देखा गया है कि करीब के जिले उन्नाव में जो लोग अंतिम संस्कार कर जला देने के बजाये अपने परिजनो के शव यूं ही गंगा में बहा देते हैं । इस दौरान शव बीच रास्ते मे कही फंस जाते है और जब गंगा का बहाव तेज होता है तो बहुत से शव एक साथ बह कर आ जाते है । ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी है लेकिन प्रशासन इन बातों पर कभी ध्यान नहीं देता है।
    इन बातो से यह साफ हो जाता है कि हम अपनी धार्मिक मान्यताओं की आड़ में गंगा या फिर देश में बहनेवाली किसी भी नदी को इस कदर गंदा कर रहे हैं जिससे उसका सांस लेना भी दूभर है। हिंदू धर्म में एक मान्यता के मुताबिक ऐसे मृत व्यक्ति को जिसकी मृत्यु सांप के काटने से हुई होती है उस व्यक्ति का दाह-संस्कार नहीं किया जाता बल्कि उसके शव को गंगा या किसी नदी में बहा दिया जाता है।
    साथ ही कुछ जगहों पर अगर अविवाहित लड़कों या लड़कियों की मौत हो जाती है तो उनके शव का भी दाह-संस्कार बगैर जलाए किया जाता है। वहां भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है कि यानी उनके मृत शरीर को किसी नदी में बहा दिया जाता है। मृत शरीर धार्मिक आस्था और रुढ़िवादी सोच की वजह से नदी के पानी में सड़ता रहता है। जब ये शव नदी के किनारे पर आ लगते है तो पशुओं का शिकार बनते हैं। इस तरह से संक्रमण की बड़ी श्रृंखला का जन्म होता है जो नदी किनारे रह रहे लोगों के सेहत के लिए कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा आप लगा सकते है।
    हिंदू धर्म से जुड़े धर्मग्रंथों में दाह-संस्कार की प्रक्रिया में बचे चंद अवशेषों को प्रवाहित करने की बात जरूर है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं कहा गया है कि शवों को बिना दाह-संस्कार किए नदी के पानी में प्रवाहित कर दे। लेकिन इसमें हम इस बात को भी नकार नहीं सकते कि देश के गांव और शहर में रहनेवाले ऐसे कई निर्धन परिवार है जिनके पास दाह-संस्कार के वक्त जलाने के लिए इस्तेमाल होनेवाली लकड़ियों को खरीदने के लिए पैसा नहीं होता है। इस वजह से वह अपने परिजनों का संस्कार बगैर लकड़ी के करते है और शव को बिना जलाए नदी के पानी में प्रवाहित करने को विवश होते है।
    मैंने दिल्ली और नोएडा जानेवाली डीएनडी पर ये नजारा कई बार देखा है। लोग अपने घर की पूजन सामग्री एक पॉलिथीन में लाते है और बड़े शान से यमुना में प्रवाहित कर चलते बनते है। हिंडन नदी के मुहाने पर भी यह नजारा आम है। आस्था में अंधविश्वास ने इस कदर पैठ बना ली है कि इन्हें यह लगता है कि पूजा-पाठ की सामग्री को किसी नदी में प्रवाहित करना शुभ होता है। इस सामग्री में अगरबत्ती,धूप की राख,कपूर, फूल,कपड़े के साथ वह पॉलिथिन भी होता है जिसके बारे में पर्यावरणविद कहते है कि 1 हजार साल के बाद भी यह सड़ता नहीं है, जस का तस रहता है।
    पटना में गंगा के एक घाट पर मैं कुछ साल पहले नहाने गया था। इतनी गंदगी थी की नहाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। पास ही में एक नाव वाले ने मेरी व्यथा और झुंझलाहट को शायद पढ़ लिया था। वह नाव से मुझे दूसरी तरफ ले गया। उसने 20 रुपये लिए । लेकिन सिर्फ 20 रुपयों की बदौलत गंगा में नहाने का अद्भुत सुख मिला। यहां मैं बताना चाहता हूं कि मैं जिस ओर आराम से घंटों नहाता रहा उस वह एक ग्रामीण आबादी का हिस्सा था। लेकिन जिस तरफ नहाने का साहस नहीं कर पाया और जो घाट गंदगी के अंबार से बजबजा रहा था वह पटना सिटी का एक घाट है जहां पढ़े लिखे लोग रहते हैं जो अपनी तालीमी लियाकत की बदौलत समाज में एक ओहदा रखते है।
    गंगा भारतीय धर्म, दर्शन ,आध्यात्म और संस्कृति की जीवन प्राण धारा है। गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक गंगा से जुड़ा है हमारा स्वास्थ्य,समृद्धि एवं संस्कारों का अविरल और निर्मल प्रवाह। गंगा देश को देश की राष्ट्रीय नदी होने का गौरव हासिल है लेकिन इस पौराणिक और राष्ट्रीय नदी के साथ एक दुर्भाग्य जुड़ा हुआ है जिसके जिम्मेदार हम सब हैं। यह दुर्भाग्य गंगा के गंदलाने को लेकर है, उसके पवित्र स्वरुप के प्रदूषित होने से है।
    आखिर कब तक गंगा गंदगी के इस बोझ को ढोते-ढोते बोझिल होती रहेगी? कई शहरों और गांवों की आबादी को पोषित करनेवाली गंगा कब तक प्रदूषण के विशाल भार के नीचे दबती रहेगी? इस सवाल का जवाब हम सबको मिल-जुलकर तलाशना है। अगर गंगा के गंदलाते स्वरूप से हम वाकिफ है तो हमें यह बात भी मालूम है गंगा का प्रदूषण किस प्रकार दूर कर पाना मुमकिन है। सरकारी प्रयासों के साथ इसके लिए जनभागीदारी की भी सख्त जरूरत है। उसके बगैर यह कतई मुमकिन नहीं है।
    समस्या और समाधान के इस सेतु के बीच सबसे बड़ी जरुरत पहल करने की है। हम ठोस पहल करेंगे तो परिणाम भी बेहतर मिलेंगे। हमारी गंगा हम सबसे स्वच्छता में भागीदारी करने की बात कह रही है,बाट जोह रही है, इन्हीं कोशिशों के बाद गंगा का पुराणा स्वरुप हमें दोबारा वापस मिल सकेगा और तभी भगीरथी के भगीरथ प्रयास से लाई ये गंगा एक बार फिर से अविरल रुप में निर्मलता से बह सकेगी। एक बात और यह सम्मान सिर्फ गंगा नदी के प्रति ही नहीं बल्कि हर उस नदी के प्रति हो जो कई राज्यों, शहरों , गांवों और कस्बों में बहती है। सम्मान का भाव जगेगा तभी पहल की उम्मीद भी जगेगी। लेकिन सवाल अब भी वहीं कि हम जागेंगे कब?

    Friday, 23 January 2015

    यदि शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे प्रधानमंत्री होते, तो … !



    शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरेजीके जयंती निमित्त…
    वर्तमान समयमें हिंदुओंको अपने ही देशमें अत्यंत उपेक्षाका जीवन जीना पड रहा है तथा कुछ उद्दंड / मुंहजोर अन्य धर्मियोंद्वारा उन्हें बार-बार कष्ट भोगने पड रहे हैं । हिंदुओंद्वारा भोगे जानेवाले कष्टोंके विषयमें कुछ हिंदुनिष्ठ संगठन एवं शिवसेना पक्ष आवाज उठा रहे हैं तथा सरकारको भी उसका भान करा रहे हैं; परंतु वर्तमान समयमें सत्ता निरपेक्ष (अधर्मी) कांग्रेसके राजनेताओंके हाथोंमें रहनेके कारण उनकी ओरसे हिंदुओंके विषयमें आवश्यक निर्णय नहीं लिए जाते । उसीप्रकार इन राजनेताओंका पूरा ध्यान अन्य धर्मियोंकी सुख-सुविधाओंपर लगा हुआ है । इसलिए वे हिंदुओंको न्याय मिलाकर नहीं देते । इतना ही नहीं, उन्हें ८५ करोड हिंदुओंका अस्तित्व तिनकेके समान लगता है । वर्तमान समयमें अधिकांश हिंदु साधना नहीं करते । इसलिए उनके पास ईश्वरीय बल नहीं है । अतः राजनेताओंके पक्षपातपूर्ण नीतिके कारण वे निश्चित रूपसे चक्कीमें पिसे जा रहे हैं तथा भेड-बकरीके समान जीवन जी रहे हैं । किसी भी सर्वसाधारण व्यक्तिको लगता है कि अपना जीवन सुखी एवं सुरक्षित हो । परंतु वर्तमान समयमें देशमें वैसी परिस्थिति बिलकुल नहीं है ।
    इस समय यदि देशमें हिंदु धर्मप्रेमी सत्तामें आए, तो इस परिस्थितिमें जमीन-अस्मानके जितना अंतर पड सकता है । इसलिए हिंदुओंको चाहिए कि वे हिंदुहितदक्ष एवं हिंदुत्वका समर्थन करनेवाले राजनेताओंको सत्तामें लाना चाहिए । एक उदाहरणके रूपमें यदि शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे प्रधानमंत्री होते, तो इस देशमें क्या हुआ होता, इसके कुछ सूत्र आगे दिए हैं । कुछ व्यक्तियोंमें उत्तम नेतृत्व होता है; परंतु देशकी राजनीतिमें कोई एक पद विभूषित करनेकी उनकी इच्छा नहीं रहती । कुछ लोग युवा रक्तको अवसर मिले, इस हेतु पीछे रहते हैं एवं उन्हें केवल दिशादर्शन करनेका कार्य करते हैं । इसमें ही एक शिवसेनाप्रमुख हैं । यदि उनके हाथमें सत्ता होती, तो भविष्यमें कुछ बातोंका सर्वत्रके हिंदुओं एवं भारतको लाभ होता था । विस्तारभयके कारण यहां कुछ गिनेचुने उदाहरण लिए हैं।

    १. देशकी सुरक्षाकी दृष्टिसे आवश्यक बातें

    अ. सर्वप्रथम उन्होंने भारतको ‘हिंदु राष्ट्र’ के रुपमें घोषित किया होता ।
    आ. इंडियन मुजाहिदीन, लष्कर-ए-तोयबा, सिमी आदि देशद्रोही संगठनोंपर स्थायी रूपसे प्रतिबंध लगाया होता ।
    इ. देशद्रोही आतंकवादियोंको शीघ्र फांसीपर लटकाया होता, जिससे आगेके आतंकवादी आक्रमण टल गए होते ।
    ई. पुलिसको आतंकवादी एवं दंगा मचानेवाले मुसलमानोंपर त्वरित कार्यवाही करनेके आदेश दिए होते।
    उ. लव-जिहादसमान आदेश निकालकर हिंदुओंको कष्ट देनेवाले मुसलमानोंको सही रास्तेपर लाए होते।
    ऊ. देशद्रोही मुसलमानोंकी चापलूसी ना स्वयं की होती और ना किसीको करने भी दी होती ।
    ए. किसी भी देशद्रोही मुसलमानको चुनाव लडनेकी अनुमति नहीं दी होती ।

    २. जनताके हितके निर्णय

    अ. देशद्रोही मुसलमानोंपर धाक जमाई होती एवं उन्हें वंदेमातरम् कहना अनिवार्य किया होता । वंदेमातरम् न कहनेवाले व्यक्तियोंको स्थायी रूपसे पाकिस्तानका मार्ग दिखाया होता ।
    आ. शिवजयंतीके समय एवं अन्य समयमे भी हिंदुओंको छत्रपति शिवाजी महाराजके प्रति प्रेम एवं आदर व्यक्त करने हेतु पूरी तरह छूट दे रखी होती । अफजलखानवधका छायाचित्र सरकारद्वारा ही महत्त्वपूर्ण एवं सार्वजनिक स्थानोंपर प्रदर्शित किया होता ।
    इ. शिवाजी महाराजका सैकडों पृष्ठोंका इतिहास हिंदुओं एवं हिंदु लडकोंको विद्यालयमें पढानेका प्रयास किया होता ।
    ई. हिंदुओंको अपने त्यौहार तथा उत्सव अन्य धर्मियोंकी अडचनोंके बिना शांतिसे मनाना संभव हुआ होता । अन्य धर्मीय हिंदुओंकी यात्राओंपर पथराव करनेका साहस नहीं किए होते ।
    उ. प्रसारमाध्यमोंको हिंदुद्वेष नहीं करने दिया जाता ।

    ३. हिंदुनिष्ठ संगठनोंके संदर्भमें कार्यए

    अ. हिंदुनिष्ठ संगठनोंके राष्ट्र-धर्म विषयक कार्यकी प्रशंसा कर सरकारद्वारा भी उनका सम्मान किया गया होता तथा उन्हें अधिक कार्य करनेके लिए बलपूर्ति की गई होती ।
    आ. सनातन संस्था, अभिनव भारत, हिंदू जनजागृति समिति तथा श्री शिवप्रतिष्ठान आदि हिंदुत्वको संजोनेवाले संगठनोंसे सम्मानपूर्वक आचरण किया होता तथा उनके पीछे जांचका झंझट नहीं लगाया होता ।
    इ. अस्तित्वमें न रहनेवाले ‘हिंदु आतंकवाद’ शब्दका उच्चारण भी किसीको नहीं करने दिया होता ।
    ई. आवश्यकताके अनुसार हिंदुओंके संत एवं संगठनोंको सुरक्षा प्रदान की होती ।
    उ. देशमें सभी दृष्टिसे हिंदु धर्मप्रसार एवं हिंदुत्वका कार्य बढानेके लिए सहायता की होती ।

    ४. विदेशके संदर्भमें नीति !

    अ. पाकिस्तान एवं चीनको शत्रु ही माना होता तथा उनके भारतविरोधी कार्यवाहियोंको ‘जैसेको तैसा’ अच्छा प्रत्युत्तर दिया होता ।
    आ. पाकिस्तानसे केवल विचार-विमर्श न कर बंदूकका प्रत्युत्तर बंदूकसे ही दिया होता ।
    इ. कश्मीरमें सेना घुसाकर पाकव्याप्त एवं आतंकवादसे खोखला हुआ कश्मीर एवं वहांकी जनताको आतंकवादी कार्यवाहियोंसे मुक्त किया होता ।
    ई. पाकिस्तानस्थित आतंकवादी संगठनोंपर प्रतिबंध लगानेके लिए तीव्र शब्दोंमें खडसाकर पाकिस्तानको बाध्य किया होता ।
    उ. पाकिस्तानी खिलाडियोंको भारतमें पांव रखनेकी अनुमति नहीं दी होती ।
    संक्षेपमें कहा जाय, तो समस्त भारतीय एवं हिंदुओको ‘हिंदु राष्ट्र’में स्वाभिमान एवं सम्मानके साथ सुरक्षित जीवन जीनेके लिए आवश्यक सभी बातें की होती ।
    प्रत्येकको लगता है कि हम भी ऐसे आदर्श रामराज्यमें रहें; परंतु रामराज्य आनेके लिए हमें भी रामराज्यकी जनताके समान धर्माचरणी एवं ईश्वरनिष्ठ होना आवश्यक है, तो ही हम रामराज्यके अधिकारी हो सकेंगे । इसके लिए सर्वत्रके हिंदुओंको साधना करना ही आवश्यक है 

    ‘बदला लो’ के नारों से पुलिस में मचा हड़कंप

    गोकशी के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले दिलशाद की 'हत्या'

    दिलशाद की मौत की जानकारी लगते ही लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। लोगों ने ‘बदला लो’ का नारा लगाया और आरोपियों के घरों की ओर दौड़ पड़े। उनके हाथों में अवैध हथियार और हाकी डंडे थे। इसकी सूचना पुलिस को लगी तो हड़कंप मच गया। लोगों ने आरोपियों के घरों में तोड़फोड़ और आगजनी की कोशिश की। हालांकि पुलिस ने मौके पर पहुंचकर हालात पर काबू पाए।

    दिलशाद की गोली मारने वाले दानिश, हाजी छोटू, दिलशाद, नदीम, इस्लामुद्दीन और महराज के मकान ऊंचा सद्दीकनगर में हैं। दिलशाद के मरने की बात लिसाड़ीगेट इलाके में आग की तरफ फैल गई। धीरे धीरे मोहल्ले में भीड़ लगने लगी। इसके बाद काफी संख्या में लोग आरोपियों के घर की ओर दौड़ पड़े। इससे पहले उग्र भीड़ आरोपियों के घरों में तोड़फोड़ और आगजनी करती पुलिस पहुंच गई और लोगों को समझाकर शांत कराया। हालात देखते हुए पुलिस अफसरों ने दिलशाद के और आरोपियों के घर पर पुलिस और पीएसी बल तैनात कर दी। पुलिस को अंदेशा है कि इस हत्या को लेकर माहौल खराब हो सकता है।

    आरोपियों के परिजनों ने खाली किए घर 

    बवाल की आशंका को देखते हुए आरोपियों के परिजनों ने रातोंरात अपने घर खाली कर दिए। पुलिस ने उनको रिश्तेदारों के यहां रहने की सलाह दी है। हालांकि दो आरोपियों के परिजनों ने घर में ही रहने की पुलिस से बात की है।

    गोकशी के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले दिलशाद की 'हत्या' दिलशाद के पास थी मिनी कमेलों की सूची


    दिलशाद के पास थी मिनी कमेलों की सूची

    लिसाड़ीगेट में चल रहे 28 मिनी कमेलों की सूची दिलशाद भारती ने मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी, एसएसपी और थाना पुलिस को सौंपी थी। लगातार कमेलों पर छापामारी से परेशान होकर गोकशी करने वालों ने दिलशाद की हत्या करने की प्लानिंग कर ली थी। गोकशी करने वालों ने चंदा करके भाडे़ के शूटरों से गोली मरवाई थी।

    दिलशाद ने गोहत्या करने वालों की सूची बनकर अभियान छेड़ रखा था। दिलशाद के साथ आठ और लोग भी शामिल थे। इसमें पांच मुस्लिम और तीन हिंदू संगठन के कार्यकर्ता थे। 18, 19, 20 व 21 नवंबर और 30 दिसंबर 2013 को दिलशाद की दी गई सूचना पर पुलिस ने छापामारी कर आठ मिनी कमेले पकड़े थे। इनसे गोमांस भी बरामद हुआ था। रियाजुद्दीन और उसके बेटे दानिश ने लिसाड़ीगेट के गली में मांस बेचने की दुकान तक खोल रखी थी।

    12 अप्रैल 2014 को दिलशाद ने ऊंचा सद्दीकनगर में रियाजुद्दीन के मिनी कमेले पर छापा डलवाया। यहां से तीन जिंदा गाय और भारी मात्रा में गोमांस मिला था। इसके बाद ही गोकशी करने वालों ने दिलशाद और उसके अभियान में शामिल लोगों की हत्या की साजिश रच ली। दिलशाद और उसके साथियों के घरों में धमकी भरी चिट्ठी भी फेंकी गई।

    इसके बाद दिलशाद ने 26 मई 2014 को दस मिनी कमेले पकड़वाए। इसके बाद ही दिलशाद को गोली मार दी गई। इसके बाद भी 10 अगस्त को ऊंचा सद्दीकनगर में आठ कमेले पकड़े गए। एक जनवरी को भी तीन मिनी कमेलों का भंडाफोड़ हुआ। तीन दिन पहले भी रहीसुद्दीन का मिनी कमेला पकड़ा था।

    कमेले से पुलिस की भी कमाई

    लोगों ने आरोप लगाया है कि लिसाड़ीगेट में लगातार गोहत्या होती हैं। शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं होती। पुलिस की साठगांठ के चलते यह धंधा बेरोकटोक चल रहा है। पुलिस को भी हिस्सा जाता है। आरोप लगाया कि दिलशाद के अभियान से भी कुछ पुलिस वालों को परेशानी थी। सच संस्था अध्यक्ष संदीप पहल ने बताया कि गोहत्या की शिकायत पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से की जाती है। इसके बाद भी कार्रवाई नहीं होती।

    'मेरा भाई शहीद हुआ है'


    'मेरा भाई शहीद हुआ है'
    हम मुसलमान हैं, लेकिन गोरक्षा करना हमारा धर्म है। मेरे भाई ने गोरक्षा करते-करते अपनी जान दे दी। गोवंश को बचाना उसने अपना मकसद बना लिया था। इसीलिए उसने शादी भी नहीं की थी। गोकशी का धंधा मंदा पड़ने लगा तो पुलिस ने ही आरोपियों से मिलकर दिलशाद को गोली मरवाई। दिलशाद ने जान का खतरा बताकर पुलिस से सुरक्षा भी मांगी थी। ये आरोप दिलशाद भारती के भाइयों ने पुलिस पर लगाए हैं। 

    दिलशाद की मौत की सूचना पर तीनों भाई आरिफ, आसिफ और इमरान रोते बिलखते अस्पताल पहुंचे। भाई का मुर्दा चेहरा देखकर तीनों का गुस्सा फूट पड़ा और जमकर पुलिस पर भड़ास निकाली। अस्पताल में मौजूद पुलिस अपना सिर नीचे झुकाकर पोस्टमार्टम के कागज बनाने में जुटी रही। पुलिस ने शव भेजकर दिलशाद के भाइयों को समझाया कि आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे। इमरान ने कहा कि मेरा भाई गोरक्षा में शहीद हुआ है, उसको पुलिस ने मरवाया है। गोहत्या करने वालों का विरोध करने पर पुलिस का धंधा बंद होने लगा था। उसको रास्ते से हटवाने के लिए पुलिस ने आरोपियों से मिलकर दिलशाद को गोली मरवाई। दिलशाद ने लिसाड़ीगेट पुलिस को पहले ही जानलेवा हमले का अंदेशा जताकर सुरक्षा मांगी थी।

    तीन आरोपी जमानत पर बाहर हैं

    दिलशाद के भाई इमरान ने बताया कि नामजद आरोपी दानिश, नदीम और दिलशाद कुछ दिन पहले जमानत पर छूटकर बाहर आ गए हैं। मुकदमा वापस न लेने पर आरोपी लगातार जान से मारने की धमकियां दे रहे हैं। तीनों भाइयों को जान का खतरा बना हुआ है। पुलिस से सुरक्षा मांगते हैं तो उनको झूठा बताया जाता है। जमानत पर छूटे तीनों आरोपियों को जेल भेजने की मांग उठाई है। पुलिस ने आरोपियों को जेल भेजने का आश्वासन दिया है।

    सब कुछ लुट गया हमारा

    पीड़ित परिवार का कहना है कि हमारा तो सब कुछ लुट गया। दिल्ली के बड़े अस्पताल में दिलशाद का इलाज कराया, जिसमें उनके एक करोड़ 15 लाख रुपये खर्च हुए। मकान तक गिरवी रखना पड़ा, बावजूद दिलशाद की जान नहीं बची। 13 जनवरी को दिल्ली के डॉक्टरों ने जवाब दे दिया तो उसको घर पर ले आए थे। 15 जनवरी को तबीयत खराब होने पर फिर परिजनों ने उसको बागपत रोड स्थित अस्पताल में भर्ती कराया था।

    गोकशी के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले दिलशाद की 'हत्या'


    पिछले साल तस्करों ने मारी थी गोली

    गोकशी के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले दिलशाद भारती की गो तस्करों द्वारा मारी गई गोली से बृहस्पतिवार शाम मौत हो गई। उनके इस विरोध के चलते छह गो तस्करों ने पिछले साल 27 जून को सिर पर गोली मार दी थी। तभी से वो अस्पताल में भर्ती थे। दिलशाद की मौत की सूचना पर परिजनों ही नहीं पूरे मोहल्ले में हड़कंप मच गया। वहीं परिजनों ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाकर हंगामा भी किया। हालात को देखते हुए पोस्टमार्टम हाउस से लेकर लिसाड़ीगेट तक पुलिस तैनात रही।

    लिसाड़ीगेट क्षेत्र के नीचा सद्दीकनगर निवासी दिलशाद भारती (35) पुत्र शकील अहमद को गोली मारने के मामले में दानिश, हाजी छोटू, दिलशाद, नदीम, इस्लामुद्दीन और महराज को नामजद किया गया था। परिजनों का कहना था कि दिलशाद लिसाड़ीगेट क्षेत्र में होने वाली गोकशी का विरोध करता था। इसके चलते उसे गोली मारी गई थी। परिजन सात महीने से दिलशाद का मेरठ से लेकर दिल्ली तक इलाज करा रहे थे।

    वर्तमान में वह मेरठ में बागपत रोड स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती था। यहां शाम 6:40 बजे उसकी मौत हो गई। डॉक्टरों ने इस बारे में परिजनों को बताया तो कोहराम मच गया। मौत की जानकारी होने पर पुलिस महकमे में भी खलबली मच गई। आनन फानन में सीओ कोतवाली रूपेश सिंह टीपीनगर एसओ और लिसाड़ीगेट एसओ के साथ अस्पताल पहुंच गए। परिजनों ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाकर अस्पताल में हंगामा शुरू किया तो पुलिस ने परिजनों को आश्वासन दिया कि आरोपियों पर सख्त कार्रवाई होगी।

    चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात 

    दिलशाद की मौत के बाद लिसाड़ीगेट में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई। पुलिस को अंदेशा है कि दिलशाद के परिजन शव को सड़क पर रखकर जाम लगा सकते हैं। परिजनों में पुलिस के प्रति जबरदस्त आक्रोश है। देर रात तक पुलिस दिलशाद के पोस्टमार्टम कराने में जुटी हुई थी।


    तुम मुझे खून दो,में तुम्हे आज़ादी दूंगा। नेताजी

    नेताजी सुभाष चंद्र बोस



    नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था।

    नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।

    1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर  बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और शीघ्र भारत लौट आए। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए।  सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे। वास्तव में महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। महात्मा गाँधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गाँधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी। सबसे पहले गाँधीजी को राष्ट्रपिता कह कर नेताजी ने ही संबोधित किया था।

    1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। यह नीति गाँधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी।  1939 में बोस पुन एक गाँधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर विजयी हुए।  गांधी ने इसे अपनी हार के रुप में लिया।  उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी ने कहा कि बोस की जीत मेरी हार है और ऐसा लगने लगा कि वह कांग्रेस वर्किंग कमिटी से त्यागपत्र दे देंगे।  गाँधी जी के विरोध के चलते इस ‘विद्रोही अध्यक्ष’ ने त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की।  गांधी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी।

    इस बीच दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। बोस का मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आज़ादी हासिल की जा सकती है। उनके विचारों के देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नज़रबंद कर लिया लेकिन वह अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस की सहायता से वहां से भाग निकले। वह अफगानिस्तान और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जा पहुंचे।
    सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया। वह 1933 से 36 तक यूरोप में रहे। यूरोप में यह दौर था हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का। नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते थोपे थे। वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे। भारत पर भी अँग्रेज़ों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ लड़ाई में नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी में भविष्य का मित्र दिखाई पड़ रहा था। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है।

    सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उन दोनों की एक अनीता नाम की एक बेटी भी हुई जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती हैं।

    नेताजी हिटलर से मिले। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए। उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां से वह जापान पहुंचे। जापान से वह सिंगापुर पहुंचे। जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले ली। उस वक्त रास बिहारी बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता थे। उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया। महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया जिसकी लक्ष्मी सहगल कैप्टन बनी।

    'नेताजी' के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया।

    18 अगस्त 1945 को तोक्यो जाते समय ताइवान के पास नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में हो गई, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है।

    अमेरिका के दवाब में पाकिस्तान का आतंकी हाफिज पर बड़ा ‘एक्शन’


    hafiz

    मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की मुश्किलें बढ़ गई हैं। पाकिस्तान सरकार ने हाफिज के संगठन जमात-उद-दावा को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डाल दिया है। इतना ही नहीं नवाज सरकार ने कुख्यात हक्कानी नेटवर्क को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में शामिल कर दिया है। बताया जा रहा है कि अमेरिका के दबाव में कादम उठाया है।
    एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि जमात-उद-दावा और कई गुटों पर प्रतिबंध का फैसला सरकार ने कई दिन पहले किया था तथा इसके कार्यान्वयन का तौर तरीका तय करने का जिम्मा गृह मंत्रालय को सौंपा गया था। इसके बाद मंत्रालय ने जमात-उद-दावा तथा फलाह-ए़-इन्सानियत फाउंडेशन (एफआईएफ) को चरमपंथ एवं उग्रवाद में उनकी संलिप्तता के लिए प्रतिबंधित संगठन की सूची में डाल दिया। दोनों गुटों का नेतृत्व हाफिज सईद करता है।
    डॉन अखबार के मुताबिक, अमेरिका हक्कानी नेटवर्क तथा जमात-उद-दावा पर प्रतिबंध की मांग कर रहा था, लेकिन पाकिस्तान सरकार आनाकानी कर रही थी। यह निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा से पहले किया गया है। ओबामा भारत जा रहे हैं और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि होंगे।
    प्रतिबंधित संगठनों की सूची में शामिल अन्य गुटों में हरकत-उल-जिहाद इस्लामी, हरकत-उल-मुजाहिद्दीन, उम्मा तामीर-ए-नौ, हाजी खरूल्ला हाजी सत्तार मनी एक्सचेंज, राहत लिमिटेड, रोशन मनी एक्सचेंज, अल अख्तर ट्रस्ट और अल राशिद ट्रस्ट हैं। प्रतिबंध के बाद इन गुटों की संपत्ति सील कर दी जाएगी।
    इससे पहले एक अधिकारी ने कहा था कि सरकार जमात-उद-दावा को प्रतिबंधित गुट घोषित करने से पहले, उसका नाम निगरानी सूची में डालेगी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मुंबई हमले के बाद जमात-उद-दावा को लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा कहा था। तब से संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने जमात-उद-दावा के कई नेताओं पर प्रतिबंध लगा रखा है।
    हक्कानी नेटवर्क की स्थापना जलालुद्दीन हक्कानी ने की थी। इस संगठन पर वर्ष 2008 में अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर बम हमला, वर्ष 2011 में काबुल स्थित अमेरिकी दूतावास पर हमला तथा अफगानिस्तान में कई बड़े ट्रक बम हमले के प्रयास करने का आरोप है। वर्ष 2008 में अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर किए गए बम हमले में 58 लोग मारे गए थे।
    अमेरिकी और अफगान अधिकारी बार बार कहते रहे हैं कि पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आईएसआई अफगानिस्तान में अपना प्रभाव फैलाने के लिए हक्कानी नेटवर्क को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देती है। इस्लामाबाद इस आरोप का खंडन करता है। अमेरिका ने सितंबर 2012 में इस गुट को एक आतंकी संगठन घोषित किया था।

    पता लगा कहां है बगदादी, ऑपरेशन को तैयार अमेरिका


    Baghdadi

    कल तक जो अल बगदादी बेगुनाहों का कत्ल-ए-आम कर रहा था आज उसी बगदादी की जान एक राजदार में कैद है। अल बगदादी का वही राजदार आज अमेरिकी खुफिया एजेंस सीआईए के सामने सारे राज उगल रहा है। यही वजह है कि अब बगदादी को मौत का खौफ सता रहा है।

    पिछले 8 महीने से अल बगदादी को 40 मुल्कों की फौज तलाश रही थी। बगदादी का सुराग पाने के लिए उसके सिर पर अमेरिका ने 60 करोड़ का इनाम रखा लेकिन बीते 8 महीने में बगदादी की फकत दो तस्वीरों के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगा। पहली बार उसी बगदादी के सीक्रेट ठिकाने की लोकेशन ट्रेस हो चुकी है। अल बगदादी के राजदार ने ही उसके तमाम ठिकानों का अनसुन सच अमेरिका को बता दिया है यानी अब बगदादी का द एंड पक्का है।
    60 करोड़ इनामी मोस्टवॉन्टेड आंतकी का सबसे बड़ा राजदार है इमरान ख्वाजा। आतंकी इमरान ही आईएसआईएस के रिक्रूटमेंट सेल का हेड हुआ करता था। बगदादी का यही राजदार पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है। पूछताछ के दौरान इमरान ने ही अपने आका अल बगदादी के तमाम राज उगल दिए है। पहली बार बगदादी के गुप्तलोक की लोकेशन ट्रेस हो चुकी है। जल्द ही अमेरिकी बगदादी का काम तमाम करने के लिए लादेन की तर्ज पर बड़े ऑपरेशन को अंजाम दे सकता है।

    बगदादी के गुप्तलोक का पता अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को लग चुका है। राजदार के मुताबिक इस वक्त अल बगदादी मोसुल शहर में बने अपने एक गुप्त तहखाने में अंडरग्राउंड है। अमेरिकी सेना के हाथों मारे जाने के डर से बगदादी ने इंटरनेट और मोबाइल का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर रखा है।

    “अगर सच्चा प्यार किया है तो हिंदू धर्म अपनाएं खान” - हिंदू महासभा

     ‘लव जेहाद’ जैसे मुद्दों को लेकर चल रही बहस के बीच हिंदू महासभा ने बॉलिबुड के खानों पर हमला करते हुए उन्हें चुनौती दी है।
    महासभा ने आमिर खान और सैफ अली खान को चुनौती दी है कि अगर ये खान अपनी पत्नियों से सच्चा प्यार करते हैं तो हिंदू धर्म अपना लें। तब पता चलेगा कि खान अपनी बीवियों से सच्चा प्यार करते हैं, नहीं तो ये भी लव जेहाद का हिस्सा का माना जाएगा।
    खबर के अनुसार हिंदू महासभा ने कहा कि वह इन खानों के लिए ‘घरवापसी’ का कार्यक्रम आयोजित करने के लिए तैयार है।  हिंदू महासभा के राष्ट्रीय महासचिव और ‘हिंदू सभा वार्ता’ के संपादक मुन्ना कुमार शर्मा ने कहा कि ‘लव जेहाद’ हिंदू विरोधी साजिश है। इसमें अनपढ़ मुस्लिम से लेकर पढ़े-लिखे मुस्लिम तक शामिल हैं।
    मुन्ना कुमार ने आगे कहा कि शर्मिला टैगोर, करीना कपूर, रीना दत्त, किरण राव को प्रेमजाल में फंसाकर इस्लाम अपनाने को मजबूर किया गया।  जब हिंदू लड़की मुस्लिम युवक से शादी करती है तो उसे इस्लाम धर्म का पालन करना पड़ता है और उसके बच्चे मुस्लिम ही होते हैं।
    गौरतलब है कि हिंदू महासभा के मुखपत्र में करीना कपूर की उसी तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है जिसमें करीना का आधा चेहरा बुरके से ढका है और आधा चेहरा दिख रहा है। इस तस्वीर के ऊपर लवजिहाद लिखा है।

    Thursday, 22 January 2015

    10 साल में 24 फीसदी बढ़ी मुस्लिमों की आबादी



    पिछले एक दशक पर गौर करें तो एक बार फिर से देश में मुस्लिमों की आबादी में इजाफा हुआ है। जनगणना-2011 के आंकड़ों के आधार पर ये दावा टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में किया गया है।

    दरअसल धार्मिक समूहों की जनसंख्या पर आधारित जनगणना के नए आंकड़े जल्द ही जारी होने वाले हैं। उससे पहले टाइम्स ऑफ इंडिया में सामने आए आंकड़ों के मुताबिक साल 2001 से साल 2011 के बीच देश में मुस्लिमों की जनसंख्या में करीब 24 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है।

    हालांकि उनकी जनसंख्या में इजाफा तो हुआ है लेकिन पिछले दशक के मुकाबले उनकी जनसंख्या वृद्धि में गिरावट हुई है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले 10 साल में देश में मुस्लिमों की कुल जनसंख्या 13.4 फीसदी से बढ़कर 14.2 फीसदी पर पहुंच गई है।

    हालांकि ये आंकड़े पिछले दशक के आंकड़ों से काफी कम है। 1991 से साल 2001 के बीच सामने आए ऐसे ही आंकड़ों में मुस्लिमों जनसंख्या में वृद्धि करीब 29 फीसदी थी। जो इस बार 18 फीसदी पर पहुंच गई है। गिरावट के बाद भी अगर उनकी जनसंख्या वृद्धि की दर देखी जाए तो अब भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।

    वहीं अगर राज्यों के मुकाबले में इन आंकड़ों को देखें तो मुस्लिमों की जनसंख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी असम में हुई। यहां साल 2001 में मुस्लिमों की जनसंख्या 30.9 फीसदी थी जो इस दशक में बढ़कर 34.2 फीसदी पहुंच गई है। इस समस्या की सबसे बड़ी वजह बांग्लादेश से घुसपैठ कर आने वाले अवैध अप्रवासी हैं।

    इस समस्या से असम ही नहीं पश्चिम बंगाल भी जूझ रहा है। यहां भी अवैध अप्रवासियों के चलते मुस्लिमों की संख्या में इजाफा हुआ है। पश्चिम बंगाल में साल 2001 के 25.2 फीसदी के आंकड़ों के मुकाबले साल 2011 में ये इजाफा 27 फीसदी पहुंच गई है। यानी पिछले दस साल में यहां करीब 1.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।

    अन्य राज्यों में भी इनकी वृद्धि दर में इजाफा देखा गया है। साल 2011 के आंकड़ों के मुताबिक केरल में ये आंकड़ा 24.7 फीसदी से बढ़कर 26.6 फीसदी तक पहुंच गया है।

    उत्तराखंड की बात करें तो यहां भी मुस्लिमों की आबादी में तेज बढ़ोतरी दर्ज हुई है। यहां 11.9 फीसदी से मुकाबले इस बार 13.9 फीसदी पहुंच गई है।

    गोवा में ये आंकड़ा 6.8 फीसदी से बढ़कर 8.4 फीसदी पर पहुंच गई है। जम्मू-कश्मीर में ये बढ़ोतरी 67 फीसदी से बढ़कर 68.3 फीसदी पर पहुंच गई है।

    हरियाणा में 5.8 फीसदी के मुकाबले आंकड़ा 7 फीसदी पर पहुंचा है। वहीं देश की राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो यहां भी आंकड़ों में उछाल आया है। दिल्ली में 11.7 फीसदी से बढ़कर आंकड़ा 12.9 फीसदी पर पहुंच गया है।


    इन आंकड़ों में जहां देश के विभिन्न राज्यों में इजाफा देखने को मिला है वहीं मणिपुर एकमात्र ऐसा राज्य है जहां मुस्लिमों की आबादी में गिरावट देखी गई है। ये गिरावट 0.4 फीसदी के आस-पास है।

    बताया जा रहा है कि जनसंख्या वृद्धि का ये आंकड़ा पिछले साल मार्च में ही जनगणना कार्यालय ने तैयार किए थे। हालांकि चुनावी मौसम को देखते हुए इसे जारी करने से यूपीए सरकार ने रोक लगा दी थी।

    हालांकि जब ये मामला गृहमंत्री राजनाथ सिंह के संज्ञान में आया तो उन्होंने इन आंकड़ों तो तुरंत जारी करने के लिए रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया और जनगणना कमिश्नर सी चंद्रमौली को कहा। राजनाथ सिंह ने बुधवार को ही इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि ये आंकड़े जल्द ही सबके सामने आएंगे।