डॉ.के.के. मोहम्मद |
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रसिध्द पुरातत्ववेत्ता डॉ. के.के. मोहम्मद ने, वर्षों बाद भी अयोध्या प्रकरण का समाधान नहीं निकलने के लिए वामपंथी इतिहासकारों को उत्तरदायी ठहराया है । उनके अनुसार वामपंथियों ने इस मुद्दों का समाधान नहीं होने दिया ।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण उत्तर क्षेत्र के पूर्व निदेशक डॉ. मोहम्मद ने मलयालम में लिखी आत्मकथा ‘जानएन्ना भारतीयन’ (मैं एक भारतीय) में यह दावा करते हुए कहा है कि, ‘वामपंथी इतिहासकारों ने इस मुद्दे को लेकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेताओं के साथ मिलकर देश के मुसलमानों को पथभ्रष्ट किया ।’ उनके अनुसार, इन लोगों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय तक को भी पथभ्रष्ट करने का प्रयास किया था ।
अपनी आत्मकथा में डॉ.के.के. मोहम्मद ने बताया है कि, १९७६-७७ के कालावधि में एएसआइ के तत्कालीन महानिदेशक प्रो. बीबी लाल के नेतृत्व में पुरातत्ववेत्ताओं के दल द्वारा अयोध्या में किए गए उत्खनन के कालावधि में मंदिरों के ऊपर बने कलश के नीचे लगाया जाने वाला गोल पत्थर मिला । यह पत्थर केवल मंदिर में ही लगाया जाता है । इसी प्रकार जलाभिषेक के पश्चात, मगरमच्छ के आकार की जल प्रवाहित करनेवाली प्रणाली भी मिली है ।
देश के एक प्रमुख पोर्टल समाचार से बात करते हुए डॉ. मोहम्मद ने बताया कि, इस मुद्दे को लेकर इरफान हबीब (भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष) के नेतृत्व में कार्रवाई समिति की कई बैठकें हुईं थीं ।
उन्होंने कहा कि, ‘रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा और एस गोपाल सहित इतिहासकारोने कट्टरपंथी मुसलमान समूहों के साथ मिलकर तर्क दिया था कि, १९ वीं शताब्दी से पहले मंदिर की तोडफोड और अयोध्या में बौद्ध जैन केंद्र होने का कोई संदर्भ नहीं है । इसका इतिहासकार इरफान हबीब, आरएस शर्मा, डीएन झा, सूरज बेन और अख्तर अली ने भी समर्थन किया था ।’ इनमें से कइयों ने सरकारी बैठकों में हिस्सा लिया और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का खुला समर्थन किया ।’
पुस्तक के एक अध्याय में डॉ. मोहम्मद ने लिखा है, ‘जो कुछ भी मैंने जाना और कहा है, वह ऐतिहासिक सच है । हमे विवादित स्थल पर एक नहीं, बल्कि १४ स्तंभ मिले थे । सभी स्तंभों पर कलश खुदे थे । ये ११ वीं व १२ वीं शताब्दी के मंदिरों में पाए जानेवाले कलश के समान थे । कलश ऐसे नौ प्रतीकों में एक हैं, जो मंदिर में होते हैं । इस से कुछ मात्रा में यह भी स्पष्ट हो गया था कि, मस्जिद एक मंदिर के अवशेष पर खडी है । उन दिनों मैंने इस बारे में अंग्रेजी के कई समाचार पत्रों को लिखा था ।
उन्होंने यह भी बताया है कि, मेरे विचार को केवल एक समाचार पत्र ने प्रकाशित किया और वह भी ‘लेटर टू एडिटर कॉलम’ में ।’
हिन्दुओ, ध्यान रखें कि कोई कितने भी प्रमाण दे; परंतु हिंदुद्रोही और अल्पसंख्यक कभी भी हिन्दुआें को अयोध्या में राममंदिर नहीं बनाने देंगे । इसलिए राममंदिर का निर्माण करने हेतु संगठित हो जाएं
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