जैसे बाहरी विज्ञान की दुनिया में आइंस्टीन का नाम सर्वोपरि है, वैसे ही भीतरी विज्ञान की दुनिया के आइंस्टीन हैं पतंजलि। जैसे पर्वतों में हिमालय श्रेष्ठ है, वैसे ही समस्त दर्शनों, विधियों, नीतियों, नियमों, धर्मों और व्यवस्थाओं में योग श्रेष्ठ है।- ओशो
यह मौका है भारत के हिन्दू और मुसलमानों सहित अन्य धर्मों के लोगों के पास कि वे 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' पर एक साथ योगासन करके विश्व को यह संदेश दें कि भारत एक है। उसकी राष्ट्रीय एकता अखंड है। राष्ट्रीय मामलों पर हम एक हैं।
सचमुच योग को धर्म के आईने से देखने की जरूरत नहीं, जबकि धर्म को योग के आईने से देखने की जरूरत है। दुनिया के 44 मुस्लिम देशों ने और 100 से ज्यादा ईसाई राष्ट्रों ने योग को अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित करने के लिए समर्थन किया है। ऐसे में भारत के मुसलमानों और ईसाइयों द्वारा इसका विरोध किए जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। विरोध तो बस राजनीतिक है। कुछ मुट्ठीभर लोगों को छोड़ दें तो संपूर्ण भारत योग पर एकमत है।
योग का धर्म से संबंध है या नहीं ?
अधिकतर यह तर्क देते हैं कि योग का धर्म से कोई संबंध नहीं है। वे तर्क देते हैं कि यह सभी जानते हैं कि बिजली के बल्ब का आविष्कार थॉमस एडिसन ने किया था। इसका यह मतलब नहीं कि बल्ब ईसाई धर्म का हिस्सा है। किसी ईसाई द्वारा गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित करने से वह सिद्धांत ईसाई सिद्धांत नहीं हो जाता।
लेकिन, मैं यहां पर कहना चाहूंगा कि यह तर्क गलत है। वेदों में योग का उल्लेख मिलता है। मूलत: योग वेद का उपांग है। गीता के संपूर्ण 18 अध्याय योग ही हैं। गीता का 6ठा अध्याय तो सिर्फ योग पर ही आधारित है। योग एक विस्तृत विषय है, यह सिर्फ आसन नहीं है। यहां यह जरूर कहना होगा कि योग को किसी एक धर्म से नहीं, सभी धर्मों से जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि सभी धर्म किसी न किसी रूप में योग की ही शिक्षा देते हैं। योग को धर्म से अलग देखने की जरूरत नहीं। योग अपने आप में एक संपूर्ण धर्म और दर्शन है। हालांकि यह सही है कि योग को अब हिन्दू धर्म से मुक्त करने की जरूरत है और यह लगभग मुक्ति के मार्ग पर ही है और यह काम कर सकते हैं गैर-हिन्दू।
आसन किसी की बपौती नहीं
जहां तक आसनों का सवाल है, तो दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति ने आसन किए हैं। जो पैदा होने वाला बच्चा है, वह भी आसन करेगा ही। आपने बच्चों को देखा होगा वे योग के आसन करके ही स्वस्थ रहते हैं। वे भुजंगासन करते हैं, वे पवनमुक्तासन करते हैं, वे सेतुबंधासन करते हैं और वे शीर्षासन भी करते हैं। आप किसी पशु को देखें तो वह भी आपको योग के आसन करता हुआ दिखाई देगा। भारत के चिकित्सक ऋषियों ने यह सब गहराई से देखा और उन सभी हरकतों को एक विशेष नाम दिया। वे सभी नाम आज आसनों के नाम हैं। आधुनिक युग में अमेरिका और योरप के लोगों ने उन नामों का अंग्रेजीकरण कर दिया है।
योग क्या है ?
'योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे है। योग एक सीधा विज्ञान है। प्रायोगिक विज्ञान है। योग है जीवन जीने की कला। योग एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। एक पूर्ण मार्ग है- राजपथ। दरअसल, धर्म लोगों को खूंटे से बांधता है और योग सभी तरह के खूंटों से मुक्ति का मार्ग बताता है। धर्म लोगों को आपस में बांटता है, लेकिन योग जोड़ता है।' -ओशो
धर्म, विज्ञान, मनोविज्ञान और योग
धर्म के सत्य, मनोविज्ञान और विज्ञान का सुव्यवस्थित रूप है योग। योग की धारणा ईश्वर के प्रति आप में भय उत्पन्न नहीं करती और जब आप दुःखी होते हैं तो उसके कारण को समझकर उसके निदान की चर्चा करती है। योग पूरी तरह आपके जीवन को स्वस्थ और शांतिपूर्ण बनाए रखने का एक सरल मार्ग है। यदि आप स्वस्थ और शांतिपूर्ण रहेंगे, तो जिंदगी को अच्छे से इंजॉय करेंगे।
योग का ईश्वर
योग ईश्वरवाद और अनीश्वरवाद की तार्किक बहस में नहीं पड़ता। वह इसे विकल्प ज्ञान मानता है, आप इसे मिथ्या ज्ञान समझ सकते हैं। योग को ईश्वर के होने या नहीं होने से कोई मतलब नहीं, किंतु यदि किसी काल्पनिक या यथार्थ ईश्वर की प्रार्थना करने से मन और शरीर में शांति मिलती है तो इसमें क्या बुराई है? इसीलिए योग में 'ईश्वर प्राणिधान' नामक एक नियम है।
योग एक ऐसा मार्ग है, जो विज्ञान और धर्म के बीच से निकलता है। वह दोनों में ही संतुलन बनाकर चलता है। योग के लिए महत्वपूर्ण है मनुष्य और मोक्ष। मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखना विज्ञान और मनोविज्ञान का कार्य है और मनुष्य के लिए मोक्ष का मार्ग बताना धर्म का कार्य है। किंतु योग ये दोनों ही कार्य अच्छे से करना जानता है इसलिए योग एक विज्ञान भी है और धर्म भी।
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