1793
आतंक का राज्य : यह हिंसा का ऐसा युग था जो कि 5 सितंबर, 1793 को शुरू हुआ था और फ्रांसीसी क्रांति के दौरान 28 जुलाई, 1794 को खत्म हुआ था। हिंसा के इस केन्द्र में गिरोदिन्स और जैकोंबिन्स थे, जिनकी मारकाट में 16 हजार 594 लोगों की मौत हुई थी। वास्तव में इन लोगों की गिलोटिन नामक यंत्र से सिर काटकर हत्या कर दी गई थी। 1795 में एडमंड बर्क ने इसके लिए पहली बार 'टेररिस्ट' (आतंकवादी) शब्द का उपयोग किया था।
1858
फेलिस ओर्सिनी : ऑर्सिनी इटली के एक गुप्त राजनीतिक संगठन 'कोर्बिनरी' का नेता था, जिसने 14 जनवरी, 1858 को फ्रांस के तीसरे सम्राट नेपोलियन की हत्या की कोशिश की थी। जब नेपोलियन और साम्राज्ञी यूजिनी दि मोंतिजो थिएटर के लिए जा रहे थे तब उसने शाही बग्गी पर तीन बम फेंके थे। इस घटना में 8 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 142 लोग घायल हो गए थे। वह पोप को गद्दी से हटाने के षड्यंत्र में शामिल था और उसने नेपोलियन तृतीय को इसलिए मारने की कोशिश की थी क्योंकि वह मानता था कि ये लोग इटली की स्वतंत्रता में सबसे बड़े रोड़े थे। आश्चर्य की बात है कि उसके इन आतंकवादी कामों से प्रेरित होकर पहला रूसी आतंकवादी ग्रुप बने।
1920
वॉल स्ट्रीट पर बमबारी : न्यूयॉर्क के वित्तीय इलाके में 16 सितंबर, 1920 को बमबारी की घटना हुई थी जिसमें 38 लोगों की मौत हो गई थी और 400 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस घटना में बीस लाख डॉलर के नोट खराब हो गए थे। इस आतंकवादी हमले में घोड़े से खींची जाने वाली एक बग्घी में 45 किग्रा डायनामाइट था जो कि 230 किग्रा विस्फोटक के साथ जुड़ा था। जैसे ही विस्फोट हुआ कि जेपी मॉर्गन इमारत के अंदरूनी भाग में काम कर रहे ब्रोकर्स, क्लर्क्स, मेसेंजर्स (संदेशवाहक) और स्टेनोग्राफर्स मारे गए। इस अपराध का कभी खुलासा नहीं हुआ, लेकिन ऐसा माना जाता था कि इतालवी अराजकतावादी गुट गेल्लेअनिस्ट्स का इसके पीछे हाथ था। उस वर्ष बमबारी की कई घटनाओं में यह गुट शामिल था। इस घटना को श्रम संघर्ष, युद्धोपरांत सामाजिक अशांति और पूंजीवादी विरोधी आक्रमण के तौर पर देखा गया था।
1925
संत नेदेल्या चर्च पर हमला : यह हमला 16 अप्रैल, 1925 को किया गया था और इसके दौरान बुल्गारियन कम्युनिस्ट पार्टी (बीसीपी) के एक गुट ने संत नेदेल्या चर्च के गुंबद को उड़ा दिया था। इससे ठीक दो दिन पहले ही जनरल जॉर्जियेव की इसी गुट ने हत्या कर दी थी। वे शाम के समय सोफिया चर्च में सामूहिक प्रार्थना के लिए जा रहे थे। इस हमले में करीब 150 लोग मारे गए थे जिनमें से ज्यादातर प्रमुख सरकारी और सैन्य अधिकारी थे और इनके अलावा 500 लोग घायल हो गए थे। इस हमले का क्रियान्वयन बीसीपी के सैन्य संगठन ने किया था जिसे इस हमले का काम सौंपा गया था। इसके लिए चर्च के दक्षिणी प्रवेश द्वार के प्रमुख गुंबद के एक कॉलम्स पर 25 किग्रा के विस्फोटक का एक पैकेज लगा दिया गया था। इस बारूद में विस्फोट करने के लिए 15 मीटर लम्बा तार लगाया गया था ताकि हमलावरों को भागने का मौका मिल सके।
1946
किंग डेविड होटल पर बमबारी : 22 जुलाई, 1946 को विद्रोही दक्षिणपंथी यहूदी गुट, इर्गुन, ने किंग डेविड होटल स्थित ब्रिटिशों के फिलीस्तीन के लिए मुख्यालय को बम से उड़ा दिया था। इस आतंकवादी हमले में विभिन्न देशों के 91 लोग मारे गए थे। इनके अलावा 46 अन्य लोग घायल हुए थे। वर्ष 1920 से 1948 के दौरान ब्रिटिश शासन के दौरान यह सबसे भीषण आतंकवादी हमला था।
1978
सिनेमा रेक्स की आग : आगजनी की यह घटना ईरान के शहर अबादान में 19 अगस्त, 1978 को हुई थी। इस आग में 470 लोगों की मौत हो गई थी जिनमें से ज्यादातर लोगों की बहुत अधिक जलने से पहचान भी नहीं की जा सकी थी। जब एक ईरानी समाचारपत्र ने इस आशय की खबर दी थी कि इसके पीछे कट्टरपंथी इस्लामवादियों का हाथ था, इसे इस्लामी सरकार ने बंद करा दिया था। बाद में, यह बात सामने आई कि इस घटना के पीछे शाह विरोधी उग्रवादियों का हाथ था।
1979
बड़ी मस्जिद पर कब्जा : यह आतंकवादी कृत्य वर्ष 1979 में 20 नवंबर से 5 दिसंबर तक चला था और इसके तहत मक्का की मस्जिद पर इस्लाम में परिवर्तन चाहने वाले विरोधियों ने कब्जा कर लिया था। विदित हो कि मक्का की यह मस्जिद इस्लामी जगत में बहुत पवित्र मानी जाती है। इन चरमपंथियों का नेता, मोहम्मद अब्दुल्लाह अल-काहतानी था जिसने घोषणा कर दी थी कि वह इस्लाम का 'मैहदी' या 'मुक्तिदाता' है और दुनिया के सभी मुस्लिमों को उसकी बातों का पालन करना चाहिए। इस अफरातफरी के दौरान सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम तीर्थयात्री वार्षिक हज यात्रा के लिए आए थे, उन्हें 'मैहदी' के समर्थकों ने बंधक बना लिया था। बाद में, मस्जिद में सुरक्षा बलों को बुलाया गया और दोनों ओर से गोलीबारी में सैकड़ों हजयात्री मारे गए थे। मरने वालों में सैकड़ों की संख्या मैहदी समर्थकों की भी थी। जब मस्जिद पर यह कब्जा समाप्त हुआ तब तक 255 हजयात्रियों, उग्रवादियों की जानें चली गई थीं और दोनों ओर से 500 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
1983
बेरूत की बैरकों पर बमबारी : बड़ी आतंकवादी घटनाओं में शामिल यह घटना 1980 के दशक में हुई थी। यह घटना 23 अक्टूबर, 1983 में हुई थी और तब लेबनान की गृह यु्द्ध अपने चरम पर था। तब विस्फोटकों से भरे दो ट्रकों में अमेरिकी और फ्रांसीसी सेनाओं के लिए बनी बैरकों में भीषण विस्फोट हुआ था। इसकी जिम्मेदारी इस्लामिक जिहाद नाम के संगठन ने ली थी जोकि हिजबुल्लाह का छद्म नाम था और इसे ईरान के इस्लामी गणराज्य से पूरी मदद मिलती थी। दोनों ट्रकों में करीब 5400 किग्रा टीएनटी भरा हुआ था और इस विस्फोट से अमेरिकी मैरीन कॉर्प्स के इतने अधिक जवान मारे गए थे जितने कि कभी नहीं मरे होंगे। हमलों में 241 सैनिकों की मौत हुई थी।
1988
पैन एम उड़ान में विस्फोट : इस घटना को 'लॉकरबी बमकांड' के नाम से भी जाना जाता है। यह घटना 21 दिसंबर, 1988 में हुई थी जब लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे से एक पैन एम ट्रांसअटलांटिक उड़ान, न्यूयॉर्क के जेएफके इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए जा रही थी। यह बोइंग 747-121 विमान था जिसे 'क्लिपर मेड ऑफ द सीज' का नाम दिया गया था। स्कॉटलैंड, लॉकरबी के तट पर एक जोरदार विस्फोट हुआ और विमान पर सवार सभी 243 यात्री मारे गए थे। विमान का मलबा जमीन पर गिरने से भी 11 लोगों की मौत हुई थी। विमान पर मरने वालों में चालकदल के 16 सदस्य भी शामिल थे। स्कॉटिश पुलिस और अमेरिकी एफबीआई ने मामले की तीन साल तक जांच की थी और पाया था कि विमान को उड़ाने की इस घटना के लिए 2 लीबियाई नागरिक जिम्मेदार थे। लीबियाई नेता मुअम्मर गद्दाफी ने इन नागरिकों को स्कॉटिश, अमेरिकी जांचकर्ताओं को सौंप दिया था। गद्दाफी ने पीड़ितों के परिजनों को हर्जाना राशि भी चुकाई लेकिन उनका दावा था कि इस विमान दुर्घटना में उनका कोई हाथ नहीं था।
1993
मुंबई बमकांड : इस आतंकवादी हमले के तहत मुंबई (पूर्व के बॉम्बे) में तेरह बम विस्फोट कराए गए थे। यह हमला 12 मार्च, 1993 को किया गया था जिसमें 270 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा नागरिक घायल हुए थे। इन हमलों को एक अपराध संगठन 'डी कंपनी' के प्रमुख दाउद इब्राहीम के इशारे पर किया गया था। उसका कहना था कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुई दिसंबर-जनवरी की हिंसा में 'बडे पैमाने पर मुस्लिमों के कत्लेआम का बदला' लिया गया था।
1995
ओकलाहामा सिटी बमकांड : अमेरिका में 9/11 हमले से पहले यह एक और बड़ा आतंकवादी हमला था। यह बमकांड 19 अप्रैल, 1995 को किया गया था और इसके तहत में ओकलाहामा के अल्फ्रेड पी. मरे फेडरल बिल्डिंग में विस्फोट हुआ जिसमें बहुत सारे कार्यालय थे। हमले में 168 लोगों की मौत हुई थी और 800 से ज्यादा घायल हुए थे। इनमें 19 बच्चे भी शामिल थे जिनकी आयु छह वर्ष से भी कम थी। इस विस्फोट से 16 ब्लॉक के दायरे में 324 इमारतों को नुकसान पहुंचा था, विस्फोटों से 86 कारें जल गई थीं, समीपवर्ती 324 इमारतों के शीशे टूट गए थे और करीब 65 करोड़ 20 लाख डॉलर मूल्य की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचा था। इस घटना को अंजाम देने वाले टिमोथी मैकवे को वर्ष 2001 में जहर का इंजेक्शन देकर मार दिया गया था।
1997
बेंतलहा, अल्जीरिया पर हमला : इसे 'बेंतलहा हत्याकांड' के नाम से भी जाना जाता है। यह दुखद घटना 22-23 सितंबर, 1997 की दरम्यानी रात में हुई थी जब सशस्त्र गुरिल्लों ने इस गांव पर हमला करके 200 से लेकर 400 लोगों की हत्या कर दी थी। इसकी शुरुआत रात साढ़े ग्यारह बजे हाई अल दिलाजी के नारंगी के बगीचों के पास विस्फोट से हुई थी। इसके बाद मशीन गनों, धारदार हथियारों और शिकारी राइफलों से लेकर हमलावरों ने घर-घर जाकर पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या कर दी थी। इस नृशंस हत्याकांड की जिम्मेदारी एक हथियारबंद इस्लामी गुट ने ली थी जिसने पहले भी ऐसे बहुत से हत्याकांडों के लिए जिम्मेदार था।
1998
अमेरिकी दूतावासों पर बमबारी : आतंकवादी हमलों के क्रम में पूर्वी अफ्रीका के शहरों, नैरोबी और दार ए सलाम के अमेरिकी दूतावासों पर हमला किया गया था। यह हमला, 7 अगस्त, 1998 को किया गया था जबकि सऊदी अरब में अमेरिकी फौजों के आगमन की वर्षगांठ मनाई जा रही थी। इस घटना में ट्रकों को बमों के तौर पर इस्तेमाल किया गया था और यह काम स्थानीय आतंकवादी गुट अल कायदा का था जिसका मुखिया ओसामा बिन लादेन था। इन ट्रकों में 3 से लेकर 17 टन तक ऊंचे किस्म के विस्फोटक पदार्थों का इस्तेमाल किया गया था। इस हमले में दो सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे और हजारों की संख्या में लोग घायल हो गए। हालांकि यह हमला अमेरिकी संस्थानों पर था, लेकिन इन हमलों में ज्यादातर मारे गए लोग स्थानीय ही थे और केवल 12 अमेरिकियों की मौत हुई थी।
2001
9/11 का हमला : 11 सितंबर, 2001 को अल कायदा ने न्यूयॉर्क और वाशिंगटन पर चार हमलों को अंजाम दिया था। इन हमलों के लिए 19 लोगों ने 4 विमानों का अपहरण किया और इनमें से अमेरिकी एयरलाइन की फ्लाइट 11 और यूनाइटेड एयरलाइंस की फ्लाइट 175 को न्यूयॉर्क शहर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टॉवरों से टकरा दिया गया। करीब दो घंटे के बाद दोनों इमारतें पूरी तरह से धराशायी हो गईं और इनके साथ आसपास की इमारतें भी नहीं बचीं। तीसरे विमान, अमेरिकन फ्लाइट 77, से वर्जीनिया में पेंटागन की इमारत को निशाना बनाया गया था जबकि चौथे विमान यूनाइटेड एयरलाइंस फ्लाइट 93 से वाशिंगटन डीसी में कैपिटल को निशाना बनाया जाना था, लेकिन विमान के यात्रियों के संघर्ष के कारण यह पेंसिलवानिया के एक खेत में गिर गया था। इन हमलों में तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई।
2002
बाली बमकांड : इंडोनेशिया के इतिहास में इसे आतंकवाद का सबसे भीषण उदाहरण माना जाता है। 12 अक्टूबर, 2002 को हुई इस घटना में कूटा के पर्यटक क्षेत्र को निशाना बनाया गया था। इस बमकांड में 202 लोगों की मौत हुई थी जिनमें से ज्यादातर विदेशी पर्यटक थे। इनमें 38 स्थानीय नागरिक भी शामिल थे। स्थानीय नाइटक्लबों पर यह हमला जेमाह इस्लामिया नाम के आतंकवादी संगठन ने किया था। गुट के दो सदस्यों ने अपने बैकपैक में बमों को बांधकर खुद को विस्फोट से उड़ा लिया था। हमले में एक कार बम का भी इस्तेमाल किया गया था और एक तीसरा विस्फोट देनपासर स्थित अमेरिकी दूतावास में किया गया था।
2004
मैड्रिड की ट्रेनों पर बम हमले : इसे 'इलेवन एम' ने नाम से जाना जाता है। 11 मार्च, 2004 को मैड्रिड की केरसानिया यात्री ट्रेन पर बम विस्फोट किए गए थे। सिलसिलेवार बम विस्फोटों के पीछे आतंकवादी गुट अल कायदा का हाथ था। स्पेन के आम चुनावों से तीन दिन पहले हुए इन विस्फोटों में करीब 200 लोगों की मौत हो गई।
2004
सुपरफेरी पर विस्फोट : यह समुद्र पर हुआ सबसे भीषण हमला था जो कि 27 फरवरी, 2004 को हुआ था जिसमें सुपरफेरी समुद्र में डूब गई थी। यह फेरी कागयान डि ओरो सिटी जा रही थी और मनीला बंदरगाह से मात्र 90 मिनट पहले रवाना हुई थी। इस्लामी आतंकवादी गुट के इस हमले में 116 लोगों की मौत हो गई। शुरुआत में समझा गया था कि यह एक दुर्घटना थी, लेकिन बाद में जांचकर्ताओं को पता लगा कि फेरी पर विस्फोट करने के लिए एक टेलीविजय का इस्तेमाल किया गया था। टीवी सेट में करीब 4 किग्रा टीएनटी भरा गया था। हालांकि इस हमले की जिम्मेदारी कई गुटों ने ली थी लेकिन बाद में ज्ञात हुआ था कि यह अबू सय्याफ गुट का काम था।
2005
लंदन ट्रांसपोर्ट बमबारी : सात जुलाई, 2005 को लंदन की अंडरग्राउंड ट्रेनों में तीन बम विस्फोट हुए थे, जबकि एक चौथा टैवीस्टॉक चौराहे पर एक डबल डेकर बस में हुआ था। लंदन को जब 2012 के समर ओलंपिक आयोजित करने का मौका दिया गया था, उसके एक दिन बाद हुए थे। यह विस्फोट घरों में बनाए जाने वाले ऑर्गेनिक पैराऑक्साइड आधारित युक्तियों से बनाए गए थे, जिन्हें आत्मघाती हमलावरों ने अपनी पीठ पर पहन रखा था। 57 मिनट तक चले इन श्रृंखलाबद्ध हमलों में 52 नागरिकों की मौत हो गई थी और चार आत्मघाती हमलावर मारे गए थे, जबकि इन घटनाओं में 700 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।
2006
इराक की सद्र सिटी में धमाके : इराक की सद्र सिटी में 23 नवंबर, 2006 को कार बमों के श्रृंखलाबद्ध विस्फोट हुए थे और दो मोर्टार हमले किए गए थे। यह बगदाद पर हुआ भीषण हमला था, जिसमें कम से कम 215 लोगों की मौत हो गई थी और 257 अन्य घायल हुए थे। इस हमले में शहर की शिया मुस्लिमों की झुग्गी बस्तियों को निशाना बनाया गया था। इन हमलों के बाद 24 घंटों के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया था। साथ ही, बगदाद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को भी बंद कर दिया गया था। इन हमलों के जवाब में शिया मुस्लिमों ने छह सुन्नी अरबों को मिट्टी का तेल डालकर जिंदा जला दिया था।
2015
2006
मुंबई की ट्रेनों में बम विस्फोट : ग्यारह जुलाई, 2006 को मुंबई में सात सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए थे। मुंबई उपनगरीय ट्रेनों में हुए इन विस्फोटों में 209 लोगों की मौत हो गई थी और 714 अन्य घायल हुए थे। इन बमों को और अधिक घातक बनाने के लिए प्रेशर कुकरों रखा गया था और इन्हें प्रथम श्रेणी के डिब्बों में लगाया गया था। यह बम दोपहर के दौरान काम पर जाने वालों की भीड़ होने पर फटे। इन बम विस्फोटों को लश्कर ए तैयबा और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) ने किया था और दावा किया गया था कि गुजरात और कश्मीर में मुस्लिमों पर होने वाले कथित अत्याचारों का बदला लिया गया है।
कराची पर बम हमला : कराची पर बमों से हमला 18 अक्टूबर, 2007 को किया गया था। उस दिन पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो, दुबई और लंदन में अपने आठ वर्षीय आत्म निर्वासन को समाप्त कर स्वदेश लौटी थीं। ये विस्फोट एक मोटर काफिले पर किए गए थे जो कि एयरपोर्ट से मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर जा रहा था। इन बम विस्फोटों का असर पुलिस की तीन वैन पर हुआ जिसमें 20 पुलिसकर्मी मौके पर ही मारे गए थे। इनके अलावा, 139 लोगों की भी मौत हुई थी। इन लोगों में से ज्यादातर पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के कार्यकर्ता थे।
26/11 का मुंबई आतंकी हमला : 26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने भारत की वाणिज्यक राजधानी मुंबई को अपना निशाना बनाया। लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादी समुद्री रास्ते से मुंबई में दाखिल हुए हुए थे। इस हमले में 160 से ज्यादा बेगुनाह लोगों की मौत हो गई, जबकि 300 से ज्यादा लोग घायल हो गए। हमले में कई विदेशी नागरिक भी मारे गए थे। शिवाजी टर्मिनस, चाबड़ हाउस पर हमले के साथ ही इन आतंकियों ने ताज होटल में भी लोगों को बंधक बना लिया था। इस हमले में जिंदा पकड़े गए एकमात्र आतंकवादी अजमल कसाब को को फांसी दे दी गई।
2014
पेशावर आर्मी स्कूल पर हमला : 16 दिसंबर 2014 को आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने पाकिस्तान के पेशावर में एक आर्मी स्कूल में घुसकर गोलीबारी की। इसमें 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई। हमले के समय स्कूल 1500 के लगभग बच्चे मौजूद थे। छह आतंकवादी सुरक्षाबलों की वर्दी में घुसे थे। आतंकियों ने स्कूल में घुसने से पहले बाहर खड़ी गाड़ियों को अपना निशाना बनाया, जबकि फायरिंग और धमाकों के कारण स्कूल की इमारत को भी भारी नुकसान हुआ।
नवंबर में फ्रांस की राजधानी पेरिस में मुंबई के 26/11 जैसा आतंकी हमला हुआ। आतंकियों ने पहले लोगों को बंधक बनाया और फिर रेस्टोरेंट, फुटबॉल स्टेडियम जैसे पब्लिक प्लेस पर हमला किया। आठ आतंकियों ने 6 जगहों पर हमले किए जिसमें 128 लोगों की मौत हो गई है। हमला करने वाले आतंकी आईएसआईएस के स्लिपर सेल से थे।
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