Sunday, 28 February 2016

रणछोड़भाई रबारीः पाक सेना को धूल चटाने में निभाई अहम भूमिका

आइए जानते हैं 112 साल तक जीवित रहने वाले रणछोड़भाई रबारी के कारनामे की। 
उनके सम्मान में भारत ने एक बॉर्डर पोस्ट का नामकरण उनके नाम पर किया है।

punjabkesari

बात जब भारत और पाकिस्तान की हो, तो हर भारतीय के खून में उबाल सा आ जाता है। जब-जब भारत के वीर सपूतों के किस्से सुनाए जाते हैं, तो इस देश का बच्चा-बच्चा देश के लिए समर्पित हो जाता है।
जिस व्यक्ति की कहानी मैं साझा करने जा रहा हूं, वैसे तो वह एक साधारण आम आदमी हैं। लेकिन  1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध में भारतीय सेना का ‘मार्गदर्शक’ बन कर उन्होंने सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटा दी थी।
रणछोड़भाई का जन्म पेथापुर गथडो गांव में हुआ था। पेथापुर गथडो विभाजन के चलते पाकिस्तान में चला गया। रणछोड़भाई ने विभाजन के बाद कुछ वक़्त पाकिस्तान में ही गुज़ारा, लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों की प्रताड़ना से तंग आकर बनासकांठा (गुजरात) में बस गए थे।
1965 में कच्छ क्षेत्र में कई गांवों पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया था। इस जंग में भारत को अपने 100 भारतीय सैनिक गंवाने पड़े थे।
सेना की दूसरी टुकड़ी का तीन दिन में छारकोट तक पहुंचना जरूरी हो गया था। इस दुर्गम इलाके के बारे में रणछोड़भाई रबारी से बेहतर कोई नहीं बता सकता था। ऐसी विकट स्थिति में रणछोड़भाई ने स्थानीय ग्रामीणों और उनके रिश्तेदारों से दुश्मनों के बारे में जानकारी एकत्र कर भारतीय सेना की मदद की थी।

रणछोड़भाई को उन इलाक़ों के एक-एक रास्तों की जानकारी थी। वह निडर होकर उन कस्बाई इलाकों में 

जाते थे। और वहां के स्थानीय लोगों से पाकिस्तानी सैनिकों के लोकेशन की जानकारी एकत्र करते थे।

इतना ही नहीं, उन्होंने पाक सैनिकों से नजर बचाकर भारतीय सेना तक यह भी जानकारी पहुंचाई थी कि 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की एक टुकड़ी आमुक कस्बे में हमले के फिराक में जमा है। यह जानकारी भारतीय सेना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण थी। सेना ने उन पर हमला कर विजय प्राप्त की थी।
1971 में युद्ध छिड़ जाने पर रणछोड़भाई ने अपने साहस का परिचय दिया। वह ऊंट पर सवार होकर पाकिस्तान की ओर गए। घोरा क्षेत्र में छुपी पाकिस्तानी सेना के ठिकानों की जानकारी लेकर लौटे। उनके बताए गए रास्तों के आधार पर ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाई थी। जंग के दौरान गोला-बारूद खत्म होने पर उन्होंने सेना को बारूद पहुंचाने का काम भी किया।
इन सेवाओं के लिए उन्हें राष्ट्रपति मेडल सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। बहादुरी भरे प्रयासों के लिए उन्हें जनरल सैम मानेकशॉ ने सम्मानित किया था। जनरल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में भारत ने सन् 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजय प्राप्त की था। इसके परिणामस्वरूप ही बांग्लादेश का जन्म हुआ था।
जनरल सैम रणछोड़भाई को असली हीरो मानते थे। उनके और रणछोड की नज़दीकियों का इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जनरल सैम ने रणछोड को अपने साथ डिनर के लिए आमंत्रित किया था। जनवरी, 2013 में 112 वर्ष की उम्र में रणछोड़भाई रबारी का निधन हो गया था।
ऐसे साहसी, निडर भारत माता के सपूत को मेरा दिल से सलाम। जिनके योगदान की वजह से भारतीय सेना ने दुश्मन सेना को धूल चटाई।

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