शांत वातावरण में मदमस्त
बहती जा रही थी
हिलोरे लेती सजती रहती...
कभी उफनती ,तो कभी शांत ...
बस बहती जा रही थी |
सौलह श्रृंगार कर,वन सौन्दर्य लिए..
मै भी कभी नवयुवती थी |
तुम्हारा यूँ प्रतिदिन निहारना .
मुझे भाने लगा..
किसी देवी भांति,पूजा करना...
मुझे भाने लगा |
सच कहूँ तुम्हारे प्रेम वेग में
बहती जा रही थी |
पर आज...
तुम्हारा यूँ अचानक बदलना..
मन को कुछ खटका |
ना समझना यह कि तुमने मेरा आँचल मेला कर डाला
नदी हूँ मै नहीं कोई गन्दा नाला |
कैसे पथिक हो प्यास बुझा के गन्दा कर डाला
मै नदी हूँ हर गन्दगी धुल जाती, मुझ में |
मेरा वजूद मेरा सौन्दर्य है मुझ से
पलट कर न देखना,
कर लो खुद पर इतनी कृपा |
मेरा भाव हो या मेरा सौन्दर्य
बह जाते है इसमें तुमसे कई |
राजुल शेखावत
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