'सिंहस्थ माहात्म्य' नामक ग्रन्थ में ऐसा उल्लेख आया है कि समुद्र-मंथन के बाद देवासुर संग्राम के कारण देवों ने अमृत-कुम्भ को दानवों से बचाने की जो दौड़-धूप की, उसके कारण हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में कुछ अमृत बिन्दु जा गिरे।
प्रति बारह वर्ष इस घटना की स्मृति में इन स्थानों पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।उज्जैन के कुम्भ पर्व की विशेषता यह है कि यहाँ कुम्भ एवं सिंहस्थ दोनों पर्व एक साथ आते हैं। इस पर्व पर दस पवित्र योग एकत्रित होते हैं -
1 मेष राशि पर सूर्य,
2 सिंह राशि पर बृहस्पति,
3 वैशाख मास,
4 शुक्ल पक्ष,
5 पूर्णिमा,
6 तुला राशि पर चन्द्रमा,
7 स्वाति नक्षत्र,
8 व्यतिपात का योग,
9 सोमवार एवं
10 मोक्षदायक अवन्ती क्षेत्र।
2 सिंह राशि पर बृहस्पति,
3 वैशाख मास,
4 शुक्ल पक्ष,
5 पूर्णिमा,
6 तुला राशि पर चन्द्रमा,
7 स्वाति नक्षत्र,
8 व्यतिपात का योग,
9 सोमवार एवं
10 मोक्षदायक अवन्ती क्षेत्र।
सिंहस्थ के इस पुनीत पर्व पर देश-विदेश के यात्री-गण लाखों की संख्या में स्नानार्थ आते हैं और धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। विशेष रूप से दर्शनीय साधु-महात्माओं का स्नान को जाता हुआ जुलूस होता है। साधु-लोग सिंहस्थ की अवधि में उज्जैन में निवास करते हैं और स्नान की तिथियों पर बड़े धूमधाम से अपनी निशानों सहित शिप्रा-स्नान करते हैं।
सिंहस्थ पर्व के इस पावन अवसर पर प्रत्येक यात्री एवं स्नानार्थी महाकालेश्वर के दर्शन करता है। उस समय महाकाल मन्दिर की छटा अद्भुत होती है। सारी व्यवस्थाएँ बड़ी सुनियोजित और चौकन्नी होती है। सारा वातावरण महाकालेश्वर की जय जयकार से युक्त हो जाता है।
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