भारत में असहिष्णुता ??? - डा. सोफिया रंगवाला
मैं और मेरा परिवार भारत में फलते-फूलते मुस्लिम प्रोफेशनल हैं। हमें हर किसी ने स्वीकार ही किया है। पिछले एक महिने से भारत में असहिष्णुता का नाम देकर जो नकली वातावरण बनाया जा रहा है, उस पर मैं, एक मुस्लिम महिला, अपने विचार रख रही हूं। वैसे तो इसकी जरूरत नहीं थी, लेकिन अब लगता है पानी सिर से ऊपर चला गया है इसलिये मुझे अपने विचार रखने ही चाहिये। मैं एक भारतीय महिला हूं और डर्मटोलॉजिस्ट हूं। मैं बेंगलुरु में खुद की लेज़र स्किन क्लीनिक चलाती हूं। मैं क्वेत में पली बढ़ी और 18 साल की उम्र में भारत आ गई। मैं यहां मेडिकल की पढ़ाई करने आयी थी। लग्जरी लाइफ के लिये मेरे सारे दोस्तों ने भारत छोड़ दिया, लेकिन मैंने निर्णय लिया कि मैं भारत में ही रहूंगी। मैंने कभी नहीं सोचा कि एक मुसलमान होने के नाते मुझे किसी भी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। राष्ट्र के लिये प्रेम और यहां की जमीन से जुड़ाव ने मुझे यहीं जोड़ कर रखा। मैं अपने खुद के देश में 20 वर्षों से रह रही हूं। मैंने मनीपाल कर्नाटक से अपनी पढ़ाई की। बाकी छात्रों की तरह मैं भी अकेली रहती थी। कॉलेज के समय में मेरे सभी प्रोफेसर हिंदू थे और जितने लोगों के संपर्क में मैं थी, उनमें अधिकांश हिंदू ही थे। एक भी ऐसा वाक्या नहीं हुआ, जिसमें मुझे धर्म के नाम पर पक्षपात नजर आया हो। मनीपाल में प्रत्येक व्यक्ति बहुत अच्छा था। कभी-कभी मुझे लगता था कि वे मेरे लिये अतिरिक्त प्रयास करते हैं, ताकि मैं अलग फील नहीं करूं। मनीपाल छोड़ने के बाद मैं बेंगलुरु आयी और मेरी शादी हुई। मैं और मेरे पति ने बेंगलुरु में ही रहने का फैसला किया। बेंगलुरु को चुनने का भी एक बड़ा कारण था, जिसे बताते वक्त मैं अपने पति के बारे में भी आपको बताउंगी। मेरे पति भी मुसलमान हैं, उनका पहला नाम इकबाल है। वे एयरोस्पेस इंजीनियर हैं और उन्होंने आईआईटी चेन्नई से एमटेक किया और फिर जर्मनी में पीएचडी। उनके प्रोफेशन की वजह से मैं सबसे सुरक्षित संस्थाओं - डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन, नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, गैस ट्रिब्यून रिसर्च इस्टेबलिशमेंट, इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और कई अन्य के साथ जुड़ने का मौका मिला। वे आज भी इनमें से किसी भी संस्था में बिना किसी रुकावट के अंदर जा सकते हैं। उन्हें आज तक कभी भी स्पेशल सिक्योरिटी के नाम पर रोका नहीं गया और न ही उनके साथ किस भी प्रकार का पक्षपात किया गया। और, मोदी सरकार के आने के बाद कोई परिवर्तन नहीं आया है। सच पूछिए तो अब चीजें पहले से ज्यादा अनुसाशित और व्यवस्थित हो गई हैं, जो कि मैं अपने पति से सुनती हूं। आपको बताना चाहूंगी कि 9/11 हमलों के बाद जर्मनी में पीएचडी करते वक्त जब-जब इकबाल इमेरिका गये। हर बार उनके कपड़े उतार कर चेकिंग की गई। हमें जर्मनी सरकार से एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि इकबाल साफ छवि के हैं उन पर अब कोई शक नहीं है। मुसलमानों पर संदेह! अगर इस पर बात करें तो हम यह समझते हैं कि दुनिया में वर्तमान परिस्थितियों की वजह से यह सब हो रहा है। मेरे पति जिन लोगों के साथ काम करते हैं, वे उनका बहुत सम्मान करते हैं और स्नेह करते हैं। वे सभी हिंदू हैं। पिछले कुछ दिनों से असहिष्णुता का मुद्दा आने के बाद भी कुछ नहीं बदला है। मैंने अपनी क्लीनिक मोदी सरकार के आने के ठीक पहले खोली थी। मैं कानून का पालन करने वाली नागरिक हूं और अपने सभी कर जैसे सर्विस टैक्स, इनकम टैक्स, आदि समय पर भरती हूं। मेरे साथ कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिसकी वजह से मुझे परेशानियां झेलनी पड़ी हों। मैं आराम से अपनी क्लीनिक चला रही हूं और मैं अपने सभी मरीजों को धन्यवाद देना चाहूंगी उनके स्नेह और विश्वास के लिये। उनमें भी लगभग ज्यादातर हिंदू हैं। मेरी क्लीनिक का पूरा स्टाफ हिंदू है और मेरा मानना है कि मैं जिस दिन क्लीनिक में नहीं रहती हूं, वे ज्यादा बेहतर ढंग से क्लीनिक को संभालते हैं। पिछले 20 सालों से मैंने कभी भारत छोड़ने जैसी चीज को महसूस नहीं किया। मेरा पूरा परिवार विदेश में है, मैंने कभी नहीं सोचा और न कभी कहा, कि मैं यहां नहीं रहना चाहती हूं। मेरे पास कुवेत में क्लीनिक खोलने के ऑफर भी आये, लेकिन मुझे भारत ने लितना प्यार दिया है, उसे देखते हुए मैं यहीं रहना चाहती हूं। अगर कुवेत की बात करें तो वहां के लोग हमें कुछ नहीं समझते हैं। मेरा परिवार 40 साल से वहां है, लेकिन उन्हें आज भी प्रवासी माना जाता है। उनके पास कोई अधिकार नहीं हैं। उन्हें वहां नियमित रूप से वहां रहने का परमिट रिन्यू कराना पड़ता है। वहां के नियम बदल रहे हैं और प्रवासियों के लिये जीना मुश्किल होता जा रहा हे। सख्त कानून के तहत सौतेला व्यवहार रोज-रोज झेलना पड़ता है। वे लोग एशियाई लोगों को तीसरे दर्जे का समझते हैं। वे अपने अरब के लोगों को ज्यादा महत्व देते हैं। हम वहां कभी खुश नहीं रहे। कम से कम मैं कभी खुश नहीं हुई। भारत एक मात्र देश है, जिसे मैं अपना कह सकती हूं। अगर में अमेरिका में होती तो इंडो-अमेरिकन होती, कनाडा में होती तो इंडो-कैनेडियन, यूके में इंडियन-ब्रिटिश, होती लेकिन भारत में मैं इंडियन हूं। बाकी लोग जो कहना चाहते हैं कहें, यह उनकी च्वाइस है, लेकिन मैं सिर्फ इतना कहूंगी कि मेरा घर भारत ही है। भारत में मुझसे आज तक किसी ने नहीं पूछा- क्या तुम भारतीय हो? किस प्रकार की बातें हमारे सेलेब्रिटीज़ कर रहे हैं? मैं और मेरे पति ने साधारण नागरिक होते हुए आज तक किसी भी समस्या को फेस नहीं किया, तो उनके सामने कौन सी समस्या है? आमिर खान की पत्नी को इतना डर क्यों लग रहा है? वे तो वीआईपी हैं, पॉश इलाकों में रहते हैं उनके बच्चे सबसे अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं, उनकी खुद की सिक्योरिटी साथ चलती है, तो उन्हें किस बात का डर? मैं हर रोज अकेले चलती हूं, तब भी मुझे कोई डर कभी नहीं लगा। एक जिम्मेदार नागरिक के नाते आमिर खान और शाहरुख खान से पूछना चाहती हूं कि वे ऐसे गैरजिम्मेदाराना बयान क्यों देते हैं। वे भारत के 13 करोड़ मुसलमानों की छवि को क्यों खराब करते हैं? वे क्यों अपनी निजी राय पब्लिक के सामने रखते हैं? इन सबके बीच जब मेरे हिंदू दोस्त ने मुसलमानों पर अपनी बात लिखी, तो उसे पढ़कर मुझे बहुत बुरा लगा। मुझे लगता है कि ऐसा करके लोग आम मुसलमान के सामने मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं। मुझे डर है कि मेरे खुद के लोग मुझसे नाता न तोड़ दें। मुझे डर है कि मेरे ही देश में अकेला न कर दिया जाये। वो भी उन चंद लोगों की वजह से जो खुद मजे कर रहे हैं। यह एकदम सही समय है मुसलमानों के लिये कि वे देश में खुद की स्वतंत्रता को समझे और इस बात को समझने के प्रयास करें, कि हमने कैसे भारत में अपने जीवन में खुशियों के पलों को जीया है। यह समझना होगा कि किस गर्मजोशी के साथ भारत ने हमें स्वीकार किया। मैं प्रार्थना करूंगी उन हिंदू नागरिकों से कि वे सहिष्णुता बनाये रखेंगे।
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