Tuesday, 23 February 2016

स्वामी विवेकानंद का आह्वान, भारत के नाम

ऐ भारत ! क्या दूसरों की ही हां में हां मिला कर, दूसरों की ही नकल कर, परमुखापेक्षी होकर इस दासों की सी दुर्बलता, इस घृणित जघन्य निष्ठुरता से ही तुम बड़े-बड़े अधिकार प्राप्त करोगे? क्या इसी लज्जास्पद कापुरुषता से तुम वीरभोग्या स्वाधीनता प्राप्त करोगे ?






ऐ भारत ! तुम मत भूलना कि तुम्हारे उपास्थ सर्वत्यागी उमानाथ शंकर हैं, मत भूलना कि तुम्हारा विवाह, धन और तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श सीता,सावित्री,दमयन्ती है। मत भूलना कि तुम्हारा जीवन इन्द्रिय सुख के लिए, अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं है।

मत भूलना कि तुम जन्म से ही माता के लिए बलिदान स्वरूप रखे गए हो, मत भूलना की तुम्हारा समाज उस विराट महामाया की छाया मात्र है, तुम मत भूलना कि नीच,अज्ञानी,दरिद्र,मेहतर तुम्हारा रक्त और तुम्हारे भाई हैं। ऐ वीर, साहस का साथ लो ! गर्व से बोलो कि मैं भारतवासी हूं और प्रत्येक भारतवासी, मेरा भाई है। बोलो कि अज्ञानी भारतवासी, दरिद्र भारतवासी, ब्राह्मण भारतवासी, चांडाल भारतवासी, सब मेरे भाई हैं।

तुम भी कटिमात्र वस्त्रावृत्त होकर गर्व से पुकार कर कहो कि भारतवासी मेरा भाई है, भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत के देव-देवियाँ मेरे ईश्वर हैं। भारत का समाज मेरी शिशुसज्जा,मेरे यौवन का उपवन और मेरे वृद्धावस्था की वाराणसी है।

भाई, बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण में मेरा कल्याण है, और दिन-रात कहते रहो कि हे गौरीनाथ,हे जगदम्बे, मुझे मनुष्यत्व दो ! मां मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो, मुझे मनुष्य बनाओ!

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