Monday, 24 November 2014

हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?

हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?




अपना पद, पक्ष, संघटना, जाती, संप्रदाय आदी भेद भूलकर हिन्दूसंघटन करना तथा उस द्वारा हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना करना’, यह हिन्दू जनजागृती समितीका उद्देश है । तथापि ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?’ इस प्रश्न के पीछे हमारी भूमिका प्रस्तूत लेखद्वारा स्पष्ट की गई है ।
विश्वमें ईसाइयोंके १५७, मुसलमानोंके ५२, बौद्धोंके १२, जबकि यहूदियोंका १ राष्ट्र है । हिन्दूओंका राष्ट्र इस सौरमंडलमें कहां है ? हां, हिन्दूओंका एक सनातन राष्ट्र १९४७ तक इस पृथ्वीपर था । आज इस राष्ट्रकी स्थिति क्या है ?

१. स्वतंत्रताके समयका एवं आजका भारत !

१९४७ में जहां १ पैसेका भी ऋण नहीं था, उस भारतमें आज प्रत्येक नागरिक अपने सिरपर ३२,८१२ रुपयोंके ऋणका भार ढो रहा है । १९४७ में ३३ प्रतिशतसे अधिक निर्यात करनेवाला भारत आज १ प्रतिशतसे भी अल्प निर्यात कर रहा है । जहां अधिकसे अधिक १० से २० विदेशी प्रतिष्ठान थे, उस
भारतमें आज ५,००० से भी अधिक विदेशी प्रतिष्ठानोंको सिरपर उठाया जा रहा है । जहां एक भी संवेदनशील जनपद (जिला) नहीं था, उस भारतमें आज ३०० से भी अधिक जनपद संवेदनशील बन गए हैं । जहां प्रति नागरिक एक-दो गौएं होती थीं, उस भारतमें अबाध गोहत्याके कारण आज १२ व्यक्तियोंपर एक गाय है । विदेशमें जाकर अत्याचारी कर्जन वाइली, ओडवायर जैसे शासकोंको ईसावासी करनेवाला भारत आज संसदपर आक्रमण करनेवाले अफजलको फांसी देनेसे कतरा रहा है !
देशाभिमान जागृत रखनेवाले भारतसे, देशाभिमान गिरवी रखनेवाला भारत, निम्नतम भ्रष्टाचार करनेवाले भारतसे भ्रष्टाचारकी उच्चतम सीमातक पहुंचा भारत, सीमापार झंडा फहरानेवाले भारतसे आज नहीं तो कल, कश्मीरसे हाथ धो बैठनेकी प्रतीक्षा करनेवाला भारत… यह सूची लिखते समय भी मन आक्रोशित हो रहा है; परंतु ‘गणकी तो दूर, मनकी भी लज्जा न रखनेवाले’ शासनकर्ता सर्वत्र गर्वसे सीना तानकर घूम रहे हैं । मुसलमान आक्रमणकारियों एवं धूर्त ब्रिटिशोंने भी भारतीय जनताको जितना त्रस्त नहीं किया, उससे सैकडों गुना लोकतंत्रद्वारा उपहारस्वरूप मिले इन शासनकर्ताओंने मात्र ६ दशकोंमें कर दिया है !
‘लोगोंद्वारा, लोगोंके लिए, लोगोंका शासन’, लोकतंत्रकी ऐसी व्याख्या, भारत जैसे विश्वके सबसे बडे देशके लिए ‘स्वार्थांधोंद्वारा स्वार्थके लिए चयनित (निर्वाचित) स्वार्थी शासनकर्ताओंका शासन’, ऐसी हो चुकी है ।
इस लेखमालिकामें भारतकी अनेक समस्याएं वर्णित हैं । ये समस्याएं पढकर कुछ लोगोंके मनमें संदेह उत्पन्न होगा कि ‘हिन्दू राष्ट्र’में ये समस्याएं दूर कैसे होंगी ? क्या इतिहासमें ऐसा कभी हुआ है ? ऐसा समझनेवाले लोग यह समझ लें कि – हां, इतिहासमें ऐसा हुआ है ! छत्रपति शिवाजी महाराजका ‘हिन्दू राष्ट्र (हिंदवी स्वराज्य)’ स्थापित होते ही ऐसी तत्कालीन समस्याएं दूर हुई हैं !

२. छत्रपति शिवाजी महाराजका ‘हिन्दू राष्ट्र’
स्थापित होते ही सबकुछ कुशल-मंगल !

छत्रपति शिवाजी महाराजका जन्म होनेके पूर्व भी आजके समान ही हिन्दू स्त्रियोंका शील सुरक्षित नहीं था, प्रत्यक्ष जीजामाताकी जिठानीको ही पानी लाते समय यवन सरदारने अगवा कर लिया था । उस समय भी मंदिर भ्रष्ट किए जाते थे एवं गोमाताकी गर्दनपर कब कसाईका छुरा चल जाएगा, यह कोई बता नहीं सकता था । महाराजका ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होते ही मंदिर ढहाना बंद हुआ, इतना ही नहीं; अपितु मंदिर ढहाकर बनाई मस्जिदोंका रूपांतरण पूर्ववत मंदिरोंमें हुआ । मौन रहकर क्रंदन करनेवाली गोमाताएं आनंदित होकर रंभाने लगीं । ‘गोहत्या बंद की जाए !’, ऐसी मांगके लिए कभी शासनके पास लाखों हस्ताक्षर नहीं भेजे गए अथवा महाराजने भी कोई ‘गोहत्या प्रतिबंधक विधेयक’ मंत्रीमंडलमें प्रस्तुत नहीं किया । केवल ‘हिन्दू राष्ट्र’की स्थापना ही हिन्दुद्वेषियोंको भयभीत करनेके लिए पर्याप्त थी !
आज हमें महंगाई दिखती है । क्या कभी पढा है कि ‘महाराजके शासनकालमें प्रजा महंगाईसे त्रस्त थी’ ? ‘जय जवान, जय किसान’की घोषणा करनेवाले शासनकर्ता आज जवान एवं किसान, दोनोंकी नृशंस हत्या करवा रहे हैं । महाराजको तो केवल कृषकोंके (किसानोंके) प्राण ही नहीं, अपितु उनकेद्वारा उपजाई फसल भी अमूल्य लगती थी । उन्होंने ऐसी आज्ञा ही दी थी कि ‘कृषकोंद्वारा उपजाई फसलके डंठलको भी कोई हाथ न लगाए ।’ महाराजने ‘किसानों’की ही भांति ‘जवानोंको’भी संभाला था । वे लडाईमें घायल हुए अनेक सैनिकोंको पुरस्कारके साथ सोनेके आभूषण देकर सम्मानित करते थे । कारगिल युद्धमें वीरगति प्राप्त करनेवाले सैनिकोंकी विधवाओंके लिए वर्ष २०१० में ‘आदर्श’ सोसाइटी बनाई गई; परंतु उसमें एक भी सैनिककी विधवाको सदनिका (फ्लैट) नहीं मिली । भ्रष्टासुरोंने ही वे सभी सदनिकाएं हडप लीं !
इसके विपरीत महाराजने सिंहगढके युद्धमें वीरगति प्राप्त करनेवाले तानाजीके पुत्रका विवाह कर उनके परिजनोंको सांत्वना दी !

३. ‘हिन्दू राष्ट्र’में भारतको त्रस्त करनेवाली 

बाह्य समस्याएं भी दूर होंगी !

हिन्दू राष्ट्र’में आंतरिक समस्याएं दूर होंगी, उसी प्रकार बाह्य समस्याएं भी दूर होंगी । इन समस्याओंमें मुख्य हैं पाकिस्तान एवं चीनद्वारा भारतपर संभावित आक्रमण । शिवकालमें भी ऐसी ही स्थिति थी । औरंगजेब ‘शिवा’का छोटासा राज्य नष्ट करनेको तुला था; परंतु ‘महाराजका राज्याभिषेक और विधिवत ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित हुआ’, यह सुनते ही उसके पैरोंतलेकी भूमि खिसक गई ! तदनंतर आगे महाराजके स्वर्गारोहणतक वह मात्र महाराष्ट्रमें ही नहीं; अपितु दक्षिणमें भी नहीं आया ! एक बार ‘हिन्दू राष्ट्र’की स्थापना हुई कि हमारे सर्व पडोसी अपनेआप सीधे हो जाएंगे !
‘हिन्दू राष्ट्र’का विषय निकलते ही एक निरर्थक प्रश्न तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियोंद्वारा पूछा जाता है, ‘हिन्दूराष्ट्र’में मुसलमानोंके साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा ? वास्तवमें यह प्रश्न मुसलमानोंको पूछना चाहिए । वे नहीं पूछते । वे तो यही कहते हैं, ‘हंसके लिया पाकिस्तान, लडके लेंगे हिन्दूस्तान !’
तथापि इस प्रश्नका भी उत्तर है । आगामी ‘हिन्दू राष्ट्र’में मुसलमानोंसे ही नहीं; अपितु सभी पंथियोंसे वैसा ही व्यवहार किया जाएगा जैसा शिवराज्यमें किया गया था !
संक्षेपमें, सूर्योदय होनेसे पूर्व सर्वत्र अंधकार छाया रहता है, दुर्गंध आती है; परंतु सूर्यके उगते ही अंधकार अपनेआप नष्ट हो जाता है, सर्व दुर्गंध वातावरणमें लुप्त हो जाती है । अंधकार अथवा दुर्गंधसे कोई नहीं कहता, ‘दूर हटो, सूर्य उग रहा है !’ यह अपनेआप ही होता है । उसी प्रकार आज भारतमें फैला विविध समस्यारूपी अंधकार एवं दुर्गंध ‘हिन्दू राष्ट्र’के स्थापित होते ही अपनेआप नष्ट हो जाएगी । धर्माचरणी शासनकर्ताओंके कारण भारतकी सर्व समस्याएं दूर होंगी तथा सदाचारके कारण सर्व जनता भी सुखी होगी !
किन्हीं एक-दो समस्याओंके विरोधमें लडनेकी अपेक्षा ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करना आवश्यक मात्र भारतके लोगोंके लिए ही नहीं; अपितु अखिल मानवजातिके कल्याण हेतु स्थापित किया जानेवाला ‘हिन्दू राष्ट्र’ सहज ही स्थापित नहीं होगा । पांडव मात्र पांच गांव चाहते थे, वे भी उन्हें सहजतासे नहीं मिल सके । हमें तो कश्मीरसे कन्याकुमारीतक अखंड ‘हिन्दू राष्ट्र’ चाहिए । इसके लिए बडा संघर्ष करना होगा । भारतकी किन्हीं एक-दो समस्याओंके (उदा. गोहत्या, धर्मांतरण, गंगा नदीका प्रदूषण, कश्मीर, राममंदिर, स्वभाषारक्षा आदिके) विरोधमें पृथक-पृथक लडनेकी अपेक्षा सर्व समविचारी व्यक्ति एवं संस्थाएं मिलकर ‘हिन्दू राष्ट्र-स्थापना’का ही ध्येय रखकर कार्य करेंगे, तो यह संघर्ष थोडा सुलभ होगा ।
स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद, वीर सावरकर, प.पू. गोळवलकर गुरुजी जैसे हिन्दू धर्मके महान योद्धाओंको अपेक्षित धर्माधारित ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होने हेतु आवश्यक शारीरिक, मानसिक, बौदि्धक एवं आध्याति्मक सामथ्र्य हिन्दूनिष्ठोंको मिले, यही श्री गुरुचरणोंमें प्रार्थना है !
जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम् ।
संदर्भ : ‘हिन्दू जनजागृति समिति’द्वारा समर्थित ग्रंथ ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?’

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