Monday, 10 April 2017

मोदी के प्रतिद्वंद्वी नहीं सहयोगी हैं योगी

इन दिनों दो बातों को लेकर ज्यादा चर्चा है। पहला यह कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री क्यों इतनी जल्दी में हैं? दूसरा यह कि सीएम की सक्रियता से पीएम की सक्रियता की चर्चा कम हो गई है। ये दोनों ही विषय सार्थक हैं इसलिए इन पर चर्चाएं भी हो रही हैं। असल में 2019 में आम चुनाव होना है। 2014 और 2017 दोनों ही मोदी को चेहरा आगे कर लड़ा गया था। 2019 भी मोदी के ही नेतृत्व में लड़ा जाएगा किन्तु तब तक योगी सरकार का कामकाज सीधे मोदी नेतृत्व को प्रभावित करेगा। यही कारण है कि मुख्यमंत्री योगी अभी पहले तो 2019 के आम चुनाव को फतेह करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हुए हैं और इसके बाद 2022 के विधानसभा पर ध्यान देंगे? सच तो यह है कि योगी आदित्यनाथ स्वभाव से सक्रिय और प्रवृत्ति से योगी हैं। योगी का मतलब ही योग साधक होता है और योग का मतलब श्रीमद् भगवद्गीता में स्वयं योगेश्वर भगवान कृष्ण के अनुसार `योग कर्मसु कौशलम्' अर्थात कार्य में कुशलता ही योग है। इसका मतलब योगी का कार्य में कौशल उसका अनिवार्य गुण होता है। यदि 2019 का लक्ष्य न भी होता तो भी योगी आदित्यनाथ आज जिस तरह तन्मयतापूर्वक अपने कर्तव्यों के प्रति एकाग्र और समर्पणभाव से सक्रिय हैं वह तब भी रहता। किसी भी सरकार की सफलता की कसौटी के तीन बिन्दु होते हैंöपहला प्रभावशीलता, दूसरा गतिशीलता और तीसरा संवेदनशीलता। यदि योगी आदित्यनाथ के गतिशीलता की चर्चा करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की तरह वे नहीं हैं। 




मायावती जब मुख्यमंत्री थीं तो महीने में कभी अपने कार्यालय जाती थीं। अपने निवास से ही शासन का संचालन करती थीं और अपनी पार्टी का नेतृत्व करती थीं। मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश यादव का रिकार्ड थोड़ा बेहतर था। वे सप्ताह में दो दिन सीएम आफिस में बैठते थे। मुलायम सिंह और कल्याण सिंह तो अपने कार्यकाल में सोमवार से शनिवार तक बैठा करते थे और जब अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन चल रहा था तो मुलायम सिंह अधिकारियों के साथ रात में एक से दो बजे तक बैठकें किया करते थे किन्तु बाद के वर्षों में मायावती और अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री कार्यालय से दूरी बना ली जिसका परिणाम यह हुआ कि अफसरशाही अकर्मण्य और निरंकुश हुई तो साथ ही मंत्री और नेता भ्रष्ट और बदचलन होते गए। योगी आदित्यनाथ 16 से 18 घंटे तक सीएम आफिस में ही रहते हैं इसलिए अफसरशाही में सक्रियता आना स्वाभाविक है। कुछ जानकार वरिष्ठ अधिकारी तो यहां तक बताते हैं कि मुख्यमंत्री योगी को शासकीय प्रक्रिया का गहन ज्ञान है। पांचवीं बार लोकसभा सदस्य चुने जाने वाले योगी आदित्यनाथ को अधिकारियों के व्यवहार एवं कार्यशैली की अच्छी जानकारी है। वे हर फाइल का गंभीरता से अध्ययन करते हैं और उससे संबंधित सवाल अधिकारियों से पूछते हैं। सभी विभागों के प्रमुख सचिवों एवं सचिवों से नियमित मिलते हैं और दायित्वों का बोध कराते हैं। पूर्व सरकार की टीम से ही दो सप्ताह के अंदर योगी के नेतृत्व में सरकार ने जो छवि बनाई है वह अपने आपमें अप्रतिभ बन चुका है। दूसरी कसौटी है गतिशीलता। यदि इस दृष्टि से देखा जाए तो पूर्व मुख्यमंत्रियों के नकारेपन के कारण राज्य सरकार की कार्यशैली पंगु हो चुकी थी किन्तु योगी सरकार ने जंग लग चुकी अफसरशाही और शासकीय तंत्र को सक्रिय और गतिशील करके राज्य के अपने विरोधियों को भी यह कहने पर मजबूर कर दिया कि कुशासन के लिए अधिकारी वर्ग नहीं बल्कि सरकार का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार होता है और अफसरशाही को दिशानिर्देश तथा सकारात्मक ऊर्जा भी शासकीय नेतृत्व से मिलती है। कार्यदिवस में बच्चों के साथ कम्प्यूटर पर गेम खेलने की जानकारी और पार्टी कार्यकर्ताओं के माध्यम से वसूली की बात जब अफसरशाही जान जाती है तो उसमें निक्रियता की जंग स्वत लग जाती है। सरकार की सक्रियता की तीसरा कसौटी है संवेदनशीलता। इस कसौटी पर सिर्फ दो सप्ताह के अंदर ही सरकार के कार्यनिष्पादन की समीक्षा करें तो इस बात का अहसास होता है कि मुख्यमंत्री योगी और उनके मंत्री राज्य की जनता के प्रति कितने अधिक संवेदनशील हैं। किसानों की कर्ज माफी और महिला सुरक्षा के साथ-साथ राज्य सरकार ने अन्नपूर्णा भोजनालय का फैसला कर पांच रुपए में भोजन और तीन रुपए में नाश्ता की व्यवस्था से अपनी छवि जन कल्याणकारी बनाने का जो प्रयास किया है उससे आलोचकों और विरोधियों में हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री योगी का यह कथन सही साबित होता दिख रहा है कि `शासन तो योगी ही कर सकता है भोगी कदापि नहीं।' लक्ष्मी नारायण मोदी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट कितने दिनों पहले ही अवैध पशु वधशालाओं को बंद करने का निर्देश दे चुका था किन्तु पूर्ववर्ती सरकारों ने अपने अकर्मण्यता और वोट की चिन्ता के कारण सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया किन्तु योगी सरकार ने पिछली सरकारों के अनिर्णय संबंधी रोगों को अपने पास फटकने तक नहीं दिया और साबित कर दिया कि संवैधानिक भावनाओं के अनुरूप एक योगी भी शासकीय प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक संचालित कर सकता है। रही बात दूसरे सवाल की कि योगी के सामने मोदी की छवि मंद पड़ गई है। सच तो यह है कि मोदी की एक प्रधानमंत्री के रूप में भूमिका एक मुख्यमंत्री की भूमिका से बिल्कुल भिन्न है। ऐसा सोचना सिर्फ धारणाओं पर निर्भर करता है। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि उत्तर प्रदेश में कार्य करने की असीम संभावनाएं हैं तो योगी जी जो भी निर्णय ले रहे हैं वह राज्य के अकर्मण्य सरकारों के कारण उत्पन्न समस्याओं का निराकरण करने से संबंधित हैं। जब गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने थे तो वे भी इसी तरह 18 घंटे काम करते थे और बिजली तथा पानी के लिए आधारभूत ढांचा के विकास के लिए दिन-रात सक्रिय रहते थे। कानून व्यवस्था की राज्य में इतनी परेशानी नहीं थी और न ही किसान इतने परेशान थे जितना कि उत्तर प्रदेश में हैं। इसलिए मोदी की सक्रियता और कार्यनिष्पादन की प्रशंसा केंद्र सरकार के स्वास्थ्य, ऊर्जा, ग्रामीण विकास, शहरी विकास एवं योजना आयोग की रिपोर्टों में लगातार की जाती रही। यही नहीं राजीव गांधी फाउंडेशन ने भी मुख्यमंत्री मोदी के कामों की तारीफ जब अपने वार्षिक रिपोर्ट में छापी तो आलोचकों से जवाब देते नहीं बनता था। बहरहाल एक योगी की सरकार तो स्वाभाविक रूप से ऐसे ही चलेगी जो सत्ता के भोग के उद्देश्य से नहीं बल्कि जन कल्याण के लिए समर्पित हैं तथा मुख्यमंत्री योगी प्रधानमंत्री मोदी के प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि सहयोगी एवं पूरक हैं और दोनों अपनी-अपनी भूमिकाओं का निर्वहन जनाकांक्षाओं एवं कल्याणकारी शासन के लिए कर रहे हैं। जो काम स्वयं मोदी नहीं कर सकते वह योगी ही कर सकते हैं इसलिए योगी प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं मोदी के बल्कि उनके सहयोगी हैं।

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