वटवृक्ष में है प्रभु का वास
भगवान शिव जैसे योगी भी वटवृक्ष के नीचे ही समाधि लगाकर तप साधना करते थे-
तहं पुनि संभु समुझिपन आसन।
बैठे वटतर, करि कमलासन।। (बालकांड/रामचरितमानस)
आयुर्वेद में बरगद का महत्व
कई तरह रोगों को दूर करने में बरगद के सभी भाग काम आते हैं. इसके फल, जड़, छाल, पत्ती आदि सभी भागों से कई तरह के रोगों का नाश होता है.
पर्यावरण की रक्षा में उपयोगी
वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन छोड़ने की भी इसकी क्षमता बेजोड़ है. यह हर तरह से लोगों को जीवन देता है. ऐसे में बरगद की पूजा का खास महत्व स्वाभाविक ही है. |
वृक्षों की पूजा हमारे देश की समृद्ध परंपरा और जीवनशैली का अंग रहा है. वैसे तो हर पेड़-पौधे को उपयोगी जानकर उसकी रक्षा करने की परंपरा है. लेकिन वटवृक्ष या बरगद की पूजा का खास महत्व बताया गया है.
बरगद का धार्मिक महत्व
जहां तक धार्मिक महत्व की बात है, इस वृक्ष की बड़ी महिमा बताई गई है. वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अग्रभाग में शिव का वास माना गया है. यह पेड़ लंबे समय तक अक्षय रहता है, इसलिए इसे 'अक्षयवट' भी कहते हैं. अखंड सौभाग्य और आरोग्य के लिए भी वटवृक्ष की पूजा की जाती है.
अक्षयवट के पत्ते पर ही प्रलय के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कण्डेय को दर्शन दिए थे. देवी सावित्री भी वटवृक्ष में निवास करती हैं. प्रयाग में गंगा के तट पर स्थित अक्षयवट को तुलसीदासजी ने 'तीर्थराज का छत्र' कहा है. वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया था. तब से यह व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से जाना जाता है.
सौभाग्य व सुख-शांति की प्राप्ति
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि के दिन वटवृक्ष की पूजा का विधान है. शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन वटवृक्ष की पूजा से सौभाग्य व स्थायी धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है. संयोग की बात है कि इसी दिन शनि महाराज का जन्म हुआ. सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण की रक्षा की.
चार तरह के वटवृक्ष
बरगद को वटवृक्ष भी कहा जाता है. सनातन धर्म में वट-सावत्री नाम का एक त्योहार पूरी तरह वट को ही समर्पित है. चार वटवृक्षों का महत्व अधिक बताया गया है. ये हैं- अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट. कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता.
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