अलख धणी आदेश,धरमाधार दया निधे, बरणो सुजस बेस, पालक धरम प्रताप रो. (१)
गिर उंचो गिरनार, आबु गिर ओछो नही ; अकबर अघ अंबार, पुण्य अंबार प्रतापसीं. (२)
वुहा वडेरा वाट, वाट तिकण वेहणो विसद ; खाग, त्याग, खत्र वाट, पाले राण प्रतापसीं. (३)
अकबर गर्व न आण, हिन्दु सब चाकर हुआ ; दिठो कोय दहिवाण, करतो लटकां कठहडे. (४)
मन अकबर मजबूत, फूट हिन्दुआ बेफिकर ; काफर कोम कपूत, पकडो राण प्रतापसीं. (५)
अकबर कीना याद, हिन्दु नॄप हाजर हुआ ; मेद पाट मरजाद, पोहो न आव्यो प्रतापसीं. (६)
मलेच्छां आगळ माथ, नमे नही नर नाथरो, सो करतब समराथ, पाले राण प्रतापसी. (७)
कलजुग चले न कार, अकबर मन आ जस युंही ; सतजुग सम संसार, प्रगट राण प्रतापसीं. (८)
कदे न नमावे कंध, अकबर ढिग आवेने ओ ; सूरज वंश संबंध, पाले राण प्रतापसी. (९)
चितवे चित चितोड़, चित चिंता चिता जले ; मेवाड़ो जग मोड़, पुण्य धन प्रतापसीं. (१०)
सांगो धरम सहाय, बाबर सु भिड़ियो बहस ; अकबर पगमां आय, पड़े न राण प्रतापसी. (११)
अकबर कुटिल अनीत, और बटल सिर आदरे ; रघुकुल उतम रीत, पाले राण प्रतापसी. (१२)
लोपे हिन्दुलाज, सगपण राखे तुरक सु ; आर्य कुल री आज, पुंजी राण प्रतापसीं. (१३)
सुख हित शिंयाळ समाज, हिन्दु अकबर वश हुआ ; रोशिलो मॄगराज, परवश रहे न प्रतापसी. (१४)
अकबर फुट अजाण, हिया फुट छोडे न हठ ; पगां न लागत पाण, पण धर राण प्रतापसीं. (१५)
अकबर पत्थर अनेक, भुपत कैं भेळा कर्या ; हाथ नआवे हेक, पारस राण प्रतापसीं. (१६)
अकबर नीर अथाह, तहं डुब्या हिन्दु तुरक ; मेवाड़ो तिण मांह, पोयण राण प्रतापसीं. (१७)
जाणे अकबर जोर, तो पण ताणे तोर तीड ; आ बदलाय छे ओर, प्रीसणा खोर प्रतापसीं. (१८)
अकबर हिये उचाट, रात दिवस लागो रहे ; रजवट वट सम्राट, पाटप राण प्रतापसीं. (१९)
अकबर घोर अंधार, उंघांणां हिन्दु अवर ; जाग्यो जगदाधार, पहोरे राण प्रतापसीं. (२०)
अकबरीये एकार, दागल कैं सारी दणी ; अण दागल असवार, पोहव रह्यो प्रतापसीं. (२१)
अकबर कने अनेक, नम नम निसर्या नरपती ; अणनम रहियो एक, पणधर राण प्रतापसीं. (२२)
अकबर है अंगार, जाळे हिन्दु नृपजले ; माथे मेघ मल्हार, प्राछट दिये प्रतापसीं. (२३)
अकबर मारग आठ, जवन रोक राखे जगत ; परम धरम जस पाठ, पीठीयो राण प्रतापसीं. (२४)
आपे अकबर आण, थाप उथापे ओ थीरा ; बापे रावल बाण, तापे राण प्रतापसीं. (२५)
है अकबर घर हाण, डाण ग्रहे नीची दिसट ; तजे न उंची ताण, पौरस राण प्रतापसीं. (२६)
जग जाडा जुहार, अकबर पग चांपे अधिप ; गौ राखण गुंजार, पिले रदय प्रापसीं. (२७)
अकबर जग उफाण, तंग करण भेजे तुरक ; राणावत रीढ राण, पह न तजे प्रतापसीं. (२८)
कर खुशामद कुर, किंकर कंजुस कुंकरा ; दुरस खुशामद दुर, पारख गुणी प्रतापसीं. (२९)
हल्दीघाटी हरोळ, घमंड करण अरी घणा ;आरण करण अडोल, पहोच्यो राण प्रतापसीं. (३०)
थिर नृप हिन्दुस्तान, ला तरगा मग लोभ लग ; माता पुंजी मान, पुजे राण प्रतापसीं. (३१)
सेला अरी समान, धारा तिरथ में धसे ; देव धरम रण दान, पुरट शरीर प्रतापसीं. (३२)
ढग अकबर दल ढाण, अग अग जगडे आथडे ; मग मग पाडे माण, पग पग राण प्रतापसीं. (३३)
दळ जो दिल्ली हुंत, अकबर चढीयो एकदम ; राण रसिक रण रूह, पलटे किम प्रतापसीं. (३४)
चित मरण रण चाह, अकबर आधिनी विना ; पराधिन पद पाय, पुनी न जीवे प्रतापसीं. (३५)
तुरक हिन्दवा ताण, अकबर लागे एकठा ; राख्यो राणे माण, पाणा बल प्रतापसीं. (३६)
अकबर मच्छ अयाण, पुंछ उछालण बल प्रबल ; गोहिल वत गहेराण, पायो नीधी प्रतापसीं. (३७)
गोहिल कुळ धन गाढ, लेवण अकबर लालची ; कोडी दिये ना काढ, पणधर राण प्रतापसीं. (३८)
नित गुध लावण नीर, कुंभी सम अकबर क्रमे ; गोहिल राण गंभीर, पण न गुंधले प्रतापसीं. (३९)
अकबर दल अप्रमाण, उदयनेर घेरे अनय ; खागां बल खुमाण, पेले दलां प्रतापसीं. (४०)
दे बारी सुर द्वार, अकबरशा पडियो असुर ; लड़ियो भड़ ललकार, प्रोलां खोल प्रतापसीं. (४१)
उठे रीड अपार, पींठ लग लागां प्रिस ; बेढीगार बकार, पेठो नगर प्रतापसीं. (४२)
रोक अकबर राह, ले हिन्दुं कुकर लखां ; विभरतो वराह, पाड़े घणा प्रतापसीं. (४३)
देखे अकबर दुर, घेरा दे दुश्मन घणा ; सांगाहर रण सुर, पेड न खसे प्रतापसीं. (४४)
अकबर तलके आप, फते करण चारो तरफ ; पण राणो प्रताप, हाथ न चढे हमीरहट. (४५)
अकबर दुरग अनेक, फते किया निज फौज सुं ; अचल चले न एक, पाधर राण प्रतापसीं. (४६)
दुविधा अकबर देख, किण विध सुं घायल करे ; पवंगा उपर पेख, पाखर राण प्रतापसीं. (४७)
हिरदे उणा होत, सिर धुणा अकबर सदा ; दिन दुणा देशोत, पुणा वहे न प्रतापसीं. (४८)
कलपे अकबर काय, गुणी पुगी धर गौडियां ; मणीधर साबड़ मांय, पड़े न राण प्रतापसीं. (४९)
मही दाबण मेवाड, राड़ चाड़ अकबर रचे ; विषे विसायत वाड़, प्रथुल वाड़ प्रतापसीं. (५०)
बंध्यो अकबर बेर, रसत घेर रोके रिपु ; कन्द मूल फल केर, पावे राण प्रतापसीं. (५१)
भागे सागे भोम, अमृत लागे उभरा; अकबर तल आराम, पेखे राण प्रतापसीं. (५२)
अकबर जिसा अनेक, आय पड़े अनेक अरि ; असली तजे न एक, पकड़ी टेक प्रतापसीं. (५३)
लांघण कर लंकाळ, सादुळो भुखो सुवे ; कुल वट छोड़ क्रोधाळ, पैठ न देत प्रतापसीं. (५४)
अकबर मेगल अच्छ, मांजर दळ घुमे मसत ; पंचानन पल भच्छ, पटके छड़ा प्रतापसीं. (५५)
दंतीसळ सुं दूर, अकबर आवे एकलो ; चौड़े रण चकचूर, पलमें करे प्रतापसीं. (५६)
चितमें गढ चितोड़, राणा रे खटके रयण ; अकबर पुनरो ओड, पेले दोड़ प्रतापसीं. (५७)
अकबर करे अफंड, मद प्रचंड मारग मले ; आरज भाण अखंड, प्रभुता राण प्रतापसीं. (५८)
घट सुं औघट घाट, घड़ियो अकबर ते घणो ; ईण चंदन उप्रवाट, परीमल उठी प्रतापसीं. (५९)
बड़ी विपत सह बीर, बड़ी किरत खाटी बसु ; धरम धुरंधर धीर,पौरुष घनो प्रतापसीं. (६०)
अकबर जतन अपार, रात दिवस रोके करे ; पंगी समदा पार, पुगी राण प्रतापसीं. (६१)
वसुधा कुल विख्यात, समरथ कुल सीसोदिया ; राणा जसरी रात, प्रगट्यो भलां प्रतापसीं. (६२)
जीणरो जस जग मांही, ईणरो धन जग जीवणो ; नेड़ो अपजश नाही, प्रणधर राण प्रतापसीं. (६३)
अजरामर धन एह, जस रह जावे जगतमें ; दु:ख सुख दोनुं देह, पणीए सुपन प्रतापसीं. (६४)
अकबर जासी आप, दिल्ली पासी दूसरा ; पुनरासी प्रताप, सुजन जीसी सूरमा. (६५)
सफल जनम सदतार, सफल जोगी सूरमा ; सफल जोगी भवसार, पुर त्रय प्रभा प्रतापसीं. (६६)
सारी वात सुजाण, गुण सागर ग्राहक गुणा; आयोड़ो अवसाण, पांतरयो नह प्रतापसीं. (६७)
छत्रधारी छत्र छांह, धरमधार सोयो धरां ; बांह ग्रहयारी बांह, प्रत न तजे प्रतापसीं. (६८)
अंतिम येह उपाय, विसंभर न विसारिये ; साथे धरम सहाय, पल पल राण प्रतापसीं. (६९)
मनरी मनरे मांही, अकबर रहेसी एक ; नरवर करीये नांही, पुरण राण प्रतापसीं. (७०)
अकबर साहत आस, अंब खास जांखे अधम ; नांखे रदय निसास, पास न राण प्रतापसीं. (७१)
मनमें अकबर मोद, कलमां बिच धारे न कुट ; सपना में सीसोद, पले न राण प्रतापसीं. (७२)
कहैजो अकबर काह, सेंधव कुंजर सामटा ; बांसे से तरबांह, पंजर थया प्रतापसीं. (७३)
चारण वरण चितार, कारण लख महिमा करी ; धारण कीजे धार, परम उदार प्रतापसीं. ( ७४)
आभा जगत उदार, भारत वरस भवान भुज ; आतमसम आधार, पृथ्वी राण प्रतापसीं. (७५)
काव्य यथारथ कीध, बिण स्वारथ साची बिरद ; देह अविचल दिध, पंगी रूप प्रतापसीं. (७६)
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