Thursday, 16 July 2015

भारत की दरियादिली की कद्र करे पाकिस्तान

भारत की दरियादिली की कद्र करे पाकिस्तान

पाकिस्तान एक बार फिर अपने वादे से मुकर गया है। उफा में जारी संयुक्त बयान से उसका यू-टर्न लेना इस बात का पुख्ता संकेत है कि भारत के साथ शांतिपूर्ण रिश्ते बनाने की उसकी मंशा नहीं है। करीब एक साल पहले विदेश सचिव स्तर की वार्ता रद्द होने के बाद दोनों देशों के बीच जो गतिरोध बना था उसे तोड़ने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपना हाथ आगे बढ़ाया। दोस्ती के इस हाथ को पाकिस्तान ने थामा तो जरूर लेकिन साथ-साथ चलने की जगह उसने वादा खिलाफी कर दी। रूस के शहर उफा में गत 10 जुलाई को भारत और पाकिस्तान की ओर से जारी संयुक्त बयान में इस बात का उल्लेख किया गया कि दोनों देश आतंकवाद के सभी रूपों से मिलकर लड़ेंगे। बयान के मुताबिक दोनों देश मुंबई हमलों (26/11) के दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने के तौर-तरीकों पर बातचीत करेंगे। साथ ही पाकिस्तान इस हमले के मास्टर माइंड एवं लश्करे तैयबा के आतंकी जकीउर रहमान लखवी की आवाज का नमूना उपलब्ध कराएगा। बयान में दोनों देशों के बीच एनएसए स्तर की बातचीत शुरू करने और विश्वास बहाली के उपायों जैसे गिरफ्तार मछुआरों की रिहाई एवं पर्यटन के विस्तार पर भी सहमति बनी।
संयुक्त बयान के जारी होने से ऐसा लगा कि दोनों देशों के बीच जमी रिश्तों की बर्फ पिघलेगी और आने वाले समय में बातचीत के जरिए समस्याओं के समाधान ढूंढने के प्रयास किए जाएंगे। लेकिन साझा बयान के 72 घंटे के बाद पाकिस्तान अपनी बात से मुकर गया। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एवं विदेश मामलों पर पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ के सलाहकार सरताज अजीज ने साफ-साफ कहा कि एजेंडे में जब तक कश्मीर का मुद्दा शामिल नहीं होगा तब तक भारत के साथ कोई वार्ता नहीं होगी। यही नहीं, जकीउर रहमान लखवी की आवाज का नमूना उपलब्ध कराने की बात से भी पाकिस्तान पलट गया। पाकिस्तान का यह कदम क्षेत्र से आतंकवाद खत्म करने के उसके प्रयासों एवं दावों पर सवाल खड़ा करता है। भारत ने हालांकि, अजीज के बयान को ज्यादा तवज्जो न देते हुए साफ कर दिया है कि वह संयुक्त बयान के आधार पर ही आगे बढ़ेगा।
पाकिस्तान के तमाम धोखों, वादाखिलाफी को नजरंदाज कर भारत ने उस पर दरियादिली दिखाई है। उस पर विश्वास जताते हुए भारत ने उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। इसके पहले दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य बनाने के लिए भारत ने जब-जब भी प्रयास किए पाकिस्तान की ओर से ऐसा कुछ किया गया जिससे इन प्रयासों को धक्का लगा और बातचीत की प्रक्रिया पटरी से उतर गई। साल 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बस से लाहौर की यात्रा की लेकिन इसके जवाब में भारत को कारगिल युद्ध मिला। पीएम मोदी ने अपने शपथ-ग्रहण समारोह में अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को न्योता दिया। ठीक उसी समय पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से आतंकियों ने अफगानिस्तान स्थित भारतीय दूतावास पर हमला किया। आतंकियों की मंशा अपने इस हमले से कटुता के माहौल को बढ़ाने और शरीफ का दौरा विफल करने की थी लेकिन सुरक्षा बलों ने आतंकियों की नापाक हरकत को नाकाम कर दिया। पिछले साल पीएम मोदी और नवाज शरीफ जब संयुक्त राष्ट्र में मौजूद थे तो जम्मू-कश्मीर के अरनिया सेक्टर में पाकिस्तान की ओऱ से गोलीबारी की गई और इसके कुछ दिन बाद कठुआ एवं सांबा में आतंकवादी हमले हुए। यही नहीं, उफा में जिस वक्त पीएम मोदी अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ से हाथ मिला रहे थे तो उसी समय पाकिस्तान की ओर से की गई गोलीबारी में सीमा पर भारतीय जवान कृष्ण कुमार दुबे शहीद गए।
जाहिर है कि भारत सरकार जब भी पाकिस्तान की चुनी हुयी सरकार के साथ रिश्ते सामान्य बनाने एवं शांति के लिए प्रयास करती है तो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना की तरफ से कुचक्र रचे जाते हैं ताकि बातचीत की प्रक्रिया आगे न बढ़ सके। पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार सेना और अपनी खुफिया एजेंसी के आगे बेबस है। शरीफ साहब ने अपनी 'शराफत' दिखाते हुए साझा बयान तो जारी कर दिया लेकिन अपने देश में होने वाली प्रतिक्रिया का आकलन करने से शायद वह चूक गए। शरीफ अभी उफा में ही थे कि पाकिस्तान में संयुक्त बयान का विरोध होना शुरू हो गया। बिना कश्मीर मुद्दे के भारत के साथ बातचीत की बात पाकिस्तान के गले नहीं उतरी। सरताज अजीज सेना के करीबी माने जाते हैं। उन्होंने बिना समय गंवाए कश्मीर के बिना बातचीत का खंडन कर दिया।
संयुक्त बयान में पाकिस्तान ने आतंकवाद के सभी रूपों से लड़ने की बात कही है। लेकिन आतंकवाद पर उसका दोहरा रवैया उसके इस दावे पर सवाल खड़े करता है। दुनिया जानती है कि लश्करे तैयबा, जमात-उद दावा, हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन उसी की पैदाइश हैं। हाफिज सईद पाकिस्तान में बेरोक-टोक घूम रहा है। वह आए दिन भारत के खिलाफ जहर उगलता है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने लश्करे तैयबा पर प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन इस आतंकी संगठन का सरगना जमानत पर रिहा है। पाकिस्तान में 26/11 मामले की सुनवाई कछुए की चाल जैसी है। इस हमले के सात साल हो गए लेकिन पाकिस्तान 26/11 के गुनहगारों को न्याय के कठघरे में लाने के लिए तत्पर नहीं दिखता है। भारत ने जहां इस मामले की सुनवाई पूरी कर आतंकी कसाब को फांसी पर लटका दिया, वहीं पाकिस्तान में इस मामले की सुनवाई निचली अदालत में है।
यह सब बातें आतंकवाद पर पाकिस्तान की गंभीरता पर सवाल खड़े करती हैं। आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान यदि वास्तव में गंभीर है तो उसे 'गुड एंड बैड टेररिज्म' की अवधारणा से बाहर निकलना पड़ेगा। आतंकवाद, कश्मीर और भारत को लेकर उसे अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। बार-बार के धोखों के बावजूद भारत ने एक बार फिर उस पर भरोसा जताया है पाकिस्तान को इस बात की कद्र करनी चाहिए। उसे भारत सहित दुनिया को भरोसा दिलाना होगा कि आतंकवाद के प्रति उसका दोहरा रवैया नहीं है। भारत सरकार ने साझा बयान के जरिए स्पष्ट कर दिया है कि वह पड़ोसी देश के साथ शांतिपूर्ण और दोस्ताना रिश्ते चाहती है। गेंद अब पाकिस्तान के पाले में है।
 ज़ी स्पेशल आलोक कुमार राव

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