દેશનું નામ બદલાઇ શકે છે. સુપ્રીમકોર્ટમાં આ બાબતે જાહેર હિતની અરજી દાખલ કરવામાં આવી છે. અરજીમાં દેશનું નામ ઇન્ડિયાથી બદલીને ભારત કરવાની માગણી કરવામાં આવી છે. આ બાબતે સુપ્રીમકોર્ટે દેશના નામકરણ અંગે ઉઠાવવામાં આવેલા પ્રશ્નોની તપાસ કરવાનો નિર્ણય લીધો છે. કેન્દ્ર અને રાજ્ય સરકારો પાસે જવાબ માગ્યો છે.
‘ઇન્ડિયા’ નામ બદલીને ‘ભારત’ કરી દેવું જોઇએ. ચીફ જસ્ટિસ એચ.એલ. દત્તુ અને જસ્ટિસ અરુણ મિશ્રાની બેંચે બધી રાજ્ય સરકારો અને કેન્દ્ર શાસિત પ્રદેશોને નોટિસ પણ જારી કરી છે. અરજીમાં કેન્દ્રને કોઇ સરકારી ઉદ્દેશ માટે અને સત્તાવાર પત્રોમાં ઇન્ડિયા નામનો ઉપયોગ કરવાથી અટકાવવાની માગણી કરવામાં આવી છે.
આ અરજી મહારાષ્ટ્રના સામાજિક કાર્યકર નિરંજન ભટવાલે દાખલ કરી છે. તેમણે જણાવ્યું કે બિનસરકારી સંગઠનો અને કોર્પોરેટ્સને પણ બધા સત્તાવાર અને બિનસત્તાવાર ઉદ્દેશો માટે ‘ભારત’નો ઉપયોગ કરવાનો નિર્દેશ આપવા જોઇએ. જાહેર હિતની અરજીમાં જણાવવામાં આવ્યું છે કે બંધારણ સભામાં દેશનું નામ રાખવા માટે ‘ભારત, હિન્દુસ્તાન, હિન્દ અને ભારતભૂમિ કે ભારતવર્ષ’ નામ રાખવાના મુખ્ય સૂચનો આવ્યાં હતાં. એ ઉપરાંત અરજીમાં અન્ય ઘણી દલીલો આપવામાં આવી છે.
બંધારણની કલમ 1 માં ઇન્ડિયા શબ્દોનો ઉપયોગ ગવર્નમેન્ટ ઓફ ઇન્ડિયા એક્ટ 1935 અને ઇન્ડિયન ઇન્ડિપેન્ડન્સ એક્ટ 1947ના સંદર્ભને પ્રદર્શિત કરવા માટે કરવામાં આવ્યો છે. એના આધારે ઇન્ડિયા શબ્દનો ઉપયોગ યોગ્ય નથી. એ ઉપરાંત એવું પણ પૂછવામાં આવ્યું છે કે શું ઇન્ડિયા શબ્દને સમગ્ર વિશ્વના રાજદ્વારી સંબંધોનો લાભ ખાટવા માટે ઉપયોગ કરવામાં આવ્યો છે. હાલમાં આ દેશનું નામ ઇન્ડિયા રાખવા અંગે કોઇ લેખિત દસ્તાવેજ નથી તો પછી આ નામ કેવી રીતે પડ્યું.
• क्या बलवान हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन एवं धर्मवीर संभाजी महाराज के नाम पर कार्य करनेवाले संगठन इस धमकी के संदर्भ में कुछ कृत्य करेंगे ? मोदी सरकार अबू आजमी पर क्या कार्यवाही करेगी ?
• मोदी के कार्यकाल में यदि राज्य में औरंगजेब का उदात्तीकरण होगा, तो वह हिन्दुओंके लिए ‘बुरे दिन’ होने के
ही संकेत हैं ! कल यदि औरंगाबाद की स्थिति कश्मीर समान हुई, तो आश्चर्य नहीं प्रतीत होगा !
संभाजीनगर (महाराष्ट्र) : औरंगजेब अत्यधिक (सेक्यूलर) धर्मनिरपेक्ष था। उस ने जो कुर्बानी दी है,
उसे मुसलमान कभी नहीं भूल सकेंगे। (औरंगजेब अत्यंत क्रूर राजा था। उसने अपने मां-पिता को भी
कारागृह में डाल रखा था। बंधुओंकी भी मुस्कें कस रखी थीं/हाथ बांध रखे थे। छत्रपति संभाजी राजा को
असीम प्रताडित कर उन की हत्या की थी। ऐसा क्रूर राजा औरंगजेब जिन्हें धर्मनिरपेक्ष प्रतीत होता है,
क्या उन्हें इतिहास ज्ञात नहीं है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) इस नगर से औरंगजेब का नाम
संलग्न किया गया है। इसलिए इस में परिवर्तन करने का प्रयास किया गया, तो खून की नदियां बहेगी,
आज समाजवादी पक्ष के अबू आजमी ने ऐसी धमकी दी। (कौवे के श्राप से गाय नहीं मरती !
धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात नेता न रहते हुए भी हिन्दूआेंने औरंगजेब से लडाई की थी !
उसी धर्मवीर संभाजीराजा के वारिस हिन्दू इस भूमि में आज भी जीवित हैं। इसलिए कोई भी हिन्दू ऐसी धमकियोंपर
ध्यान नहीं देगा ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
आजमी ने कहा कि…
१. नया नगर बसाएं एवं उसे संभाजीनगर नाम दें। यदि मुसलमानोंके साथ छेडखानी की, तो उस के गंभीर परिणाम होंगे।
(औरंगजेब, ऐसा समुपदेश देनेवाले अबू आजमी का, कौन लगता है ? धर्मांध नेताओंकी यह उद्दंडता स्थायी रूप से समाप्त
करने हेतु ‘हिन्दू राष्ट्र’ अनिवार्य है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
२. गोवंशहत्या बंदी के कारण राज्य में असंख्य नागरिक निरुद्योगी हो गए हैं। (किसी भी अंकवारी के बिना इस प्रकार का
बहाना करनेवाले अबू आजमी पर कैसे विश्वास करें ? -संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
३. ‘मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन’ (एमआइएम) जातीयवादी पक्ष है; जो सदैव समझौता करता आया है। इसलिए
धर्मनिरपेक्ष मतोंका विभाजन होता है, जिस का लाभ शिवसेना एवं भाजपा को मिल रहा है।
ये है, अत्यधिक (सेक्यूलर) धर्मनिरपेक्ष ‘औरंगजेब’ के कुछ उदाहरण !
हिन्दुत्व के लिए आरे से सिर चिरवाने वाले शहीद भाई मतिदास जी
जून 1975 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया था. उस दौरान चुनाव स्थगित हो गए थे और नागरिक अधिकार ख़त्म.
लेकिन आपातकाल की सबसे ज़्यादा भयावह यादें नसबंदी अभियान से जुड़ी हैं, जिसमें कई लोगों को लालच, धोखे या जबरन नसबंदी करने पर मजबूर किया गया.
बीबीसी के विटनेस कार्यक्रम में दिल्ली के ज़हीर पंसारी ने आपातकाल से जुड़ी अपनी यादें साझा कीं.
काला कानून
ज़हीर पंसारी कहते हैं, "जामा मस्जिद इलाक़े में हमारी एक दुकान है. मेरे पिता के समय से हम मसाले बेचते हैं. यह सब मेरी आंखों के सामने ही हुआ था."
26 जून, 1975 की रात को आपातकाल की घोषणा कर दी गई.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो पर अपने संबोधन में कहा, "राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है. इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है. मुझे यकीन है कि आप इस गहरी और बड़ी साज़िश के बारे में जानते ही होंगे."
उस वक़्त ज़हीर 15 साल के थे. शाम होते-होते उन्होंने सुना कि इलाक़े से बहुत से लोगों को पुलिस उठाकर ले गई थी.
वह बताते हैं, "उन्होंने स्थिति का फ़ायदा उठाया और सफ़ाई के नाम पर झुग्गियों को गिराना शुरू कर दिया. झुग्गी बस्तियों को साफ़ करने, नए मकान बनाने, सड़कें बनाने के बजाय उन्होंने झुग्गियों को गिराना शुरू कर दिया."
"उस समय की सबसे ख़राब बात थी- काला कानून. आबादी नियंत्रित करने के लिए उन्होंने नसबंदी शुरू की. पास ही एक शिविर लगा था जहां लोगों को नसबंदी के लिए लाया जाता था."
"शुरुआत में लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें ज़मीनें भी दी गईं. लेकिन फिर वह घटते-घटते पांच किलो घी के टिन और एक घड़ी पर आ गया."
ऐसे भी लोग थे जिन्हें नसबंदी करवाने पर ज़मीन देने का वादा तो किया गया था लेकिन मिली नहीं.
ज़हीर कहते हैं, "पहले तो नसबंदी रज़ामंदी से की जानी थी लेकिन बाद में यह क्रूरतापूर्वक की जाने लगी."
शब्बीर की नसबंदी
जिन लोगों को नसबंदी में ज़्यादतियों के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है उनमें से एक इंदिरा गांधी के 29 वर्षीय बेटे संजय गांधी थे. यूथ कॉंग्रेस के ज़रिए उन्होंने इस नसबंदी कार्यक्रम का संचालन किया.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा था, "मैंने बैठकों में लोगों से पूछा कि क्या वह किसी ऐसे व्यक्ति को ला सकते हैं जिसकी जबरन नसबंदी की गई हो? तो मुझे बस यही जवाब मिला कि हमने इस बारे में सुना है लेकिन यह यहां नहीं हुआ."
ज़हीर कहते हैं, "उस दौरान करीब 3,50,000 लोगों की नसबंदी की गई थी और उनमें से करीब 60 फ़ीसदी मुसलमान थे."
ज़हीर कहते हैं, "हम देखते थे कि लोग उन्हें चिढ़ाते थे जिनकी नसबंदी हुई थी. हमारी दुकान के सामने शब्बीर रहते थे, जिनकी सेहत अच्छी-ख़ासी थी. उन्हें जबरन एंबुलेंस में डालकर ले गए थे और उनकी नसबंदी कर दी गई थी."
"जिसके बाद लोग उन्हें चिढ़ाते थे कि शब्बीर की नसबंदी हो गई, नसबंदी हो गई. यकीन मानिए अच्छी-ख़ासी सेहत का वह आदमी अचानक मर गया. वह ऑपरेशन की वजह से नहीं मरे, वह तानों से मर गए."
एक बार फिर अमेरिका में एक हिंदू मंदिर पर हमले की बात सामने आने से सनसनी फैल गई। मामला काफी गंभीर माना जा रहा है। हमलावरों ने मंदिरों में तोड़फोड़ की और दरवाजे पर शैतान की पूजा करने वाली तस्वीर बना डाली। जिसके बाद श्रद्धालुओं ने अपना विरोध जताया।
मिली जानकारी के अनुसार जिस तरह का चिन्ह बताया गया है वह इंटरनेशनल कैथोलिक गैंग मारा सलवटरूचा के होने के संकेत दिए जा रहे हैं। हालांकि पुलिस मामले की जांच में जुटी है। लेक हाईलैंड के इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मामले में विरोधी अमरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का विरोध कर रहे हैं।
विरोधियों का कहना है कि अमेरिका में जब चर्च पर हमला होता है तो ओबामा उसकी निंदा करते हैं मगर मंदिरों पर हमला होने पर वे किसी तरह की प्रतिक्रिय व्यक्त नहीं करते। यही उचित नहीं है। इस बात को लेकर अमेरिका में ओबामा का विरोध हो रहा है। मंदिर पर हुए हमले के दोषियों को सजा देने की मांग भी की जा रही है।
चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट दुनिया का सबसे धनी चरमपंथी समूह है. जिन्होंने इस समूह के प्रचार के भौंडे वीडियो देखे हैं, उन्होंने चरमपंथियों को चमचमाती नई महंगी स्पोर्ट्स कारों को भी चलाते हुए देखा होगा.
विश्लेषकों का कहना है कि ये पैसे चंदा, तेल की तस्करी (रोज़ाना 16.45 लाख डॉलर), अपहरण (पिछले साल दो करोड़ डॉलर की कमाई), मानव तस्करी, जबरन वसूली, डाके और अंत में कीमती पुरातन वस्तुओं की बिक्री से आता है.
ये आय का फ़ायदेमंद ज़रिए बन गया है और ये स्पष्ट होता है कि दमिश्क के पश्चिम में स्थित अल-नाबुक से लूटी गई चीजों की बिक्री से. एक रिपोर्ट के अनुसार इन लूटी गई चीज़ों की बिक्री से 3.6 करोड़ डॉलर की आय हुई.
ये लोग एक ओर जहां निमरूद, नीनेवेह और हत्रा में मौजूद प्राचीन स्थलों को नष्ट कर रहे हैं, वहीं इन स्थानों से मिली अनेकों कलाकृतियाँ चोर बाज़ार में बिकती हुई मिल रही हैं.
आईएस इसके लिए या तो तथाकथित 'बुलडोज़र आर्कियोलोजी' का प्रयोग करता है या फिर स्थानीय लोगों को इन स्थानों और मकबरों को खोदने के काम पर लगाता है.
बुलडोज़र आर्कियोलोजी का मतलब है इन स्थानों पर इन कलाकृतियों को खोजने के लिए किसी भी उपलब्ध मशीन का प्रयोग करना, जिससे इन स्थानों को क्षति पहुँचती है.
'मूर्तियां- बेचने की और, तोड़ने की और'
फिर चरमपंथी समूह इन बेशकीमती वस्तुओं की कीमत के अनुरूप टैक्स वसूलता है, जिसकी शरिया कानून के तहत इजाज़त है. ज़मीन के नीचे से क्या निकला, इसकी जानकारी किसी को नहीं होती और बाद में इस तरह की लूट की पहचान असंभव होती है.
मूसल म्यूज़ियम में प्राचीन असीरियाई मूर्तियों को "तुच्छ मूर्ति" कहते हुए नष्ट करने वाले आईएस के उस वीडियो को देखकर धोखा मत खाइए.
आईएस ने ऐसी बेशकीमती स्मारकों को क्षतिग्रस्त इसलिए किया क्योंकि उनको वह बेच नहीं सकता था. इस बात के सबूत हैं कि जिन कीमती वस्तुओं को वह वहां से उठाकर ले जा सकते थे उन्हें वह बेच रहे हैं.
इराक़ के राष्ट्रीय प्राचीनकालीन विभाग के फ़ौजे अल-महदी का कहना है कि म्यूज़ियम में मौजूद कोई भी मूर्ति असली नहीं थी और वो सभी प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी उनकी नकल थीं.
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के पुरातत्व संस्थान के डॉ. मार्क अलतावील कहते हैं, "बग़दाद म्यूज़ियम की वे सभी मूर्तियां मौलिक की कॉपी थीं और उन्हें तब बनाया गया था जब इराक़ में क्षेत्रीय म्यूज़ियम बनाए जा रहे थे. पश्चिमी देशों में भारी मांग होने की वजह से मूसल में पिछले 25 सालों से भारी लूट मची हुई है."
छोटा है तो बेहतर है
दुनिया में चोरी की कलाकृतियों का पता लगाने के काम में जुटी कंपनियों में से एक है एम्स्टर्डम की आर्टियाज़.
आर्टियाज़ के आर्थर ब्रैंड ने इस चोरी के धंधे को "ब्लड एंटीक्स" का नाम दिया है. वैसे पुरातन वस्तुएं सामान्यतः ब्लड डायमंड की तुलना में आसानी से इधर से उधर नहीं ले जायी जा सकती है, लेकिन इनकी कीमत ब्लड डायमंड की तुलना में कहीं अधिक होती है.
यूरोप के काला बाज़ार से सीरिया और इराक़ की कलाकृतियों की ख़रीद-फ़रोख़्त की कई रिपोर्टें आ रही हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, स्कॉटलैंड यार्ड सीरियाई प्राचीन कलाकृतियों से जुड़े चार मामलों की जांच कर रहा है - पर वित्तीय मदद के बिना लूटी हुई कलाकृतियों के काला बाज़ार और संबंधित नेटवर्क को बंद करना असंभव है.
जिन वस्तुओं की काफी मांग है उनमें प्राचीन तख्तियाँ, मर्तबान, सिक्के, शीशे और विशेषकर मोज़ेक हैं, जिन्हें आसानी से टुकड़ों में बाहर भेजा जा सकता है.
ऐसी चीज़ें जो ज़्यादा छोटी होती हैं और जिनको आसानी से छिपाया जा सकता है और बाहर भेजा जा सकता है, उनकी ज़्यादा कीमत मिलती है.
"बहुत मशहूर चीज़ों की कीमत उनकी वास्तविक कीमत का एक मामूली हिस्सा होती है. अवैध तरीके से बेची जा रही कोई बड़ी वस्तु, काला बाज़ार में वास्तविक कीमत के 10-15 फ़ीसदी पर बिकती है लेकिन अगर वह वस्तु छोटी हो और उसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सके तो उसकी कीमत बढ़ जाती है."
आईएस अपने खर्चों को पूरा करने के लिए ब्लड एंटीक्स का प्रयोग करने वाला पहला चरमपंथी संगठन नहीं है.
1974 में आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (आईआरए) ने पुरानी बेशकीमती पेंटिंग्स चुरा लीं, उस समय उस कृति की कीमत 120 लाख डॉलर थी.
तोड़ो और हथियाओ
सीरिया और इराक़ से लूटी गए हजारों कलाकृतियों में से सिर्फ कुछ ही दोबारा नज़र आएँगी. ये कलाकृतियां यूरोप और अमरीका के निजी संग्रहों में पहुंचें जाएँगी जहां इस्लाम-पूर्व की इन वस्तुओं की विशेष मांग है. इनके अलावा ये जापान और आस्ट्रेलिया में भी ऐसे ही लोगों के पास चली जाएंगीं. अगर ये वापस मिल भी जाती हैं तो जांचकर्ताओं को इनको हासिल करने में सालों लग जाते हैं.
पिछले महीने अमरीकी इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (आईसीई) ने लगभग 60 कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जिनमें असीरियाई राजा सरयून द्वितीय का बहुत ही खूबसूरत सिर भी शामिल था जिसकी कीमत बाजार में 12 लाख डॉलर है.
ऑपरेशन लॉस्ट ट्रेयर 2008 में शुरू किया गया था जब यह बात उड़ी थी कि दुबई का एंटीक डीलर हसन फज़ैली अवैध वस्तुएं जहाज़ से अमरीका भेज रहा है.
सरयून द्वितीय के सिर वाली कलाकृति के मूल रूप से तुर्की से आने का पता चला और दस्तावेजों में इसकी कीमत 6,500 डॉलर घोषित की गई थी. तस्करी की अन्य वस्तुओं में मिस्र की अंत्येष्टि नाव भी शामिल थी जिसकी कीमत 57,000 डॉलर आंकी गई. कुछ शिपमेंट का सीधे न्यूयॉर्क के बड़े म्यूज़ियम्स, गैलरी और आर्ट हाउस से संबंध था.
हालांकि, आईसीई की जब्त की गई वस्तुएं इराक़़ युद्ध के समय की थीं.
वर्ष 2003 में इराक़़ युद्ध के समय, यह जानते हुए कि युद्ध के कारण कलाकृतियों का भारी नुकसान होगा पुरातत्वविदों, म्यूज़ियम के निदेशकों, और कला की दुनिया के प्रमुख लोगों ने पेंटागन के अधिकारियों के साथ बैठक की थी.
लेकिन यह बैठक बगदाद के नेशनल म्यूज़ियम को लूटे जाने से भी नहीं बचा सकी.
इतना ही नहीं, उस समय के हुकूमत ने लूट को ये कहते हुए प्रोत्साहन दिया कि ये कलाकृतियां म्यूज़ियम की बजाय अन्य जगहों पर ज़्यादा सुरक्षित हैं.
ख़तरनाक है खेल
गहनों, सीरेमिक्स और मूर्तियों सहित 15 हज़ार से अधिक वस्तुएं म्यूज़ियम से चुरा ली गईं. एक बहुत ही प्रसिद्ध कृति जो चुराई गई वह 5000 साल पुराना फूलदान था जिसे बाद में जब बरामद किया गया तो वह 14 हिस्सों में टूटा हुआ मिला.
इसके अलावा उर की वीणा जिसे दुनिया का सर्वाधिक पुराना वाद्य यंत्र कहा जाता है, चुराए जाने के बाद जब मिला तो वह बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था.
सैकड़ों कलाकृतियाँ तो अभी तक नहीं मिली हैं और ओटोमन साम्राज्य का पिछले 500 वर्षों का रिकार्ड नष्ट हो गया. इनके अलावा पिकासो और मिरो की कृतियां आग की भेंट चढ़ गईं. एक अनुमान के अनुसार इराक़ से चुराई गई कलाकृतियों की कीमत 10 अरब डॉलर तक हो सकती है.
लूटी गई कलाकृतियां बाजार में आने से पहले कई हाथों से गुज़रती हैं और कई बार तो दशकों तक यह बाजार में नहीं आती हैं.
एसोसिएशन फॉर रिसर्च ऑफ क्राइम्स अगेन्स्ट आर्ट की प्रेसिडेंट लिंडा अल्बर्ट्सन के अनुसार, "ये कहना मुश्किल है कि आईएस काला बाज़ारी से कितने की कमाई कर रहा है क्योंकि किसी लूटी गई वस्तु के दोबारा बाज़ार में आने में दशकों लग जाएंगे. उदाहरण के तौर पर कंबोडिया के अंगकोर वाट की कलाकृतियां गृहयुद्ध समाप्त होने के 40 साल बाद नीलामी में दिखीं."
ऐसे कला संग्राहक दुनिया भर की सांस्कृतिक धरोहरों की तबाही के लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं.
गोरखनाथ मंदिर की है खास विशेषता, हिंदू से ज्यादा मुस्लिम करते हैं सेवा
गोरखपुर. हिंदुओं की आस्था का केंद्र नाथ संप्रदाय का विश्वप्रसिद्ध मंदिर गोरखनाथ में आज भी गंगा-जमुनी तहजीब देखने को मिलती है। इस मंदिर की खास विशेषता है कि इससे हिंदू से ज्यादा मुसलमान जुड़े हुए हैं। चाहे वो मंदिर परिसर में लगी दुकाने हों या मंदिर का निर्माण। सभी में मुस्लिम समुदाय के लोगों की खास भूमिका रही है।
गोरखनाथ मंदिर परिसर में वर्तमान में जो भी निर्माण कार्य होते हैं, उसकी देखरेख मोहम्मद यासीन अंसारी करते हैं, जोकि मुस्लिम समुदाय के हैं। साल 1977 से वो यहां रहकर अपना और परिवार का जीवनयापन बखूबी कर रहे हैं। इनके बेटे मोहम्मद सलीम अंसारी गुरु गोरखनाथ चिकित्सालय के फिजियोथेरेपी विभाग में बतौर फिजियोथेरेपिस्ट काम कर रहे हैं। यासीन के पिता गोरखनाथ मंदिर के 'कोठारी' रह चुके हैं। वह चावल-दाल और आटा तक का हिसाब-किताब रखते थे। इनका जनाजा भी इसी मंदिर से धूमधाम से निकला था।
आदित्यनाथ की सरपरस्ती में चल रही राम-रहीम की गृहस्थी
पूरे देश में अल्पसंख्यकों के चिर विरोधी लीडर माने जाने वाले सांसद महंत आदित्यनाथ की सरपरस्ती में 'राम-रहीम' की गृहस्थी बखूबी चल रही है। मंदिर परिसर में राम-रहीम अगल-बगल दुकान लगाते हैं। कोई भी परेशानी होने पर दोनों अपनी फरियाद लेकर आदित्यनाथ के पास पहुंचते हैं। वे पल भर में उनकी समस्या का समाधान कर देते हैं।
हुमायूंपुर की बेबी और रसूलपुर गोरखनाथ की नूरजहां दोनों सगी बहनें तो नहीं, लेकिन इनका प्यार देखते बनता है। दोनों की मंदिर परिसर में चूड़ी की दुकाने हैं। नूरजहां कहती हैं कि वे इस मंदिर परिसर में पिछले 35 सालों से दुकान लगा रही हैं। आदित्यनाथ जब मंदिर परिसर भ्रमण पर होते हैं, तो जिस प्रेमभाव से बेबी गुप्ता का हालचाल लेते हैं उसी प्रेम भाव से उनकी भी समस्या पूछते हैं।
पीढ़ियों से लग रही हैं दुकानें
सुल्तान अली उर्फ बब्लू मंदिर परिसर में अपनी दुकान लगाते हैं। सुलतान ने बताया कि उसके अब्बा इन्तेहार अली बचपन से ही मंदिर परिसर में रहकर रोजी-रोटी कमाते थे। वे इस समय बूढ़े हो चले हैं तो उनका भार वह उठा रहा है। उसने कहा कि हम सभी उसी प्रकार से मंदिर में जाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं जिस प्रकार संतोष भाई और सोनू भाई ग्रहण करते हैं।
सेवा में मजहब का कोई स्थान नहीं
बीजेपी के फायरब्रांड लीडर और गोरक्षपीठाधीश्वर सांसद महंत आदित्यनाथ ने कहा कि सेवा में मजहब का कोई स्थान नहीं होता। सेवा मानवता की होती है और गोरक्षपीठ मानवता में लगी है। सनातन हिंदू धर्म उपासना का केंद्र होने के नाते हिंदू हित सर्वोपरि है। हमारा धर्म तो 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की कामना करता है। धर्म यह नहीं कहता कि हिंदू सुखी हो, ब्राह्मण सुखी हो, क्षत्रिय सुखी हो, मुस्लिम और क्रिश्चियन दुखी हो। हमारे लिए सभी एक हैं। यदि कोई हिंदू हित और राष्ट्र हित के साथ खिलवाड़ करता है तो हमें उसके साथ क्या करना है, हम यह भी जानते हैं।
नासिर अली द्वारा बनवाया गया ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ स्मृति हाल
गोरखनाथ मंदिर का निर्माण कार्य देखते हैं मोहमद यासीन अंसारी मंदिर घूमने आई मुस्लिम युवतियां
महंत आदित्यनाथ ने गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने के लिए शुरू किया अभियान
टोल फ्री नंबर पर मिस्ड कॉल कर अभियान की शुरुआत करते महंत आदित्यनाथ
सांसद महंत आदित्यनाथ ने मंगलवार को गौरक्षा केंद्र से गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित कराए जाने के अभियान का शुभारंभ किया। उन्होंने मंदिर परिसर स्थित गौशाला से हिंदू युवा वाहिनी के जारी किए टोल फ्री नंबर 1800 200 0010 पर मिस्ड कॉल देकर इसकी शुरुआत की।
उन्होंने इस टोल फ्री नंबर पर एक करोड़ लोगों को मिस्ड कॉल के जरिए गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित किए जाने का समर्थन करने की अपील की। वहीं, गौशाला में गायों के बीच महंत आदित्यनाथ ने जब इस अभियान की शुरुआत की तो परिसर तालियों से गूंज उठा। इस दौरान समर्थकों ने भारत माता की जय और गौमाता की जय के नारे लगाए। आदित्यनाथ ने कहा कि सनातन हिंदू धर्म के शास्त्र 'गावो विश्वस्य मात्रि' यानी गौमाता विश्व की माता है, इसका संदेश देते आ रहे हैं। सनातन हिंदू धर्म मानवता के कल्याण 'सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संत निरामया' की बात करता है।
महंत आदित्यनाथ ने कहा कि यह अभियान हिंदू युवा वाहिनी ने जारी किया है। इस केंद्र (गोरक्षपीठ गोरक्षनाथ मंदिर) से टोल फ्री नंबर जारी किया गया है। इस अभियान को लेकर पूरे देश के लोगों को गौमाता-राष्ट्रमाता और सनातन हिंदू धर्म संस्कृति के लिए जागरूक करेंगे। भारत की धर्म प्रधान संस्कृति और कृषि प्रधान व्यवस्था को सुदृढ़ करने के इस अभियान के साथ भू-संरक्षण और संवर्धन के प्रति जनता को जागरूक करने के लिए इससे जुड़ने की अपील कर रहे हैं।
मौजूद रहे कई अधिकारी
इस अवसर पर हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह, प्रदेश प्रभारी राघवेंद्र प्रताप सिंह, प्रदेश कार्यालय प्रभारी पीके मल्ल, प्रदेश अध्यक्ष विश्व हिंदू महासंघ भिखारी प्रजापति, प्रदेश कार्य समिति सदस्य शेष विजय सिंह, चेयरमैन रामपुर कारखाना, ब्लाक प्रमुख गजेंद्र प्रताप सिंह, मीडिया प्रभारी विनय कुमार गौतम और दुर्गेश बजाज सहित अन्य कई लोग मौजूद रहे।
दूसरे अभियानों के लिए भी जारी किया जाएगा नंबर
बता दें कि हिंदू युवा वाहिनी ने एक करोड़ लोगों से समर्थन पाने के लिए यह टोल फ्री नंबर संस्था के नाम पर लिया है। सूत्रों के मुताबिक, इस नंबर के लिए 18,000 रुपए का चार्ज दिया गया है। इस अभियान की सफलता के बाद हिंदू युवा वाहिनी अन्य कई अभियानों से लोगों को जोड़ने की कोशिश करेगी। उनके लिए भी कुछ इसी तरह के टोल फ्री नंबर जारी कर देश के लोगों से समर्थन हासिल कर सकते हैं।
बीजेपी के संस्थापक सदस्य और राजनीतिक क्षितिज में अति सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। बता दें कि वाजपेयी के 90 साल के होने के एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा नरेंद्र मोदी सरकार ने की थी। यह कहना कोई बड़ी बात नहीं होगी कि वाजपेयी केवल भारतीय राजनेता ही नहीं हैं, बल्कि वे एक अंतरराष्ट्रीय शख्सियत हैं, जिन्हें हर कोई सम्मान और प्यार करता है। चाहे कोई अपनी पार्टी को हो या विरोध पार्टी का, हर कोई उनकी शख्सियत का आज भी कायल है। आज भी संसद में या अन्य सार्वजनिक मंचों पर विरोधी पार्टी के नेता वाजपेयी का गुणगान करने से नहीं चूकते। उनके शब्दों का भाव यदि गौर से देखें तो यह पता चलता है कि उनके जैसा राजनेता कोई और नहीं। वाजपेयी को सम्मान मिलना कुछ ऐसा है कि 'भारत रत्न' हमेशा 'अटल' ही रहेगा।
यह पूरे देश के लिए गर्व की बात है कि उन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया। उनका व्यक्तित्व, उनकी भाषण देने की कला, उनकी ईमानदारी और विनम्रता उनकी महानता को दिखाता है। इस महान शख्सियत के राजनीतिक जीवन में कई उपलब्धियां जुड़ीं, जिसकी अहमियत कई मायनों में काफी बड़ी हैं। उन्होंने देश के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में एक अमिट छाप छोड़ी। संसद में दिए गए उनके भाषण समकालीन व नई पीढ़ी के सांसदों के लिए सदा प्रेरणा के स्त्रोत रहे। वाजपेयी अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते भारतीय राजनीति के शिखर पर पहुंचे और अपनी वाकपटुता से विरोधियों को भी अपना मुरीद बनाया। भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक, कवि और कई भाषाओं के ज्ञाता वाजपेयी गांधी-नेहरू परिवार के बाहर देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे। वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। वाजपेयी ने 2005 में राजनीति से संन्यास ले लिया। उस दौरान संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वाजपेयी को वर्तमान राजनीति का भीष्म पितामह कहा था।
2013 में जब यूपीए सरकार ने क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुललकर और वैज्ञानिक सीएनआर राव को भारत रत्न देने की घोषणा की थी तो बीजेपी ने उस समय राष्ट्र के प्रति वाजपेयी के योगदान को नजरअंदाज करने के लिए कांग्रेस की आलोचना की थी। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बाहदुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के अलावा सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर सहित 43 लोगों को अब तक भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरे से जुड़े होने के बावजूद वाजपेयी की एक धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी छवि है। उनकी लोकप्रियता भी दलगत सीमाओं से परे है। जिक्र योग्य है कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वाजपेयी कांग्रेस से बाहर के पहले प्रधानमंत्री हैं। वाजपेयी 1998 से 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इन दिनों वे उम्र से जुड़ी बीमारियों के चलते इन दिनों सार्वजनिक जीवन से दूर हैं। एक राजनेता के रूप में वाजपेयी की सराहना की जाती है और अक्सर उनका जिक्र बीजेपी के एक उदारवादी चेहरे के रूप में होता है।
वाजपेयी का जन्म 1924 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी हिन्दी एवं ब्रज भाषा के कवि थे तथा गांव के स्कूल में शिक्षक का कार्य करते थे। इस तरह वायपेयी को काव्य विरासत में मिली। वह एक अदद पॉलीटिशियन के साथ-साथ कवि हृदय थे। उनकी कविताएं भी खासी लोकप्रिय हुईं। उनकी ऐसी कई कविताएं हैं जो गहरा संदेश देती हैं। जैसे 'रार नहीं ठानूंगा, हार नहीं मानूंगा काल के कपाल पर, लिखता चला जाऊंगा'।
वाजपेयी राजनीति शास्त्र में एमए करने के उपरांत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्णकालिक सदस्य बन गए। वाजपेयी 1942 में राजनीति में आए जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। उन्होंने 1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई। अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। वैसे लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वो हार गए थे। बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे। उनके असाधारण व्यक्तित्व को देखकर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा।
साल 1968 में वाजपेयी राष्ट्रीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वर्ष 1975-77 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी अन्य नेताओं के साथ उस समय गिरफ्तार कर लिए गए। जेल से छूटने के बाद उन्होंने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया। 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वह मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में विदेश मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता है जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासंघ को हिन्दी भाषा में संबोधित किया। 1980 में वाजपेयी बीजेपी के संस्थापक सदस्य बने और पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के कारण गिर गई। 1998 में दोबारा हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन किया और फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी फिर से सत्ता में आई और इस बार वाजपेयी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। वाजपेयी पहले जनसंघ फिर बीजेपी के संस्थापक अध्यक्ष रहे। तीन बार प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी के समय देश की आर्थिक विकास दर तेज रही। वह देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने, जिनका कांग्रेस से कभी नाता नहीं रहा। साथ ही वह कांग्रेस के अलावा के किसी अन्य दल के ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। उनके प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, जिसमें कारगिल युद्ध, दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करना, संसद पर आतंकी हमला और गुजरात दंगे प्रमुख हैं। गुजरात दंगों के समय ही उन्होंने तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म पालन करने की सलाह दी थी। इससे समझा जा सकता है कि वाजपेयी किस तरह सामाजिक जीवन में पूरी निष्पक्षता से अपनी राय रखते थे।
कई नेताओं का यह मानना है कि वाजपेयी के नेतृत्व में काम करना ‘सम्मान’ की बात थी। इनका यह भी मानना है कि वह देश के कद्दावर नेता हैं। वह एक ऐसे उत्कृष्ट नेता हैं जिन्होंने देश हित में अथक काम किया। वाजपेयी के राजनीतिक जीवन में यूं तो अनेक लोग आए लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी के साथ उनकी जो जोड़ी बनी आज भी भारतीय राजनीति में एक मिसाल है। आडवाणी वाजपेयी के साथ उनके सचिव के रूप में जुड़े थे और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती और राजनीतिक समझबूझ ने जनसंघ और फिर भाजपा को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित किया। आडवाणी के साथ वाजपेयी के मतभेदों की अनेक अटकलें लगीं लेकिन हर बार वे अटकल बनकर ही रह गईं। राम मंदिर आंदोलन के दौरान आडवाणी भाजपा के कद्दावर नेता के रूप में उभरे लेकिन उन्होंने अपनी दोस्ती और वाजपेयी के राजनीतिक कद का सम्मान करते हुए उन्हें पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। वाजपेयी ने भी दोस्ती के धर्म का निर्वाह करते हुए आडवाणी को उप प्रधानमंत्री बनाया।
करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता और प्रखर कवि के रूप में प्रख्यात वाजपेयी को साहसिक पहल के लिए भी जाना जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री के रूप में उनकी 1999 की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा शामिल है, जब पाकिस्तान जाकर उन्होंने वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए।
अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि कोई अपना दोस्त बदल सकता है लेकिन पड़ोसी नहीं। उनके कहने का आशय था कि उस समय की एनडीए सरकार की मंशा पाकिस्तान के साथ दोस्ताना संबंध की थी। हालांकि वो अब भी है, लेकिन वाजपेयी की ये पहल कई मायनों में अहम थी। 90 के दशक के अंतिम वर्षों में वाजपेयी ने पड़ोसी देश के साथ शांति प्रकिया की पहल की थी और पाकिस्तान की तरफ दोस्ती के हाथ बढ़ाए थे। वह न केवल पाकिस्तान के साथ दोस्ताना संबंध चाहते थे बल्कि दोनों देशों के लोगों के दिलों में एक दूसरे के लिये प्यार चाहते थे। हालांकि ये अलग बात है कि बाद में भारत को बदले में कारगिल का युद्ध मिला।
अटल जी के कार्यकाल में भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न देश बना, आर्थिक क्षेत्र में लगातार प्रगति हुई, महंगाई काबू में रहा, विदेशी मुद्रा का भंडार तेजी से बढ़ा और पूंजीगत निवेश की भी भरमार रही। लेकिन अटल जी जैसे व्यक्तित्व को केवल राजग के सफल प्रधानमंत्री के दायरे में रखकर आंकना इस युगपुरुष के साथ अन्याय ही होगा। वह सदा बहुआयामी प्रतिभा के धनी के रूप में जाने जाते रहे हैं। उनका लंबा संसदीय जीवन राजनीतिक क्षेत्र के काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनुकरणीय रहा है।
इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती कि अटल जी के नेतृत्व में छह साल तक चली एनडीए की सरकार का कार्यकाल सुशासन का युग माना जाता है। विशेष तौर पर, विभिन्न विचारधाराओं वाले कई राजनीतिक दलों को लेकर जिस प्रकार अटल जी ने एक स्थिर और स्वच्छ सरकार चलाई, वह अपने आप में शासन करने का अनूठा उदाहरण है। पूरा देश आज इस सम्मान पर गौरवान्वित कर रहा है। वास्तव में भारत रत्न अटल तो 'अटल' ही रहेंगे।