'हिन्दु युवा वाहिनी' योगीजी की सेना के बारे में



हिन्दु युवा वाहिनी का संविधान
हिन्दु युवा वाहिनी का उदय अप्रैल २००२ में रामनवमी की पुण्य पावन तिथि पर श्री गोरक्षनाथ मन्दिर, गोरखपुर में एक सामान्य हिन्दू सम्मेलन के रूप में हुआ। यह संस्था राष्ट्रीय स्तर की गैर सरकारी, अराजनैतिक तथा एक विशुद्ध सांस्कृतिक संगठन के रूप में राष्ट्रीय भावना, हिन्दू हित, संगठित आवाज, हिन्दुत्व, हिन्दू ग्रन्थों में आस्था, आपसी सौहार्द, समता मूलक समाज की स्थापना एवं परस्पर सहयोग की भावना पैदा करेगी।
हिन्दु युवा वाहिनी अपने नाम के अनुरूप प्रखर हिन्दु राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित भाव से कार्य करते हुए सम्पूर्ण भारत में हिन्दुत्व के मतावलम्बियों वैदिक, बौद्ध, जैन, सिख तथा अन्य हिन्दू धर्म-संस्कृति एवं परम्परा जो निम्नांकित आचरण संहिता में विश्वास रखते हैं, को वृहद हिन्दू परिवार में समाहित करने के लिए कार्य करेगी।
१. नाम: संस्था का नाम  ''हिन्दु युवा वाहिनी'' होगा
२. केन्द्रीय कार्यालय: संस्था का मुखयालय हिन्दू भवन, रेलवे स्टेशन रोड
            गोरखपुर (उ०प्र०) होगा।
३. कार्य क्षेत्र : संस्था का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण हिन्दुस्तान होगा।
४. परिभाषा: इस संविधान में जब तक आवश्यक न हो निम्नलिखित
       विषय का अर्थ होगा।
(अ) संविधान का अर्थ होगा ''हिन्दु युवा वाहिनी'' का संविधान।
(ब) ''वाहिनी'' का अर्थ होगा ''हिन्दु युवा वाहिनी''
(स) हिन्दू का अर्थ है वैदिक, बौद्ध, सिख, जैन, नागा, तथा अन्य
     हिन्दू  संस्कृति मतावलम्बी तथा जो भी व्यक्ति या समुदाय
     निम्नलिखित आचरण संहिता को अंगीकार करता है :-
(i)  ओंकार मे विश्वास एवं श्रद्धा।
(ii)  गो एवं गो-वंश की हत्या का विरोध।
(iii)  पुनर्जन्म में विश्वास।
(iv)  हिन्दुस्तान को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि अथवा पुण्यभूमि के
रूप में मानता हो।
(v)  हिन्दू धर्म-ग्रन्थों मे पूर्ण आस्था हो।



हमारा ध्याय

(क)   हिन्दू धर्म, समाज एवं हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत को आवश्यकतानुसार पुनः स्थापित, सुरक्षित, संवर्धित और सुगठित करने के लिये हिन्दुओं को संगठित एवं प्रेरित करना।
(ख)  विराट् हिन्दू समाज की एकात्मता तथा पारस्परिक सद्भावना के लिये छुआछूत और ऊंच-नीच की भेदभाव पूर्ण कुरीतियों का उन्मूलन कर सामाजिक समरसता विकसित करना।
(ग)   अपने परम्परागत विराट् हिन्दू समाज को भय, प्रलोभन, नासमझी या अपने ही लोगों के दुर्व्यवहार आदि किसी भी कारण से जो लोग स्वंय छोड़ गये थे या छोड़ने के लिये विवश कर दिये गये थे, इन सभी बिछुड़े हुए बन्धुओं को यदि वे अपने पुरखों के धर्म और समाज में वापस आना चाहते हैं तो उसके लिये सम्मानजनक एवम् वैद्यानिक ढंग से प्रत्यावर्तन का मार्ग प्रशस्त करना।
(घ)   किसी भी उम्र या लिंग के गोवंश की हत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगे, गो-पालन एवं गो-संवर्धन बढ़े इसके लिये विधायी प्रयत्न एवं जागरण करना।
(ड़)   दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी हिन्दुओं में हिन्दुत्वनिष्ठ देशकालोचित, राष्ट्रभावना को जागृत करना।
(च)   गांव, नगर, वनांचल या दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में अपने जो बन्धु सम्पर्क के अभाव में अलग-थलग पड़ गये हैं। उन बन्धुओं को राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा में सम्मिलित करने के लिये विधि सम्मत सभी उपाय करना।
(छ)   हिन्दू समाज के सभी धर्म सम्प्रदायों में आपसी समझ, सहयोग एवं सौहार्द को विकसित कारना।
(ज)   उत्पीड़न एवं शोषण की शिकार अथवा स्वास्थ्य, गरीबी या अन्य किसी कारण से असहाय एवं पीड़ित माताओं, बहनों, बड़े-बूढ़ों को आवश्यकतानुसार सेवा एवं सहायता देना।
(ञ)   राष्ट्रव्यापी भ्रष्ट्राचार का उन्मूलन एवं उसे नियंत्रित करने के लिये योजनाबद्ध ढंग से संगठित प्रयास करना।
(ट)   भारतवर्ष/हिन्दुस्तान को यथाशीघ्र एक विकसित समुन्नत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करने में सहयोगी बनना।
(ठ)   शिक्षित बेरोजगार युवाओं को स्वावलम्बी बनाने तथा रोजगार से जोड़ने के लिये सरकारी-गैरसरकारी स्तर पर यथासम्भव अवसर एवं सहायता उपलब्ध कराना।
(ड)   समान विचारधारा के सभी संगठनों में आपसी समन्वय स्थापित करना तथा समान विचारधारा वाले राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से सम्बद्धता प्राप्त कराना।
(ढ़)   उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिये आवश्यकतानुसार कोई भी छोटा-बड़ा अनुषांगिक संगठन, संस्थान या प्रकल्प स्थापित करना। साहित्य, मुद्रण और प्रकाशन प्रारम्भ करना तथा ‘‘हिन्दू कोष’’ की स्थापना करना।


संस्था की सदस्यता

संस्था की सदस्यता के लिए अधोलिखित विवरण के अनुसार चार कोटियाँ होंगी।
(क)  मुख्य संरक्षक:- संस्था में मुख्य संरक्षक का एक ही पद होगा और इस पद पर श्री गोरक्षपीठाधीश्वर या उनके द्वारा नामित व्यक्ति ही आसीन होगा।
मुख्य संरक्षक के अधिकार एवं कर्तव्य:-
मुख्य संरक्षक संस्था के सर्वोच्च अभिभावक होंगे। सामान्य परिस्थितियो में यद्यपि उन्हें साधारण सभा या कार्यकारिणी समिति की किसी कार्रवाई अथवा बैठक में भाग लेना आवश्यक नहीं होगा तथापि आवश्यक समझने पर वह सभा या कार्यकारिणी समिति की बैठक आहूत कर सकते हैं तथा उसे कोई निर्देश/सलाह दे सकते हैं, जिस पर सभी सम्बन्धित को विचार करना आवश्यक होगा। विशेष परिस्थितियों में जब संस्था में या उसकी किसी ईकाई में विवाद के कारण संकट पूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाए तब वह किसी भी स्तर पर हस्तक्षेप कर सकते हैं। उनका निर्देश/निर्णय सर्वसम्बन्धित के लिये बाध्यकारी होगा। वह संगठन के हित में प्रभारी/पदाधिकारी भी नियुक्त कर सकते हैं।
(ख)  आजीवन सदस्य:- संस्था के संस्थापक सदस्य जिनके नाम संस्था के स्मृति पत्र (मेमोरण्डम) पर अंकित है वे संस्था के आजीवन सदस्य होगें। इनके अतिरिक्त जिन्हें एतदर्थ निर्धारित रू0. 151/- शुल्क लेकर सदस्यता प्रदान की जायेगी, वे भी संस्था के आजीवन सदस्य होंगे। आजीवन सदस्य साधारण सभा के सदस्य होंगे तथा नामित अथवा निर्धारित होने पर ये कार्यकारिणी समिति के सदस्य या पदाधिकारी भी हो सकते हैं।
(ग)   सक्रिय सदस्य:- एतदर्थ निर्धारित रू0 11/- शुल्क जमा कर कोई भी व्यक्ति जिसे अध्यक्ष ने स्वीकार किया हो संस्था का सक्रिय सदस्य बन सकता है। सक्रिय सदस्य भी साधारण सभा का सदस्य होगा और नामित अथवा निर्वाचित होने पर संस्था की कार्यकारिणी का सदस्य अथवा पदाधिकारी हो सकता है।
(घ)   विशेष आमंत्रित सदस्य:- संस्था अपने मार्गदर्शन हेतु हिन्दुत्व के उत्कर्ष के लिये उल्लेखनीय कार्य करने वाले किसी विशिष्ट व्यक्ति से बिना कोई शुल्क लिये अपनी साधारण सभा या कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित या मानद रूप में सदस्य बना सकती है। ऐसे सदस्यों को साधारण सभा या कार्यकारिणी समिति में भाग लेने और अपना परामर्श देने का अधिकार होगा परन्तु किसी ऐसे विषय पर जिसमें मतदान की स्थिति उत्पन्न होगी, मतदान करने का अधिकार नहीं होगा।



सदस्यता की समाप्ति

अधोलिखित स्थितियों में सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो जायेगी।
(क)  सदस्य की मृत्यु होने पर।
(ख)  पागल अथवा दिवालिया होने पर।
(ग)   संस्था के उद्देश्य एवं हितों के विरूद्ध कार्य करने का आरोप सिद्ध होने पर।
(घ)   त्यागपत्र अथवा अविश्वास का प्रस्ताव स्वीकृत होने पर।
(ड़)   किसी न्यायालय द्वारा संज्ञेय अपराध में दंडित होने पर।


कार्यकारिणी समिति

संस्था के लिए एक कार्यकारिणी समिति का गठन साधारण सभा द्वारा अपने ही सदस्यों के बीच से किया जायेगा। कार्यकारिणी में कुल 25 सदस्य होंगे जिनमें -
संयोजक              1 (एक)
अध्यक्ष               1 (एक)
उपाध्यक्ष              5 (पाँच)
महामंत्री              1 (एक)
मंत्री                 4 (चार)
मीडिया प्रभारी         1 (एक)
कार्यकारिणी सदस्य     12 (बारह)
समिति का कार्यकाल:- संस्था की कार्यकारिणी का कार्यकाल निर्वाचन/मनोनयन की तिथि से 3 वर्ष का होगा।



कार्यकारिणी समिति के पदाधिकारियों
 के अधिकार एवं कर्तव्य

संयोजक:-   (क)  मुख्य संरक्षक के प्रतिनिधि के रूप में संगठन का     संयोजन/मार्गदर्शन करना तथा संगठन के सभी पदाधिकारियों को लेकर चलना।
अध्यक्ष:-   (क) साधारण सभा का अध्यक्ष ही कार्यकारिणी की अध्यक्षता समिति का अध्यक्ष होगा।
(ख)  कार्यकारिणी समिति की सभी बैठकों की अध्यक्षता समिति का अध्यक्ष ही करेगा।
(ग)   संयोजक की सलाह से साधारण सभा या संस्था की कार्यकारिणी बैठक बुलाना, स्थगित करना तथा विसर्जित करना।
(घ)   बैठक में अनुशासन और व्यवस्था कायम रखना।
(ड़)   समिति की ओर से सभी आवश्यक कागजात तैयार करना, पत्राचार करना तथा वाद की स्थिति में अपना पक्ष रखना।
(च)   संयोजक के साथ मिलकर आवश्यक होने पर संस्था के लिये पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों को नियुक्त कर कार्यकारिणी समिति से यथासमय अनुमोदन कराना।
(छ)  संयोजक की सलाह पर संस्था के पदाधिकारियों अथवा कर्मचारियों के विरूद्ध आवश्यक होने पर सभी प्रकार की अनुशासनात्मक कार्यवाही करना।
(ज)  बैठक की कार्यवाही की पुष्टि करना।
(झ)  संस्था की ओर से सभी बिल-वाउचर आदि को पारित करना।
(ञ)   संस्था के लिये चल-अचल सम्पत्ति को अर्जित करना एवं अर्जित सम्पत्ति का रख-रखाव करना।
(ट)   संयोजक के साथ मिलकर संस्था की सदस्यता के लिये इच्छुक लोगों की सदस्यता को स्वीकृत/अस्वीकृत कराना।
(ठ)   संस्था के सुचारू संचालन में कार्यकारिणी समिति के किसी भी प्रस्ताव को स्वीकृत या अस्वीकृत कराना।
(ड)   संयोजक की सलाह से संस्था के उपाध्यक्षों तथा मंत्रियों के बीच काम का बंटवारा करना।

उपाध्यक्ष:-  अध्यक्ष की अनुपस्थिति में वरिष्ठता क्रम के अनुसार बैठकों की अध्यक्षता करना तथा अध्यक्ष की अनुमति से उनके द्वारा अधिकृत विषयों पर निर्णय लेना, परन्तु ऐसे निर्णय के क्रियान्वयन हेतु अध्यक्ष की अनुमति आवश्यक होगी।
महामंत्री:-   (क) संयोजक/अध्यक्ष के निर्देशानुसार संस्था के लिये आवश्यक पत्र आदि तैयार करना।
(ख)  कार्यकारिणी की बैठकों से सम्बन्धित सूचना भेजना तथा मिनिट बुक आदि तैयार करना।
(ग)   समस्त पत्रावली को सुरक्षित रखना तथा अध्यक्ष द्वारा मांगे जाने पर उसे प्रस्तुत करना।
(घ)   संयोजक/अध्यक्ष के निर्देशों से सर्व सम्बन्धित को अवगत कराना। इस सम्बन्ध में समस्त अपेक्षित जानकारी यथासमय संयोजक/अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत करना।
(ड़)   बजट पर अन्य आवश्यक प्रस्तावों को यथोचित रूप में संयोजक/अध्यक्ष के समक्ष कार्रवाई हेतु प्रस्तुत करना।
(च)   समय-समय पर संस्था की प्रगति तथा स्थिति से संयोजक/अध्यक्ष को अवगत कराना।

मंत्री:- संस्था के चार मंत्रियों के लिए अलग-अलग कार्यों का आवंटन अध्यक्ष/महामंत्री की सहमति से किया जाएगा। आवंटित कार्य का संपादन, मंत्री का अधिकार एवं कर्तव्य होगा।

मीडिया प्रभारी:-   मीडिया प्रभारी का कर्तव्य एवं अधिकार होगा कि वह संस्था की गतिविधियों का प्रचार-प्रसार करने के लिए संचार माध्यमों एवं समाचार-पत्रों को सामाग्री उपलब्ध करायेंगे। साथ ही उसके प्रसारण एवं मुद्रण आदि की समुचित व्यवस्था करेंगे।

संस्था का कोष

संस्था का एक कोष होगा जिसका खाता किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में खोला जायेगा। इस कोष का संचालन संयोजक/अध्यक्ष अथवा महासचिव में से किन्हीं दो पदाधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से किया जायेगा। कोष का सम्पूर्ण विवरण महासचिव/कोषाध्यक्ष रखेंगे। उनके हस्ताक्षर के बिना निकाले या जमा किये गये धन के विषय में यथाशीघ्र संयोजक/अध्यक्ष को उससे अवगत कराना आवश्यक होगा। 

संस्था का ध्वज

संस्था के ध्वज का आकार तिकोना एवं रंग केशरिया होगा जिसे विभिन्न औपचारिक कायक्रमों में अवश्य फहराया जायेगा।

संस्था का आदर्श वाक्य

‘‘तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें ना रहें’’ संस्था का आर्दश वाक्य होगा। यह एक वृत्त के अन्दर भारत माता के चित्र पर वृताकार रूप में लिखित होगा तथा संस्था के अधिकृत पत्राचारों तथा प्रकाशनों में यथास्थान मुद्रित होगा।


















No comments:

Post a Comment