Monday, 24 April 2017

पाकिस्तान को सबक सिखाने का वक्त आ गया हे

पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस यानी आएसआइ वक्त-बेवक्त अपनी बदमाशियों का नमूना पेश करती रहती है। साल भर खिंचा कुलभूषण जाधव प्रकरण भी इसमें शामिल है। भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी जाधव को उसने ईरान से अपहृत कराया जिन्हें पाकिस्तान की गुप्त सैन्य अदालत ने भारतीय ‘जासूस’ करार देते हुए मौत की सजा सुनाई है। यह मामला असल में बुरी तरह से नाकाम देश के धूर्ततापूर्ण व्यवहार का ही परिचायक है जहां कानून का मखौल उड़ाना ही मानो प्रतिमान बन गया है। भले ही पाकिस्तान ने जाधव पर जासूसी का आरोप लगाया, फिर भी वह आइएसआइ द्वारा ईरान से उनके अपहरण या सैन्य अदालत में गुपचुप तरीके से हुई सुनवाई को जायज नहीं ठहरा सकता। वर्ष 2014 में पेशावर स्कूल हमले के बाद पाकिस्तान ने ऐसा सैन्य अदालत तंत्र स्थापित किया जिस पर वहां के संविधान का भी बस नहीं चलता। इसमें न्यायिक कार्यवाही पूरी तरह गुप्त रखी जाती है। आरोपी को अपने पक्ष में वकील रखने की भी इजाजत नहीं दी जाती। सबसे बड़ी विडंबना तो यही है कि इसमें बैठे ‘न्यायाधीश’ के पास जरूरी नहीं कि कानून की कोई डिग्री भी हो और वे बिना कोई कारण बताए भी सजा सुना सकते हैं। सैन्य अदालतों का यही दस्तूर है कि अगर किसी सुबूत की दरकार है भी तो उसकी निर्णायक शक्ति भी फौजी जनरलों के पास है जहां सेना और आइएसआइ किसी भी तरह की नागरिक निगरानी के दायरे से पूरी तरह आजाद हैं। वास्तव में जाधव को सजाए मौत पर पाकिस्तानी सरकार ने नहीं, बल्कि सेना प्रमुख ने ही मुहर लगाई जिसमें इस बात का भी ख्याल नहीं किया गया कि भारत के साथ पाकिस्तान के रिश्तों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। 

जाधव मामला भी पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत को जानबूझकर उकसाने वाली कवायदों की हालिया मिसाल है जहां पिछले साल की शुरुआत से वह लगातार भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ सिलसिलेवार हमलों को अंजाम देने में लगी हुई है। इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं रह गया है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कानून की हर एक कसौटी का बेशर्मी से उल्लंघन कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र में आत्मरक्षा के अधिकार को ‘अंतर्निहित अधिकार’ माना गया है। ऐसे में भारत को पूरा अधिकार है कि वह पाकिस्तान और आइएसआइ सहित उसके सभी आतंकी समूहों के खिलाफ सख्त कदम उठाकर अपने हितों की रक्षा करे। अफसोस की बात यही है कि भारत में एक के बाद एक सरकारें पाकिस्तान के खिलाफ उपयुक्त और निरंतरता वाली नीति बनाने में नाकाम ही रही हैं। इससे पाकिस्तानी सेना का हौसला बढ़ा कि वह भारत के खिलाफ अपनी कुटिल चालों को लगातार चलाए रख सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह जैसे अपने पूर्ववर्तियों की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भारत के जन्मजात दुश्मन पाकिस्तान के खिलाफ डांवाडोल नीति ही अख्तियार की। घरेलू स्तर पर जरूर मोदी पाकिस्तान को लेकर राजनीतिक बयानबाजी करते हैं, लेकिन जब बलूचिस्तान से लेकर सिंधु जल समझौते जैसे अलहदा मसलों की बात आती है तो वह अपने बयानों पर खरे नहीं उतर पाते। असल में तमाम ऐसे वाकये हैं जब वह अपने रुख से पलट गए। स्थाई सिंधु आयोग के निलंबन की ही मिसाल लें जिसे बाद में वापस ले लिया गया। मोदी सरकार सार्वजनिक तौर पर तो सख्त बयानी करती है, लेकिन नीतियों में नरम पड़ते हुए खासी एहतियात के साथ कदम उठाती है। राजीव चंद्रशेखर द्वारा राज्यसभा में पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने संबंधी निजी सदस्य विधेयक पेश करने का ही उदाहरण लें जिन्हें सरकार ने विधेयक वापस लेने के लिए मना लिया। पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाना तो दूर भारत ने उससे राजनयिक संबंधों को शिथिल बनाने में भी हिचक ही दिखाई है। 

इतिहास में 25 दिसंबर, 2015 का दिन जरूर दर्ज होगा जब मोदी किसी औपचारिक कार्यक्रम के बिना लाहौर पहुंच गए। अगर यह दौरा शांति स्थापित करने की मंशा से किया गया था तो उसके नतीजे प्रतिकूल ही साबित हुए। मोदी के शांति प्रस्ताव ने पाकिस्तानी सैन्य हलकों में मोदी की सख्तमिजाज नेता की उस छवि को तोड़ दिया जिसमें माना जाता था कि उन्हें छेड़ना खतरे से खाली नहीं। उनके दौरे से फौजी जनरलों को यही लगा कि मोदी की कथनी और करनी में बहुत अंतर है। उनके दौरे के कुछ दिन बाद ही आइएसआइ ने भारत के खिलाफ दो हमलों को अंजाम दिया। इनमें एक तो पठानकोट एयरबेस पर हुआ तो दूसरा अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर। इन पर भारत की प्रतिक्रिया और भी बदतर थी। पठानकोट हमले में पाकिस्तान से खुफिया जानकारी साझा की गई और आतंक के मसले पर सहयोग की झूठी आस में एयरबेस पर पाकिस्तानी जांच टीम को मुआयने की मंजूरी दी। इससे उत्साहित पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ और हमलों का तानाबाना बुनने लगी जहां भारतीय निष्क्रियता मोदी की सख्त छवि को तार-तार कर रही थी। फिर उड़ी में सैन्य शिविर पर हुए हमले में तो पानी सिर से ऊपर चला गया जो मोदी के लिए निर्णायक क्षण बन गया। पिछले एक-डेढ़ दशक में यह भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान पर हुआ सबसे घातक हमला था। 
जब मोदी को यह महसूस हुआ कि वह महज कागजी शेर बनकर न रह जाएं तो उन्होंने सीमा पार आतंकी शिविरों को नष्ट करने के लिए सीमित, लेकिन बहुप्रचारित सैन्य अभियान को मंजूरी दी। पाकिस्तान को लेकर उकताई भारतीय जनता का धैर्य जवाब देने लगा था और उसने सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कदम की भरपूर सराहना की जिससे उसके कलेजे को भी ठंडक मिली। हालांकि ऐसी इकलौती कार्रवाई से भी पाकिस्तानी सेना के होश ठिकाने नहीं आए और उसने तुरंत ही नगरोटा में सैन्य शिविर को निशाना बनाया, मगर उस हमले पर मोदी रहस्यमयी चुप्पी साधकर रह गए। 

आइएसआइ प्रायोजित आतंकी हमलों के बावजूद भारत आतंक के खिलाफ कोई ठोस रणनीति बनाने में नाकाम रहा। सीमा पर मादक पदार्थों की तस्करी के पीछे भी आइएसआइ का ही हाथ है जो सीमावर्ती पंजाब की युवा पीढ़ी में नारकोटिक्स का जहर घोल उसे खोखला बना रहा है। 

हकीकत में पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ जंग में मसरूफ है जबकि भारत अपने फौजियों की शहादत के बावजूद दुश्मन पर करारी चोट करने से हिचक रहा है। भारत तमाम विकल्प आजमा सकता है जिनमें परोक्ष रूप से जंग छेड़ने वालों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई भी शामिल है, मगर उससे पहले भारत को स्पष्ट सामरिक लक्ष्य और राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति दर्शानी होगी। अगर इस क्षेत्र में शांति स्थापित करनी है तो उसके लिए पाकिस्तानी सेना के रवैये को सुधारना बेहद जरूरी है। आखिरकार सीमा-शांति, सीमा-पार घुसपैठ और आतंकवाद के अलावा परमाणु स्थायित्व जैसे सभी अहम मसले दांव पर जो लगे हैं जिन पर इस्लामाबाद की चुनी हुई सरकार का कोई अख्तियार नहीं, क्योंकि ये पाकिस्तानी सेना के विशेषाधिकार के दायरे में आते हैं। 

जाधव मामला दर्शाता है कि जब तक भारत पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाने से परहेज करेगा तब तक वहां की सेना भारत के खिलाफ कुटिल चालें चलने से बाज नहीं आएगी। वास्तव में जाधव का दांव उसने भारत के साथ सौदेबाजी के लिए ही चला था। पाकिस्तान के साथ सीमा पार आतंकवाद से जंग अकेले भारत की है, जिसे बयानबाजी से नहीं, बल्कि कड़ी कार्रवाई से ही लड़ा जाए। 

[ लेखक सामरिक विश्लेषक एवं सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में फेलो हैं ] 
By Bhupendra Singh 

‘हक के साथ आओ अयोध्या विवाद सुलझाओ’ : स्वामी चिन्मयानंद

कुरान के मुताबिक यूं भी किसी के धर्मस्थल या विवाद वाली जगह पर कोई मस्जिद नहीं बन सकती। अगर बन गई तो वह नापाक होती। 

अयोध्या विवाद का असली दोषी मैं

पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि अयोध्या विवाद के असली दोषी वे स्वयं हैं। वे उस समय राम जन्मभूमि संघर्ष समिति के संयोजक थे। लालकृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी को इस मामले में फंसाना एक कौम का विरोधी घोषित करने की साजिश है। यह साजिश उन्हीं चंद लोगों की है जिनका जिक्र मैं कर चुका हूं। यही लोग धर्मनिरपेक्षता और आरक्षण के भी पैरोकार रहे हैं। इन दोनों से देश को सर्वाधिक क्षति हुई है। देश के बंटवारे की वजह भी धर्मनिरपेक्षता ही थी।
चिन्मयानंद गुरुवार को यहां मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की ओर से आयोजित गोष्ठी में बोल रहे थे। विषय था, ‘हक के साथ आओ अयोध्या विवाद सुलझाओ’। उनके मुताबिक, अयोध्या विवाद का सबसे अच्छा हल आपसी संवाद है न कि कोर्ट। कोर्ट में एक पक्ष हारेगा, दूसरा जीतेगा। इसी अनुसार उसकी प्रतिक्रिया भी होगी। चंद लोग जो फिरकापरस्ती की आग पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकते रहे हैं, वह संवाद से इस मसले के हल का संभव विरोध करेंगे। कौम के लोग इन तत्वों से सावधान रहें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य इंद्रीश कुमार ने कहा कि मस्जिद सिर्फ खुदा के नाम पर होती किसी व्यक्ति के नाम पर नहीं। फिर जिस बाबर के नाम पर बनी मस्जिद को लेकर विवाद है, उसका हिंदूुस्तान से ताल्लुक ही क्या था।  कुरान के मुताबिक यूं भी किसी के धर्मस्थल या विवाद वाली जगह पर कोई मस्जिद नहीं बन सकती। अगर बन भी गई तो वह नापाक होती। उसमें की गई दुआ खुदा को कुबूल नहीं होती। गोष्ठी को मौलाना हमीदुल हसन, मौलाना कोकब, गुरमीत सिंह और अन्य धर्मो के प्रतिनिधियों ने भी संबोधित किया। कहा कि अमन और भाईचारे के लिए आपसी सहमति से अयोध्या में रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण समय की मांग है। 
By Preeti jha 


Sunday, 16 April 2017

हे भारत उठो जागो

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‘‘यह देखो, भारतमाता धीरे-धीरे आँखें खोल रही है। 
वह कुछ देर सोयी थी। उठो, उसे जगाओ और पहले की अपेक्षा 
और भी गौरवमण्डित करके भक्तिभाव से उसे उसके 
 चिरन्तन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दो !’’                                                             

स्वदेश-मंत्र

हे भारत ! तुम मत भूलना कि तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श सीता, सावित्री, दमयन्ती है; मत भूलना कि तुम्हारे उपास्य सर्वत्यागी उमानाथ शंकर हैं; मत भूलना कि तुम्हारा विवाह, धन, और जीवन, इन्द्रिय-सुख के लिए—अपने व्यक्तिगत सुख के लिए—नहीं है, मत भूलना कि तुम जन्म से ही ‘माता’ के लिये बलिस्वरूप रखे गए हो; तुम मत भूलना कि तुम्हारा समा उस विराट महामाया की छाया मात्र है; मत भूलना कि नीच, अज्ञानी, दरिद्र, चमार और मेहतर तुम्हारे रक्त हैं, तुम्हारे भाई हैं। वे वीर ! साहस का आश्रय लो। गर्व से कहो कि मैं भारतवासी दरिदज्र भारतवासी, ब्राह्मण भारतवासी, चाण्डाल भारतवासी—सब मेरे भाई हैं, भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत की देव-देवियाँ मेरे ईश्वर हैं, भारत का समाज मेरे बचपन का झूला, जवानी की फुलवारी और मेरे बुढ़ापे की काशी है। भाई, बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण से मेरा कल्याण है; और रात-दिन कहते रहो—‘‘हे गौरीनाथ ! हे जगदम्बे; मुझे मनुष्यत्व दो, माँ ! मेरी दुर्बलता और कामरूपता दूर कर दो। माँ मुझे मनुष्य बना दो।’’



अमृत मंत्र

हे अमृत के अधिकारीगण !तुम तो ईश्वर की सन्तान हो, अमर आनन्द के भागीदार हो,पवित्र और पूर्ण आत्मा हो !तुम इस मर्त्यभूमि पर देवता हो !...उठो ! आओ ! ऐ सिंहो !इस मिथ्या भ्रम को झटककर दूर फेंक दो कि तुम भेड़ हो।तुम जरा-मरण-रहित नित्यानन्दमय आत्मा हो !

प्रकाशक : रामकृष्ण मठ




हिन्दू धर्म - स्वामी विवेकानन्द

हिन्दू धर्म के पक्ष में


देशबन्धुओं और सहधर्मियों !
मुझे यह जानकर परम संतोष है कि अपने धर्म के प्रति मेरी नगण्य सेवा आपको मान्य हुई है। मुझे यह सन्तोष इसलिए नहीं कि आपने मेरी व्यक्तिगत या दूर विदेश में मेरे किए हुए कार्य की प्रशंसा की है; वरन् यह सन्तोष मुझे इस कारण है कि हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान में आपका यह आनन्द यही स्पष्टतः सूचित करता है कि यद्यपि विदेशियों के आक्रमण की आँधी पर आँधी हतभाग्य भारतवर्ष के भक्ति-विनम्रमस्तक पर आघात करती चली गयी है, यद्यपि कई शताब्दियों के हमारे उपेक्षा-भाव और हमारे विजेताओं के तिरस्कार-भाव ने हमारे पुरातन आर्यावर्त के वैभव के प्रकाश को धुँधला कर दिया है, यद्यपि हिन्दू-धर्मरूप सौध के अनेक भव्य आधारस्तम्भ बहुतेरी सुन्दर कमानियाँ और बहुतेरे विचित्रतापूर्ण कोने-कोने कई सदियों तक जो देश के प्रलयमग्न करनेवाली बाढ़ें आयीं उनमें बहकर नष्ट हो गये, तथापि उसकी नींव पूर्णतः ज्यों की त्यों अटल है—मध्यवर्ती भारवाही सन्धिशिला सुदृढ़ है।
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 वह आध्यात्मिक भित्त—जिस पर हिन्दू जाति की ईश्वर-भक्ति और भूतदया का अपूर्व कीर्तिस्तम्भ स्थापित हुआ है वह किंचित् भी विचलित नहीं हुई, वरन् पूर्ववत् सुदृढ़ और सबल बनी हुई है। जिन ईश्वर का सन्देश, भारत तथा समस्त संसार को पहुँचाने का सम्मान मुझ जैसे उनके अत्यन्त तुच्छ और अयोग्य सेवक को मिला है, उन ईश्वर के प्रति आपका आदरभाव सचमुच अपूर्व है। यह आपकी जन्मजात धार्मिक प्रकृति है, जिसके कारण आप उन ईश्वर में और उसके सन्देश में धर्म के उस प्रबल तरंग की प्रथम गूँज का अनुभव कर रहे हैं जो निकट भविष्य में सारे भारत वर्ष पर अपनी सम्पूर्ण अबाध्य शक्ति के साथ अश्वयमेव आघात करेगी और अपनी अनन्त शक्तिसम्पन्न बाढ़ द्वारा हर प्रकार की दुर्बलता और सदोषिता को दूर बहा ले जायगी तथा हिन्दू जाति को उठाकर विधि-नियोजित उस उच्च आसन पर बिठा देगी जहाँ उसका पहुँचना निश्चित और अनिवार्य है; वहाँ वह भूतकाल की अपेक्षा और भी अधिक वैभवशाली बनेगा, शताब्दियों की नीरव कष्ट-सहिष्णुता का उपयुक्त पुरस्कार पाएगा और संसार की समस्त जातियों के मध्य अपने उद्देश्य-आध्यात्मिक प्रकृतिसम्पन्न मानवजाति के विकास—को पूर्ण करेगा।

उत्तर भारतवासी आप दक्षिणात्यों के विशेष कृतज्ञ हैं, क्योंकि आज भारतवासी में जो भावमयी स्फूर्तियाँ काम कर रही हैं उनमें से अधिकांश का इसी दक्षिण प्रदेश से उद्गम होना पाया जाता है। श्रेष्ठ भाष्यकारगण, युगप्रवर्तक आचार्यगण—शंकर, रामानुज और मध्व ने इसी दक्षिण भारत में जन्म लिया है। उन भगवान् शंकराचार्य के सामने संसार का प्रत्येक अद्वैतवादी ऋणी हो मस्तक झुकाता है; उन महात्मा रामानुजाचार्य के स्वर्गीय स्पर्श ने पददलित परिया1 लोगों को आलवार बना दिया; तथा उत्तर भारत के एकमात्र महापुरुष श्रीकृष्णचैतन्य, जिनका प्रभाव सारे भारतवर्ष में है, उनके अनुयायियों ने भी उन महाविभूति मध्वाचार्य का नेतृत्व स्वीकार किया। ये सभी दक्षिण में ही उत्पन्न हुए। इस वर्तमान युग में भी काशीपुर के वैभव में अग्रस्थान दक्षिणात्यों का ही है; आपके त्याग का ही अधिकार हिमालय के सुदूरवर्ती  शिखरों पर के पवित्र मन्दिरों पर है; और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि आपकी नसों में सन्त महापुरुषों के रक्त प्रवाहित होने का कारण तथा ऐसे आचार्यों के आशीर्वाद से धन्य जीवन आपको प्राप्त होने के कारण आप लोग ही भगवान श्रीरामकृण के सन्देश के मर्म को समझने में और उसे आदरपूर्वक ग्रहण करने में सर्वप्रथम अग्रसर हो रहे हैं।
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1.    दक्षिण भारत की चण्डालतुल्य नीच जातिविशेष को परिया कहते है। ‘आलवार’ शब्द का अर्थ है भक्त। विशिष्टाद्वैतवादी भक्तगण आलवार कहलाते हैं।

दक्षिण ही वैदिक- विद्या का भाण्डार रहा है, अतएव आप लोग मेरा यह कहना समझ लेंगे कि अज्ञ आक्रमणकारियों द्वारा पुनः प्रतिवाद होते रहने पर भी आज श्रुति1 ही हिन्दी धर्म के सभी विभिन्न सम्प्रदायों का मेरुदण्ड है।
 वेद के संहिता और ब्राह्मण2 भागों की महिमा मानवजाति के इतिहास की खोज लगाने वालों के लिए और शब्दशास्त्रियों के लिए चाहे जितनी अधिक हो, ‘‘अग्निमीळे’’ या ‘‘इषेत्वोर्जेत्वा’’ या ‘‘शन्नोदेवीरभीष्टये’’3 वेदमन्त्रों से विभिन्न वेदियों में यज्ञों और आहुतियों के संयोग से प्राप्य फलसमूह चाहे जितना वांछनीय हो—पर यह सब तो भोग मार्ग है, और किसी ने भी इसके द्वारा मोक्षप्राप्ति का दावा नहीं किया। इसी कारण ज्ञानकाण्ड, जो अरण्यक नामक श्रुति का श्रेष्ठ भाग है और जिसमें आध्यात्मिकता की, मोक्ष मार्ग की शिक्षा दी गयी है, उसी का प्रभुत्व भारत में आज तक सदा रहा है तथा भविष्य में भी रहेगा।

वर्तमान युग का हिन्दू युवक, सनातन-धर्म के अनेक पन्थों की भूलभुलैयों में भटका हुआ, उस एकमात्र हिन्दू धर्म को—जिसकी सार्वजनीन उपयोगिता तदुपदिष्ट ‘‘अणोरणीयान् महतो महीयान्’’ ईश्वर का यथार्थ प्रतिबिम्ब है उस धर्म के मर्म को, अपने भ्रमात्मक पूर्व-धारणाओं और दुराग्रहों के कारण, ग्रहण करने में असमर्थ होने से, जिन राष्ट्रों ने निरी भौतिकता के सिवाय कभी भी और कुछ नहीं जाना उनसे आध्यात्मिक सत्य का पुराना पैमाना उधार लेकर अँधेरे में टटोलता हुआ अपने पूर्वजों के धर्म को समझने का व्यर्थ का कष्ट उठाता हुआ अन्त में उस खोज को बिलकुल त्याग देता है और या तो वह निपट अज्ञेयवादी बन जाता
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1.    वेद। 2. चारों वेदों में से प्रत्येक के तीन भाग हैं। (क) संहिता—इसमें भिन्न-भिन्न देवताओं के प्रति रचे हुए स्तोत्रात्मक मन्त्र हैं। (ख) ब्राह्मण—यह वेद का वह वर्णनात्मक भाग है जिसमें यह दर्शाया है कि किस मन्त्र का किस यज्ञ में कैसे प्रयोग करना चाहिए। (ग) आरण्य—इस भाग में अरण्य में ऋषियों द्वारा प्रतिपादित तत्वों का वर्णन है। उपनिषद् इन्हीं आरण्यक के अन्तर्गत हैं।
3. ये तीन यथाक्रम ऋक्, यजुः तथा अथर्व वेद के प्रथम श्लोक के अंश हैं।
है या अपनी धार्मिक प्रकृति की प्रेरणाओं के कारण पशुजीवन बिताने में समर्थ नहीं हो पाता और पाश्चिमात्य भौतिकता के पौर्वात्य गन्धारी कषायों का असावधानी के साथ पान करके श्रुति की भविष्यवाणी ‘‘परियन्ति मूढा अन्धेनैव नीयमाना यथान्थाः’’1 को चरितार्थ करता है !
केवल वे ही बच पाते हैं जिनकी आध्यात्मिक प्रकृति सद्गुरु के संजीवनी-स्पर्श से जागृत हो चुकी है।
भगवान भाष्यकार2 की कैसी सुन्दर उक्ति है :—

दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्। मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः।।3

—‘‘ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं—मनुष्यजन्म, मोक्ष की इच्छा और महात्माओं की संगति।’’
चाहे वह वैश्विकों4 का सूक्ष्म विश्लेषण ही हो, जिसके परिणाम में परमाणु, द्वयुणु और त्रसरेणु के विचित्र सिद्धान्त निकाले गए हैं, चाहे वह नैयायिकों का उससे भी विचित्रर विश्लेषण हो, जो जाति, द्रव्य, गुण, समवाय5 की चर्चा में दीख पड़ता है, चाहे वह परिणामवाद के जन्मदाता सांख्यवादियों के गम्भीर विचारों की प्रगति ही हो, इन सब संशोधनों के परिणामस्वरूप ‘व्याससूत्र’ रूपी परिपक्व फल ही क्यों न हो—मानवी मन के इन विभिन्न विश्लेषणों और संश्लेषणों में वह ‘श्रुति’ ही एकमात्र आधार है।
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1.    कठोपनिषद् एक अन्धे के द्वारा पथ प्रदर्शित हुए दूसरे अन्धे की तरह मूढ़ इधर-उधर चक्कर लगाते फिरते हैं। 2. श्रीशंकराचार्य 3. विवेकचूणामणि, श्लोक 3।
4. द्वयणु—दो अणुओं की सम्मिलित अवस्था, त्रसरेणु—तीन अणुओं की सम्मिलित अवस्था। हिन्दुओं के छः मुख्य दर्शन है—(1) वैशषिक—कणाद प्रणीत, (2) न्याय-गौतम प्रणीत, (3) सांख्य—कपिल प्रणीत, (4) योग—पतंजलि प्रणीत, (5) पूर्व मीमांसा (वैदिक क्रियाकाण्ड की मींमांसा)—जैमिनी प्रणीत, (6) वेदान्त या व्याससूत्र—व्यास प्रणीत।
5. द्रव्य—न्याय के मतानुसार नौ द्रव्य है—पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, दिक्, काल, आत्मा और मन। जाति—वस्तुओं का साधारण धर्म जिसके आधार पर उनका श्रेणीविभाग किया जा सकता है, जैसे पशुत्व मनुष्यत्व। आदि गुण-न्यायमन में इन्हें गुण कहते हैं; रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिमित, पृथकत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, संस्कार, अदृष्ट और शब्द। समवाय—जैसे, घट और जिस मृत्तिका से उसका निर्माण होता है, दोनों के बीच समवाय सम्बन्ध है।

प्रकाशक : रामकृष्ण मठ

हिन्दु युवा वाहिनी क्या है ?

हियुवा का लोगो 

हिन्दु युवा वाहिनी वह संगठन है जो सदा हिन्दू मान बिन्दुओ (मठ , मन्दिर, गौ रक्षा, राष्ट्र रक्षा , धर्मं रक्षा)की रक्षार्थ हेतु सदैव प्रथम पंक्ति में पाया जाता है ।

मुख्य संरक्षक योगी श्री आदित्यनाथ जी 


हिन्दु युवा वाहिनी का उद्देश्य

सभी देशवासियों के ह्रदय में राष्ट्र के प्रति, हिंदुत्व के प्रति प्रेम  भावना जागृत करना ही हिन्दु युवा वाहिनी का उद्देश्य है ।

हिन्दु युवा वाहिनी का राजनीति से क्या सम्बन्ध

हिन्दु युवा वाहिनी एक अराजनीतिक संघठन है परंतु जो भी राजनितिक संघठन "राष्ट्र सर्वप्रथम" की भावना या जिसकी विचारधारा हिन्दु युवा वाहिनी से मिलती हो उसका समर्थन करता ।



हिन्दु युवा वाहिनी समुदाय विशेष (मुस्लिमो) की विरोधी नहीं

हिन्दु युवा वाहिनी किसी समुदाय विशेष का विरोध नही करता अपितु उस व्यक्ति या समुदाय का विरोध करता है जो सनातन धर्मं या राष्ट्र के प्रति द्रोह फेलाने का प्रयत्न करता हो।

हिन्दु युवा वाहिनी अपने कार्यकर्ताओ को शस्त्र वितरण करता है

हिन्दु युवा वाहिनी अपने कार्यकर्ताओ को शस्त्र वितरण आत्मरक्षा व् धर्म की रक्षा करने के उद्देश् से करता ।

हिन्दु युवा वाहिनी से किसी भी जाती या समुदाय के व्यक्ति जुड़ सकते है

हिन्दु युवा वाहिनी एक हिंदू युवाओ का संघठन है अतः यह जातिवाद का पूर्ण रूप से तिरस्कार करता है वह हिन्दु युवा वाहिनी से किसी भी समुदाय के व्यक्ति जुड़ सकते है बशर्त है की व् व्यक्ति हमारी विचारधारा का हो(यदापि मुस्लिमो समुदाय में ऐसा संभव नही है)

भारत पहले ही एक हिन्दू राष्ट्र है बस हिन्दु युवा वाहिनी का उद्देश्य लोगो में इसकी भावना पैदा करना व् संविधान के अनुसार हिन्दू राष्ट्र की घोषणा कराना है ।

वन्देमातरम


जय श्री राम

Saturday, 15 April 2017

कश्मीर में हमारा काम काफी मुश्किल है : सीआरपीएफ

कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों की स्थिति पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक जवान ने हिंदुस्तान टाइम्स के साथ अपनी परेशानियों को साझा किया है. उन्होंने बताया, ‘कश्मीर में हमारा काम काफी मुश्किल है. लोगों की भीड़ हम पर हमले कर रही है और हम इसे रोकने की कोशिश करते हैं. इसके बाद हम अंतिम विकल्प के रूप में पैलेट गन या बुलेट का इस्तेमाल करते हैं.’ जवान ने आगे बताया, ‘समाज का एक तबका पैलेट गन के इस्तेमाल को गलत ठहराता है लेकिन, लोग यह नहीं देखते कि पत्थर फेंकने वाले हमें किस तरह निशाना बनाते हैं.’
कश्मीर में सीआरपीएफ जवानों की व्यथा सहित आज के अखबारों की प्रमुख सुर्खियां
अखबार ने कई वीडियो के हवाले से कहा है कि नौ अप्रैल को श्रीनगर उपचुनाव के बाद अपने अपने कैम्पों की ओर लौट रहे जवानों के साथ स्थानीय युवाओं ने बदसलूकी की थी. हालांकि, वीडियो में जवान इस पर प्रतिक्रिया देने से बचते हुए दिखाई देते हैं. इस घटना पर सीआरपीएफ के एक जवान कहते हैं, ‘हमलोग गोली चला देते तो क्या होता आप समझ सकते हैं.’ सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो में स्थानीय लोगों की भीड़ ‘गो इंडिया गो बैक’ और ‘भारत तुम्हारा खेल खत्म हुआ’ जैसे नारे लगाते हुए दिखी थी.

बंगालियों का नववर्ष अकबर के बनवाए कैलेंडर के हिसाब से शुरू क्यों होता है ?

अकबर ने एक नए धर्म ‘दीन ए इलाही’ के साथ नए कैलेंडर ‘तारीख ए इलाही’ की स्थापना की थी, जो बंगाली समुदाय के अपनाने की वजह से आज भी चलन में है l

बंगालियों का नववर्ष अकबर के बनवाए कैलेंडर के हिसाब से शुरू क्यों होता है?

आज से बंगाली नववर्ष शुरु हुआ है. इसके पहले दिन को राज्य में पहला बैशाख कहा जाता है. वहीं पंजाब, तमिलनाडु और केरल में भी अपने-अपने समाज के हिसाब से नववर्ष शुरू हुआ है. लेकिन इन सब में बंगाल का नववर्ष अपने कैलेंडर की वजह से सबसे अलग स्थान रखता है. उस कैलेंडर की वजह से जिसे मुगल बादशाह अकबर ने बनवाया था.
मुगल सल्तनत के तीसरे वारिस अकबर का शासन तकरीबन चार दशकों तक रहा. उस दौर में यह दुनिया का सबसे ताकतवर साम्राज्य था. जब शासन सुव्यवस्थित हो गया तो अकबर की दिलचस्पी राजव्यवस्था से इतर समाज के बौद्धिक और दार्शनिक पक्षों में बढ़ने लगी. अमर्त्य सेन ने अपनी किताब द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन में बताया है कैसे दूसरे धर्मों में बढ़ती दिलचस्पी की वजह से अकबर उनसे जुड़े कैलेंडरों की तरफ भी आकर्षित हुआ. सेन लिखते हैं कि जब मुगल बादशाह ने एक मिलीजुली मान्यताओं वाला ‘दीन-ए-इलाही’ धर्म चलाया तो इसके साथ ही सन 1584 में एक कैलेंडर – तारीख-ए-इलाही भी शुरू करवाया.
कैलेंडर शुरू करवाने की और भी वजहें थीं
कई इतिहासकारों का मानना है कि अकबर ने कैलेंडर धार्मिक रुझान की वजह से शुरू नहीं करवाया था बल्कि इसके पीछे एक दूसरा मकसद था. कर वसूली को आसान बनाना. बंगाली समाज का अध्ययन करने वाले इतिहासकार कुणाल चक्रबर्ती और शुभ्रा चक्रबर्ती इसबारे में लिखते हैं कि मुगलकाल में कर वसूली एक बड़ी पेचीदगीभरी कवायद हुआ करती थी क्योंकि इसका आधार इस्लामी कैलेंडर था और जो चंद्रमा की गति पर आधारित था. इस कैलेंडर में तारीख और महीने मौसम पर आधारित नहीं होते.
इसलिए अकबर ने अपने शाही खगोलविदों से नया कैलेंडर तैयार करने को कहा जो इस्लामिक कैलेंडर, ऐतिहासिक बंगाली कैलेंडर (संस्कृत में लिखे ग्रंथ सूर्य सिद्धांत पर आधारित) और अकबर के बादशाह बनने की तारीख पर आधारित हो.
नए कैलेंडर में भी थोड़ी पेचीदगी थी. इस्लामिक कैलेंडर की तरह इसका भी पहला साल हिज्र की तारीख से शुरू होता था. हिज्र वह दिन है जब पैगंबर मुहम्मद मक्का से मदीना गए थे. इस तारीख और पहली साल से अकबर के बादशाह बनने (सन 1556) तक के साल में तारीख की गणना इस्लामिक कैलेंडर या चंद्रमा की गति के आधार पर ही गई है.
इस हिसाब से अकबर के राज्यारोहण का साल 963 था. चूंकि यह मुगल सल्तनत के वारिस का बादशाह बनने का साल था शायद इसलिए बाद की तारीखों की गणना अलग ढंग से हुई. अब यहां से परंपरागत बंगाली कैलेंडर के हिसाब से साल शुरू हुए. अब यह सौर कैलेंडर बन गया.
आज से 1424वां बंगाली वर्ष शुरू हुआ है
बंगाली वर्ष की गणना इस सूत्र के हिसाब से होती है :
इस्लामी कैलेंडर के हिसाब से अकबर के राज्यारोहण का वर्ष (963) + वर्तमान में ग्रेगोरियन कैलेंडर का साल (2017) – अकबर के राज्यारोहण का ग्रेगोरियन साल (1556).
इस सूत्र का हल है – 1424, यह बंगाली वर्ष है जो कल से शुरू हुआ है.
तारीख-ए-इलाही पूरी मुगलिया सल्तनत के लिए शुरू किया गया था लेकिन दीन-ए-इलाही की तरह अकबर की मृत्यु के बाद इसे भी बिसार दिया गया. हालांकि इसका अपवाद सिर्फ बंगाल में बचा है जहां तारीख-ए-इलाही कृषि के साथ-साथ हिंदू धर्म का भी अभिन्न हिस्सा है. यह बड़ी ही दिलचस्प बात है कि जब बंगाल में कुछ दिनों के बाद चर्चा होगी कि साल 1424 में दुर्गा पूजा कब पड़ रही है तो अनजाने में इस धार्मिक आयोजन का संबंध पैगंबर मोहम्मद के मक्का से मदीना जाने और अकबर के राज्यारोहण की तारीख से जुड़ जाएगा.
शोएब दानियाल (सत्याग्रह) 

Wednesday, 12 April 2017

ઉત્તર પ્રદેશમાં આદિત્યનાથની નિમણૂક હુકમનો એક્કો

જે દિવસે આદિત્યનાથ યોગીની શપથવિધિ થઈ તે દિવસે વ્હોટ્સએપ પર એક જોક પ્રસારિત થઈ. જેમાં દર્શાવાયેલું કે અડવાણી વડા પ્રધાનના ખભા પર હાથ મૂકી કહે છે કે, ”આજે તમે એ જ ભૂલ કરી કે જે મેં તમને ગુજરાતના મુખ્યમંત્રી બનાવી કરી હતી.” આ મશ્કરી ખૂબ જ ખરાબ કહેવાય. કોઈ શેતાની મગજની ઊપજ હતી. જે ભારતમાં સનાતન ધર્મી મજબૂત નેતૃત્વને ઉપર આવતા અને સફળ થતાં જોવા નથી ઈચ્છતા. જ્યારે કે હકીકત એ છે કે મોદીજીએ યોગીજીને ઉત્તર પ્રદેશની સત્તા સોંપી હુકમનું પાનું ફેંક્યું છે.



દેશના લોકો ત્યારે જ સુખી થઈ શકશે જ્યારે પ્રદેશની સરકારનું નેતૃત્વ ચરિત્રવાન અને યોગ્ય લોકો કરે, કારણ કે કેન્દ્રની સરકાર તો નીતિ બનાવવાનું અને સાધનસામગ્રી પૂરી પાડવાનું કામ કરે છે. યોજનાઓને અમલમાં તો પ્રદેશના અમલદારો મૂકે છે. જો તેઓ બેદરકારી દાખવે તો જનતા સુધી નીતિઓનો લાભ નથી પહોંચતો અને તેથી જનાક્રોશ થાય છે. આજના સમયમાં જ્યારે રાજકારણીઓને સફળ થવા માટે જાણે-અજાણે તમામ ભ્રષ્ટ રીત અજમાવવી પડે છે. આવામાં કોઈ નેતા પાસેથી એવી આશા રાખવી કે તે રાતોરાત રામરાજ્ય સ્થાપિત કરી આપશે તે એક કાલ્પનિક વાત છે. અગાઉ પણ જણાવ્યું હતું કે સાધન સંપન્ન તપસ્વી યોગીને ભ્રષ્ટ હોવાનું કોઈ કારણ નથી. તેથી તેઓ પ્રામાણિક રહી શકશે અને પ્રામાણિકતાને તંત્ર પર કડક રીતે અમલી બનાવી શકે છે. ઉત્તર પ્રદેશની જે સ્થિતિ છેલ્લા બે દાયકામાં જે છે તેમાં જનતાને શાસન પાસેથી અપેક્ષા મુજબ વ્યવહાર નથી મળ્યો. આવી પરિસ્થિતિમાં ઉ.પ્ર.ને યોગીજી જેવા મુખ્યમંત્રીની પ્રતીક્ષા હતી.
મોદીજીના આ પગલાંથી ઉ.પ્ર.ની હાલત સુધરવાની શક્યતાઓ પ્રબળ બની છે, પણ આ કામ ૫ વર્ષમાં પૂરું થવાનું નથી અને જ્યાં સુધી ઉ.પ્ર. ઉત્તમ પ્રદેશ નહીં બને ત્યાં સુધી યોગીજી પરીક્ષામાં પાસ નહીં થાય. આવામાં તેમને ઓછામાં ઓછા ૧૦ વર્ષ ઉત્તર પ્રદેશના ઝડપી વિકાસના માર્ગે લઈ જવો પડશે. ઉ.પ્ર.ની અમલદારશાહીની રીતભાત બદલવી પડશે. જેમાં જનતા પ્રત્યે સેવાનો ભાવ લાવવો પડશે. આ કામ એકાદ દિવસનું નથી. આજે યોગીજીની ઉંમર ફક્ત ૪૫ વર્ષની છે. ૧૦ વર્ષ બાદ તેઓ ફક્ત ૫૫ વર્ષના જ હશે. જ્યારે કે મોદીજી ૭૫ વર્ષના હશે. તે વખતે એવો સમય આવશે કે જ્યારે તેઓ રાષ્ટ્રીય ભૂમિકા માટે ઉપલબ્ધ બની શકશે. આમ મોદીજીએ સામાન્ય જનતાના મનમાં જે પ્રશ્ન હતો કે તેમના બાદ કોણ, તે પણ એક ઝાટકે દૂર થઈ જશે, કારણ કે આ પ્રશ્ન થવો સ્વાભાવિક હતો કે મોદી બાદ ભારતને સરકારનું નેતૃત્વ કોણ આપશે ? હવે આ સવાલનો જવાબ મળવાની શક્યતા પ્રબળ બની છે.
આમ પણ રાષ્ટ્રીય રાજનીતિમાં પદાર્પણ કરતાં પહેલાં મોદીજીએ ૧૫ વર્ષ ગુજરાતની સેવા કરી હતી. આજે તેમણે આંતરરાષ્ટ્રીય ઈમેજ ઊભી કરી છે. જ્યારે કે યોગીજી માટે સરકાર ચલાવવાનો આ પ્રથમ અનુભવ છે. હજુ તેમણે ઘણું જોવાનું અને સમજવાનું છે. તેથી આવા પ્રકારના પાયા વિનાના જોક માનસિક દેવાળિયાપણું જ જણાવે છે. મોદીને યોગીથી કે યોગીને મોદીથી કોઈ જોખમ નથી.
૧,૦૦૦ વર્ષનો મધ્ય યુગ, ૨૦૦ વર્ષનો વસાહત યુગ અને ૭૦ વર્ષ આઝાદી બાદ ભારતની બહુસંખ્યક હિંદુ વસતીએ અપમાનના ઘૂંટડા પીને પસાર કયાંર્ છે. આપણી આસ્થાના ત્રણ કેન્દ્ર મથુરા, કાશી અને અયોધ્યા આજે પણ આપણે તે અપમાનની સતત યાદ અપાવે છે. આપણા ગૌવંશ આધારિત ખેતી, આયુર્વેદ અને ગુરુકુળ શિક્ષણ પ્રણાલીની ઉપેક્ષા કરી જે કંઈ આપણા પર લાદવામાં આવ્યું તેને ભારતીય સમાજ શારીરિક, માનસિક અને નૈતિકરૂપે દુર્બળ બન્યો છે. ભૌતિકવાદની આ ઝાક-ઝમાળ વચ્ચે હવે તો આપણે યુદ્ધ, અનાજ, જળ, દૂધ અને વાયુ સુધી છીનવી લેવાયા છે. આપણા ઉદ્યમી અને કર્મઠ યુવાઓને ખોખલી ડિગ્રીના પ્રમાણપત્ર પકડાવી, બેરોજગારોની લાંબી લાઈનોમાં ઊભા કરી દીધા છે. ન તો તેઓ ગામડાંને લાયક રહ્યા અને ન શહેરને. આ તમામ સમસ્યાઓનો ઉપાય આપણી શુદ્ધ સનાતન સંસ્કૃતિમાં હતો, આજે પણ છે. જરૂર છે તેને આત્મવિશ્વાસની સાથે અપનાવવાની.
જ્યાં સુધી પ્રદેશો અને રાષ્ટ્રના સ્તરે ભારતના સનાતન ધર્મમાં આસ્થા રાખનાર રાષ્ટ્રવાદી નેતૃત્વ હોદ્દો ધારણ નહીં કરે ત્યાં સુધી ભારત પોતાનો ગુમાવેલો વૈભવ ફરી પાછો મેળવી નહીં શકે અને એ કહેવામાં સંકોચ નથી કે જો કર્ણાટકના ખાણ માફિયા રેડ્ડીબંધુઓ કે મધ્ય પ્રદેશના વ્યાપમં કૌભાંડ જેવા કાંડ થશે તો પછી સત્તામાં કોઈ પણ હોય, કોઈ અંતર નહીં પડે. તેથી જ્યાં સુધી એક બાજુ દરેક રાષ્ટ્રપ્રેમી ભારતને એક સબળ રાષ્ટ્રના સ્વરૂપે જોવા ઈચ્છે છે. આ વાતની જવાબદારી સત્તા પક્ષની છે કે પરીક્ષાની પળોમાં સત્યને અણદેખ્યું કરવાની જરૂર નથી. ભૂલોને પણ જાહેર કરવી જ જોઈએ.
યાદ અપાવું કે આતંકવાદ અને ભ્રષ્ટાચાર વિરુદ્ધ ૧૯૯૩માં મેં હવાલાકાંડ શોધી જીવ હથેળીમાં રાખી પૂરી રાજકીય વ્યવસ્તાથી વર્ષો એકલે હાથે સંઘર્ષ કર્યો હતો ત્યારે રાષ્ટ્રપ્રેમીઓએ મૌન ધારણ કરેલું, કારણ કે અડવાણીજી જેવાના નામો હતા. કોંગ્રેસ વગેરેના ૫૩ નેતા હતા. કેટલાક કોમવાદનું સ્વરૂપ પણ આપ્યું, પણ મેં મારી લડત ન છોડી.
વિચારસેતુ : – વિનીત નારાયણ (સંદેશ)

योगी सरकार की दूसरी कैबिनेट बैठक

उत्तर प्रदेश  गन्ना और आलू किसानों के लिए राहत, धार्मिक स्थलों में 24 घंटे बिजली देने के आदेश

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी दूसरी कैबिनेट बैठक में और भी कई अहम फैसले लिए हैं

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मंगलवार को अपनी दूसरी कैबिनेट बैठक में भी कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं. राज्य की नई सरकार ने धार्मिक स्थलों को 24 घंटे बिजली देने की बात कही है. साथ ही बुंदेलखंड इलाके के लिए 20 और गांवों में 18 घंटे बिजली की सुविधा उपलब्ध कराने के आदेश दिए गए हैं. इसके अलावा बकाया बिजली के बिल पर सरचार्ज माफ करने का ऐलान किया गया है. राज्य में सभी लोगों तक 2019 तक बिजली तक पहुंचाने के लिए 14 अप्रैल को केंद्र सरकार के साथ एक समझौते का भी फैसला लिया गया है.
राज्य सरकार ने गन्ना के साथ आलू किसानों के लिए राहत का ऐलान किया है. गन्ना किसानों को मौजूदा भुगतान 14 दिनों में और पुराना भुगतान चार महीने में किए जाने की बात कही गई है. इसके अलावा सरकारी एजेंसियों के जरिए एक लाख मीट्रिक टन आलू खरीदने का भी फैसला लिया गया है. पहली कैबिनेट बैठक छोटे और सीमांत किसानों के एक लाख रु तक के कर्ज माफ करने का ऐलान किया गया था.
योगी सरकार ने भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की बात भी कही है. इसके लिए कैबिनेट ने राज्य विकास प्राधिकरणों का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) से ऑडिट का रास्ता भी साफ कर दिया है. सरकार का मानना है कि इससे प्राधिकरणों के कामकाज में पारदर्शिता आएगी. इसके अलावा 15 जून, 2017 तक राज्य की सभी सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के फैसले पर भी मुहर लगाई गई. इसके लिए 4000 करोड़ रुपये आवंटित किए जाएंगे.

Tuesday, 11 April 2017

ईशाई चर्चो में प्रार्थना के नाम पर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है :हिंदु युवा वाहिनी

पूर्वी उत्तर प्रदेश के महराजगंज ज़िले में स्थित चर्च के पादरी ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि यहां सिर्फ प्रार्थना चल रही थी और शामिल होने वाले लोग अपनी मर्ज़ी से आए थे.

सिसवा बाज़ार के कोठीभार थानाक्षेत्र में स्थित डढ़ौली गांव के चर्च में यह कार्यक्रम चल रहा था. चर्च ने संगठन के आरोपों को निराधार बताया है. संगठन की शिकायत के बाद मौके पर पहुंची कोठीभार पुलिस ने कार्यक्रम रुकवा दिया. उस वक़्त चर्च में आठ से दस अमेरिकी पर्यटकों के साथ लगभग 150 स्थानीय लोग मौजूद थे.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदु युवा वाहिनी के स्थानीय नेता कृष्णा नंदन ने अपने समर्थकों के साथ शुक्रवार दोपहर में धतौली स्थित चर्च को घेर लिया था. संगठन ने पादरी योहाना एडम पर हिंदू समुदाय के लोगों का ईसाई धर्म में परिवर्तन करवाने का भी आरोप लगाया.

पादरी योहाना एडम ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा, ‘सभी आरोप आधारहीन हैं, इसमें कोई सत्यता नहीं. यहां सिर्फ प्रार्थना चल रही थी और शामिल होने वाले लोग अपनी मर्ज़ी से आए थे.’

कोठीभार थानाध्यक्ष आनंद कुमार गुप्ता ने बताया, ‘इस कार्यक्रम की किसी भी तरह से इजाज़त नहीं ली गई थी. शिकायत मिलने पर हमने कार्यक्रम को रुकवा दिया है और मामले की जांच कर रहे हैं.’

संगठन के नेता कृष्णा नंदन ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘अमेरिकी नागरिकों का मौजूद होना इस बात को सच साबित करता है कि अनपढ़ लोगों को पैसे का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है.’

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस अधीक्षक प्रमोद कुमार ने बताया कि हिंदू युवा वाहिनी की ओर से मिली शिकायत पत्र में कहा गया है कि ज़िले के घुघली, सिसवा बाज़ार, परतावल, सोनबरसा, पनियरा, निचलौल और शेषपुर आदि कस्बों में प्रार्थना के नाम पर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है.

थानाध्यक्ष आनंद कुमार गुप्ता ने बताया कि सभी अमेरिकी नागरिकों से पूछताछ की गई. उनके पासपोर्ट और वीसा की जांच की गई. इसके लिए दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से संपर्क किया गया था. जांच में दस्तावेज़ सही पाए गए जिसके बाद उन्हें छोड़ दिया गया. जांच में धर्मांतरण की पुष्टि नहीं हुई है और शिकायत निराधार पाए गए हैं.

समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में एसपी पी. कुमार ने भी कहा कि चर्च में सिर्फ प्रार्थना हो रही थी धर्मांतरण नहीं. कार्यक्रम के बारे में जानकारी मिली थी कि कुछ विदेशी नागरिक वहां आ रहे हैं.

मैं गाय को पूजता हूं लेकिन उसे बचाने के लिए मुसलमान को नहीं मारूंगा: गांधी

गांधी का कहना था, जब हमने ज़िद की तो गोकशी बढ़ी. गोरक्षा प्रचारिणी सभा का होना हमारे लिए बदनामी की बात है. जब गाय की रक्षा करना हम भूल गए तब ऐसी सभा की जरूरत पड़ी.



मैं ख़ुद गाय को पूजता हूं यानी मान देता हूं. गाय हिंदुस्तान की रक्षा करने वाली है, क्योंकि उसकी संतान पर हिंदुस्तान का, जो खेती प्रधान देश है, आधार है. गाय कई तरह से उपयोगी जानवर है. वह उपयोगी जानवर है इसे मुसलमान भाई भी कबूल करेंगे. लेकिन जैसे मैं गाय को पूजता हूं, वैसे मैं मनुष्य को भी पूजता हूं. जैसे गाय उपयोगी है वैसे ही मनुष्य भी फिर चाहे वह मुसलमान हो या हिंदू, उपयोगी है.
तब क्या गाय को बचाने के लिए मैं मुसलमान से लड़ूंगा? क्या मैं उसे मारूंगा? ऐसा करने से मैं मुसलमान और गाय दोनों का दुश्मन हो जाऊंगा. इसलिए मैं कहूंगा कि गाय की रक्षा करने का एक ही उपाय है कि मुझे अपने मुसलमान भाई के सामने हाथ जोड़ने चाहिए और उसे देश की ख़ातिर गाय को बचाने के लिए समझाना चाहिए.
अगर वह न समझे तो मुझे गाय को मरने देना चाहिए, क्योंकि वह मेरे बस की बात नहीं है. अगर मुझे गाय पर अत्यंत दया आती है तो अपनी जान दे देनी चाहिए, लेकिन मुसलमान की जान नहीं लेनी चाहिए. यही धार्मिक क़ानून है, ऐसा मैं तो मानता हूं.
हां और नहीं के बीच हमेशा बैर रहता है. अगर मैं वाद-विवाद करूंगा तो मुसलमान भी वाद विवाद करेगा. अगर मैं टेढ़ा बनूंगा, तो वह भी टेढ़ा बनेगा. अगर मैं बालिस्त भर नमूंगा तो वह हाथ भर नमेगा और अगर वह नहीं भी नमे तो मेरा नमना ग़लत नहीं कहलाएगा.
जब हमने ज़िद की तो गोकशी बढ़ी. मेरी राय है कि गोरक्षा प्रचारिणी सभा गोवध प्रचारिणी सभा मानी जानी चाहिए. ऐसी सभा का होना हमारे लिए बदनामी की बात है. जब गाय की रक्षा करना हम भूल गए तब ऐसी सभा की जरूरत पड़ी होगी.
मेरा भाई गाय को मारने दौड़े तो उसके साथ मैं कैसा बरताव करूंगा? उसे मारूंगा या उसके पैरों में पड़ूंगा? अगर आप कहें कि मुझे उसके पांव पड़ना चाहिए तो मुसलमान भाई के पांव भी पड़ना चाहिए. गाय को दुख देकर हिंदू गाय का वध करता है; इससे गाय को कौन छुड़ाता है? जो हिंदू गाय की औलाद को पैना भोंकता है; उस हिंदू को कौन समझाता है? इससे हमारे एक राष्ट्र होने में कोई रुकावट नहीं आई है.
अंत में, हिंदू अहिंसक और मुसलमान हिंसक है, यह बात अगर सही हो तो अहिंसा का धर्म क्या है? अहिंसक को आदमी की हिंसा करनी चाहिए, ऐसा कहीं लिखा नहीं है. अहिंसक के लिए तो राह सीधी है. उसे एक को बचाने के लिए दूसरे की हिंसा करनी ही नहीं चाहिए. उसे तो मात्र चरणवंदना करनी चाहिए. सिर्फ समझाने का काम करना चाहिए. इसी में उसका पुरुषार्थ है.
लेकिन क्या तमाम हिंदू अहिंसक हैं? सवाल की जड़ में जाकर विचार करने पर मालूम होता है कि कोई भी अहिंसक नहीं है, क्योंकि जीव को तो हम मारते ही हैं. लेकिन इस हिंसा से हम छूटना चाहते हैं, इसलिए अहिंसक (कहलाते) हैं. साधारण विचार करने से मालूम होता है कि बहुत से हिंदू मांस खाने वाले हैं, इसलिए वे अहिंसक नहीं माने जा सकते. खींच-तानकर दूसरा अर्थ करना हो तो मुझे कुछ नहीं कहना है. जब ऐसी हालत है तब मुसलमान हिंसक और अहिंसक हैं, इसलिए दोनों की नहीं बनेगी, यह सोचना बिल्कुल ग़लत है.
ऐसे विचार स्वार्थी धर्मशिक्षकों, शास्त्रियों और मुल्लाओं ने हमें दिए हैं. और इसमें जो कमी रह गई थी, उसे अंग्रेज़ों ने पूरा किया है.
मैं फिर से इस बात पर जोर देता हूं कि… कानून बनाकर गोवध बंद करने से गोरक्षा नहीं हो जाती. वह तो गोरक्षा के काम का छोटे से छोटा भाग है… लोग ऐसा मानते दीखते हैं कि किसी भी बुराई के विरुद्ध कोई कानून बना कि तुरंत वह किसी झंझट के बिना मिट जाएगी. ऐसी भयंकर आत्म-वंचना और कोई नहीं हो सकती.
किसी दुष्ट बुद्धि वाले अज्ञानी या छोटे से समाज के खिलाफ कानून बनाया जाता है और उसका असर भी होता है. लेकिन जिस कानून के विरुद्ध समझदार और संगठित लोकमत हो, या धर्म के बहाने छोटे से छोटे मंडल का भी विरोध हो, वह कानून सफल नहीं हो सकता.
गोरक्षा के प्रश्न का जैसे-जैसे मैं अधिक अध्ययन करता जाता हूं, वैसे-वैसे मेरा यह मत दृढ़ होता जाता है कि गांवों और उनकी जनता की रक्षा तभी हो सकती है, जब कि मेरी उपर बताई हुई दिशा में निरंतर प्रयत्न किया जाए.
(हिंद स्वराज, प्रकाशक-नवजीवन ट्रस्ट)

योगी की ताजपोशी ‘हिंदुत्ववादी विकास’ का सबसे बड़ा कदम

एक स्पष्ट और निर्णायक हिंदुत्व को आर्थिक विकास की व्यापक परियोजना का अभिन्न अंग बना दिया गया है. आने वाले समय में इसके कई और आयाम हमारे सामने धीरे-धीरे प्रकट होंगे.
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत के ठीक बाद राज्य के प्रमुख हिंदी अखबारों में आरएसएस विचारक एमजी वैद्य का यह बयान प्रमुखता से छापा गया कि यह जनादेश राम मंदिर के निर्माण के लिए दिया गया है.
वैद्य ने जोर देकर कहा राम मंदिर का निर्माण भाजपा के घोषणा-पत्र का हिस्सा है. वैद्य के बयान के कुछ दिनों के भीतर ही भाजपा नेतृत्व ने 44 वर्षीय योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौंका दिया.
आदित्यनाथ 1998 से गोरखपुर से सांसद रहे हैं. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि योगी आदित्यनाथ भाजपा के कट्टर हिंदुत्व का चेहरा हैं, जिन्होंने यूपी के सारे मस्जिदों में हिंदू मूर्तियां रखने की इच्छा जतायी थी.
उन्होंने खुलेआम भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की भी बात की है. वे बार-बार यह भी धमकी भरे लहजे में कहते रहे हैं, ‘जब कोई कारसेवकों को बाबरी मस्जिद का विध्वंस करने से नहीं रोक सका, तो कोई उन्हें उस जगह पर मंदिर का निर्माण करने से कैसे रोक सकता है?’
आदित्यनाथ की ताजपोशी का स्वागत करने में आरएसएस की शाखा विश्व हिंदू परिषद (विहिप) सबसे आगे थी. राम मंदिर के निर्माण का आंदोलन विहिप ने चलाया था.
विहिप के लड़ाकू नेता और प्रचारक प्रवीण तोगड़िया ने कहा, ‘हमें अब पक्का विश्वास है कि यूपी में नये नेतृत्व में भगवान राम को अयोध्या में जल्दी ही एक भव्य मंदिर मिल जाएगा.’
तोगड़िया ने राम मंदिर आंदोलन में आदित्यनाथ के गुरु और उनके पालक पिता महंत अवैद्यनाथ के योगदान को भी याद किया. अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे और काफी जोशीले तरीके से 1980 के दशक से राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व किया.
ये वो वक्त था जब लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह से राम-जन्मभूमि की मुहिम में कूद पड़ी. आडवाणी ने बाद में इसे आजादी के बाद देश का सबसे बड़ा राजनीतिक आंदोलन करार दिया.
2003 में राम मंदिर निर्माण की विहिप की समिति के अध्यक्ष के तौर पर अवैद्यनाथ ने राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की.
उनकी मांग थी कि एक कानून बना कर ढहाई गई बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया जाए. यह सही है कि उनकी मांग को तब के एनडीए नेतृत्व ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी, क्योंकि उनके पास संसद में तब बहुमत नहीं था. साथ ही यह भी तथ्य है कि एनडीए के घोषणापत्र. ने राम मंदिर जैसे विवादित मुद्दों को दूर रखा गया था.
यह याद रखना मुनासिब होगा कि आज भाजपा लोकसभा और यूपी विधानसभा- दोनों जगहों पर पूर्ण बहुमत में है. राज्य सभा में भाजपा को बहुमत मिलने में बस थोड़ी देर है. इसलिए तकनीकी तौर पर देखा जाए, तो मंदिर निर्माण के लिए विशेष कानून बनाने के महंत अवैद्यनाथ के प्रस्ताव को पुनर्जीवित करने के लिए भाजपा को अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने की भी जरूरत नहीं रह गयी है.
यूपी की विधानसभा में भारी बहुमत इस लक्ष्य में भाजपा की और भी मदद करेगा. आदित्यनाथ की आश्चर्यचकित करनेवाली पदोन्नति को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
एक तरह से यह 70 वर्षों के एक अटूट सिलसिले की भी याद दिला रहा है. इन वर्षों में नाथ संप्रदाय से संबंध रखनेवाले गोरखनाथ मठ के प्रमुखों ने लगातार और गैरकानूनी रूप से बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर बनाने की मुहिम को अपना समर्थन दिया है.
यहां यह याद किया जा सकता है कि जिस तरह से आदित्यनाथ ने अवैद्यनाथ की विरासत को संभाला, ठीक उसी तरह से अवैद्यनाथ ने मठ की बागडोर अपने गुरु महंत दिग्विजयनाथ से संभाली थी.
दिग्विजयनाथ ने 1949 में बाबरी मस्जिद के भीतर गैर कानूनी रूप से राम लला की मूर्ति रखने की मुहिम का नेतृत्व किया था. बाद में 1967 में दिग्विजय नाथ लोकसभा के लिए भी चुने गये. उस वक्त वे हिंदू महासभा के राष्ट्रीय महासचिव थे. उन्होंने भी विहिप के साथ नजदीकी संपर्क में काम किया.
गोरखनाथ मठ की राम मंदिर आंदोलन में भूमिका के इस लंबे इतिहास को देखते हुए यूपी में आदित्यनाथ की ताजपोशी तार्किक दिखती है. और यह सब एक ऐसे समय में हुआ जब संघ परिवार को यह लगने लगा है कि राजनीतिक हिंदुत्व समाज में इतनी गहराई तक रिस गया है कि अब बहुत समय से ठप्प पड़े राम मंदिर निर्माण के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जा सकता है.
राम मंदिर निर्माण उनके लिए देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना का प्रमुख सूचक है. पिछले कुछ समय से भाजपा नेतृत्व इसके लिए जमीन तैयार करता रहा है. यह कहकर कि ‘विकास और हिंदुत्व’ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और इनमें किसी किस्म का विरोध नहीं देखा जाना चाहिए.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 2014 से अब तक कई साक्षात्कारों में ये बात कही है. हाल ही में यूपी चुनाव प्रचार के संदर्भ में शाह ने संपादकों के एक छोटे से समूह को कहा कि ‘आप लोग प्रधानमंत्री द्वारा उठाये गये श्मशान घाट/ कब्रिस्तान को बराबरी देने के मुद्दे को सांप्रदायिक मुद्दा मान रहे हैं. लेकिन हम इसे विकास का मुद्दा मानते हैं.’
यह साफ तौर पर दिख रहा है कि एक स्पष्ट और निर्णायक हिंदुत्व को व्यापक आर्थिक विकास की परियोजना का अविभाज्य अंग बना दिया गया है. इसके कई दूसरे आयाम धीरे-धीरे सामने आएंगे. नोटबंदी के बाद मतदाताओं के व्यवहार ने भाजपा का मन और बढ़ाया है.
संघ नेतृत्व ने इसकी व्याख्या इस तरह की है कि लोगों ने नोटबंदी के पक्ष में दिये गये एक बड़े नैतिक/राष्ट्रवादी वृत्तांत को स्वीकार कर लिया है और वे ‘व्यापक लक्ष्य’ के लिए आर्थिक और भौतिक कुर्बानियां देने के लिए तैयार हैं. भाजपा नेतृत्व इसी तर्ज पर प्रस्तावित राम मंदिर को हिंदुत्व आधारित राष्ट्रवादी विकास के साथ नत्थी कर सकता है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए फिर से भौतिक बलिदान देना पड़ सकता है.
बाबरी मस्जिद विध्वंस के पहले के और बाद के वर्षों में देखी गयी सामाजिक अशांति और हिंसा ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कई साल पीछे धकेल दिया. इसने भारतीय राजनीति में स्थायी दरारें पैदा कर दीं. मुंबई और कई वर्षों के बाद गुजरात में हुए दंगे इसका प्रमाण हैं.
लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा में भारी बहुमत से लैस भाजपा इस बार और ज्यादा साहसी प्रयोग करने के लिए तैयार है. आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना ‘हिंदुत्व आधारित विकास’ की दिशा में अब तक का सबसे साहसी कदम है.


श्री हनुमान चालीसा : हिन्दी अर्थ सहित



श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।  
अर्थ- श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके 
श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम 
और मोक्ष को देने वाला है।  
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।  
अर्थ- हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि 
मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्‍बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए 
और मेरे दुखों व दोषों का नाश कर दीजिए।  
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥1॥
अर्थ- श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। 
हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।  
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥
अर्थ- हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं हैं।  
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥
अर्थ- हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम वाले  हैं। आप खराब बुद्धि को दूर करते  हैं, 
और अच्छी बुद्धि वालों के साथी, सहायक  हैं। 
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥
अर्थ- आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
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हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5॥
अर्थ- आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥
अर्थ- शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है।
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥
अर्थ- आप प्रकान्ड विद्या निधान  हैं, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम के काज 
करने के लिए आतुर रहते  हैं।
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 प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥
अर्थ- आप श्री राम चरित सुनने में आनन्द रस लेते  हैं। श्री राम, सीता और लखन
 आपके हृदय में बसे रहते  हैं। 
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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा॥9॥
अर्थ- आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर 
रूप करके लंका को जलाया।
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भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥
अर्थ- आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के
 उद्‍देश्यों को सफल कराया।
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥
अर्थ- आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने 
हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया 
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥
अर्थ- श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो। 
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥13॥
अर्थ- श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया कि तुम्हारा यश हजार 
मुख से सराहनीय है।
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा,  नारद, सारद सहित अहीसा॥14॥
अर्थ-  श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, 
सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते हैं।
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जम कुबेर दिगपाल जहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥15॥
अर्थ- यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी 
आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥
अर्थ- आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥17॥
अर्थ- आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, 
इसको सब संसार जानता है। 
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥
अर्थ- जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुंचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन 
की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥
अर्थ- आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, 
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥
अर्थ- संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी 
कृपा से सहज हो जाते है। 
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे॥21॥
अर्थ- श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले हैं, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को 
प्रवेश नहीं मिलता अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥
अर्थ- जो भी आपकी शरण में आते हैं, उस सभी को आनन्द प्राप्त होता है, 
और जब आप रक्षक हैं, तो फिर किसी का डर नहीं रहता। 
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै॥23॥
अर्थ- आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से 
तीनों लोक कांप जाते हैं। 
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥
अर्थ- जहां महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहां
 भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते। 
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
अर्थ- वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते हैं और 
सब पीड़ा मिट जाती है।
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥
अर्थ- हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में,
 जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते हैं।  
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥
अर्थ- तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया। 
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥
अर्थ- जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करें तो उसे ऐसा
 फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥
अर्थ- चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला 
हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है। 
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥
अर्थ- हे श्री राम के दुलारे! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।  
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥31॥
अर्थ- आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे 
आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
अर्थ- आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास 
बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है। 
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥
अर्थ- आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते हैं और जन्म जन्मांतर के दुख दूर होते हैं।  
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥
अर्थ- अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते हैं और यदि फिर भी जन्म लेंगे 
तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलाएंगे। 
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
अर्थ- हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं, 
फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती। 
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥
अर्थ- हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट
 जाते हैं और सब पीड़ा मिट जाती हैं।  
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥
अर्थ- हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु जी 
के समान कृपा कीजिए।  
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जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥38॥
अर्थ- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से
 छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा।  
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥
अर्थ- भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी हैं, 
जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी। 
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥40॥
अर्थ- हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है। इसलिए आप उसके 
हृदय में निवास कीजिए। ****  
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सूरभूप॥
अर्थ- हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं।
 हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित
मेरे हृदय में निवास कीजिए।  
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