Wednesday, 28 October 2015

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का विश्लेषण :





हम DNA में आज बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का विश्लेषण करेंगे। आपने अक्सर पाकिस्तान के और हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों को ये बात कहते हुए सुना होगा कि भारत में मुसलमानों की हालत बहुत ख़राब है। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में हिंदुओं पर किस तरह के अत्याचार हो रहे हैं कोई बुद्धिजीवी इस सवाल पर बहस नहीं करता कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू आबादी तेज़ी से क्यों घट रही ह? और हमें अब तक कोई ऐसा बुद्धिजीवी, कोई ऐसा लेखक, कोई ऐसा साहित्यकार भी नहीं मिला जो पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदुओं की दशा के विरोध में अपना अवॉर्ड वापस करने की पहल करे। ये बहुत चुभने वाली बातें हैं लेकिन ये बातें देश के सामने रखना बहुत ज़रूरी है।


ज़ी न्यूज़ ने अत्याचार से पीड़ित अल्पसंख्यक हिंदू आबादी की आवाज़ उठाने की मुहिम शुरू की है। इस मुहिम में आज हम बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का संपूर्ण विश्लेषण करेंगे। सबसे पहले कुछ तथ्यों पर गौर कीजिए और इस पूरे मामले को समझिए-
-दुनिया में हिंदू आबादी वाले तीन सबसे बड़े देशों में बांग्लादेश का नाम शामिल है।
-इसमें पहले स्थान पर भारत है- जहां करीब 97 करोड़ हिंदू आबादी है।
-इसके बाद नेपाल का नंबर है- जहां करीब ढाई करोड़ हिंदू आबादी है।
इसके बाद बांग्लादेश का नंबर है- जहां करीब डेढ़ करोड़ हिंदू आबादी है।
-1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था, वहां हिंदू आबादी करीब 28 फीसदी थी।
-1971 में बांग्लादेश बनने के बाद 1981 में वहां जो पहली जनगणना हुई उसमें हिंदू आबादी सिर्फ़ 12 फीसदी रह गई।
-इसके बाद बांग्लादेश में वर्ष 2011 में जो जनगणना हुई है उसके मुताबिक हिंदू आबादी 9 फीसदी से भी कम रह गई है।
-1947 के बाद से बांग्लादेश के इलाके में, इस्लामीकरण के नाम पर करीब 30 लाख हिंदुओं की हत्याएं की गईं।
-1971 में बांग्लादेश में आज़ादी की लड़ाई के दौरान हुए नरसंहार में पाकिस्तानी सेना और कट्टरपंथियों ने चुन-चुन कर हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया था।
-इस दौरान हिंदू पुरुषों की हत्याएं, हिंदू महिलाओं का बलात्कार, हिंदू, बौद्ध मंदिरों और उपासना स्थलों पर तोड़फोड़ हुई और बौद्ध भिक्षुओं पर भयानक हमले हुए थे।
-इसकी वजह से बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग भारत में शरण लेने के लिए आने लगे और इसमें 60 फीसदी आबादी अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की थी।
-बांग्लादेश बनने के बाद जब वर्ष 1981 में बांग्लादेश की पहली जनगणना हुई तो उस जनगणना में करीब 5 करोड़ हिंदू आबादी गायब थी।
-वर्ष 2013 और 2014 में इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी के नेताओं को 1971 में हिंदू अल्पसंख्यकों के नरसंहार का दोषी पाया और सज़ा दी।
-वर्ष 2013 और वर्ष 2014 में बांग्लादेश के 20 ज़िलों में इस हिंदू विरोधी हिंसा में करीब 50 हिंदू मंदिर और 1500 हिंदुओं के घर तबाह कर दिए गए।
-इस हिंसा में हिंदू अल्पसंख्यकों की हत्याएं की गईं, महिलाओं से बलात्कार किया गया, अल्पसंख्यकों के घरों और संपत्तियों में आग लगा दी गई, उनके कारोबार ख़त्म कर दिए और हिंदू उपासना स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया।
अनुमान के मुताबिक बांग्लादेश में पिछले 10 वर्षों में 10 लाख से भी ज़्यादा हिंदू आबादी गायब हो गई, ये बहुत बड़ा मुद्दा है लेकिन इस पर कभी भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान नहीं गया। पाकिस्तान और बांग्लादेश में जिस तरह से अल्पसंख्यक हिंदू आबादी का सफाया किया गया, जिस तरह से उन पर अत्याचार किए गए, वैसे अत्याचार पिछले 60 -70 वर्षों में दुनिया में कहीं भी ना सुने गए होंगे और ना ही देखे गए होंगे लेकिन अफसोस की बात ये है कि इन अत्याचारों पर दुनिया का कोई भी बुद्धिजीवी बात नहीं करता। भारत के बुद्धिजीवी जो ख़ुद को सबसे बड़े मानवतावादी और धर्म निरपेक्षता यानी सेकुलरिज़्म के ठेकेदार बताते हैं उन्हें बांग्लादेश और पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू आबादी पर हो रहे अत्याचार कभी नहीं दिखे। अगर इस तरह से अत्याचार चलते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब बांग्लादेश और पाकिस्तान अल्पसंख्यक मुक्त या फिर कहें कि हिंदू मुक्त देश हो जाएंगे।
-वर्ष 1947 में पाकिस्तान में 15 फीसदी हिंदू आबादी थी जो वर्ष 1998 में घटकर सिर्फ़ 1.6 फीसदी रह गई।
-वर्ष 1947 में बांग्लादेश में 28 फीसदी हिंदू आबादी थी जो वर्ष 2011 में घटकर सिर्फ़ 8.5 फीसदी ही रह गई।
-बांग्लादेश के संविधान के मुताबिक देश में हर धर्म के मानने वालों के अधिकार सुनिश्चित करने को कहा गया है।
-1977 के बाद से बांग्लादेश कट्टरपंथियों के दबाव में पाकिस्तान की डुप्लिकेट कॉपी बनने के रास्ते पर चल पड़ा।
-वर्ष 1988 में बांग्लादेश ने ख़ुद को इस्लामिक देश घोषित कर दिया, जहां इस्लाम को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता मिली।
-बांग्लादेश में खालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात ए इस्लामी जैसी पार्टियों ने कट्टरपंथियों को बढ़ावा दिया।
-बांग्लादेश में इस तालिबानीकरण का सबसे आसान शिकार हिंदू अल्पसंख्यक बने, जिन्हें भयानक तौर पर प्रताड़ित किया गया।
-बांग्लादेश में वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट के तहत हिंदू अल्पसंख्यकों की संपत्तियों को हड़प लिया गया, जिससे वो देश छोड़ने पर मजबूर हुए।
-वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट के तहत किसी भी नागरिक को देश का दुश्मन घोषित करके उसकी संपत्ति पर कब्ज़ा किया जा सकता है।
-इस कानून के खिलाफ करीब 26 लाख एकड़ ज़मीन के लिए 10 लाख केस पेंडिंग पड़े हैं जिनकी संपत्ति लौटाने का सरकार ने वादा किया था, लेकिन अब तक एक इंच ज़मीन भी लौटाई नहीं गई।
-वर्ष 2009 में शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का भरोसा था, क्योंकि शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को उदारवादी माना जाता है।
-लेकिन वर्ष 2014 के चुनाव से पहले और बाद में भयानक तौर पर हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले किए गए, जिन्हें रोकने में सरकार नाकाम रही।
-अमेरिका के विदेश विभाग की इंटरनेशनल रीलिजियस फ्रीडम रिपोर्ट में वर्ष 2014 की कई घटनाओं का ज़िक्र किया गया है।
-इसमें मई 2014 में बांग्लादेश के लालमोनिर-हाट ज़िले में 12 वर्ष की हिंदू लड़की का अपहरण करके उसके साथ गैंगरेप किया गया, और उसका धर्म परिवर्तन कराया गया लेकिन पुलिस ने इस घटना की जांच करने से ही इनकार कर दिया।
-5 जनवरी 2014 को हुए संसदीय चुनाव के दौरान महिलाओं को वोट देने से रोकने के लिए दो हिंदू महिलाओं के साथ गैंगरेप किया गया।
-जनवरी 2014 में ही बांग्लादेश के दिनाजपुर ज़िले के एक गांव में कम से कम 150 हिंदू परिवारों के घर और दुकानों में आग लगा दी गई।
-मानवाधिकार संगठन ASK के मुताबिक वर्ष 2014 में हिंदू अल्पसंख्यकों के 247 पूजा स्थलों और मूर्तियों को तोड़ा गया।
-2014 में ही हिंदू अल्पसंख्यकों के 761 घरों में आग लगा दी गई और 193 दुकानों को तोड़ दिया गया।
इस दौरान हमारे बुद्धिजीविय़ों, लेखकों, साहित्यकारों और कलाकारों को कई बार बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी अवॉर्ड मिले होंगे लेकिन इनमें से किसी ने ये नहीं सोचा होगा कि वो ये अवॉर्ड वापस करें या अपना विरोध दर्ज कराएं क्योंकि इन देशों में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं। भारत सहित पूरी दुनिया के बुद्धिजीवी वर्ग के लिए आज गहरे आत्ममंथन का दिन है।
भारतीय सेना की 'क्वीन ऑफ द बैटलफील्ड'
आप लोगों ने भारतीय सेना, भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना के पराक्रम से जुड़ी ढेर सारी कहानियां पढ़ी होंगी लेकिन आपको शायद इस बात की जानकारी नहीं होगी कि भारतीय सेना के इन तीन अंगों में से एक अंग को  'क्वीन ऑफ द बैटलफील्ड' भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सेना के इस अंग में शामिल जवान जंग के मैदान में कुछ भी कर सकते हैं। शायद इसलिए इन्हें जंग के हालात में मोस्ट डेंजर्स फोर्स यानी सबसे ख़तरनाक फोर्स भी कहा जाता है।
-भारतीय थल सेना की इन्फैंट्री यानी पैदल सेना की जो अपनी 68वीं सालगिरह मना रही है।
-27 अक्टूबर को सेना इन्फैंट्री डे के तौर पर मनाती है क्योंकि इसी दिन पहली सिख रेजीमेंट के जवानों ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरकर पूरी कश्मीर घाटी को पाकिस्तान के हाथों में जाने से बचाया था।
वर्ष 1947 में आज ही के दिन एक आज़ाद देश के तौर पर भारत ने पहली बार पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया था और पूरी आक्रामकता के साथ भारत की पैदल सेना ने पाकिस्तान के हमले को नाकाम किया था। इसी लड़ाई में सिर्फ़ चार दिन बाद यानि 31 अक्टूबर को शहीद हुए मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत देश का पहला परमवीर चक्र प्रदान किया गया था। भारत की पैदल सेना से जुड़ी कुछ जानकारियां इस प्रकार हैं-
-भारत की पैदल सेना को दुनिया की सबसे मज़बूत और ताकतवर फोर्स के तौर पर जाना जाता है।
-इन्हें पैदल सेना इसलिए कहा जाता है क्योंकि जंग के हालात में ये पैदल ही दुश्मनों का सामना करते हैं।
-पैदल सेना मुख्य तौर पर दुश्मनों के साथ फेस टू फेस जंग लड़ती है।
-पैदल सेना जंग के दौरान सबसे मुश्किल हालात का सामना करती है और यही वजह है कि पैदल सेना के सबसे ज़्यादा जवान देश के लिए शहीद होते हैं।
-भारत की पैदल सेना में कुल 32 रेजीमेंट्स हैं जिनमें देश के हर हिस्से, हर धर्म और हर भाषा से ताल्लुक रखने वाले सैनिक देश की सुरक्षा में अपना बलिदान देने के लिए चौबीसों घंटे तैयार रहते हैं।
-पैदल सेना के हर रेजीमेंट की अपनी एक अलग पहचान होती है और सबका अपना एक इतिहास होता है।
-पैदल सेना ही कश्मीर में आतंकवादियों से मुक़ाबला करती है।
-26/11 मुंबई हमलों के दौरान ताज होटल में फंसे नागरिकों की जान बचाने का काम भी पैदल सेना ने किया था।
-आपको बता दें कि एनएसजी यानी नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के स्पेशल एक्शन ग्रूप में मुख्य तौर पर पैदल सेना के ही जवान होते हैं जो ताज होटल में हुई कार्रवाई का हिस्सा थे।
-प्राकृतिक आपदाओं में भी ज़रूरतमंद लोगों की मदद के लिए सबसे पहले पैदल सेना के जवान ही पहुंचते हैं।
-आने वाले दिनों में भारत की इन्फैंट्री का हर सैनिक एक अत्याधुनिक सिस्टम की तरह काम करेगा जिसे एफ-इन्सास यानी फ्यूचर इन्फैंट्री सोल्जर एज ए सिस्टम कहा जाता है।
-आने वाले समय में पैदल सेना के हर सैनिक के हेलमेट में कम्यूनिकेशन के हाईटेक गैजेट्स होंगे। साथ ही उनके हेलमेट्स में रात के वक्त देखने के लिए नाइट विजन डिवाइसेज भी लगे होंगे।
-हेलमेट में थर्मल सेंसर और वीडियो कैमरा के अलावा केमिकल और बॉयोलाजिकल हमले से जुड़ी जानकारी देने वाले सेंसर भी लगे होंगे।
-सैनिकों की यूनिफॉर्म ज़्यादा आरामदेह और हर मौसम का सामना करने लायक होगी। भविष्य की बुलेट-प्रूफ जैकेट आज के मुक़ाबले आधे वज़न की होगी। साथ ही ये वॉटरप्रूफ होने के साथ-साथ केमिकल और बॉयोलाजिकल हमलों से भी बचाने का काम करेगी।
-भारत की इन्फैंट्री के सैनिक नई तकनीक से लैस इन्फार्मेशन टेक्नॉलजी की मदद से हर वक्त अपने कमांड से जुड़े रहेंगे।
-यानी भारत की पैदल सेना का भविष्य काफी हाई-टेक है
ज़ी मीडिया ब्यूरो

Friday, 16 October 2015

हिंदू क्‍यूं नहीं खाते गोमांस



हिंदू धर्म के अनुसार गौमांस खाना पाप है, लेकिन हम में से बहुत से लोग इस बात का कारण नहीं जानते। यदि आप के अंदर भी जिज्ञासा है कि हम हिंदू गौमांस क्‍यूं नहीं खाते तो, पढे़ हामरा यह लेख।गाय को हिन्दू धर्म में माता के सामान माना गया है। हिन्दू धर्म को मानने वाला हर इंसान गाय को पूजता है और उसकी रक्षा करता है। धार्मिक आस्था से गाय के हर अंग में देवी-देवताओं का वास माना जाता है। यही कारण है कि दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है। हिन्दू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण ने गौप्रेम से गौभक्ति और अद्भुत लीलाओं से गौ धन की अहमियत संसार को बताया गया है। यही नहीं गाय का दूध बहुत ही पौष्टिक होता है। गाय का घी और गोमूत्र अनेक आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के भी काम आता है।कृष्ण का गौ प्रेम भगवान श्रीकृष्ण को गाय अत्यंत प्रिय है। इसका कारण यह है कि गाय सब कार्यों में उदार तथा समस्त गुणों की खान है। गाय का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी, इन्हे पंचगव्य कहते हैं। मान्यता है कि इनको खाने से शरीर के भीतर पाप नहीं ठहरता। कृष्ण ने बहुत सारी गायों को पाला था साथी ही उनकी रक्षा भी करते थे इसीलिए उनको गोपाल के नाम से भी जाना जाता है।ऋग्वेद में गाय को समस्त संसार की माता कहा गया है। शास्त्रों में गाय के दूध को अमृत तुल्य बताया गया है, जो सभी प्रकार के विकारों, व्याधियों को नष्ट करता है। यही मुख्या कारण है कि गाय को हिन्दू धर्म में पूजा जाता है।मातृस्वामिक चित्रण महाभारत के रचयता ऋषि वेद व्यास के अनुसार, गाय को पृथ्वी की माता बताया है। और इसकी रक्षा में ही समाज कि उन्नति है।गाय दूध देती गाय का दूध अमृत के समान है, गाय से प्राप्त दूध, घी, मक्खन से मानव शरीर पुष्ट बनता है। यदि बच्चे को बचपन में गाय का दूध पिलाया जाए तो बच्चे की बुद्धि कुशाग्र होती है।गाय हमे बहुत कुछ देती है मगर बदले में कुछ नहीं लेती गाय से हमे बहुत कुछ मिलता है जैसे घी, दूध, दही और मक्खन। लेकिन बदले वह हम से सिर्फ सब्‍जियों के बचे छिलके और घास की ही आशा करती है।शाकाहारी हिन्दू ग्रन्थ में मीट खाने की मनाही है। शाकाहारी बन कर हम कई सारे रोगों से मुक्‍त हो सकते हैं। ग्रंथ में जीव हत्या को पाप बताया गया है इसलिए बहुत से लोग शाकाहारी हैं।



Thursday, 8 October 2015

સદીઓ પહેલાં ભણાવ્યા'તા સાસુ-વહુના સંબંધોના પાઠ - ગંગાસતી અને પાનબાઈ

આ મહાન સ્ત્રીએ સદીઓ પહેલાં ભણાવ્યા'તા સાસુ-વહુના સંબંધોના પાઠ!

સદીઓ પહેલા ગુજરાતની આ બે સ્ત્રીઓ સાસુ વહુના સંબંધોને આજના વર્તમાન સંબંધો સાથે સરખાવી ગઈ.સાસુ વહુની આ બેલડી વર્તમાન સમયમાં સાસુ વહુના સંબંધો અંગેના પાઠ પણ સમાજને આપતી ગઈ.જે હાલના સમયમાં ઘણી જગ્યાએ સાર્થક થતા જોવા મળે છે.જાણો આગળ ગુજરાતની આ મહાન બે સ્ત્રીઓ વિશે જેણે શીખવ્યુ છે આજના સમયમાં સાસુ વહુના સંબંધો અંગેનુ મેનેજમેન્ટ.
પુત્રી,પત્ની અને માતાનો સંગમ જેમાં થાય તે એટલે સ્ત્રી,પણ એક એવી ગુજરાતી નારી આપણી સંસ્કૃતિને ભજનો થકી તો ઉજળી કરતી ગઈ પણ સમાજમાં શ્રેષ્ઠ સાસુનુ પણ ઉત્તમ ઉદાહરણ હંમેશને માટે છોડતી ગઈ.આ સાસુ વહુની બેલડી એટલે ગંગાસતી અને પાનબાઈ.જેણે સંસારના સૌથી વધુ મહત્વના સંબંધોને આજની લાઈફ સ્ટાઈલમાં તે સમયે ખુબ મર્યાદા અને હુંફ સાથે જીવી બતાવ્યા.આગળ જાણો ગંગાસતી અને પાનબાઈ વિશેની અજાણી વાતો.
ગંગા સતીનો જન્મ 1781માં ભાવનગરના રાજપરા ગામમાં થયો હતો.તેમના લગ્ન સમઢિયાળાના ગિરાસદાર કહળસંગ સાથે થયા હતા.તેમને રાજબા અને હરિબા અને અજિતસંગ નામનો પુત્ર હતો.અજીતસંગના લગ્ન પાનબાઈના મોટાબહેન મનબાઈ સાથે થયા હતા,પણ અજીતસંગના કાળા કામની જાણ થતા માનબાઈ લગ્ન સમયે ઝેર પીને મૃત્યુને વર્યા તેથી તેમના પિતાએ આબરુ બચાવવા પાનબાઈના લગ્ન અજીતસંગ સાથે કરી દીધા આ અંગે ગંગાસતીને જાન વળવ્યા બાદ જાણ કરવામાં આવી છત્તા ગંગાસતીએ પાનબાઈને દીકરી ગણી સ્વીકારી લીધા,પણ અજીતસંગને આ અંગેની જાણ થતા તે પાનબાઈને છોડીને ચાલ્યા ગયા.પછી આ સાસુ વહુની બેલડી વચ્ચે માત અને પુત્રીથી વિશેષ સંબંધ કેળવાયો,ગંગાસતી ભજનો રચતા અને રોજ પાનબાઈને સંભળાવતા અને સમજવતા.
ગંગાસતીએ પોતાની પુત્રવધુ પાનબાઈને ઉદ્દેશીને અનેક ભજનો રચ્યા છે.જેમાં તેમણે આ ભજનની રચાના કરી હતી કે-
‘મેરુ રે ડગે ને જેના મન નો ડગે રે પાનબાઈ,
મરને ભાંગી પડે બ્રહ્માંડ રે !
વિપત પડે પણ વણસે નહિ રે,
એ તો હરિજનના પરમાણ રે !
આ ભજનનો અર્થ એવો છે કે એક જ ફેરામાં એક ભવ શોભે છે.વારંવાર ફેરા ફરતા રહીએ તો સાચા ફેરા ભુલી જવાય છે.જીવનમાં ગમે તેટલી મુશકેલી આવે પણ મનને ડગવા ન દેશો આ મર્મ સમજાવી ગંગાસતીએ પોતાના પુત્રએ પાનબાઈ સાથે કરેલા અન્યાયની ટીકા કરી.
પોતાનો પુત્ર ઘર છોડીને ગયા બાદ પુત્ર વધુનુ દુઃખ ઓછુ કરવા ગંગાસતીએ પાનબાઈને ભક્તિના માર્ગે વાળી દીધા અને પોતે પણ સાદાઈ ધારણ કરી લીધી.છેલ્લા શ્વાસ સુધી તેમણે પાનબાઈને સાથે આપી આ સંબંધને મહાન બનાવ્યો.તમને જાણીને નવાઈ લાગશે કે ગંગાસતીએ સમાધી લીધાના ત્રીજા જ દિવસે તેમની પુત્ર વધુએ પણ સમાધી લઈ મૃત્યુને પણ માતા સમાન સાસુ સાથે વહાલુ કર્યુ.આમા આ બંને મહાન નારીઓ સદીઓ પહેલા સાસુ વહુના સંબંધોને માતા-પુત્રીના સંબંધોની ઉપમા આપતી ગઈ એટલુ જ નહી આ સંબંધોને જીવી બતાવ્યા.આજના સમય માટે સદીઓ પહેલા તેમણે આપણને એક અનોખી સમજ આપી દીધી.


Wednesday, 7 October 2015

चारण कवि दुरसाजी आढा रचित महाराणा प्रताप की प्रशस्ति के दोहे - संपूर्ण 'बिरद छहुंतरी')

दुर्शाजी आढ़ा नामक चारण कवि ने अकबर की सभा में अकबर के समक्ष खड़े होकर बिना डरे महाराणा प्रताप के नाम से 76 दुहे बना कर सुनाये थे, जो "बिरद छहुतरि" के नाम से जाना गया।

महा चारण कवि दुर्शा जी आढा
 

सिसोदिया शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंहजी 

अलख धणी आदेश,धरमाधार दया निधे, बरणो सुजस बेस, पालक धरम प्रताप रो. (१)
गिर उंचो गिरनार, आबु गिर ओछो नही ; अकबर अघ अंबार, पुण्य अंबार प्रतापसीं. (२)
वुहा वडेरा वाट, वाट तिकण वेहणो विसद ; खाग, त्याग, खत्र वाट, पाले राण प्रतापसीं. (३)

अकबर गर्व न आण, हिन्दु सब चाकर हुआ ; दिठो कोय दहिवाण, करतो लटकां कठहडे. (४)
मन अकबर मजबूत, फूट हिन्दुआ बेफिकर ; काफर कोम कपूत, पकडो राण प्रतापसीं. (५)
अकबर कीना याद, हिन्दु नॄप हाजर हुआ ; मेद पाट मरजाद, पोहो न आव्यो प्रतापसीं. (६)
मलेच्छां आगळ माथ, नमे नही नर नाथरो, सो करतब समराथ, पाले राण प्रतापसी. (७)
कलजुग चले न कार, अकबर मन आ जस युंही ; सतजुग सम संसार, प्रगट राण प्रतापसीं. (८)
कदे न नमावे कंध, अकबर ढिग आवेने ओ ; सूरज वंश संबंध, पाले राण प्रतापसी. (९)
चितवे चित चितोड़, चित चिंता चिता जले ; मेवाड़ो जग मोड़, पुण्य धन प्रतापसीं. (१०)
सांगो धरम सहाय, बाबर सु भिड़ियो बहस ; अकबर पगमां आय, पड़े न राण प्रतापसी. (११)
अकबर कुटिल अनीत, और बटल सिर आदरे ; रघुकुल उतम रीत, पाले राण प्रतापसी. (१२)
लोपे हिन्दुलाज, सगपण राखे तुरक सु ; आर्य कुल री आज, पुंजी राण प्रतापसीं. (१३)
सुख हित शिंयाळ समाज, हिन्दु अकबर वश हुआ ; रोशिलो मॄगराज, परवश रहे न प्रतापसी. (१४)
अकबर फुट अजाण, हिया फुट छोडे न हठ ; पगां न लागत पाण, पण धर राण प्रतापसीं. (१५)
अकबर पत्थर अनेक, भुपत कैं भेळा कर्या ; हाथ नआवे हेक, पारस राण प्रतापसीं. (१६)
अकबर नीर अथाह, तहं डुब्या हिन्दु तुरक ; मेवाड़ो तिण मांह, पोयण राण प्रतापसीं. (१७)
जाणे अकबर जोर, तो पण ताणे तोर तीड ; आ बदलाय छे ओर, प्रीसणा खोर प्रतापसीं. (१८)
अकबर हिये उचाट, रात दिवस लागो रहे ; रजवट वट सम्राट, पाटप राण प्रतापसीं. (१९)
अकबर घोर अंधार, उंघांणां हिन्दु अवर ; जाग्यो जगदाधार, पहोरे राण प्रतापसीं. (२०)
अकबरीये एकार, दागल कैं सारी दणी ; अण दागल असवार, पोहव रह्यो प्रतापसीं. (२१)
अकबर कने अनेक, नम नम निसर्या नरपती ; अणनम रहियो एक, पणधर राण प्रतापसीं. (२२)
अकबर है अंगार, जाळे हिन्दु नृपजले ; माथे मेघ मल्हार, प्राछट दिये प्रतापसीं. (२३)
अकबर मारग आठ, जवन रोक राखे जगत ; परम धरम जस पाठ, पीठीयो राण प्रतापसीं. (२४)
आपे अकबर आण, थाप उथापे ओ थीरा ; बापे रावल बाण, तापे राण प्रतापसीं. (२५)
है अकबर घर हाण, डाण ग्रहे नीची दिसट ; तजे न उंची ताण, पौरस राण प्रतापसीं. (२६)
जग जाडा जुहार, अकबर पग चांपे अधिप ; गौ राखण गुंजार, पिले रदय प्रापसीं. (२७)
अकबर जग उफाण, तंग करण भेजे तुरक ; राणावत रीढ राण, पह न तजे प्रतापसीं. (२८)
कर खुशामद कुर, किंकर कंजुस कुंकरा ; दुरस खुशामद दुर, पारख गुणी प्रतापसीं. (२९)
हल्दीघाटी हरोळ, घमंड करण अरी घणा ;आरण करण अडोल, पहोच्यो राण प्रतापसीं. (३०)
थिर नृप हिन्दुस्तान, ला तरगा मग लोभ लग ; माता पुंजी मान, पुजे राण प्रतापसीं. (३१)
सेला अरी समान, धारा तिरथ में धसे ; देव धरम रण दान, पुरट शरीर प्रतापसीं. (३२)
ढग अकबर दल ढाण, अग अग जगडे आथडे ; मग मग पाडे माण, पग पग राण प्रतापसीं. (३३)
दळ जो दिल्ली हुंत, अकबर चढीयो एकदम ; राण रसिक रण रूह, पलटे किम प्रतापसीं. (३४)
चित मरण रण चाह, अकबर आधिनी विना ; पराधिन पद पाय, पुनी न जीवे प्रतापसीं. (३५)
तुरक हिन्दवा ताण, अकबर लागे एकठा ; राख्यो राणे माण, पाणा बल प्रतापसीं. (३६)
अकबर मच्छ अयाण, पुंछ उछालण बल प्रबल ; गोहिल वत गहेराण, पायो नीधी प्रतापसीं. (३७)
गोहिल कुळ धन गाढ, लेवण अकबर लालची ; कोडी दिये ना काढ, पणधर राण प्रतापसीं. (३८)
नित गुध लावण नीर, कुंभी सम अकबर क्रमे ; गोहिल राण गंभीर, पण न गुंधले प्रतापसीं. (३९)
अकबर दल अप्रमाण, उदयनेर घेरे अनय ; खागां बल खुमाण, पेले दलां प्रतापसीं. (४०)
दे बारी सुर द्वार, अकबरशा पडियो असुर ; लड़ियो भड़ ललकार, प्रोलां खोल प्रतापसीं. (४१)
उठे रीड अपार, पींठ लग लागां प्रिस ; बेढीगार बकार, पेठो नगर प्रतापसीं. (४२)
रोक अकबर राह, ले हिन्दुं कुकर लखां ; विभरतो वराह, पाड़े घणा प्रतापसीं. (४३)
देखे अकबर दुर, घेरा दे दुश्मन घणा ; सांगाहर रण सुर, पेड न खसे प्रतापसीं. (४४)
अकबर तलके आप, फते करण चारो तरफ ; पण राणो प्रताप, हाथ न चढे हमीरहट. (४५)
अकबर दुरग अनेक, फते किया निज फौज सुं ; अचल चले न एक, पाधर राण प्रतापसीं. (४६)
दुविधा अकबर देख, किण विध सुं घायल करे ; पवंगा उपर पेख, पाखर राण प्रतापसीं. (४७)
हिरदे उणा होत, सिर धुणा अकबर सदा ; दिन दुणा देशोत, पुणा वहे न प्रतापसीं. (४८)
कलपे अकबर काय, गुणी पुगी धर गौडियां ; मणीधर साबड़ मांय, पड़े न राण प्रतापसीं. (४९)
मही दाबण मेवाड, राड़ चाड़ अकबर रचे ; विषे विसायत वाड़, प्रथुल वाड़ प्रतापसीं. (५०)
बंध्यो अकबर बेर, रसत घेर रोके रिपु ; कन्द मूल फल केर, पावे राण प्रतापसीं. (५१)
भागे सागे भोम, अमृत लागे उभरा; अकबर तल आराम, पेखे राण प्रतापसीं. (५२)
अकबर जिसा अनेक, आय पड़े अनेक अरि ; असली तजे न एक, पकड़ी टेक प्रतापसीं. (५३)
लांघण कर लंकाळ, सादुळो भुखो सुवे ; कुल वट छोड़ क्रोधाळ, पैठ न देत प्रतापसीं. (५४)
अकबर मेगल अच्छ, मांजर दळ घुमे मसत ; पंचानन पल भच्छ, पटके छड़ा प्रतापसीं. (५५)
दंतीसळ सुं दूर, अकबर आवे एकलो ; चौड़े रण चकचूर, पलमें करे प्रतापसीं. (५६)
चितमें गढ चितोड़, राणा रे खटके रयण ; अकबर पुनरो ओड, पेले दोड़ प्रतापसीं. (५७)
अकबर करे अफंड, मद प्रचंड मारग मले ; आरज भाण अखंड, प्रभुता राण प्रतापसीं. (५८)
घट सुं औघट घाट, घड़ियो अकबर ते घणो ; ईण चंदन उप्रवाट, परीमल उठी प्रतापसीं. (५९)
बड़ी विपत सह बीर, बड़ी किरत खाटी बसु ; धरम धुरंधर धीर,पौरुष घनो प्रतापसीं. (६०)
अकबर जतन अपार, रात दिवस रोके करे ; पंगी समदा पार, पुगी राण प्रतापसीं. (६१)
वसुधा कुल विख्यात, समरथ कुल सीसोदिया ; राणा जसरी रात, प्रगट्यो भलां प्रतापसीं. (६२)
जीणरो जस जग मांही, ईणरो धन जग जीवणो ; नेड़ो अपजश नाही, प्रणधर राण प्रतापसीं. (६३)
अजरामर धन एह, जस रह जावे जगतमें ; दु:ख सुख दोनुं देह, पणीए सुपन प्रतापसीं. (६४)
अकबर जासी आप, दिल्ली पासी दूसरा ; पुनरासी प्रताप, सुजन जीसी सूरमा. (६५)
सफल जनम सदतार, सफल जोगी सूरमा ; सफल जोगी भवसार, पुर त्रय प्रभा प्रतापसीं. (६६)
सारी वात सुजाण, गुण सागर ग्राहक गुणा; आयोड़ो अवसाण, पांतरयो नह प्रतापसीं. (६७)
छत्रधारी छत्र छांह, धरमधार सोयो धरां ; बांह ग्रहयारी बांह, प्रत न तजे प्रतापसीं. (६८)
अंतिम येह उपाय, विसंभर न विसारिये ; साथे धरम सहाय, पल पल राण प्रतापसीं. (६९)
मनरी मनरे मांही, अकबर रहेसी एक ; नरवर करीये नांही, पुरण राण प्रतापसीं. (७०)
अकबर साहत आस, अंब खास जांखे अधम ; नांखे रदय निसास, पास न राण प्रतापसीं. (७१)
मनमें अकबर मोद, कलमां बिच धारे न कुट ; सपना में सीसोद, पले न राण प्रतापसीं. (७२)
कहैजो अकबर काह, सेंधव कुंजर सामटा ; बांसे से तरबांह, पंजर थया प्रतापसीं. (७३)
चारण वरण चितार, कारण लख महिमा करी ; धारण कीजे धार, परम उदार प्रतापसीं. ( ७४)
आभा जगत उदार, भारत वरस भवान भुज ; आतमसम आधार, पृथ्वी राण प्रतापसीं. (७५)
काव्य यथारथ कीध, बिण स्वारथ साची बिरद ; देह अविचल दिध, पंगी रूप प्रतापसीं. (७६)

શૂરવીરોનાં પાળિયા


શૂરવીરોનાં પાળિયા - સત્ય ઘટનાનો પ્રસંગ 

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સૌરાષ્ટ્ર ( કાઠિયાવાડ, સોરઠ ) સંત, શૂરા અને સતિઓની ભૂમિ છે, સૌરાષ્ટ્ર બલિદાન અને સમર્પણના ઇતિહાસનાં સાક્ષી એવા પાળિયા ગામે ગામ જોવા મળે છે, પાળિયા બોલતા નથી પણ ધર્મ રક્ષણ કાજે, બહેન દિકરીની લાજ બચાવવા કાજે, આપેલા વચન કાજે, કે પછી શરણે આવેલા શરણાગતની રક્ષા કાજે , યુધ્ધે ચડેલા શૂરવિરોનો ઈતિહાસ બોલે છે, સૌરાષ્ટ્રના એવા જ એક ગામમા આવેલા શૂરવિરોના પાળિયાની વાત આજે કરવી છે, વાત તો એવી છે કે શરણે આવેલા શરણાગત ની રક્ષા કાજે શૂરવિરો ધિંગાણે ચડ્યા અને પોતાના પ્રાણ આપીને શરણે આવેલાની રક્ષા કરી હતી, આજે પણ તેના પાળિયા હોંકારો દેતા મૂળી ગામે ઉભા છે,

સૌરાષ્ટ્રના મૂળી ગામની વાત છે, એક વખત સૌરાષ્ટ્રમા વરસાદના અભાવે દુકાળ પડેલો , આવા સમયે દરેક ગામમા પશુઓને ખવડાવી શકાય એવા ઘાસચારાની મોટી અછત ઉભી થઈ હતી, ઘાસચારાની અછત સાથે દુકાળ પડતાં મૂળીના સોઢા પરમાર લખધીરસંહિ કુટુંબ કબીલા સાથે ગાયોનું ધણ લઇને મૂળી થી નજીક આવતા વઢવાણ જાય છે, ગાયોના ગૌચર માટે પડાવ નાખતાં પહેલાં વઢવાણના રાજા વિશળદેવની મંજુરી માગી, વિશળદેવ ઉદાર હતા એમણે ગૌચર ઉપરાંત બધી જમીન તમારી એમ બોલીને આગતાસ્વાગતા કરી. આ ઘટનાથી કેટલાક ઇર્ષાળુ લોકોનાં મન બળી ગયા આ ખટપટીયા લોકોએ સામેની જીન પરથી તેતરનો શિકાર કરતાં આ પક્ષી વિશળદેવને મળેલી ગૌચર જમીન પર પટકાયું. તરફડતા-ઘવાયેલા તેતરને વિશળદેવની માતા જોમબાઈએ ઊંચકી લઇને નાના બાળક જેમ બથમાં લીઘું અને બોલ્યા, ‘ગભરાઇશ નહિ, ક્ષત્રિયોનો હમેશાં રક્ષા કરવા માટે ધર્મ રહ્યો છે,

તેતરનો તીરથી શિકારકરનારા શિકારીઓ અહિ તેતર લેવા આવી પહોંચ્યા જોમબાઈએ કહ્યું કે ઘવાયેલું તેતર અમારી જગ્યામાં પડયું છે. તે અમારૂં શરણાગત છે. શરણે આવેલાનું અમે રક્ષણ કરીએ ભક્ષણ નહિ. શિકારીઓએ કડકાઇથી કહ્યું કે, ‘અમારો શિકાર અમને આપી દો - નહીતર લડવા તૈયાર થાવ, જોમબાઈએ તરત જવાબ આપી દીધો, " ઇ ખાંડાના ખેલ અમને શીખડાવવાના ન હોય " એક ઘવાયેલા તેતરને એક બાજુ રક્ષણ મળ્યું તો બીજી બાજુ શિકાર કરનારા તેતરનું ભક્ષણ કરવા હથિયારો સાથે તૂટી પડયા બંને પક્ષે ધમસાણ યુઘ્ધમાં બન્ને પક્ષે કોઇ બચ્યું નહિ, શિકારી ફોજનાં પાંચસો માણસોને એક માત્ર ઘવાયેલા તેતર પક્ષીને પોતાની ભૂમિમાં તરફડતું પડતાં એને બચાવવા જોમબાઈનાં ૧૪૦ સોઢા રાજપુતો આ લડાઇમાં ખપી ગયા, એક માત્ર તેતરને બચાવવા આ જબ્બર યુઘ્ધ થતાં બંને બાજુ લોહીની નદીઓ વહી હતી.

આ કરૂણ સમાચાર સાંભળીને વઢવાણના રાજવી લખધીરસિંહજી મુળી આવી પહોંચતાં બચી ગયેલા જોમબાઈ કહે, " મારા પતિ પાછળ આજથી ૨૦ વર્ષ પહેલા મારે સતિ થવાની જરૂર હતી " એ ઘડી આવી ગઈ છે. જોમબાઈએ મૃત્યુ પામેલા દીકરાનું મસ્તક ખોળામાં લઇને ભળભળ અગ્નિમાં સતિ થઇ ગયા. વઢવાણના રાજવી તો જોતાં જ રહી ગયા. ૮૦૦ વર્ષ પહેલાંની આ ઐતિહાસિક ઘટના માત્ર એક ઘવાયેલા તેતરને બચાવવા સોઢા રાજપુતોએ ધમસાણ યુઘ્ધ કરી પોતાની જાતને હોમી દીધી, આમ બંને પક્ષે ભયંકર ખુવારી થઇ,

આ સત્ય ઘટનાની સાક્ષી પૂરતા સુરેન્દ્રનગર જિલ્લાના મુળી ગામથી દૂર સીમમાં જોમબાઈની ડેરી પાસે શૂરવીરોનાં પાળિયા હોંકારો દેતા ઉભા છે... માત્ર ને માત્ર એક તેતર પક્ષીને બચાવવા સોઢા ક્ષત્રિયો મોટી સંખ્યામાં શહીદ થઇ ગયા.


આજે પણ મુળી ગામે જોમબાઈ માં ની ડેરી પાસે શૂરવિરોના પાળિયા હોંકારો દેતા ઉભા છે. એટલા માટે તો ચારણ કવિઓ કહે છે કે.....

પણ રે પ્રોઢા પાવાનું, ગુણ ગાવાનું,
ખવરાવાનું ખાવાનું, ઘોડે ચડવાનું મૂંછે તાનું
ઘવરાવાનું ઘાવાનું, ક્રુત શૂરવિરતાનું પ્રભુ કૃપાનું
ને વિર થવાનું, મહારથી વિધવા વરવાનું રણ ચડવાનું
ન્યા ના મર્દો નું કામ નથી, ન્યા ના મર્દો નું કામ નથી


સૌરાષ્ટ્ર રસધાર
આપણી સંસ્કૃતિ અને આપણો વારસો

ચારણ કન્યા - ઝવેરચંદભાઈ મેઘાણી



ઝવેરચંદ મેઘાણીની આ કવિતા ૧૯૨૮ ગીરના જગલમાં તુલસીશ્યામ પાસેના એક નેસડામાં હીરબાઈ નામની ૧૪ વર્ષની ચારણ કન્યાએ એકલે હાથે પોતાની વાછરડીને મારનાર સિંહને એનું માંસ ચાખવા નહોતું દીધું અને ફક્ત લાકડીએથી ગીરના સાવજને હાંકી કાઢ્યો હતો.

“તુલસીશ્યામથી બે ગાઉ અમે ખજૂરીને નેસડે હતા,ત્યાં રીડ થઇ. સાવજ ડણક્યો. હાકોટા થવા માંડ્યા. રોળકોળ વેળા થઇ હતી. ખાડું-ધણ ઝૂંપડે આવતાં હતાં. તેમાંથી હીરબાઇ કરી એક ચારણ બાઇની વોડકીને સાવજે પાદરમાં જ પાડી. અમે બધાદોડ્યા.વીસેક જણ હતા. જ્યાં ધાર માથે ચડ્યા ત્યાં તો હીરબાઇ ક્યારની યે ત્યાં પહોંચી ગઇ હતી. મરેલી વોડકી પર એ ચારણ-કન્યા ચડીને સાવજ સામે સોટો વીંઝતી હતી. સાવજ બે પગે સામો થઇ હોંકારા કરતો હતો. બાઇ સાવજના ફીણથી નાહી રહી, પણ ગાયને ચારણી બાઇએ સાવજને ખાવા ન દીધી….એવખતે ‘ચારણ-કન્યા’ ગીત મેઘાણીભાઇ કાગળ-કલમ સિવાય રચીને ગાવા લાગ્યા. એમનું શરીર જાગી ઊઠ્યું. આંખો લાલ ઘ્રમેલ ત્રાંબા જેવી થઇ ગઇ. એ પણ સાવજ તરફ દોડવા લાગ્યા. અમે એમને માંડમાંડ પકડી રાખેલા.”

- દુલા કાગ

સાવજ ગરજે !

વનરાવનનો રાજા ગરજે
ગીરકાંઠાનો કેસરી ગરજે
ઐરાવતકુળનો અરિ ગરજે
કડ્યપાતળિયો જોદ્ધો ગરજે
મોં ફાડી માતેલો ગરજે
જાણે કો જોગંદર ગરજે
નાનો એવો સમદર ગરજે !
ક્યાં ક્યાં ગરજે ?

બાવળના જાળામાં

ગરજે ડુંગરના ગાળામાં ગરજે
કણબીના ખેતરમાં ગરજે
ગામ તણા પાદરમાં ગરજે
નદીઓની ભેખડમાં ગરજે
ગિરિઓની ગોહરમાં ગરજે
ઉગમણો, આથમણો ગરજે
ઓરો ને આઘેરો ગરજે

થર થર કાંપે !

વાડામાં વાછડલાં કાંપે
કૂબામાં બાળકડાં કાંપે
મધરાતે પંખીડાં કાંપે
ઝાડ તણાં પાંદડલા કાંપે
પહાડોના પથ્થર પણ કાંપે
સરિતાઓના જળ પણ કાંપે
સૂતાં ને જાગંતાં કાંપે
જડ ને ચેતન સૌએ કાંપે

આંખ ઝબૂકે

કેવી એની આંખ ઝબૂકે
વાદળમાંથી વીજ ઝબૂકે
જોટે ઊગી બીજ ઝબૂકે
જાણે બે અંગાર ઝબૂકે
હીરાના શણગાર ઝબૂકે
જોગંદરની ઝાળ ઝબૂકે
વીર તણી ઝંઝાળ ઝબૂકે
ટમટમતી બે જ્યોત ઝબૂકે

જડબાં ફાડે !

ડુંગર જાણે ડાચાં ફાડે !
જોગી જાણે ગુફા ઉઘાડે !
જમરાજાનું દ્વાર ઉઘાડે !
પૃથ્વીનું પાતાળ ઉઘાડે !
બરછી સરખા દાંત બતાવે
લસ લસ કરતા જીભ ઝુલાવે.

બ્હાદર ઊઠે !

બડકંદાર બિરાદર ઊઠે
ફરસી લેતો ચારણ ઉઠે
ખડગ ખેંચતો આહીર ઊઠે
બરછી ભાલે કાઠી ઊઠે
ઘર ઘરમાંથી માટી ઊઠે
ગોબો હાથ રબારી ઊઠે
સોટો લઈ ઘરનારી ઊઠે
ગાય તણા રખવાળો ઊઠે
દૂધમલા ગોવાળો ઊઠે
મૂછે વળ દેનારા ઊઠે
ખોંખારો ખાનારા ઊઠે
માનું દૂધ પીનારા ઊઠે !
જાણે આભ મિનારા ઊઠે !

ઊભો રે’જે

ત્રાડ પડી કે ઊભો રે’જે !
ગીરના કુત્તા ઊભો રે’જે !
કાયર દુત્તા ઊભો રે’જે !
પેટભરા ! તું ઊભો રે’જે !
ભૂખમરા ! તું ઊભો રે’જે !
ચોર લૂંટારા ઊભો રે’જે !
ગા-ગોઝારા ઊભો રે’જે !

ચારણ કન્યા

ચૌદ વરસની ચારણ કન્યા
ચૂંદડીયાળી ચારણ કન્યા
શ્વેતસુંવાળી ચારણ કન્યા
બાળી ભોળી ચારણ કન્યા
લાલ હિંગોળી ચારણ કન્યા
ઝાડ ચડંતી ચારણ કન્યા
પહાડ ઘૂમંતી ચારણ કન્યા
જોબનવંતી ચારણ કન્યા
આગ ઝરંતી ચારણ કન્યા
નેસ નિવાસી ચારણ કન્યા
જગદમ્બા શી ચારણ કન્યા
ડાંગ ઉઠાવે ચારણ કન્યા
ત્રાડ ગજાવે ચારણ કન્યા
હાથ હિલોળી ચારણ કન્યા
પાછળ દોડી ચારણ કન્યા

ભયથી ભાગ્યો !

સિંહણ, તારો ભડવીર ભાગ્યો
રણ મેલીને કાયર ભાગ્યો
ડુંગરનો રમનારો ભાગ્યો
હાથીનો હણનારો ભાગ્યો
જોગીનાથ જટાળો ભાગ્યો
મોટો વીર મૂછાળો ભાગ્યો
નર થઈ તું નારીથી ભાગ્યો
નાનકડી છોડીથી ભાગ્યો !

ઝવેરચંદભાઈ મેઘાણી

- આભાર

સૌરાષ્ટ્ર રસધાર 
આપણી સંસ્કૃતિ અને આપણો વારસો.