Saturday, 28 March 2015

सदैव अटल रहेंगे 'भारत रत्‍न' अटल




बीजेपी के संस्थापक सदस्य और राजनीतिक क्षितिज में अति सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। बता दें कि वाजपेयी के 90 साल के होने के एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा नरेंद्र मोदी सरकार ने की थी। यह कहना कोई बड़ी बात नहीं होगी कि वाजपेयी केवल भारतीय राजनेता ही नहीं हैं, बल्कि वे एक अंतरराष्ट्रीय शख्सियत हैं, जिन्हें हर कोई सम्मान और प्यार करता है। चाहे कोई अपनी पार्टी को हो या विरोध पार्टी का, हर कोई उनकी शख्सियत का आज भी कायल है। आज भी संसद में या अन्‍य सार्वजनिक मंचों पर विरोधी पार्टी के नेता वाजपेयी का गुणगान करने से नहीं चूकते। उनके शब्‍दों का भाव यदि गौर से देखें तो यह पता चलता है कि उनके जैसा राजनेता कोई और नहीं। वाजपेयी को सम्‍मान मिलना कुछ ऐसा है कि 'भारत रत्‍न' हमेशा 'अटल' ही रहेगा।  
यह पूरे देश के लिए गर्व की बात है कि उन्‍हें भारत रत्न प्रदान किया गया। उनका व्यक्तित्व, उनकी भाषण देने की कला, उनकी ईमानदारी और विनम्रता उनकी महानता को दिखाता है। इस महान शख्सियत के राजनीतिक जीवन में कई उपलब्धियां जुड़ीं, जिसकी अहमियत कई मायनों में काफी बड़ी हैं। उन्‍होंने देश के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में एक अमिट छाप छोड़ी। संसद में दिए गए उनके भाषण समकालीन व नई पीढ़ी के सांसदों के लिए सदा प्रेरणा के स्त्रोत रहे। वाजपेयी अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते भारतीय राजनीति के शिखर पर पहुंचे और अपनी वाकपटुता से विरोधियों को भी अपना मुरीद बनाया। भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक, कवि और कई भाषाओं के ज्ञाता वाजपेयी गांधी-नेहरू परिवार के बाहर देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे। वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। वाजपेयी ने 2005 में राजनीति से संन्यास ले लिया। उस दौरान संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वाजपेयी को वर्तमान राजनीति का भीष्म पितामह कहा था।
2013 में जब यूपीए सरकार ने क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुललकर और वैज्ञानिक सीएनआर राव को भारत रत्न देने की घोषणा की थी तो बीजेपी ने उस समय राष्ट्र के प्रति वाजपेयी के योगदान को नजरअंदाज करने के लिए कांग्रेस की आलोचना की थी। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बाहदुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के अलावा सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर सहित 43 लोगों को अब तक भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरे से जुड़े होने के बावजूद वाजपेयी की एक धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी छवि है। उनकी लोकप्रियता भी दलगत सीमाओं से परे है। जिक्र योग्‍य है कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वाजपेयी कांग्रेस से बाहर के पहले प्रधानमंत्री हैं। वाजपेयी 1998 से 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इन दिनों वे उम्र से जुड़ी बीमारियों के चलते इन दिनों सार्वजनिक जीवन से दूर हैं। एक राजनेता के रूप में वाजपेयी की सराहना की जाती है और अक्सर उनका जिक्र बीजेपी के एक उदारवादी चेहरे के रूप में होता है।
वाजपेयी का जन्म 1924 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी हिन्दी एवं ब्रज भाषा के कवि थे तथा गांव के स्कूल में शिक्षक का कार्य करते थे। इस तरह वायपेयी को काव्य विरासत में मिली। वह एक अदद पॉलीटि‍शि‍यन के साथ-साथ कवि‍ हृदय थे। उनकी कविताएं भी खासी लोकप्रिय हुईं। उनकी ऐसी कई कवि‍ताएं हैं जो गहरा संदेश देती हैं। जैसे 'रार नहीं ठानूंगा, हार नहीं मानूंगा काल के कपाल पर, लिखता चला जाऊंगा'।
वाजपेयी राजनीति शास्त्र में एमए करने के उपरांत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्णकालिक सदस्य बन गए। वाजपेयी 1942 में राजनीति में आए जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। उन्होंने 1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई। अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। वैसे लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वो हार गए थे। बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे। उनके असाधारण व्यक्तित्व को देखकर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा।
साल 1968 में वाजपेयी राष्ट्रीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वर्ष 1975-77 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी अन्य नेताओं के साथ उस समय गिरफ्तार कर लिए गए। जेल से छूटने के बाद उन्होंने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया। 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वह मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में विदेश मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता है जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासंघ को हिन्दी भाषा में संबोधित किया। 1980 में वाजपेयी बीजेपी के संस्थापक सदस्य बने और पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के कारण गिर गई। 1998 में दोबारा हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्‍य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन किया और फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी फिर से सत्ता में आई और इस बार वाजपेयी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। वाजपेयी पहले जनसंघ फिर बीजेपी के संस्थापक अध्यक्ष रहे। तीन बार प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी के समय देश की आर्थिक विकास दर तेज रही। वह देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने, जिनका कांग्रेस से कभी नाता नहीं रहा। साथ ही वह कांग्रेस के अलावा के किसी अन्य दल के ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। उनके प्रधानमंत्रित्‍व कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, जिसमें कारगिल युद्ध, दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करना, संसद पर आतंकी हमला और गुजरात दंगे प्रमुख हैं। गुजरात दंगों के समय ही उन्‍होंने तब के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म पालन करने की सलाह दी थी। इससे समझा जा सकता है कि वाजपेयी किस तरह सामाजिक जीवन में पूरी निष्‍पक्षता से अपनी राय रखते थे।
कई नेताओं का यह मानना है कि वाजपेयी के नेतृत्व में काम करना ‘सम्मान’ की बात थी। इनका यह भी मानना है कि वह देश के कद्दावर नेता हैं। वह एक ऐसे उत्कृष्ट नेता हैं जिन्होंने देश हित में अथक काम किया। वाजपेयी के राजनीतिक जीवन में यूं तो अनेक लोग आए लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी के साथ उनकी जो जोड़ी बनी आज भी भारतीय राजनीति में एक मिसाल है। आडवाणी वाजपेयी के साथ उनके सचिव के रूप में जुड़े थे और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती और राजनीतिक समझबूझ ने जनसंघ और फिर भाजपा को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित किया। आडवाणी के साथ वाजपेयी के मतभेदों की अनेक अटकलें लगीं लेकिन हर बार वे अटकल बनकर ही रह गईं। राम मंदिर आंदोलन के दौरान आडवाणी भाजपा के कद्दावर नेता के रूप में उभरे लेकिन उन्होंने अपनी दोस्ती और वाजपेयी के राजनीतिक कद का सम्मान करते हुए उन्हें पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। वाजपेयी ने भी दोस्ती के धर्म का निर्वाह करते हुए आडवाणी को उप प्रधानमंत्री बनाया।
करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता और प्रखर कवि के रूप में प्रख्यात वाजपेयी को साहसिक पहल के लिए भी जाना जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री के रूप में उनकी 1999 की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा शामिल है, जब पाकिस्तान जाकर उन्होंने वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए।
अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि कोई अपना दोस्त बदल सकता है लेकिन पड़ोसी नहीं। उनके कहने का आशय था कि उस समय की एनडीए सरकार की मंशा पाकिस्तान के साथ दोस्ताना संबंध की थी। हालांकि वो अब भी है, लेकिन वाजपेयी की ये पहल कई मायनों में अहम थी। 90 के दशक के अंतिम वर्षों में वाजपेयी ने पड़ोसी देश के साथ शांति प्रकिया की पहल की थी और पाकिस्तान की तरफ दोस्ती के हाथ बढ़ाए थे। वह न केवल पाकिस्तान के साथ दोस्ताना संबंध चाहते थे बल्कि दोनों देशों के लोगों के दिलों में एक दूसरे के लिये प्यार चाहते थे। हालांकि ये अलग बात है कि बाद में भारत को बदले में कारगिल का युद्ध मिला।
अटल जी के कार्यकाल में भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न देश बना, आर्थिक क्षेत्र में लगातार प्रगति हुई, महंगाई काबू में रहा, विदेशी मुद्रा का भंडार तेजी से बढ़ा और पूंजीगत निवेश की भी भरमार रही। लेकिन अटल जी जैसे व्यक्तित्व को केवल राजग के सफल प्रधानमंत्री के दायरे में रखकर आंकना इस युगपुरुष के साथ अन्याय ही होगा। वह सदा बहुआयामी प्रतिभा के धनी के रूप में जाने जाते रहे हैं। उनका लंबा संसदीय जीवन राजनीतिक क्षेत्र के काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनुकरणीय रहा है।
इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती कि अटल जी के नेतृत्व में छह साल तक चली एनडीए की सरकार का कार्यकाल सुशासन का युग माना जाता है। विशेष तौर पर, विभिन्न विचारधाराओं वाले कई राजनीतिक दलों को लेकर जिस प्रकार अटल जी ने एक स्थिर और स्वच्छ सरकार चलाई, वह अपने आप में शासन करने का अनूठा उदाहरण है। पूरा देश आज इस सम्‍मान पर गौरवान्वित कर रहा है। वास्‍तव में भारत रत्‍न अटल तो 'अटल' ही रहेंगे
बिमल कुमार

Tuesday, 24 March 2015

इंडियाज डॉटर :

इंडियाज डॉटर : पहले अपना घर देखें उडविन
ब्रीटिश फिल्मकार लेस्ली उडविन की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडियाज डॉटर’ के भारत में प्रसारण पर रोक को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। डॉक्यूमेंट्री पर लगे प्रतिबंध के बावजूद बीबीसी ने अपने चैनल बीबीसी 4 पर तय समय से पहले इस डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण किया। भारत में प्रसारण पर लगे प्रतिबंध को ज्यादातर लोगों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के रूप में देखा है। उनकी राय है कि डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध नहीं लगनी चाहिए थी और इसका प्रसारण होने देना चाहिए था। मुझे लगता है कि उनकी राय उसी सामान्य अवधारणा पर टिकी है कि लोकतांत्रिक देश में प्रतिबंध और रोक जैसे शब्दों की जगह नहीं होती। लेकिन यह बात लेस्ली उडविन की डॉक्यूमेंट्री पर लागू नहीं की जा सकती। इसकी कई वजहे हैं।
उडविन की डॉक्यूमेंट्री दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को मेडिकल छात्रा से हुए बर्बर बलात्कार और उसकी हत्या के बारे में है। डॉक्यूमेंट्री में बलात्कार के आरोपियों में से एक मुकेश सिंह का इंटरव्यू है। डॉक्यूमेंट्री इस तरह का प्रभाव छोड़ती है कि भारत में रेप एक गंभीर समस्या है और महिलाओं के प्रति पुरुष ओछे दरजे और दरम्यानी सोच की मानसिकता रखते हैं। इस बात से इंकार नहीं कि भारत में रेप एक गंभीर समस्या है और कुछ पुरुष महिलाओं के प्रति मध्यकालीन सोच रख सकते हैं। लेकिन यही पूरी तस्वीर और हकीकत नहीं है। लेकिन बीबीसी जैसा विश्वसनीय चैनल जब किसी विषय को दिखाता या बताता है तो दुनिया उसे गंभीरता से लेती है। जर्मनी की ताजा घटना इस बात का समर्थन करती है जहां एक महिला प्रोफेसर ने भारतीय छात्र को मात्र इसलिए इंटर्नशिप देने से मना कर दिया कि भारत में रेप एक समस्या है।
लिपजिग विश्वविद्यालय में बॉयोकेमेस्ट्री विभाग की प्रोफेसर एनेटी बेकसिकिंगर ने छात्र को भेजे गए ई-मेल संदेश में कथित रूप से कहा, ‘दुर्भाग्यवश, मैं किसी भारतीय छात्र को इंटर्नशिप के लिए स्वीकार नहीं करती। भारत में रेप एक समस्या है। मेरे साथ बहुत सारी महिलाएं काम करती हैं। इसलिए मैं इजाजत नहीं दे सकती।’ एक दूसरे ई-मेल संदेश में बेकसिकिंगर ने कहा, ‘यह भरोसा नहीं होता कि इतने साल बीत जाने के बाद भी भारतीय समाज रेप जैसी समस्या का समाधान नहीं खोज सका है।’ हालांकि, भारत में जर्मनी के राजदूत माइकल स्टीनर ने इस घटना पर प्रोफेसर को फटकार लगाई और कहा कि ‘भारत बलात्कारियों का देश’ नहीं है। राजदूत ने प्रोफेसर कहा कि ‘मैं चाहूंगा कि आप भारत और यहां के खुले विचारों वाले लोगों के बारे में अपनी जानकारी दुरुस्त करें। भारत के प्रति इस तरह का नजरिया ऱखना खासकर एक प्रोफेसर के लिए ठीक नहीं है।’
राजदूत के इस फटकार के बाद प्रोफेसर ने माफी मांग ली। इस घटना को यहां उद्धृत करने का यही मकसद है कि खराब नीयत या एकांगी दृष्टिकोण से पेश की गईं चीजें कैसे किसी देश की छवि बनाती और बिगाड़ती हैं। उडविन ने अपनी डॉक्यूमेंट्री में फांसी की सजा पा चुके मुकेश सिंह से ऐसा कोई सवाल नहीं पूछा है जिससे वह असहज हो या उसे अपने घिनौने कृत्य पर अफसोस हो। उल्टे उसने अपनी गंदी और बीमार सोच जाहिर किया कि 16 दिसंबर की रात ‘निर्भया’ को विरोध  नहीं करना चाहिए था। उसने विरोध नहीं किया होता तो उसकी जान बच गई होती। मुकेश की विकृत मानसिकता पर गौर करें तो उसमें एक तरह की धमकी समाहित है कि बलात्कार के समय लड़कियों को विरोध नहीं करना चाहिए।
यही नहीं, आरोपियों के वकीलों एपी सिंह और एमएल शर्मा की कुत्सित-विकृत एवं मध्यकालीन मानसिकता की आज के भारतीय समाज में कोई जगह नहीं है। उडविन ने कुत्सित, विकृत और बीमार सोच को एक अंतरराष्ट्रीय मंच मुहैय्या कराया है और यह गंदी सोच दुनिया में भारत की छवि कैसे खराब कर सकती है या कर रही है, उसे जर्मनी जैसी एक घटना से समझा जा सकता है। दिल्ली गैंगरेप पर डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए उडविन को प्रेरणा कहां से मिली, इसके बारे में तो जानकारी नहीं लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि कोई भारतीय प्रतिनिधिमंडल उनसे या बीबीसी से डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए अनुरोध करने नहीं गया था। भारत में बलात्कार की स्थिति पर डॉक्यूमेंट्री तैयार करने से पहले उन्हें पहले अपने यहां होमवर्क कर लेना चाहिए था।    
रेप केवल भारत की समस्या नहीं बल्कि वैश्विक समस्या है। आकंड़ों की अगर बात करें तो दुनिया में सबसे ज्यादा बलात्कार की घटनाएं अमेरिका में होती हैं। जघन्य और बर्बर रेप की घटनाएं खुद ब्रिटेन में हुई हैं। बलात्कार को लेकर उडविन और बीबीसी यदि इतने संजीदे हैं तो उन्हें अमेरिका, पश्चिम देशों और खुद ब्रिटेन में होने वाले रेप क्यों नहीं दिखे। नैतिकता का उपदेश देने वाले बीबीसी को अपने कर्मचारी जिम्मी सैविल पर डॉक्यूमेंट्री बनानी चाहिए थी जिसने वर्षों तक बीबीसी परिसर में बच्चों एवं लड़कियों का यौन शोषण किया। मुकेश सिंह की मानसिकता जानने या पढ़ने के लिए बीबीसी को पहले जिम्मी सैविल पर डॉक्यूमेंट्री बनानी चाहिए थी।
यही नहीं, 1400 बच्चों की यौन प्रताड़ना वाली रोदरहैम घटना पर बीबीसी को सामाजिक बुराई नहीं दिखी। अपने समाज में फैले यौन हिंसा के प्रति उसका दायित्व आखिर कहां चला गया। उसे दूसरे के यहां होने वाली बलात्कार की घटनाओं में इतनी दिलचस्पी क्यों है। बीबीसी जब इस तरह से सेलेक्टिव अप्रोच अपनायगा तो उसकी नीयत पर संदेह होना लाजिमी है। भारत में रेप पर चिंता जाहिर करने से पहले उडविन पहले खुद के देश में फैली यौन हिंसा की महामारी पर फिल्म बनाती तो उनकी और बीबीसी की विश्वसनीयता और बढ़ती।
एक्सक्लूसिव 
आलोक कुमार राव

Sunday, 22 March 2015

ભવ્ય સનાતન ધર્મ મહાસભા


सूर्य नमस्कार पर ऐतराज क्यों?

सूर्य नमस्कार पर ऐतराज क्यों?


मुसलमानों की सर्वोच्च संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना राबे हसनी नदवी का मानना है कि हिन्दुस्तान में मुस्लिम समुदाय को अब मजहबी आजादी की हिफाजत की जरूरत महसूस होने लगी है। नदवी कहते हैं, 'आजादी के बाद देश जिन हालातों से गुजरा है और आज जिस जगह उसे देख रहे हैं, हमें लगता है कि देश को एक खास विचारधारा की तरफ ले जाया जा रहा है।' जी हां! हम बात कर रहे हैं उस 'सूर्य नमस्कार' की जिसे राजस्थान सरकार प्रदेश के स्कूलों में अनिवार्य करने की योजना बना रही है और जिसको लेकर भारतीय मुस्लिम समुदाय ने आपत्ति जताई है। यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर सूर्य नमस्कार पर ऐतराज क्यों?
पृथ्वी पर रहने वाला हर मनुष्य जीवन में खुश रहना चाहता है। धर्म, जाति, संप्रदाय और उद्देश्य को लेकर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद होने के बावजूद सब के सब एक ही लक्ष्य को पाने में जुटे हैं और वह लक्ष्य है जीवन में प्रसन्नता और सुख को पाना। अगर सूर्य नमस्कार से आपकी सेहत अच्छी होती हो, आप जीवन में प्रसन्न रहते हों, आपकी सोच जीवन को बहुआयामी दिशाएं प्रदान करे तो ऐसे सूर्य नमस्कार से किसी को क्यों परहेज होगा। लेकिन मुसलमानों की सर्वोच्च संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को सूर्य नमस्कार से परहेज है। बोर्ड ने अपने 24वें अधिवेशन में मुसलमान बच्चों से सूर्य नमस्कार न करने को कहा है। बोर्ड पदाधिकारियों ने साफ कहा है कि अगर सरकार सूर्य नमस्कार करने को कहे तब भी ऐसा नहीं करना है।
जहां तक मैं जानता हूं, शायद ही किसी धर्मग्रंथ या कानून में इस बात का उल्लेख किया गया हो कि सूर्य नमस्कार करना धर्म की सेहत के लिए ठीक नहीं है। हो भी कैसे सकता है। उस सूर्य को नमस्कार करने में किसी को दिक्कत कैसे हो सकती है जो जीवदायिनी हो। अगर आप धर्म के तराजू पर तौलने की कोशिश करते हैं तो कोई यह बता दे कि सूर्य ने किसी को ज्यादा लाभ दे दिया हो और किसी को नुकसान पहुंचा दिया हो। लाखों किलोमीटर की दूरी से चलकर आने वाली सूर्य की रोशनी सबको एक समान मिलती है। उसके पास धर्म और संप्रदाय जैसा कोई चश्मे नहीं है जिससे वह इस तरह का कोई भेदभाव कर सके।
सूर्य नमस्कार दरअसल एक संपूर्ण व्यायाम है। इसे करने से शरीर के सभी हिस्सों की एक्सरसाइज हो जाती है। साथ ही शरीर में एक तरह का लचीलापन भी आता है। सूर्य नमस्कार सुबह के समय खुले मैदान में उगते सूरज की ओर मुंह करके करना होता है। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है, विटामिन-डी मिलता है, मानसिक तनाव से भी मुक्ति मिलती है। वजन और मोटापा घटाने में भी सूर्य नमस्कार काफी लाभकारी है। इसके कुल 12 आसन होते हैं जिनका शरीर पर अलग-अलग तरह से प्रभाव पड़ता है।
सूर्य के प्रकाश एवं सूर्य की उपासना से कुष्ठ, नेत्र आदि के रोग दूर होते हैं। हर दिन प्रात:काल अगर आप कोई और व्यायाम नहीं कर पाते हों और कम से कम पांच बार सूर्य नमस्कार कर लेते हों तो यह बताने की जरूरत नहीं कि आपके जीवन में किस तरह का बदलाव आएगा। क्योंकि सूर्य नमस्कार एक तरह का षाष्टांग नमस्कार है। इस करने से मानव निरोग, वैभवशाली, सामर्थ्यवान, कार्यक्षमतावान, पुर्णायु होता है और व्यक्तित्व प्रतिभाशाली होता है।
अब देखिए, हर साल 21 जून को विश्व अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिनों से भी कम के रिकार्ड समय में पास कर दिया। 193 में से 177 सदस्य देशों ने विश्व योग दिवस मनाए जाने को लेकर अपनी सहमति दी। योग को हर धर्म के लोगों ने अपनाया। संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, इराक, सीरिया, अफगानिस्तान, बांग्लादेश ने भी भारत के इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। यहां मुस्लिम राष्ट्र यह कह सकते थे कि चूंकि नरेंद्र मोदी ने इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में रखा है इसलिए हम इसका समर्थन नहीं करेंगे। लेकिन मुस्लिम राष्ट्रों ने इस प्रस्ताव को भरपूर समर्थन दिया। इसलिए अगर आप योग को मान सकते हैं तो सूर्य नमस्कार को क्यों नहीं। दोनों में मानवता की भलाई छिपी है।  
बहरहाल, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सूर्य नमस्कार के मुद्दे पर गंभीरता से सोच विचार करे। मैं मानता हूं कि मुसलमान भाइयों को इस बात से ऐतराज होगा कि जिस देश में हिन्दू लोग पूरी निष्ठा के साथ सूर्य की उपासना (छठ व्रत) करते हों उस सूर्य को नमस्कार कैसे करें। लेकिन यह भी सच है कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऐसे दर्जनों मुसलमान भाई मिल जाएंगे जो इस छठ व्रत में सूर्य की उपासना में शरीक होते हैं। दरअसल भगवान भास्कर को किसी भी धर्म से जोड़ना पाप के समान है। खेत में फसल पर सूर्य की कृपादृष्टि धर्म के आधार पर नहीं होती है। आप गीले कपड़े धूप में डालते हैं तो सूर्य यह नहीं पूछता है कि इस कपड़े का धर्म क्या है। वह तो समान भाव से सबके ऊपर अपनी कृपा बरसाता है।
एक्सक्लूसिव
By Pravin Kumar | Last Updated: Sunday, March 22, 2015 - 19:58

Thursday, 5 March 2015

होली


१. त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत हिंदु धर्मका एक अविभाज्य अंग

         इनको मनानेके पीछे कुछ विशेष नैसर्गिक, सामाजिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण होते हैं तथा इन्हें उचित ढंगसे मनानेसे समाजके प्रत्येक व्यक्तिको अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवनमें अनेक लाभ होते हैं । इससे पूरे समाजकी आध्यात्मिक उन्नति होती है । इसीलिए त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत मनानेका शास्त्राधार समझ लेना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है ।
         होली भी संक्रांतिके समान देवी हैं । षड्विकारोंपर विजय प्राप्त करनेकी क्षमता होलिका देवीमें है । विकारोंपर विजय प्राप्त करनेकी क्षमता प्राप्त होनेके लिए होलिका देवीसे प्रार्थना की जाती है । इसलिए होलीको उत्सवके रूपमें मनाते हैं ।

२. होलीके पर्वपर अग्निदेवताके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेका कारण

         होली यह अग्निदेवताकी उपासनाका ही एक अंग है । अग्निदेवताकी उपासनासे व्यक्तिमें तेजतत्त्वकी मात्रा बढनेमें सहायता मिलती है । होलीके दिन अग्निदेवताका तत्त्व २ प्रतिशत कार्यरत रहता है । इस दिन अग्निदेवताकी पूजा करनेसे व्यक्तिको तेजतत्त्वका लाभ होता है । इससे व्यक्तिमेंसे रज-तमकी मात्रा घटती है । होलीके दिन किए जानेवाले यज्ञोंके कारण प्रकृति मानवके लिए अनुकूल हो जाती  है । इससे समयपर एवं अच्छी वर्षा होनेके कारण  सृष्टिसंपन्न बनती है । इसीलिए होलीके दिन अग्निदेवताकी पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । घरोंमें पूजा की जाती है, जो कि सुबहके समय करते हैं । सार्वजनिक रूपसे मनाई जानेवाली होली रातमें मनाई जाती है ।

३. होली मनानेका कारण

         पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश इन पांच तत्त्वोंकी सहायतासे देवताके तत्त्वको पृथ्वीपर प्रकट करनेके लिए यज्ञ ही एक माध्यम है । जब पृथ्वीपर एक भी स्पंदन नहीं था, उस समयके प्रथम त्रेतायुगमें पंचतत्त्वोंमें विष्णुतत्त्व प्रकट होनेका समय आया । तब परमेश्वरद्वारा एक साथ सात ऋषि-मुनियोंको स्वप्नदृष्टांतमें यज्ञके बारेमें ज्ञान हुआ । उन्होंने यज्ञकी सिद्धताएं (तैयारियां) आरंभ कीं । नारदमुनिके मार्गदर्शनानुसार यज्ञका आरंभ हुआ । मंत्रघोषके साथ सबने विष्णुतत्त्वका आवाहन किया । यज्ञकी ज्वालाओंके साथ यज्ञकुंडमें विष्णुतत्त्व प्रकट होने लगा । इससे पृथ्वीपर विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंको कष्ट होने लगा । उनमें भगदड मच गई । उन्हें अपने कष्टका कारण समझमें नहीं आ रहा था । धीरे-धीरे श्रीविष्णु पूर्ण रूपसे प्रकट हुए । ऋषि-मुनियोंके साथ वहां उपस्थित सभी भक्तोंको श्रीविष्णुजीके दर्शन हुए । उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी । इस प्रकार त्रेतायुगके प्रथम यज्ञके स्मरणमें होली मनाई जाती है । होलीके संदर्भमें शास्त्रों एवं पुराणोंमें अनेक कथाएं प्रचलित हैं ।

४. भविष्यपुराणकी कथा

         भविष्यपुराणमें एक कथा है । प्राचीन कालमें ढुंढा अथवा ढौंढा नामक राक्षसी एक गांवमें घुसकर बालकोंको कष्ट देती थी । वह रोग एवं व्याधि निर्माण करती थी । उसे गांवसे निकालने हेतु लोगोंने बहुत प्रयत्न किए; परंतु वह जाती ही नहीं थी । अंतमें लोगोंने सर्वत्र अग्नि जलाकर उसे डराकर भगा दिया । वह भयभीत होकर गांवसे भाग गई । इस प्रकार अनेक कथाओंके अनुसार विभिन्न कारणोंसे इस उत्सवको देश-विदेशमें विविध प्रकारसे मनाया जाता है । प्रदेशानुसार फाल्गुनी पूर्णिमासे पंचमी तक पांच-छः दिनोंमें, कहीं तो दो दिन, तो कहीं पांचों दिनतक यह त्यौहार मनाया जाता है ।

५. होलीका महत्त्व

        होलीका संबंध मनुष्यके व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवनसे है, साथ ही साथ नैसर्गिक, मानसिक तथा आध्यााqत्मक कारणोंसे भी है । यह बुराई पर अच्छाईकी विजयका प्रतीक है । दुष्प्रवृत्ति एवं अमंगल विचारोंका नाश कर, सद्प्रवृत्तिका मार्ग दिखानेवाला यह उत्सव है। अनिष्ट शक्तियोंको नष्ट कर ईश्वरीय चैतन्य प्राप्त करनेका यह दिन है । आध्यात्मिक साधनामें अग्रसर होने हेतु बल प्राप्त करनेका यह अवसर है । वसंत ऋतुके आगमन हेतु मनाया जानेवाला यह उत्सव है । अग्निदेवताके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेका यह त्यौहार है ।

६. शास्त्रानुसार होली मनानेकी पद्धति

         कई स्थानोंपर होलीका उत्सव मनानेकी सिद्धता महीने भर पहलेसे ही आरंभ हो जाती है । इसमें बच्चे घर-घर जाकर लकडियां इकट्ठी करते हैं । पूर्णमासीको होलीकी पूजासे पूर्व उन लकडियोंकी विशिष्ट पद्धतिसे रचना की जाती है । तत्पश्चात उसकी पूजा की जाती है । पूजा करनेके उपरांत उसमें अग्नि प्रदीप्त (प्रज्वलित) की जाती है । होली प्रदीपनकी पद्धति समझनेके लिए हम इसे दो भागोंमें विभाजित करते हैं, १. होलीकी रचना तथा २. होलीका पूजन एवं प्रदीपन
७. होलीकी रचना की पद्धत

७ अ. होलीकी रचनाके लिए आवश्यक सामग्री

        अरंड अर्थात कैस्टरका पेड, माड अर्थात कोकोनट ट्री, अथवा सुपारीके पेडका तना अथवा गन्ना ।  ध्यान रहें, गन्ना पूरा हो । उसके टुकडे न करें । मात्र पेडका तना पांच अथवा छः फुट लंबाईका हो । गायके गोबरके उपले अर्थात ड्राइड काऊ डंग, अन्य लकडियां ।

७ आ. होलीके रचनाकी प्रत्यक्ष कृति

        सामान्यत: ग्रामदेवताके देवालयके सामने होली जलाएं । यदि संभव न हो, तो सुविधाजनक स्थान चुनें । जिस स्थानपर होली जलानी हो, उस स्थानपर सूर्यास्तके पूर्व झाडू लगाकर स्वच्छ करें । बादमें उस स्थानपर गोबर मिश्रित पानी छिडवे । अरंडीका पेड, माड अथवा सुपारीके पेडका तना अथवा गन्ना उपलब्धताके अनुसार खडा करें । उसके उपरांत चारों ओर उपलों एवं लकड़ियोंकी शंकुसमान रचना करें । उस स्थानपर रंगोली बनाएं । यह रही होलीकी शास्त्रके अनुसार रचना करनेकी उचित पद्धति ।

७ इ. होलीकी रचना करते समय उसका आकार शंकुसमान होनेका शास्त्राधार

१. होलीका शंकुसमान आकार इच्छाशक्तिका प्रतीक है ।
२. होलीकी रचनामें शंकुसमान आकारमें घनीभूत होनेवाला अग्निस्वरूपी तेजतत्त्व भूमंडलपर आच्छादित होता है । इससे भूमिको लाभ मिलनेमें सहायता होती है । साथ ही पातालसे भूगर्भकी दिशामें प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनोंसे भूमिकी रक्षा होती है ।
३. होलीकी इस रचनामें घनीभूत तेजके अधिष्ठानके कारण भूमंडलमें विद्यमान स्थानदेवता, वास्तुदेवता एवं ग्रामदेवता जैसे क्षुद्रदेवताओंके तत्त्व जागृत होते हैं । इससे भूमंडलमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंके उच्चाटनका कार्य सहजतासे साध्य होता है ।
४. शंकुके आकारमें घनीभूत अग्निरूपी तेजके संपर्कमें आनेवाले व्यक्तिकी मनःशक्ति जागृत होनेमें सहायता होती है । इससे उनकी कनिष्ठ स्वरूपकी मनोकामना पूर्ण होती है एवं व्यक्तिको इच्छित फलप्राप्ति होती है ।

७ र्इ. होलीकी एक पुरुष जितनी ऊंचाई होना क्यों आवश्यक है ?

१. होलीके कारण साधारणतः मध्य वायुमंडल एवं भूमिके पृष्ठभागके निकटका वायुमंडल शुद्ध होनेकी मात्रा अधिक होती है ।
२. होलीकी ऊंचाई एक पुरुष जितनी बनानेसे होलीद्वारा प्रक्षेपित तेजकी तरंगोंके कारण ऊध्र्वदिशाका वायुमंडल शुद्ध बनता है । तत्पश्चात् यह ऊर्जा जडत्व धारण करती है एवं मध्य वायुमंडल तथा भूमिके पृष्ठभागके निकटके वायुमंडलमें घनीभूत होने लगती है । इसी कारणसे होलीकी ऊंचाई साधारणतः पांच-छः फुट होनी चाहिए । इससे शंकुस्वरूप रिक्तिमें तेजकी तरंगें घनीभूत होती हैं एवं मध्यमंडलमें उससे आवश्यक ऊर्जा निर्मित होती है ।

७ उ. होलीके मध्यमें खडा करनेके लिए विशिष्ट पेडोंका ही उपयोग क्यों किया जाता है ?

होलीकी रचना करते समय मध्यस्थानपर गन्ना, अरंड तथा सुपारीके पेडका तना खडा करनेका आधारभूत शास्त्र
गन्ना : गन्ना भी प्रवाही रजोगुणी तरंगोंका प्रक्षेपण करनेमें अग्रसर होता है । इसकी समिपताके कारण होलीमें विद्यमान शक्तिरूपी तेजतरंगें प्रक्षेपित होनेमें सहायता मिलती है । गन्नेका तना होलीमें घनीभूत हुए अग्निरूपी तेजतत्त्वको प्रवाही बनाता है एवं वायुमंडलमें इस तत्त्वका फुवारेसमान प्रक्षेपण करता है । यह रजोगुणयुक्त तरंगोंका फुवारा परिसरमें विद्यमान रज-तमात्मक तरंगोंको नष्ट करता है । इस कारण वायुमंडलकी शुद्धि होनेमें सहायता मिलती है ।
अरंड : अरंडसे निकलनेवाले धुएंके कारण अनिष्ट शक्तियोंद्वारा वातावरणमें प्रक्षेपित की गई दुर्गंधयुक्त वायु नष्ट होती है ।
सुपारी : मूलतः रजोगुण धारण करना यह सुपारीकी विशेषता है । इस रजोगुणकी सहायतासे होलीमें विद्यमान तेजतत्त्वकी कार्य करनेकी क्षमतामें वृद्धि होती है ।

७ ऊ. होलीकी रचनामें गायके गोबरसे बने उपलोंके उपयोगका महत्त्व

         गायमें ३३ करोड देवताओंका वास होता है । इसका अर्थ है, ब्रह्मांडमें विद्यमान सभी देवताओंके तत्त्वतरंगोंको आकृष्ट करनेकी अत्यधिक क्षमता गायमें होती है । इसीलिए उसे गौमाता कहते हैं । यही कारण है कि गौमातासे प्राप्त सभी वस्तुएं भी उतनी ही सात्त्विक एवं पवित्र होती हैं । गोबरसे बनाए उपलोंमें से ५ प्रतिशत सात्त्विकताका प्रक्षेपण होता है, तो अन्य उपलोंसे प्रक्षेपित होनेवाली सात्त्विकताका प्रमाण केवल २ प्रतिशत ही रहता है । अन्य उपलोंमें अनिष्ट शक्तियोंकी शक्ति आकृष्ट होनेकी संभावना भी होती है । इससे व्यक्तिकी ओर कष्टदायक शक्ति प्रक्षेपित हो सकती है । कई स्थानोंपर लोग होलिका पूजन षोडशोपचारोंके साथ करते हैं । यदि यह संभव न हो, तो न्यूनतम पंचोपचार पूजन तो अवश्य करना चाहिए ।

८. होलिका-पूजन एवं प्रदीपन हेतु आवश्यक सामग्री

         पूजाकी थाली, हल्दी-कुमकुम, चंदन, फुल, तुलसीदल, अक्षत, अगरबत्ती घर, अगरबत्ती, फुलबाती, निरांजन, कर्पूर, कर्पूरार्ती, दियासलाई अर्थात मॅच बाक्स्, कलश, आचमनी, पंचपात्र, ताम्रपात्र, घंटा, समई, तेल एवं बाती, मीठी रोटीका नैवेद्य परोसी थाली, गुड डालकर बनाइ बिच्छूके आकारकी पुरी अग्निको समर्पित करनेके लिए.
१. सूर्यास्तके समय पूजनकर्ता शूचिर्भूत होकर होलिका पूजनके लिए सिद्ध हों ।
२. पूजक पूजास्थानपर रखे पीढेपर बैठें ।
३. उसके पश्चात आचमन करें ।
४. अब होलिका पूजनका संकल्प करें ।
‘काश्यप गोत्रे उत्पन्नः विनायक शर्मा अहं । मम सपरिवारस्य श्रीढुंढाराक्षसी प्रीतिद्वारा तत्कर्तृक सकल पीडा परिहारार्थं तथाच कुलाभिवृद्ध्यर्थंम् । श्रीहोलिका पूजनम् करिष्ये ।’
         अब चंदन एवं पुष्प चढाकार कलश, घंटी तथा दीपपूजन करें । तुलसीके पत्तेसे संभार प्रोक्षण अर्थात पूजा साहित्यपर प्रोक्षण करें । अब कर्पूरकी सहायतासे होलिका प्रज्वलित करें । होलिकापर चंदन चढाएं । होलिकापर हल्दी चढाएं । कुमकुम चढाकर पूजन आरंभ करें ।
५. अब पुष्प चढाएं ।
६. उसके उपरांत अगरबत्ती दिखाएं ।
७. तदुपरांत दीप दिखाएं ।
८. होलिकाको मीठी रोटीका नैवेद्य अर्पित कर प्रदीप्त होलीमें निवेदित करे । दूध एवं घी एकत्रित कर उसका प्रोक्षण करे। होलिकाकी तीन परिक्रमा लगाएं । परिक्रमा पूर्ण होनेपर मुंहपर उलटे हाथ रखकर ऊंचे स्वरमें चिल्लाएं । गुड एवं आटेसे बने बिच्छू आदि कीटक मंत्रपूर्वक अग्निमें समर्पित करे । सब मिलकर अग्निके भयसे रक्षा होने हेतु प्रार्थना करें ।
९. कई स्थानोंपर होलीके शांत होनेसे पूर्व इकट्ठे हुए लोगोंमें नारियल, चकोतरा (जिसे कुछ क्षेत्रोमें पपनस कहते हैं – नींबूकी जातिका खट्टा-मीठा फल) जैसे फल बांटे जाते हैं । कई स्थानोंपर सारी रात नृत्य-गायनमें व्यतीत की जाती है ।

९. भावपूर्ण रीतिसे होलीका पूजन करनेसे सूक्ष्म स्तरपर क्या परिणाम होता है ?

१. होली पूजनके समय पूजक एवं पुरोहित दोनोंपर होनेवाले परिणाम ।
२. होलीपूजनके समय दोनोंकी ओर ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह आकृष्ट होता है । जिनका लाभ पूजा अच्छी प्रकारसे होनेके लिए होता है ।
३. मंत्रपठन करते समय दोनोंका ईश्वरसे सायुज्य होता है । इससे मंत्रपठन भावपूर्ण रीतिसे होनेके लिए ईश्वरीय शक्तिका प्रवाह उनकी ओर आकृष्ट होता है । इसके कारण पूजाविधिके लिए भी शक्ति प्राप्त होती है ।
४. होलीकी पूजा करते समय पूजक एवं पुरोहित दोनोंके आज्ञाचक्रके स्थानपर एकाग्रता एवं सेवाभावका गोला निर्माण होता है ।
५. पुरोहितद्वारा बताएनुसार पूजक मंत्रोच्चार करता है । इस मंत्रोच्चारके कारण दोनोंके आज्ञाचक्रके स्थानपर मंत्रशक्तिका कार्यरत वलय निर्माण होता है ।
६. पूजा करते समय दोनोंमें भावका वलय निर्माण होता है ।
७. सात्त्विक पुरोहितमें प्रार्थना एवं गुरुकृपाका गोला निर्माण होता है । इस कारण वे सेवा कर पाते हैं एवं उन्हें सात्त्विकताका अधिक लाभ प्राप्त होता है ।
८. मंत्रपठन एवं होलीमें प्रयुक्त उचित प्रकारके वृक्षोंकी लकडियोंके कारण सात्त्विक पुरोहितमें शक्तिका वलय कार्यरत होता है एवं उससे वातावरणमें शक्तिका प्रवाह प्रक्षेपित होता है ।
९. दोनोंके देहकी शुद्धि होती है एवं उनके सर्व ओर ईश्वरीय शक्तिका सुरक्षाकवच निर्माण होता है ।
१०. पूजामें निर्माण हुई शक्तिके कारण होलीके सर्व ओर भूमिके समांतर शक्तिका एवं चैतन्यका वलय निर्माण होता है  ।

१०. होली प्रज्वलित करते समय होलीमें कैसे स्पंदन अनुभव होते हैं ।

Holi

११. पूजाविधिके उपरांत होली प्रज्वलित करनेसे होनेवाले परिणाम

१. होली प्रज्वलित करनेके लिए पूजकद्वारा हाथमें लिए प्रदिप्त अर्थात जलाते हुए कर्पूरमें तेजतत्वका वलय निर्माण होता है । उससे चमकीले कणोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है ।
२. अग्निद्वारा शक्तिका वलाय निर्माण होता है तथा उससे शक्तिकी तरंगे होलीकी रचनाकी ओर प्रक्षेपित होती है ।
३. प्रदिप्त कर्पूरमें मंत्रशक्तिका वलाय भी निर्माण होता है तथा उसकेद्वारा मंत्रशक्तिकी तरंगें होलीकी ओर प्रक्षेपित होती है ।
४. मंत्रशक्तिकी बाहरी ओर चैतन्यका वलाय निर्माण होता है । उससे होलीकी रचनाकी ओर चैतन्यकी तरंगोंका प्रक्षेपण होता है ।
५. होली प्रदीपन करते समय अग्निमें विद्यमान शक्ति प्रवाहके रूपमें पूजकको प्राप्त होती है ।
६. पूजकके चारों ओर तेजतत्त्वका, शक्तिका एवं चैतन्यका सुरक्षाकवच निर्माण होता है ।
७. होलीकी रचनामें सगुण शक्ति एवं सगुण चैतन्यके वलय निर्माण होते हैं । इन वलयोंद्वारा शक्तिके तथा चैतन्यके प्रवाहोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है । कुछ मात्रामें शक्तिके वलयोंका भी वातावरणमें प्रक्षेपण होता है । यह प्रक्षेपण आवश्यकताके अनुसार कभी तीव्र गतिसे, तो कभी धीमी गतिसे होता है ।
८. होलीमें अग्नि प्रदीप्त करते समय बीचमें रखे गन्नेकी ऊपरी नोंकमें ईश्वरीय शक्ति एवं चैतन्यके प्रवाह आकृष्ट होते हैं । इन प्रवाहोंद्वारा शक्ति एवं चैतन्यके कार्यरत वलय निर्माण होते हैं । इन वलयोंद्वारा वातावरणमें शक्ति एवं चैतन्यके प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं ।
९. इन कार्यरत वलयोंद्वारा चैतन्यका सर्पिलाकार प्रवाह होलीकी रचनाकी ओर आकृष्ट होता है । वातावरणमे शक्तिके समांतर वलय उध्र्व दिशामें प्रसारित होते हैं ।
१०.  शक्ति एवं चैतन्यके भूमिसे समांतर वलय अधो दिशामें प्रसारित होते हैं । शक्ति एवं चैतन्यका प्रक्षेपण उध्र्व तथा अधो दिशामें होनेसे सभी दिशाओंकी अनिष्ट शक्तियां दूर होती हैं । होलीसे तेजत्वात्मक मारक शक्तिके कणोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है । इससे वातावरणमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियां नष्ट होती हैं । इस शक्तिके कारण वहां उपस्थित  व्यक्तियोंपर आध्यत्मिक उपाय होते हैं ।

१२. होलीमें अर्पण करनेके लिए मीठी रोटी बनानेका शास्त्रीय कारण

       होलिका देवीको निवेदित करनेके लिए एवं होलीमें अर्पण करनेके लिए उबाली हुई चनेकी दाल एवं गुडका मिश्रण, जिसे महाराष्ट्रमें पुरण कहते हैं, यह भरकर मीठी रोटी बनाते हैं । इस मीठी रोटीका नैवेद्य होली प्रज्वलित करनेके उपरांत उसमें समर्पित किया जाता है । होलीमें अर्पण करनेके लिए नैवेद्य बनानेमें प्रयुक्त घटकोंमें तेजोमय तरंगोंको अतिशीघ्रतासे आकृष्ट, ग्रहण एवं प्रक्षेपित करनेकी क्षमता होती है । इन घटकोंद्वारा प्रक्षेपित सूक्ष्म वायुसे नैवेद्य निवेदित करनेवाले  व्यक्तिकी देहमें पंचप्राण जागृत होते हैं । उस नैवेद्यको प्रसादके रूपमें ग्रहण करनेसे  व्यक्तिमें तेजोमय तरंगोंका संक्रमण होता है तथा उसकी सूर्यनाडी कार्यरत होनेमें सहायता मिलती है । सूर्यनाडी कार्यरत होनेसे  व्यक्तिको कार्य करनेके लिए बल प्राप्त होता है ।

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)